हर रोज़ इतिहास में नया नया चैप्टर जुड़ता है.
कई नए आविष्कार होते हैं, तो कभी कोई नई शुरूआत होती है.
कभी हम एक नई दिशा में पहला कदम बढ़ाते हैं, तो कभी 100 कदम पूरा होने की खुशी मनाते हैं.
हर एक दिन थोड़ी खुशी और थोड़े ग़म अपने अंदर समेटे हुए आता है.
तो चलिये आज तीन फरवरी के सफर पर चलते हैं, और जानते हैं कौन-सी खुशियां और ग़म सिमटे हैं इस दिन में–
सदाबहार अभिनेत्री ‘वहीदा रहमान’ का हुआ जन्म
उनकी आंखें बात करती हैं. वे अपने चेहरे की भावनाओं के सब कह देती हैं. ऐसी हैं सदाबहार अदाकारा वहीदा रहमान.
3 फरवरी के दिन पैदा हुई वहीदा रहमान का जन्म 1938 में तमिलनाडु के चेंगलपट्टू में हुआ था. वहीदा को बचपन से ही म्यूजिक और डांस का शौक था. उनके माता-पिता ने हमेशा ही उनके नाचने-गाने के शौक को सराहा. उन्होंने कभी भी वहीदा को इसके लिए नहीं रोका क्योंकि वह जानते थे कि इसमें ही वहीदा की ख़ुशी है.
उनके प्रोत्साहन से वे भरतनाट्यम नृत्य में निपुण हो गईं. धीरे-धीरे उनका यह शौक कब उनका पैशन बन गया उन्हें भी नहीं पता चला. वह थोड़े समय बाद ही स्टेज परफॉरमेंस भी देने लगीं.
वहीदा अभी थोड़ा बहुत आगे बढ़ीं ही थी कि उनके सिर से माता-पिता का साया हट गया. इसके बाद घर के हालात भी बिगड़ने लगे.
उस वक्त वहीदा ने फिल्मी जगत की ओर अपना पहला कदम रखा. उन्हें साल 1955 में दो तेलुगू फिल्मों में काम करने का मौका मिला. कुछ दिनों बाद ही वे हिंदी सिनेमा के अभिनेता, निर्देशक और निर्माता गुरु दत्त से मिलीं. गुरु दत्त को वहीदा पहली नज़र में ही पसंद आ गईं.
उस दौर में 18 साल की वहीदा ने हिंदी फिल्मों में कदम रखा. अपनी डेब्यू फिल्म ‘सीआईडी’ में उन्होंने एक खलनायिका का रोल अदा किया. फिल्म सीआईडी में वहीदा के किरदार की काफ़ी तारीफ हुई जिससे वे रातों रात स्टार बन गईं.
वहीदा ने ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’, ‘प्रेम पुजारी’, ‘गाइड’, ‘कोहरा’, ‘बीस साल बाद’, ‘तीसरी कसम’, ‘नील कमल’ और ‘खामोशी’ जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया है.
वह अपने हर किरदार में जान डाल देती थीं. उस दौर में उनकी अदायगी और मुस्कुराहट ने सबका दिल जीत लिया था.
अपनी फिल्मों के लिए वहीदा को पद्म श्री और पद्म भूषण पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. आज भी वहीदा रहमान फिल्मों में सक्रिय हैं और भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम काल की याद दिलाती हैं.
Waheeda Rehman (Pic: youtube)
जब अलविदा कह गए तबले के जादूगर ‘उस्ताद अल्ला रक्खा’
उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ां प्रसिद्ध तबला वादक, भारत के सर्वश्रेष्ठ एकल और संगीत वादकों में से एक थे. इनका पूरा नाम कुरैशी अल्ला रक्खा ख़ाँ था.
उस्ताद अल्ला रक्खा ने 29 अप्रैल, 1919 को भारत के जम्मू शहर में जन्म लिया. अल्ला रक्ख़ा एक किसान परिवार में जन्मे थे और उनके पिता नहीं चाहते थे कि वे संगीत की तरफ जाएँ. हालाँकि, उनकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था.
