इससे पिछले लेख में आप पढ़ चुके हैं कि किस तरह से संयुक्त राष्ट्र यहूदी-अरब विवाद को समाप्त करने के लिए द्विराष्ट्र के सिद्धांत को अपनाता है और विवादित भूमि को दो देशों के रूप में बांट दिया जाता है.
इसका एक हिस्सा अरब राज्य तो दूसरा हिस्सा यहूदी राज्य (इजराइल) के रूप में सामने आया!
इस तरह दुनिया के नक्शे पर इजराइल नामक एक नए राष्ट्र का जन्म होता है. 1917 से पहले फिलिस्तीन पर सिर्फ अरबियों का अधिकार था, फिर 1947 आते-आते इजराइल उभरकर सामने आया.
लेकिन ये अंत नहीं है, इजराइल के दुनिया की मजबूत सैन्य ताकत बनने की कहानी की शुरूआत यहीं से होती है –
जब इजराइज पर टूट पड़े अरब देश
यहूदियों को तो यूएन का फैसला मंज़ूर था, लेकिन अरबों ने इसको मानने से इंकार कर दिया.
इसके बाद अरबों और यहूदियों में लगातार दंगे होते रहे, वहां लोगों की हत्याएं की गईं. ऐसे में हजारों फ़िलिस्तीनियों को लेबनान और मिस्र जैसे अरब देशों की ओर भागना पड़ा.
यूएन की घोषणा के बाद भी सीमा निर्धारण में तमाम समस्याएं आ रही थीं, कोई स्पष्ट रेखा दोनों नए देशों के बीच में नहीं थी. इसी बीच ब्रिटेन ने अपनी फौज फिलिस्तीन की धरती से वापस अपने देश बुला लीं.
इस स्थिति का लाभ उठाते हुए यहूदियों ने अपने को एक स्वतंत्र देश ‘इजराइल’ के रूप में घोषित कर दिया.
लेकिन अरब देश अरब भूमि पर किसी यहूदी देश के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करना चाहते थे. ऐसे में इस नए देश को खत्म करने के लिए अगले ही दिन अरब देशों (मिस्र, जॉर्डन, सीरिया, लेबनान और इराक) ने एक साथ मिलकर इजराइल पर हमला कर दिया.
इसे ‘1948 का युद्ध’ भी कहा जाता है और यहीं से अरब- इज़राइल युद्ध की शुरुआत होती है.
यह युद्ध शुरूआत में अरबों के पक्ष में झुक रहा था, लेकिन दोनों ही पक्षों को बराबर भारी नुकसान हो रहा था. हालांकि दोनों पक्ष जून 1948 को एक युद्ध विराम के लिए तैयार हो गए. इस युद्ध विराम ने ही इजराइल को युद्ध में वापस आने का मौका दे दिया.
इजराइल ने सैन्य तैयारी कर खुद को मजबूत स्थिति में खड़ा कर लिया. अंततः इस युद्ध में इजराइल की विजय हुई.
Arab Israeli War 1948. (Pic: Universal Mini Builders Wiki)
फिलिस्तीन की जमीन पर देशों की लूटा!
इसके बाद दोनों पक्षों में एक समझौते के तहत जॉर्डन और इजराइल के बीच सीमा निर्धारण हुआ, इस सीमा रेखा को ‘ग्रीन लाइन’ कहा गया.
इसके साथ ही जॉर्डन नदी के पश्चिमी हिस्से पर जिसे ‘वेस्ट बैंक’ कहा जाता है, पर जॉर्डन का कब्ज़ा हो गया, तो वहीं गाजा पट्टी पर मिस्र का कब्ज़ा हो गया.
यानी जो हिस्सा फिलिस्तीनियों को मिलना था, उसे मुस्लिम देशों ने बंदरबांट कर लिया. युद्ध के दौरान, जो क्षेत्र जिसके कब्जे में आया, उसने उसे अपना बना लिया.
और अब फिलिस्तीनियों के हाथों से वो हिस्सा भी चला गया जो उन्हें यूएन ने दिया था. अरब देशों के इस युद्ध का परिणाम यह हुआ कि करीब 7.5 लाख से अधिक फिलिस्तीनी अपने ही देश में बेघर हो गए.
इसके साथ ही शरणार्थी समस्या का संकट दुनिया के सामने आया. लाखों फिलिस्तीनियों को अपना देश, अपनी ही ज़मीन छोड़नी पड़ी.
