औरंगजेब, नाम ही क्रुरता का पर्याय है. इतिहास इसे विध्वंशक भी कहता है.
कहा जाता है कि वो अपने धर्म के प्रति बहुत कट्टर था, लेकिन यही केवल उसकी सच्चाई नहीं है. वह एक हत्यारा भी था.
उसने मुगल साम्राज्य पर अपना अधिकार जमाने के लिए अपने भाईयों की हत्या की.
औरंगजेब और उसके भाईयों के बीच गद्दी को लेकर हुआ खूनी संघर्ष ही मुगल इतिहास में 'उत्तराधिकार का संघर्ष' कहलाता है. इसमें केवल इंसानों का खून नहीं बहा, बल्कि इंसानियत का खून भी बहा था और रिश्ते तबाह हो गए थे.
एक ऐसा षड्यंत्र जिसको इतिहास ने बहुत कम महत्व दिया है.
क्या है शाहजहां के शासनकाल में हुए इस संघर्ष का कारण और कैसे घटी ये घटना. आइए इस लेख के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं –
बीमार शाहजहां ने दारा को गद्दी सौंपी
बात सितंबर, 1657 की है, मुगल बादशाह शाहजहां अपना स्वर्णकाल देख चुका था और अब बुढ़ा हो चला था.
उसके चार बेटे और तीन बेटियां थीं. बेटों में सबसे बड़ा दारा शिकोह बादशाह को सबसे अधिक प्रिय था.
और शहजादों में मुराद था, जिसे गुजरात का गवर्नर बनाया गया था. शाहशुजा को बंगाल का सूबा सौंपा दिया गया था.
और सबसे महत्वपूर्ण औरंगजेब को दक्कन का सूबा सौंपा गया, जो अपेक्षाकृत ज्यादा दुर्गम और जटिल था. शायद यही उसके ज्यादा ताकतवर होने का कारण था, क्योंकि उसने अपना शासन चलाने में कठिन परिस्थितियों का सामना किया था.
बहरहाल, मुगल बादशाह शाहजहां अब बीमार रहने लगा था और जानता था कि उत्तराधिकार का कोई तय नियम नहीं होने की वजह से शहजादों में गद्दी की लड़ाई छिड़ेगी.
उसने सोचा कि यदि मैंने अपने जीते-जी इसका फैसला कर दिया तो संघर्ष की संभावना को टाला जा सकता है.
यही सोचकर उसने अपने सबसे प्रिय शहजादे दारा शिकोह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया.
लेकिन औरंगजेब के मन में दारा को लेकर हमेशा से नफरत की भावना थी.
... और तैयार हुई संघर्ष की पृष्ठभूमि
औरंगजेब को दारा शिकोह बिलकुल पसंद नहीं था और वो उसे फूटी आंख भी नहीं सुहाता था.
इसका कारण था शाहजहां का दारा को ज्यादा प्यार-दुलार और महत्व देना.
शाहजहां दारा को इतना चाहता था कि उसने कभी भी उसे खुद से दूर जाने ही नहीं दिया और इधर 3 अन्य बेटे अपना खून जलाकर सुदूर इलाकों से मुगल साम्राज्य को पानी दे रहे थे.
इसके अलावा भी एक कारण था, जिसकी वजह से औरंगजेब, दारा शिकोह से नफरत करता था.
ये कारण था धार्मिक! दरअसल, औरंगजेब कट्टर इस्लाम को मानने वाला था, जबकि दारा शिकोह उदार था और इसका झुकाव सूफी मत की ओर अधिक था.
इसके अलावा, दारा सर्वधर्म सम्भाव की बात करता था. इसलिए जब उसे दारा को भावी बादशाह बनाए जाने का समाचार मिला तो वो तिलमिला गया और उसने जंग की ठान ली.
औरंगजेब बना कुटनीति का सिरमौर
दारा के उत्तराधिकारी बनते ही घटनाक्रम तेजी से बदलने लगा था. इस समय तक शाहजहां की तबीयत काफी खराब हो चली थी, लेकिन दारा की अच्छी देखभाल के बाद बादशाह की हालत अच्छी होने लगी थी.
इधर, आम लोगों, खासकर विरोधियों में ये अफवाह थी कि शाहजहां की मौत हो चुकी है. दारा ने ये बात छुपाई है और वो खुद शासक बन बैठा है.
इस बात ने आग में घी का काम किया.
औरंगजेब कब से ऐसे ही मौके की तलाश कर रहा था, कि कब उसे अपनी रणनीति पर अमल करने का मौका मिलेगा.
मौका देखकर उसने अपनी बिसात बिछानी शुरू कर दी.
औरंगजेब ने मुराद से संपर्क किया और उसे पट्टी पढ़ाई कि यदि वो उसका साथ दे तो मुगल गद्दी से दारा को उतारा जा सकता है. औरंगजेब ने कहा कि काफिर दारा से मुगल साम्राज्य को बचाने के लिए ये संघर्ष एक धर्म युद्ध होगा.