बारह वर्ष की अल्प आयु में वह एक बार अपने चाचा के घर गुरदासपुर गये और वहीं से तबला सीखने के लिए घर छोड़कर भाग गये.
अल्ला रक्खा ख़ां घर छोड़कर उस समय के एक बहुत प्रसिद्ध कलाकार उस्ताद क़ादिर बक्श के पास चले गये. उस्ताद क़ादिर बक्श ने उनके हुनर को तराशा और उन्हें नई पहचान दी. इसी दौरान उन्हें गायकी सीखने का भी अवसर मिला.
संगीत जगत में उस्ताद अल्ला रक्ख़ा का तबला वादन किसी चमत्कार से कम नहीं था. अपने वादन के चमत्कार से उन्होंने बडी़-बड़ी संगीत की महफिलों में श्रोताओं का मन मोह लिया था.
अल्ला रक्खा ख़ां ने अपना व्यावसायिक जीवन एक संगीतकार के रूप में पंजाब में ही शुरू किया. बाद में 1940 में उन्होंने आकाशवाणी के मुंबई केंद्र पर स्टाफ़ आर्टिस्ट के रूप में भी काम किया.
उन्होंने सन् 1945 से 1948 के बीच सिनेमा जगत में भी अपनी किस्मत आज़मायी. दो-तीन फ़िल्मों के लिये संगीत देने के बाद ही उनका मन इस मायाजाल से हट गया. इस बीच उन्होंने अनेक महान संगीत कलाकारों के साथ संगत की.
इनमें से कुछ नाम बड़े ग़ुलाम अली ख़ां, उस्ताद अलाउद्दीन खां, पंडित वसंत राय और पंडित रविशंकर के हैं.
उस्ताद अल्ला रक्खा ने दो शादियां की. मशहूर तबला वादक ज़ाकिर हुसैन उन्हीं के पुत्र हैं. ज़ाकिर ने अपने पिता से ही तबला बजाने का हुनर सीखा था.
3 फरवरी, सन् 2000 को मुंबई में हृदय गति के रुक जाने से उस्ताद अल्ला रक्खा खां दुनिया को अलविदा कह गए.
Tabla Master Zakir Hussain And Ustad Alla Rakha Khan (Pic: youtube)
जब पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन दौड़ी…
भारतीय रेलवे का काफी लंबा इतिहास रहा है. इस इतिहास में एक पन्ना भारतीय ट्रेनों के विद्युतीकरण का भी है.
सबसे पहली इलेक्ट्रिक रेलगाड़ी आज के दिन सन 1925 में ही चलाई गई थी. यह रेलगाड़ी बम्बई विक्टोरिया टर्मिनल और कुर्ला हार्बर के बीच चलाई गई. यह सेक्शन 1500 वोल्ट डी सी पर विद्युतीकृत हुआ था. इसके बाद 11 मई सन 1931 को मद्रास में इलेक्ट्रिक ट्रेन का विस्तार हुआ. स्वतंत्रता से पहले भारत में 338 किलोमीटर तक रेल का विद्युतीकरण हो चुका था.
स्वतंत्रता के बाद, प्रथम पंचवर्षीय योजना के दौरान पूर्व रेलवे के हावड़ा-बर्दवान सेक्शन का 3000 वोल्ट डी. सी. पर विद्युतीकरण का कार्य प्रारंभ किया गया और 1958 में इसे पूरा कर लिया गया.
यूरोप मे विशषकर फ्रेंच रेलवे में किए गए गहन अध्ययन एवं प्रयोगों के परिणामस्वरूप 25 के वी ए सी कर्षण पर विद्युतीकरण की किफायती प्रणाली साबित हुई.
भारतीय रेल ने प्रारंभिक अवस्था में फ्रेंच रेलवे को अपना सलाहकार मानकर 1957 में विद्युतीकरण की 25 के वी ए सी प्रणाली को मानक प्रणाली के रूप में अपनाने का निर्णय लिया.
इसके बाद भारतीय रेलवे का काफी विस्तार हुआ. इतना कि आज भारतीय रेलवे को दुनिया का सबसे बड़ा नेटवर्क माना जाता है.