बाद में 11 मई 1949 को संयुक्त राष्ट्र ने भी इजराइल को एक देश के रूप में मान्यता दे दी. इस तरह से उसी दिन इजराइल संयुक्त राष्ट्र का 59वां सदस्य देश बन गया.
Monument During Arab Israeli War. (Pic: Skyline Church)
मिस्र का तानाशाही रवैया
14 मई, 1967 को मिस्र को सूचना मिली कि इजराइल सीरिया वाले हिस्से में अवैध निर्माण कर रहा है. अगले ही दिन मिस्र के शासक जमाल अब्देल नासिर ने सिनाई वाले हिस्से यानी जिस हिस्से से मिस्र और इजराइल दोनों जुड़े हुए थे, की ओर भारी संख्या में सेना की नियुक्ति कर दी.
हालांकि वह इजराइल पर हमला करना नहीं चाहते थे. मिस्र की 1948 में इजराइल के हाथों करारी हार हुई थी, बावजूद इसके स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण के बाद जमाल अब्देल नासिर पूरे अरब जगत में एक हीरो की तरह उभरे.
अपनी फ़ौज की ताकत के अभिमान में मदमस्त नासिर ने सिनाई क्षेत्र से संयुक्त राष्ट्र से उसकी शांति सेना को हटाने का आदेश दे दिया और भारी संख्या में अपनी फौजें इजराइली सीमा पर तैनात कर दीं.
इतना ही नहीं नासिर ने लाल सागर में स्थित तिरान जलडमरूमध्य को भी ब्लाॅक कर दिया, जहां से इजराइल के लिए व्यापारिक जहाज़ों का आना-जाना होता था.
मिस्र और अरब के लोग नासिर के इस काम को अपनी जीत समझकर जश्न मनाने लगे, लेकिन यह ख़ुशी कुछ ही घंटों में हवा हाे गई.
नासिर ने जैसा सोचा था कि इसके बाद इजराइल डरकर सीरिया क्षेत्र में अतिक्रमण बंद कर देगा, लेकिन हुआ इसका बिल्कुल उलट. इजराइल की मीडिया ने इसे जर्मन के नाज़ियों की तरह यहूदियों पर हुए अत्याचारों की तरह पेश किया.
Gamal Abdel Nasser. (Pic: wikipedia)
इजराइल को कमजोर समझना पड़ा महंगा
इस घटना ने यहूदियों को यहूदियों पर हुए नरसंहार की याद दिला दी और इसी के साथ पूरे इजराइल में नासिर विरोधी भावनाएं उमड़ पड़ीं.
उधर इजराइल की वायुसेना भी संगठित हो चुकी थी और उसने अगली सुबह ही सिनाई प्रायद्वीप में मिस्र की वायुसेना को ध्वस्त कर दिया, जिसे ऑपरेशन फोकस कहा गया.
इसके तुरंत बाद जॉर्डन, सीरिया, ईराक अपनी वायु सेनाओं को तैनात करने की तैयारी करने लगे, लेकिन इजराइल ने बिना किसी देरी के उसी दिन तीनों देशों की वायुसेना पर हमला कर उसे भारी क्षति पहुंचाई.
इस तरह से मची तबाही के बाद इजराइल ने जॉर्डन के प्रशासन वाले ‘पूर्वी जेरुशलम’ पर अपना अधिकार कर लिया. इस युद्ध के चौथे ही दिन बाद इजराइल ने गाजा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप पर भी अपना अधिकार कर लिया. और 5वें दिन इजराइल ने सीरिया के प्रशासन वाले गोलन हाइट्स पर भी कब्ज़ा कर लिया.
इस तरह 6 दिन के अंदर ही यह युद्ध समाप्त हो गया. विजय इजराइल के कदम चूम रही थी और इसी के साथ अरब राष्ट्रवाद का भी पतन हो गया. शर्म के मारे जमाल अब्देल नासेर ने मिस्र के राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया.
इस युद्ध ने इजराइल की ताकत का एहसास पूरी दुनिया को करा दिया था, अब इजराइल का क्षेत्रफल तीन गुना बढ़ चुका था.
Operation Moked at Cairo West. (Representative Pic: Pinterest)
फिर हुई मिस्र और सीरिया की हार
इस हार के साथ ही फिलिस्तीनीयों को एहसास हो गया कि उनकी लड़ाई अरब देशों के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती. इसलिए उन्होंने 1964 में फिलिस्तीन लिबरेशन का गठन किया.