...और शुरू हो गया विद्रोह
जैसे ही ये खबर फैली कि शाहजहां की मौत हो गई है. बंगाल में गवर्नर के तौर पर तैनात शाहशुजा खुद को बादशाह घोषित कर दिल्ली की ओर बढ़ा.
जब ये जानकारी शाहजहां को मिली तो उसने शाहशुजा को रोकने के लिए दारा के पुत्र सुलेमान शिकोह को एक बड़ी सेना के साथ बंगाल भेज दिया.
शाहशुजा और सुलेमान की सेनाएं बनारस के पास टकराईं. दोनों में घमासान युद्ध हुआ और सुलेमान का जोश शाहशुजा के अनुभव पर भारी पड़ा.
शाहशुजा को भयानक पराजय का सामना करना पड़ा. हार के बाद शाहशुजा बंगाल भाग गया.
कहा जाता है कि बाद मेंं औरंगजेब ने शाहशुजा की बढ़ती महत्वाकांक्षा से परेशान होकर उसकी हत्या करवा दी.
इधर, दूसरी ओर दक्कन से औरंगजेब ने एक बड़ी सेना के साथ दिल्ली की और कूच कर दिया.
इसकी मांग पर गुजरात से मुराद भी अपने दलबल के साथ दिल्ली की ओर बढ़ा.
मालवा में दोनों भाई आपस में मिले. औरंगजेब ने धोखे के तहत दरबार में ये सूचना भिजवाई थी कि वो अपने बीमार पिता से मिलने आ रहा है, लेकिन शाहजहां चौकन्ना था, इसलिए उसने एक बड़ी सेना के साथ महाराजा जसवंत सिंह को स्वागत करने के बहाने भेज दिया.
महाराजा जसवंत सिंह को स्पष्ट निर्देेश दिए गए थे कि किसी भी प्रकार का संदेह होने पर वो औरंगजेब को खत्म कर दें. लेकिन वहां औरंगजेब और मुराद की विशाल संयुक्त सेना युद्ध के लिए तैयार खड़ी थी, ये देखकर महाराजा अवाक रह गए.
हालांकि वह अपनी बात से पीछे हटने वाले नहीं थे और युद्ध के मैदान में कूद पड़े.
अप्रैल, 1658 को धरमट नामक स्थान पर ये युद्ध लड़ा गया. जसवंत की बुरी तरह से हार हुई.
सामूगढ़ में हुई निर्णायक जंग
जब जसवंत की औरंगजेब के हाथों हार हुई, तब जाकर कहीं दारा शिकोह की नींद खुली.
अब इसे पक्का यकीन हो गया था कि उसके भाईयों का इरादा क्या है. उसने आनन-फानन में सेना इकट्ठी की और कई सारे राजपूत शासकों से सहायता की गुहार लगाई.
बावजूद इसके औरंगजेब की ताकत से टकराने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाया.
खुद कभी मुगल दरबार का वफादार रहा जसवंत सिंह, औरंगजेब के खेमे में जा मिला. शाहशुजा के लिए ये मुश्किल घड़ी थी, लेकिन युद्ध की संंभावना को टाला नहीं जा सकता था.
आखिरकार सामुगढ़ के मैदान में दारा और औरंगजेब टकराए, घमासान युद्ध हुआ.
कई गुणों में संपन्न दारा शिकोह एक अच्छा योद्धा नहीं था और इसके पास कूटनीति के गुणों का भी अभाव था.
इसका कारण था हमेशा दरबार में रहना, जहां अपेक्षाकृत कम संघर्ष था.
सामूगढ़ में भयानक संघर्ष छिड़ गया, लेकिन दारा की सेना जल्द ही तितर-बितर हो गई. दारा को लड़ाई का मैदान छोड़कर भागना पड़ा.
दारा लाहौर भाग गया, जहां बाद में उसके ही आश्रयदाता ने धोखे से उसे मार डाला.
इस लड़ाई के बाद जो हुआ वो और भी ज्यादा विश्वासघाती था.
दरअसल जब युद्ध के बाद सब लोग अपने-अपने शिविर में आराम कर रहे थे, उसी समय औरंगजेब ने एक विष कन्या की मदद से मुराद की हत्या करवा दी.
इसके बाद अब उसे चुनौती देने वाला कोई नहीं रहा. कभी षड्यंत्र तो कभी ताकत की बदौलत औरंगजेब महल में प्रवेश करने में सफल रहा.
इसने महल में पानी की आपूर्ति को बाधित करके बादशाह शाहजहां को आत्मसमर्पण के लिए बाध्य कर दिया.
मई, 1658 को औरंगजेब ने शाहजहां को आगरा के किले में कैद कर लिया और इसी के साथ वह मुहीउद्दीन मुजफ्फर औरंगजेब के नाम से सिंहासन पर बैठा गया.
साम्राज्यों में गद्दी के लिए कई संघर्ष हुए हैं, लेकिन ये पहली बार था जब सगे भाई इस कदर खूनी जंग और घिनौने संघर्ष में उलझे हों.
Web Title: How Aurangzeb Defeated his Brothers to Capture The Mughal Throne, Hindi Article
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