अंग्रेजों की ग़ुलामी की जंजीरों में जब भारत कैद था, तब पूरा देश उनके खिलाफ़ एक साथ आ खड़ा हुआ. आज़ादी की लड़ाई में जितना योगदान पुरुषों ने दिया है, उतना ही योगदान महिलाओं का भी रहा.
हालांकि, एक समय ऐसा भी था, जब महिलाओं को घूंघट में ही पसंद किया जाता था. उन्हें घर की दहलीज़ के अंदर ही रखा जाता था. बाहरी मुद्दों में विचार रखना तो दूर, उन्हें बोलने की भी मनाही थी.
आजादी, शिक्षा, बराबरी का हक जैसे शब्द उनके लिए तो सिर्फ एक सपना थे.
ऐसे में, एक महिला ने ऐसी चीज़ चुनीं. जिसे सिर्फ पुरुषों के लिए माना जाता था. अपने पति के नाम से अपनी फोटो छपवाने वाली होमाई की कहानी बड़ी दिलचस्प है.
होमाई व्योरावाला, भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार बनीं. जिन्होंने अपनी बेहतरीन फोटोग्राफी के ज़रिये, ऐतिहासिक पलों को अपने कैमरे में कैद किया. आज़ाद भारत में पहली बार तिरंगा फहराने की तस्वीर, जो हमारी आँखों में कैद है. उस कैमरे के पीछे होमाई थीं.
इसके अलावा और कई एतिहासिक तस्वीरें होमाई ने अपने कैमरे में कैद की हैं. हालांकि उनका यह सफर इतना आसान नहीं था.
तो चलिए जानते हैं, इनके महिला फोटो पत्रकार से पद्म विभूषण सम्मान मिलने तक की कहानी–
36 बच्चों की क्लास में सिर्फ होमाई हुईं पास!
होमाई व्यारावाला का जन्म एक मध्यम-वर्गीय पारसी परिवार में हुआ था. 9 दिसंबर, 1913 में जन्मी होमाई का बचपन सूरत में बीता, लेकिन कुछ सालों बाद उनका परिवार मुंबई शिफ्ट हो गया.
कहते हैं कि उन्हें बचपन से ही पढ़ने का बहुत शौक था. उनके पिता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे. हालांकि फिर भी उन्होंने होमाई की पढ़ाई-लिखाई में कोई कसर नहीं छोड़ी.
उस समय देश अंग्रेजों की गिरफ्त में था और अंग्रेजी बोलने वालों की उस वक़्त काफी इज्जत हुआ करती थी. इसलिए होमाई के पिता चाहते थे कि होमाई अंग्रेजी सीखें. उन्होंने होमाई का ग्रांट रोड हाई स्कूल में दाखिल भी करवाया.
होमाई पढ़ने में बहुत तेज थीं. इस बात का अंदाजा इस बात से लगता है कि मैट्रिक की परीक्षा के दौरान सिर्फ होमाई ही ऐसी एक छात्रा थीं, जो अपनी क्लास में पास हुईं. स्कूल पास करने के बाद होमाई बॉम्बे यूनिवर्सिटी गयीं आगे की पढ़ाई करने के लिए. इस दौरान उनकी क्लास में छत्तीस बच्चों में से सिर्फ सात लड़कियाँ ही थीं.
होमाई के अंदर एक जुनून था उच्च शिक्षा पाने का. इसलिए कॉलेज पास करने के बाद वह अर्थशास्त्र की डिग्री लेने के लिए भी पढ़ने लगीं. उन्होंने उस समय उच्च शिक्षा प्राप्त की, जब लड़कियों का प्राथमिक शिक्षा पाना भी मुश्किल था.
इसी बीच उन्होंने फोटोग्राफी के बारे में सुना. आम लोगों के लिए फोटोग्राफी एक बहुत ही अलग चीज थी. होमाई को जब इसके बारे में पता चला, तो उनकी इसे सीखने की चाह हुई. आगे चलकर उन्होंने फोटोग्राफी में भी डिप्लोमा भी किया.
...और जब फोटोग्राफी से हुईं रूबरू
अगर इस पर बात करें कि फोटोग्राफी से होमाई का वास्ता कैसे पड़ा, तो कहानी सुनने में थोड़ी फ़िल्मी लगेगी. होमाई ने फोटोग्राफी के बारे में अपने भविष्य में होने वाले पति से सीखा.
दरअसल, हुआ यूँ कि होमाई पहली बार मानेकशॉ व्यारावाला नामक एक फोटोग्राफर से एक रेलवे स्टेशन पर मिली थीं. उनकी ये मुलाक़ात 1926 में हुई.
मानेकशॉ से ही उन्होंने जाना कि फोटोग्राफी कोई पेशा नहीं बल्कि एक कला है. मानेकशॉ की बताई बातों को समझकर होमाई की खींची तस्वीरें पहले से कहीं बेहतर हो गई थीं.
मानेकशॉ से फोटोग्राफी की कला को समझते-समझते, होमाई को उनसे प्यार हो गया. इस प्यार को आधिकारिक रूप उन्होंने 1941 में उनसे शादी करके दिया.
