दुनिया में ऐसे कई लोग हुए, जिनकी अद्भुत काबलियत व समझ ने समाज के विकास में बड़ा योगदान दिया. इमानुएल काण्ट इसका एक बड़ा उदाहरण हैं.
उन्हें दुनिया का पहला फिलोस्फर तक कहा जाता है.
इमानुएल ने तर्कसंगतता पर कई आलेख लिखे, जिन्हें पढ़कर जर्मनी के लोग आलोचना शब्द का सही मतलब समझ पाए. फिर धीरे-धीरे उनके सिद्धांतों ने पूरी दुनिया का मार्गदर्शन किया.
तो आईए एक नए रास्ते में चलने वाले इमानुएल को जरा नजदीक से जानते हैं-
धर्मशास्त्र की ओर रहा झुकाव
इमानुएल कांत का जन्म 22 अप्रैल 1724 में कोनिग्सब्रग, परुसिआ में हुआ था, जिसे कालिनींग्रेड के नाम से जाना जाता है. वर्तमान में यह रुस का हिस्सा है.
इमानुएल नौ बहन-भाईयों में से 4 नंबर पर थे. उनके पिता जोहानन जिर्योज कांत कवच तैयार करने वाले एक कारीगर थे. जबकि, मां ऐन्ना रेजिना कांत एक गृहणी थीं. शुरुआती जीवन के कुछ पड़ाव पार करने के बाद जब इमानुएल को भाषा की कुछ समझ आई, तो उन्होंने अपने नाम के अक्षरों को जर्मन भाषा के मुताबिक बदल लिया.
इमानुएल का परिवार शुरु से ही भक्ति-भावना वाला था. वह लूटेराण नामक एक चर्च से जुड़े हुए थे. इसके चलते इमानुएल भी अक्सर अपने परिवार के साथ चर्च जाया करता था.
इस बीच एक दिन चर्च के पादरी ने इमानुएल की पढ़ाई के प्रति उत्सुकता को देख कर उसकी शिक्षा का इंतजाम कर दिया. शुरुआती शिक्षा के दौरान इमानुएल का झुकाव, लेटिन क्लासिक भाषा की ओर काफी था. वह उसमे खासे अच्छे भी थे.
यही कारण रहा कि वह अक्सर अध्यापकों की प्रशंसा का पात्र बनते.
1704 में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद इमानुएल यूनिवर्सिटी ऑफ कोनिग्सब्रग गए, जहां उन्होंने धर्मशास्त्र की शिक्षा लेनी शुरु की.
The great German Philosopher Immanuel Kant (Pic: FixQuotes)
जब गणित व विज्ञान में जागी जिज्ञासा
अपनी पढ़ाई के दौरान एक समय ऐसा आया, जब इमानुएल का झुकाव गणित और भौतिक विज्ञान की ओर हो गया. इस दौरान वह एक युवा प्रोफैसर के संपर्क में आए, जोकि एक धर्मशास्त्र के फिलोस्फर क्रिशचिन वॉल्फ पर पढ़ाई कर रहे थे.
इसके साथ ही वह विज्ञान में एक दूसरी रिसर्च भी कर रहे थे.
इमानुएल इस प्रोफैसर से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने भी गणित और भौतिक विज्ञान की अपनी पढ़ाई शुरु कर दी.
साल 1744 में उन्होंने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपनी पहली किताब ‘द क्रिटिक ऑफ प्यूर रिज़न’ पर काम शुरु कर दिया. इसके बाद ही उन्होंने फैसला किया कि वह एक शिक्षक के तौर पर कार्य करेंगे. इसी बीच 1746 को उनके पिता का देहांत हो गया.
चूंकि, उनका परिवार अच्छा नहीं था, इसलिए इमानुएल को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. जीविका के लिए उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरु कर दिया.
इसी दौरान उन्होंने तर्कसंगतता और अनुभववाद के बीच की गहराइयों को लेकर कुछ लेख लिखे, जिन्होंने आगे चलकर उनकी जिंदगी ही बदल डाली.
9 साल बाद फिर पढ़ाई से जुड़ा नाता
इमानुएल के सामने कई समस्याएं आईं, किन्तु पढ़ाई के प्रति वह अपनी जिज्ञासा को ज्यादा समय तक रोक नहीं पाए. इसी कड़ी में करीब 9 साल बाद साल 1755 में जब उन्हें लगा कि घर के हालात स्थिर है, तो उन्होंने ने एक बार फिर से ‘यूनिवर्सिटी ऑफ कोनिग्सब्रग’ की ओर रुख कर लिया और अपनी पढ़ाई को दोबारा से शुरु कर दिया.
