1971 को भारत मुक्ति संग्राम में बांग्लादेश को सैन्य सहयोग दे रहा था.
इसी बीच, पाकिस्तानी एयरफाेर्स ने 'ऑपरेशन चंगेज खान' शुरू करते हुए भारत के एयरेबसों पर हमला कर दिया.
नतीजतन, तीन दिसंबर, 1971 को भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू हो गया.
भारत ने भी इसका मुंहतोड़ जवाब दिया और 13 दिनों में ही पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. इस समय लेफ्टिनेंट जनरल जे एफ आर जैकब भारतीय सेना की पूर्वी कमान के प्रमुख थे.
इन्होंने इस सरेंडर में बड़ी भूूमिका निभाई और पाकिस्तानी सेना के चीफ जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी को मजबूरन अपनी हार स्वीकार करते हुए भारतीय सेना के सामने सरेंडर करना पड़ा.
जैकब को इस युद्ध में भारत की जीत और बांग्लादेश की आजादी में शानदार भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है.
ऐसे में आइए एक बार फिर से उस दौर में चलकर जान लेते हैं कि कैसे लेफ्टिनेंट जनरल जैकब ने पाकिस्तान को घुटनों पर आने के लिए मजबूर कर दिया –
पाकिस्तानी टैंकों के उड़ाए चीथड़े
युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने अपनी सैन्य टुकड़ी पूर्वी पाकिस्तान को घेरने के लिए भेज दी.
इस समय तक 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' के तहत पाकिस्तानी नौसेना का कराची हार्वर भारतीय सेना ने तबाह कर दिया था. इससे पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान की ओर जाने वाली सभी आवश्यक जरूरतों पर विराम लग गया और पाकिस्तानी नौसेना की यहां कमर टूट चुकी थी.
उधर, जैसलमेर पर कब्जा करने के उद्देश्य से आगे बढ़ रही पाकिस्तानी सेना को भारतीय वायुसेना ने लोंगेवाला पोस्ट पर ही रोक दिया और अगले दिन भारतीय विमानों ने उनके टैंकों के चीथड़े उड़ा दिए.
ऐसे में पाकिस्तानी सेना ना तो आगे बढ़ सकती थी और ना ही वापस पाकिस्तान जा सकती थी.
उधर पाकिस्तान के प्रिय मित्र अमेरिका ने अपने सातवें जंगी बेड़े के न्यूक्लियर पॉवर एयरक्राफ्ट युद्धपोत यूएसएस एंटरप्राइसेस को बंगाल की खाड़ी की ओर रवाना कर दिया. अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्स चाहते थे कि इस तरह से भारत पर दबाव बनाकर युद्ध विराम की स्थिति लागू की जाए.
लेकिन इस समय भारत झुकने वाला नहीं था. उसने तुरंत अपने सखा रूस कोई याद किया और उसने एक युद्धपोत और एक परमाणु पनडुब्बी भारत की मदद के लिए भेज दी.
इसे अमेरिका और रुस भी आमने सामने हो चुके थे.
गवर्नर हाऊस को बनाया निशाना
उधर, भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान को चारो ओर से घेर लिया था और वो तेजी से ढाका की ओर बढ़ गई थी.
ऐसे में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थी कि पाकिस्तानी सेना जल्द से जल्द भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दे.
14 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना को मालूम चला की ढाका में गवर्नर हाउस में एक रणनीतिक बैठक होने वाली है.
फिर क्या था, भारतीय वायुसेना के चार मिग विमानों ने गवर्नर हाउस को तहस-नहस कर दिया. विमानों ने गवर्नर हाउस की खिड़कियों से मिसाइलों द्वारा हमला किया.
इससे घबराकर, जनरल नियाज़ी बच्चों की तरह फफक-फफक कर रोने लगे और उधर, डर के मारे गवर्नर जनरल मलिक ने त्याग पत्र दे दिया.
इससे पाकिस्तान के जनरल नियाज़ी की सारी हेकड़ी निकल गई और उन्होंने युद्ध विराम का संदेशा भारतीय सेनाध्यक्ष मानेकशॉ को भिजवा दिया.
मानेकशॉ ने नियाज़ी को पाकिस्तानी सेना सहित आत्मसमर्पण करने की बात कही.
लेफ्टिनेंट जनरल जैकब को मिली सरेंडर कराने की जिम्मेदारी
उस समय कोलकाता में मौजूद लेफ्टिनेंट जगजीत सिंह अरोरा पर पूर्वी कमान के जनरल कमांडिंग ऑफिसर इन चीफ के तौर पर पाकिस्तान से आत्मसमर्पण कराने की जिम्मेदारी थी.
उनके साथ जनरल स्टाफ प्रमुख के तौर पर लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जैकब थे.
16 दिसंबर को फील्ड मार्शल मानेकशॉ ने लेफ्टिनेंट जनरल जैकब को ढाका जाकर आत्म समर्पण कराने की तैयारी करने का आदेश दिया.
इसके बाद जैकब एक स्टाफ ऑफिसर और सरेंडर दस्तावेजों के के साथ ढाका की ओर निकल गए.
जैकब हेलीकॉप्टर से ढाका पहुंचे, जहां संयुक्त राष्ट्र के कुछ प्रतिनिधि वहां पहले से उनका इंतजार कर रहे थे. इन्होंने पाकिस्तानी सेना और उनके बीच कुछ बातचीत कराने का न्यौता दिया. हालांकि, जैकब उनके ऑफर को अस्वीकार कर आगे बढ़ गए.
