भारत के ऐसे कई शहर हैं, जिनका इतिहास काफी समृद्ध रहा है!
इनमें से कई का इतिहास हमें अचंभित कर देता है. तो कई शहर ऐसे भी हैं, जिनके बनने की कहानी बहुत रोचक है. पंजाब का अमृतसर एक ऐसा ही शहर है, जिसे आज लोग सिक्ख धर्म के केंद्र के रुप में देखते हैं.
किन्तु, क्या आप जानते हैं कि इस भव्य शहर का निर्माण कैसे हुआ.
अगर नहीं तो आईए जानने की कोशिश करते हैं-
इतिहास में दर्ज धारणाएं…
इस शहर के निर्माण के इतिहास को रोचक बनाती हैं, इससे जुड़ी कुछ धारणाएं. दरअसल, अमृतसर शहर करीब 1577 ईस्वीं में बसाया गया था. हालांकि, इसकी नींव 1573 ईस्वीं में ही रख दी गई, लेकिन इसके निर्माण में 4 साल का समय लग गया.
जिस भूमि पर यह शहर बसा है, उसे लेकर बहुत से अलग अलग मत हैं.
एक मत के अनुसार जिस भूमि पर अमृतसर शहर बसाया गया, वह अकबर द्वारा गुरु अमरदास की बेटी और गुरु रामदास की पत्नी बीबी भानी को दी गई थी और बाद में इसे गुरु रामदास को दे दिया गया था.
एक मत यह भी है कि अमृतसर शहर की भूमि को 700 रुपए देकर तुंग गाँव के जमींदार से खरीदी गया था. आगे इस पर ही अमृतसर शहर का निर्माण किया गया था. इसी क्रम में एक अन्य मान्यता के अनुसार अमृतसर सुल्तानविंड गाँव की जमींन पर बना हुआ है. वहां के लोगो ने गुरु के आदर और सम्मान में उन्हें भेंट की थी.
वहीं सिक्ख गुरुओं के रिवाज अनुसार उन्होंने कभी भी शासकों से भूमि अनुदान नहीं लिया. दिलचस्प बात यह है कि इन सभी मान्यताओं का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है, जिससे इस बात के प्रमाण मिल सके कि अमृतसर किसकी जमीन पर बना.
हां! इस बात पर सभी एक साथ खड़े नज़र आते हैं कि इस खूबसूरत शहर की सरंचना सिक्खों के चौथे गुरु श्री गुरु रामदास जी द्वारा की गई थी.
इसी कारण इसे रामदासपुर के नाम से भी जाना जाता है.
अमृतसर नाम की बात की जाए, तो यह नाम ‘अमृत का सरोवर’ या संतोकसर से आया है. इसके पीछे बड़ा तर्क भी है. असल में ऐसी मान्यता है कि इसी जगह पर सिक्खों के तीसरे गुरु अमरदास के आदेश पर गुरु रामदास ने एक सरोवर खुदवाया था, जिसे अमृत सरोवर कहा गया. बाद में इसी के नाम पर शहर का नाम अमृतसर रखा गया.
Guru Ram Das (Pic: desibucket)
ऐसे तैयार हुई शहर की रूप रेखा
भूमि प्राप्त होने के बाद पहले उसके चारों ओर सीमा बनाई गई. इस भूमि को कईं नामों चक, गुरु का चक, चक गुरु, चक गुरु रामदास और आखिर में रामदास पूरा के नाम से जाना गया. शहर बसाने का काम जोरों से शुरू हो गया, जरुरी सामग्री और धन जुटाया गया.
नए शहर के निर्माण के लिए धन की व्यवस्था का कार्यभार बाबा बुद्धा को सौंपा गया, जो सिख धर्म के सबसे पूजनीय व्यक्तियों में से एक हैं. बाबा बुद्धा ने 5 गुरुओं का गुरु पद के लिए तिलक अपने हाथों से किया. वे स्वर्ण मंदिर के सबसे पहले पुजारी भी बने.
किन्तु, शहर के निर्माण की वास्तविक रूपरेखा गुरु अमरदास के द्वारा तय किया गयी थी. इसके बाद गुरु अमरदास के निर्देश पर गुरु रामदास ने वहां पर गाँव बसाए व अपने लिए एक घर भी बनवाया, जिसे गुरु का महल कहा गया.
कई ज्ञानी और तजुर्बे वाले सिक्खों को काम में गुरु रामदास की मदद के निर्देश दिए. इसके अलावा गुरु अमरदास के निर्देश के अनुसार गुरु रामदास ने उस भूमि के बीचों बीच एक सरोवर खुदवाया.
इस तरह धीरे-धीरे लोगों का बसना शुरू हुआ. कई घर बनाए गए. शहर की रूप रेखा तैयार होने लगी. अभी शहर का कुछ काम ही पूरा हुआ था, जब गुरु अमरदास ने गुरु रामदास को एक और सरोवर बनाने का निर्देश दिया.