इसी साल उन्होंने फिलोस्फी में अपनी डॉक्टरेट पूरी की और फिर अगले 15 सालों तक इसी यूनिवर्सिटी में बतौर लैक्चरार व ट्यूटर के तौर कार्यरत रहे.
इस दौरान उन्होंने गणित व भौतिक विज्ञान के अलावा तर्क और नैतिक दर्शन की भी शिक्षा दी. दो बार पूर्ण प्रोफेसर बनने से चूके इमानुएल आखिरकार 1970 में पूर्ण प्रोफेसर बन गए.
समाज की सोच में बदलाव लाने की इच्छा के चलते साल 1781 में इमानुएल ने ‘बनिज़िनिज़म के सिद्धांतों’ की कड़ी आलोचना की. दरअसल लिएबनिज़िनिज़म के सिद्धांत, लोगों को धर्मशास्त्र के मुताबिक फैसला करने की शिक्षा देता था, जबकि इमानुएल का मानना था कि लोगों को न्यूटन को फॉलो करना चाहिए था. साथ ही तर्क के आधार पर फैसला लेना चाहिए.
अपने आलेखों में उन्होंने यह बताने का प्रयास किया कि कैसे कारण और अनुभव सोच व समझ के साथ मेल खाते हैं. उनके इन क्रांतिकारी लेखों ने समाज को समझाया कि कैसे एक व्यक्ति का दिमाग अपने अनुभवों को संगठित कर दुनिया के काम काज को समझता है.
Immanuel Kant – Portrait. Painting by Döbler, 1791 (representative pic: Pinterest)
अपने विचारों को किताबों में संजोया
लोगों तक अपनी सोच को पहुंचाने के लिए उन्होंने अपने विचारों को शब्दों में ढाल कर उन्हें किताबों के पन्नों पर संजोया. उनके द्वारा लिखी गई उनकी पहली किताब ‘द क्रिटिक ऑफ प्यूर रिज़न’ साल 1981 में पब्लिश हुई. काफी समय तक लोगों का इस पर ध्यान नहीं गया, मगर कुछ समय बाद लोगों ने इसमें छिपे संदर्भ को समझना शुरु किया.
इसके बाद साल 1785 में उनकी किताब की दूसरी प्रति आई, फिर साल 1788 में ‘द क्रिटिक ऑफ परैक्टिकल रिज़न आई’ और फिर दो साल बाद 1790 में ‘द क्रिटिक ऑफ द पॉवर ऑफ जजमेंट पब्लिश’ हुई. इमानुएल ने आगे भी लिखने का सिलसिला जारी रखा, जिन्हें संग्रहित कर ‘कांट क्रिटिकल फिलोस्फी’ के नाम से जाना गया.
Critique of Judgement (Pic: Portia Placino)
दरअसल, इमानुएल का ध्यान हमेशा से नैतिकता की ओर रहा. इसके चलते उन्होंने ‘कैटेगोरिक्ल इम्पेरटिव’ नामक एक नैतिक कानून बनाने का भी प्रस्ताव दिया. उन्होंने कहा कि सभी नैतिक निर्णय तर्कसंगतता के आधार किए जाने चाहिए.
उनके हिसाब से जो सही है वह सही है और जो गलत वह गलत!
इमानुएल द्वारा सुझाया गया प्रस्ताव काफी प्रभावशाली था, जिसका असर कुछ वर्षों बाद दिखा. उनके सिद्धांतों को पढ़ने वाले सैंकड़ों बुद्धिजीवी एवं आम लोग उनसे काफी प्रभावित हुए. वहीं दूसरी और इमानुएल लगातार अपने द्वारा दिए जाने वाले सिद्धांतों में बदलाव कर उन्हें और भी दृढ़ व प्रभावी बना रहे थे.
साथ ही उन्हें लेखों के रूप में संजोय जा रहे थे.
Immaunel Proposed a new Law of Judgement (Pic: Scenes of Eating)
इसी तरह इमानुएल ने अपना पूरा जीवन तर्कसंगतता को लेकर सिद्धांत लिखते हुए बिताया और आखिरकार 12 फरवरी 1804 में उनकी जन्म भूमि में ही उनकी मौत हो गई.
वह भले ही अब हमारे बीच नहीं है, किन्तु उनके द्वारा सुझाए गए प्रस्ताव का लाभ लेते हुए, नए सिद्धांत बनाए गए, जोकि समाज के लिए कल्याणकारी साबित हुए.
Web Title: Story of First Philosopher Immanuel Kant, Hindi Article
Featured Image Credit: Learn Liberty