तब भी ढाका की सड़कों पर मुक्ति वाहिनी के लड़ाकों और पाकिस्तानी सेना के बीच लड़ाई जारी थी. हालांकि भारतीय सेना को देखते ही मुक्ति वाहिनी ने फायरिंग रोक दी.
फिर जैकब जनरल नियाजी के कार्यालय में दाखिल हो गए. यहां पाकिस्तानी सेना, नेवी और वायुसेना के सभी बड़े अधिकारी मौजूद थे.
इससे पहले मानेकशॉ पाकिस्तानी जनरल नियाजी को अपने संदेश में कह चुके थे कि 15 दिसंबर शाम 5 बजे से 16 दिसंबर तक भारतीय सेना संघर्ष विराम कर रही है, लेकिन इस बीच तुम्हें पूरी पाकिस्तानी सेना सहित भारत के सामने आत्मसमर्पण करना होगा.
इसी के साथ, जैकब ने सरेंडर के दस्तावेज आगे बढ़ाते हुए नियाजी से सरेंडर करने को कहा.
इतना सुनते ही नियाजी की आंखों से आंसू निकल आए और वो अपने गालों पर हाथ रखकर अपनी कुर्सी पर बैठ गए. फिर नियाजी ने कहा कि "कौन कहता है कि मैं सरेंडर कर रहा हूं? तुम यहां सिर्फ सीजफायर की बात करने आए हो."
इसके बाद नियाजी को जैकब ने साइड में बुलाया और कहा कि "अगर तुम सरेंडर नहीं करोगे, तो तुम्हारे परिवार और यहां अन्य पाकिस्तानियों की सुरक्षा की मैं गारंटी नहीं ले सकता, लेकिन अगर तुम सरेंडर करते हो तो इसकी गारंटी में लेता हं."
जैकब नियाजी को दोबारा से विचार करने के लिए 30 मिनट का समय देकर बाहर चले गए.
नियाजी ने सरेंडर की हामी भरी
इस समय तक नियाजी के 26,400 सैनिक ढाका में मौजूद थे, जबकि भारत के लगभग 3000 सैनिक ढाका को घेरे खड़े थे. हालांकि, पाकिस्तानी सेना के हौसले पस्त हो चुके थे. अब बस सरेंडर करने के लिए हामी भरने की देर थी.
इधर, जैकब ने सरेंडर कराने के लिए रेस कोर्स में तैयारियों का आदेश दे दिया था. लेकिन उनमें एक बैचेनी थी. वो सोच रहे थे कि अगर नियाजी ने सरेंडर करने से मना कर दिया तो क्या होगा. और सीजफायर का समय भी खत्म होने वाला था.
जगजीत सिंह अरोरा भी कुछ एक घंटे में ढाका पहुंचने वाले थे.
थोड़ी देर बाद जैकब नियाजी के कार्यालय में पहुंचे. वहां एकदम खमोशी थी.
जनरल नियाजी अपनी कुर्सी पर बैठे हुए थे और उनके सामने टेबल पर सरेंडर डॉक्यूमेंट पड़े थे.
जैकब ने उनसे पूछा कि क्या तुमने इन कागजात पर दस्तखत कर दिए हैं.
नियाजी कुछ नहीं बोले, जैकब ने ऐसे ही उनसे 3 बार और पूछा, लेकिन वो चुप रहे और उनकी आंखों से आंसू टपकने लगे.
जैकब को इशारा मिल चुका था और उन्होंने सरेंडर के दस्तावेज उठाए और नियाजी को कहा कि "मैं इन्हें स्वीकार किया मानता हूं."
इसके बाद जैकब ने नियाजी से कहा कि मैंने लोगों के बीच रेस कोर्स में तुम्हारे सरेंडर करने की व्यवस्था की है.
...और भारत के आगे टेक दिए घुटने
लगभग 3 बजे जैकब ने नियाजी से कहा कि वो उनके साथ एयरपोर्ट चलें. और फिर नियाजी की स्टाफ कार में सवार होकर दोनों एयरपोर्ट की ओर बढ़ लिए.
लगभग 4.30 बजे के आसपास जनरल अरोरा भी 5 एम-14 फ्लीट और 4 हेलीकॉप्टरों के साथ एयरपोर्ट आ पहुंचे.
इसके बाद जनरल अरोरा अपनी पत्नी और नियाजी के साथ कार में सवार होकर रेस कोर्स की ओर निकल गए. और उनके पीछे फौज के अन्य सिपाहियों के साथ एक ट्रक में सवार जैकब भी.
रेस कोर्स में एक गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण करने के बाद अरोरा और नियाजी कुर्सी पर बैठे.
ठीक 4 बजकर 31 मिनट पर जनरल नियाजी ने सरेंडर के कागजों पर दस्तखत किए. और इसी के साथ पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने अपने हथियार भारतीय सेना के आगे डाल दिए और आत्म समर्पण कर दिया.
इधर जनरल नियाजी ने भी अपनी पिस्टल जनरल अरोरा का सौप दी.
पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के शौर्य के सामने अपने घुटने टेक दिए थे. और इसी के साथ पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश बन गया.
रेस कोर्स में इस समय लोगों का हजूम मौजूद था, जो हल्ला मचा रहा था.
वो भीड़ नियाजी को मार देना चाहती थी. बहरहाल, भारत की सेना ने ऐसा नहीं होने दिया.
Web Title: How Lt. General JFR Jacob Negotiated Pakistan's Surrender in 1971, Hindi Article
Feature Image Credit: Quartz