Electric Train (Pic: wikipedia)
रघुराम राजन का जन्मदिन
अर्थशास्त्र की दुनिया में जाना-माना नाम रघुराम राजन का आज जन्मदिन है. रघुराम भारतीय अर्थशास्त्री और भारतीय रिजर्व बैंक के 23वें गवर्नर रहे हैं.
3 फ़रवरी 1963 को भोपाल में राजन का जन्म एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ. उन्होंने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (आई.आई.टी) दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट, अहमदाबाद से मैनेजमेंट की पढ़ाई की.
सन 1991 में उन्होंने एम.आई.टी. के स्लोन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से प्रबंधन विषय में पी.एच.डी. किया. उनके थीसिस का शीर्षक था ‘एसेज ऑन बैंकिंग’.
सन 2005 में उनके एक विवादास्पद शोधपत्र ‘हैज फाइनेंसियल डेवलपमेंट मेड द वर्ल्ड रिस्किअर’ ने समूचे अर्थ जगत को चौंका दिया. इस शोधपत्र के माध्यम से उन्होंने स्थापित किया कि अन्धाधुन्ध विकास से विश्व में आर्थिक आपदा हावी हो सकती है.
सन 2010 में उन्होंने किताब ‘फॉल्ट लाइन्स: हाउ हिडन फ्रैक्चर्स स्टिल थ्रैटन द वर्ल्ड इकॉनमी’ लिखी जिसके लिए उन्हें साल 2010 का ‘फाइनेंशियल टाइम्स-गोलमैन सैचिज़ बेस्ट बिज़नेस बुक’ पुरस्कार दिया गया.
4 सितंबर 2013 को उन्हें डी. सुब्बाराव के स्थान पर भारतीय रिज़र्व बैंक का गवर्नर नियुक्त किया गया.
राजन सबसे कम उम्र में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के प्रमुख की उपलब्धि हासिल कर चुके हैं. राजन अक्टूबर, 2003 से दिसंबर, 2006 तक इस संस्था के मुख्य अर्थशास्त्री के रूप में कार्यरत रहे.
India’s former Reserve Bank of India (RBI) Governor Raghuram Rajan (Pic: thewire)
चांद पर पहली सॉफ्ट लैंडिंग!
कई असफल प्रयासों के बाद 3 फरवरी, 1966 को, सोवियत रोबोट लैंडर ने चंद्रमा की सतह पर दुनिया की पहली सॉफ्ट लैंडिंग के मिशन को पूरा किया. इस मिशन के बाद यह मिथ्या ख़त्म हो गया कि चांद पर कदम पड़ते ही स्पेसक्राफ्ट धूल की चादर में ढक जाएगा. आखिरकार लूना-9 स्पेसक्राफ्ट को सफलता मिली और वह चांद की सतह पर सुरक्षित लैंड हुआ.
स्पेसक्राफ्ट ने उतरते ही चांद के दृश्यों को धरती पर भेजना शुरु कर दिया था. यह एक ऐतिहासिक पल था. इन दृश्यों को देख चांद को लेकर की गई कई धारणाएं गलत साबित हुई. कई अंतरिक्ष यात्री सोचते थे कि चांद की सतह धूल से भरी है. इस मिशन से ये बात सामने निकलकर आई कि चाँद की सतह पथरीली है.
वह सोवियत संघ का चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने का 12 वां प्रयास था. स्पेसक्राफ्ट को 31 जनवरी, 1966 को 14:41:37 मास्को समय पर शुरू किया गया था. यह यात्रा 3 फरवरी को पूरा हुई थी.
इस मिशन को आधिकारिक तौर पर लूना-9 के रूप में घोषित किया गया था.
First Soft Landing Of Luna-9 On Moon (Representative Pic) – (Pic-flickr)
तो ये थी तीन फरवरी से जुड़ी कुछ झलकियां. अगर आप भी जानकारी रखते हैं आज के दिन की ख़ास बातों की तो हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं.
Web Title: Important Events On February 3, Hindi Article
Feature Image Credit: indiawest/twitter/thelogicalindian