पति के नाम से छपीं होमाई की तस्वीरें...
होमाई ने अपने करियर की शुरुआत अपने पति की असिस्टेंट के रूप में की. उनके पति ‘द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया' और ‘द बॉम्बे क्रॉनिकल' में बतौर फोटो पत्रकार काम करते थे. शादी के बाद दोनों हर जगह साथ घूमते और तस्वीरें लेते. अपने पति को ही अपना गुरु बनाकर होमाई दिन ब दिन एक बेहतर फोटोग्राफर बनती जा रही थीं.
वक़्त के साथ होमाई की तस्वीरें बहुत अच्छी होती जा रही थीं. उनका भी दिल था कि वह अपने पति की तरह अख़बार में छपी अपनी खींची फोटो पर अपना नाम देखें. हालांकि यह संभव नहीं हो पाया. ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय महिलाओं द्वारा खींची गई फोटो को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती थी.
यह जानने के बाद भी होमाई का फोटोग्राफी का जुनून कम नहीं हुआ. उन्होंने फोटो खींचना जारी रखा. लिहाज़ा, उनके पति उनकी सारी तस्वीरें शुरुआत में अपने नाम से ही छपवाया करते थे. वह शुरुआत में मुंबई की दिनचर्या वाली तस्वीरें लिया करती थीं. जैसे-शहरी औरतें, काम पर जाते लोग आदि.
नेहरु हमेशा से रहें पसंदीदा विषय
हमेशा साड़ी पहनने वाली होमाई,अपने Rolleiflex कैमरे को साइड में लटकाकर रखती थीं. उनके करियर को उड़ान 20वीं शताब्दी के शुरुआत में मिली. वो अपने पति के साथ आकर दिल्ली बस गयी थीं.
दरअसल, इस समय देश में सामाजिक और राजनीतिक बदलाव आ रहे थे. उन्होंने आज़ाद भारत के जन्म को अपने कैमरे में उतारा था. आज़ाद भारत से जुड़ी लोगों की भावनाओं को कैद किया था, जो आगे चलकर आइकोनिक तस्वीरें बनी.
वैसे तो होमाई ने कई ऐतिहासिक घटनाओं को अपनी तस्वीर से हमेशा के लिया जिंदा कर दिया, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने कई महत्वपूर्ण लोगों की भी तस्वीरें ली.
जिसमें ब्रिटेन की रानी एलिज़ाबेथ, जैकलीन कैनेडी, दलाई लामा, लार्ड माउंटबेटन भी शामिल हैं.
हालांकि उनके पसंदीदा विषय हमेशा नेहरु जी ही रहे. होमाई इस बात को कहने में कभी भी नहीं झिझकी कि नेहरु उनके सबसे पसंदीदा विषय रहे हैं. उन्होंने जवाहरलाल नेहरु के राजनीतिक जीवन से लेकर निजी जीवन को अपनी तस्वीरों के ज़रिये हमेशा के लिए जीवित कर दिया.
बात अगर, नेहरु के कबूतर को उड़ाने की आइकोनिक तस्वीर की हो या फिर उनके क्लब में की गयी पार्टी. इन सभी लम्हों को होमाई ने अपने कैमरे में कैद किया.
होमाई ने नेहरु की मृत्यु पर कहा था कि "मृत्यु की बात सुनकर उन्हें ऐसा लगा कि उनका पसंदीदा खिलौना छिन गया हो."
पद्म विभूषण से हैं सम्मानित
अपने पति की मृत्यु के बाद, 1969 में उन्होंने फोटोग्राफी छोड़ दी. जिसके बाद वो अपने बेटे के साथ जाकर वडोदरा बस गयीं. उन्होंने खुद को फोटोग्राफी से बिलकुल दूर कर दिया था.
उन्हें भारत सरकार ने अपने क्षेत्र में बेहतरीन काम के लिए पद्म विभूषण अवार्ड से नवाज़ा था. इसके अलावा, उनकी तस्वीरों की आर्ट गैलरी में सहेज कर प्रदर्शनी के लिए रखा गया है.
आज़ाद भारत को अपने कैमरे में कैद करने वाली होमाई ने साल 15 जनवरी, 2012 में आखिरी सांस ली.
होमाई ने उस ज़माने में फोटोग्राफी शुरू की, जब महिलाओं को अपने विचार रखने की आज़ादी भी नहीं थी. उनके द्वारा खींची गयी हर तस्वीर उनके दुनिया को देखने के नज़रिए को दिखाती है.
एक फोटोपत्रकार के रूप में उन्होंने हर महत्वपूर्ण पल को अपने कैमरे में कैद किया. जिन्हें हमारे अलावा आने वाली पीढ़ियाँ भी उसी उत्सुकता से देखेंगी जैसे आज हम देखते हैं.
होमाई व्यारावाला, ये नाम हमेशा के लिया अमर हो गया है.
Web Title: Homai Vyarawalla: First Photojournalist Of India, Hindi Article