इसका निर्माण पहले से अर्ध-निर्मित सरोवर के नजदीक निचले स्तर पर होना था. इस सरोवर के निर्माण के लिए गुरु रामदास ने ऐसे जगह चुनी, जो जुजीबी पेड़ों से घिरी थी. दूसरे सरोवर का निर्माण गुरु रामदास की देख-रेख में 1573 ईस्वीं में शुरू किया गया.
Golden Temple Top View (Pic: yolasite)
52 जातीय समूहों को आमंत्रण
जैसे ही शहर का काफी निर्माण हुआ, तो यहाँ पर 52 तरह के जातीय समूहों को पट्टी, कलानौर और क़ासूर से बुलाया गया, ताकि गावं में रहने वाले लोगो तक आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति की जा सके. इसके अलावा एक बाजार भी स्थापित किया गया, जिसे गुरु का बाजार कहा गया और जो आज भी अमृतसर में मौजूद है.
नए बने शहर में व्यापर को बढ़ावा देने और वित्त की व्यवस्था के लिए कईं व्यापारी और धनि शाहूकार भी बस गए. अब शहर धीरे-धीरे आकार लेने लगा था. साथ ही शहर के कार्यप्रणाली के लिए सभी जरुरी चीजें मौजूद थीं.
जब शहर का काम पूरा हुआ तो गुरु रामदास और उनके शिष्य बहुत प्रसन्न हुए और गुरु रामदास ने इस भव्य शहर के बारे में कुछ छंद भी बनाए और उन्होंने शिष्यों को उस सरोवर में स्नान करने क लिए कहा, जिसके बाद से ही इसमें सिक्खों द्वारा स्नान करना पवित्र बन गया.
गुरु रामदास के समय सरोवर कच्ची ईंटो का बना था और जब उनके बाद गुरु अर्जन देव ने गुरु पद संभाला, तब पक्की ईंटें लगाई गई. जैसे ही सरोवर का कार्य पूरा हुआ उसकी पवित्रता और वैभव की ख्याति चारों ओर फैल गयी और इस अमृत सरोवर के नाम पर इस शहर का नाम अमृतसर हो गया.
इसके बाद से यह शहर सिक्खों की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र बन गया.
Amrit Sarovar (Pic: global-gallivanting)
‘स्वर्ण मंदिर’ ने बढ़ाया आकर्षण
अमृतसर शहर का निर्माण पूरा होने के बाद सिक्खों के पांचवे गुरु श्री गुरु अर्जन देव ने पवित्र सरोवर के बीच एक मंदिर का निर्माण करवाया, जिसे आज हम स्वर्ण मंदिर या हरमंदिर साहिब के नाम से जानते हैं.
इस मंदिर की नींव गुरु अर्जन देव के द्वारा मुस्लिम लाहौर के सूफी संत साईं मियां मीर जी से रखवाई थी. यह मंदिर भारत के सभी धर्मों को सम्मान एक उदाहरण है. बाद में महाराजा रणजीत सिंह के समय में इस मंदिर का ऊपरी हिस्सा सोने की चादर मढ़ दिया गया, तो यह मंदिर ‘स्वर्ण मंदिर’ के रूप में विख्यात हो गया.
आज अमृतसर की शोभा बना स्वर्ण मंदिर लाखों सिक्खों की आस्था का केंद्र है और देश से बाहर बसे सिक्खों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है. कहते हैं कि इसे देखने के लिए ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा सैलानी आते हैं!
Golden Temple In Amritsar (Pic: architecturaldigest)
ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह
अमृतसर शहर भारत के इतिहास का एक अभिन्न अंग है. इसने कईं त्रासदियां भी सही हैं, जिसमे जलियांवाला बाग़ हत्याकांड शामिल है. इस नरसंस हत्याकाँड में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा जनरल डायर के इशारे पर हजारों लोगों को अंधधुंध गोली चलाकर मौत के घाट उतार दिया था.
इसके अलावा ये शहर भारत के बंटवारे के समय हुए खून खराबे और उथल-पुथल का भी साक्षी है. इसी शहर से कुछ दूरी पर स्थित है भारत और पाकिस्तान को दो देशो में बाँटने वाला वाघा बॉर्डर भी मौजूद है, जो सैलानियों को रिझाता है.
Jallianwala Bagh (Pic: wikia)
इस तरह ऐतिहासिक महत्वता के साथ-साथ यह शहर सैलानियों की खास पंसद भी बन चुका है. अगर आपके पास इस शहर से जुड़ी और की जानकारी मौजूद है, तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स में जरूर शेयर करें.
Web Title: How to Make Amritsar, Hindi Article
Feature Image Credit: sikhsangeet