और यहीं से यानी 1965 से फिलिस्तीनी क्रांति की शुरुआत होती है, जिसमें फिलिस्तीनी नागरिकों ने इजराइल के विरुद्ध हथियारबंद विद्रोह का आगाज कर दिया.
इधर, मिस्र और सीरिया अपने खोए हुए भू-भागों को दोबारा पाना चाहते थे, दोनों देशों के बीच जनवरी 1973 में एक आंतरिक समझौता भी हुआ, लेकिन उसी साल 6 अक्टूबर को एक यहूदी त्यौहार के दिन सीरिया और मिस्र ने इजराइल पर हमला कर दिया. इसे योम किप्पूर वॉर या अक्टूबर वॉर भी कहा जाता है.
शुरू में मिस्र और सीरिया की सेना का दबदबा रहा, लेकिन बाद में इजराइल ने तेजी के साथ अपनी बढ़त बनानी शुरू कर दी. इजराइल की सेना लड़ते-लड़ते मिस्र की राजधानी काहिरा और सीरिया की राजधानी दमिश्क के लगभग पास तक पहुंच गईं.
हालांकि, जून 1974 को इजराइल और सीरिया में समझौता हो गया और युद्ध खत्म कर दिया गया.
यहां भी जीत इजराइल की हुई, और मिस्र – सीरिया को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा.
1973 Yom Kippur War. (Pic: The Times of Israel)
मिस्र ने दी इजराइल को मान्यता
युद्ध के चार साल के अंदर ही मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सदत ने जेरुशलम स्थित इजरायली संसद, नेसेट में शांति का भाषण भी दिया. आगे चलकर अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने सदत और इजरायली प्रधानमंत्री मेनचेम के बीच वाशिंगटन स्थित राष्ट्रपति आवास में एक शांति समझौता करा दिया. इसे केंप डेविड समझौता कहा गया.
इसके बाद 26 मार्च, 1979 को मिस्र ने इजराइल को एक देश के रूप में मान्यता दे दी और इजराइल के साथ कूटनीतिक संबंध बनाने के लिए राजी हो गया.
मिस्र में इस फैसले का स्वागत किया गया, तो अरब जगत ने इसे फिलिस्तीन देश के बनने की दिशा में एक विश्वासघात की तरह देखा. इजराइल के साथ शांति समझौता करने के कारण मिस्र को अरब लीग से निष्काषित कर दिया गया. और इसके बाद 1981 में बौखलाए कट्टरपंथियों ने एक रैली के दौरान अनवर सदत की हत्या कर दी.
Anwar el-Sadat with Israeli PM Menachem and US President. (Pic: Szyk)
क्या कभी खत्म होगी ये लड़ाई!
इस प्रकरण के बाद एक बार फिर बिल क्लिंटन के कार्यकाल में ओस्लो शांति समझौता हुआ, जिसके बाद लगा कि इजराइल और फिलिस्तीन की समस्या का समाधान हो गया है.
लेकिन समझौते के तहत जैसे ही इजराइल ने गाजा पट्टी से अपने सैनिक हटाए, वहां हमास नामक फिलिस्तीनी कट्टरपंथी समूह ने कब्जा कर लिया. हमास ने इजराइल के अस्तित्व को कभी स्वीकार नहीं किया.
इसके बाद से कई बार हमास ने इजराइल पर रॉकेट से हमला किया है, लेकिन इजराइल की सेना आज अत्याधुनिक हथियारों से लैस है, और देश के चारों ओर मिसाइल इंटरसेप्टर लगे हुए हैं.
इससे इजराइल की ओर आने वाली कोई भी मिसाइल देश में घुसने से पहले ही खत्म कर दी जाती है. ये सिलसिला आज भी इसी प्रकार जारी है.
Israel Defense Forces. (Pic: jfunders)
इसी के साथ इजराइल आज विश्व के सबसे ताकतवर देशों की सूची में शुमार है.
बहरहाल इजराइल फिलिस्तीन विवाद पर प्रस्तुत इस लेख के बारे में आपका क्या कहना है, अपने विचार हमारे साथ नीचे कमेंट बॉक्स में अवश्य शेयर करें.
Web Title: How Israel become Most Powerful Country in the World, Hindi Story