10 जून का इतिहास में खासा महत्व है.
इस दिन कुछ ऐतिहासिक लड़ाइयां ही नहीं हुईं, बल्कि खेल और विज्ञान के क्षेत्र में नए कीर्तिमान भी स्थापित हुए.
इस नजर से यह दिन इतिहास की दृष्टि से समग्र कहा जा सकता है.
तो आइए एक नजर इस दिन इतिहास में घटी कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं पर डाल लेते हैं –
लॉर्ड्स में भारत की पहली टेस्ट जीत
10 जून 1986 के दिन भारत ने लॉर्ड्स के मैदान पर अपना पहला टेस्ट मैच जीता.
इस जीत के नायक दिलीप वेंगसरकर रहे, जिन्होंने पहली पारी में शानदार शतक लगाया.
इससे पहले इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 294 रन का स्कोर खड़ा किया. जवाब में भारत ने अच्छी शुरुआत करते हुए तीन विकेट के नुकसान पर 232 रन बना लिए थे. तभी गेंदबाजी पर डेरेक प्रिंगल आए और अगले 32 रनों के भीतर भारत ने पांच विकेट खो दिए.
दूसरे दिन के खेल की समाप्ति तक दिलीप 81 रनों के निजी स्कोर पर एक छोर पर टिके हुए थे.
इससे पहले भारत लॉर्ड्स में 10 टेस्ट मैच खेल चुका था, लेकिन किसी में भी उसे जीत हासिल नहीं हुई. 8 मैच में उसे हार मिली, जबकि 2 मैच ड्रा हुए थे.
ऐसे में तीसरे दिन की शुरुआत पर यही लग रहा था कि भारत लॉर्ड्स में इस बार भी जीत का स्वाद नहीं चख पाएगा. लेकिन दिलीप अलग ही इरादे के साथ मैदान पर उतरे थे.
अंग्रेजी गेंदबाजों के सामने उन्होंने एक छोर संभाले रखा और धीरे-धीरे अपने शतक की ओर बढ़ते रहे.
इस तरह उन्होंने 170 गेंदों पर अपना शतक पूरा किया और भारत ने इंग्लैंड के ऊपर बढ़त हासिल कर ली. भारत की पहली पारी ख़त्म होने पर उसके पास 47 रन की बढ़त थी.
इसके बाद, इंग्लैंड ने अपनी दूसरी पारी में धीमी, लेकिन सधी हुई शुरुआत की.
बावजूद इसके कपिल देव, मनिंदर और रवि शास्त्री की तिकड़ी के आगे अंग्रेजी बल्लेबाजों की एक ना चली और पूरी टीम दूसरी पारी में 180 रनों पर आउट हो गई.
अब भारत को टेस्ट मैच के अंतिम दिन दूसरी पारी में जीत के लिए 134 रनों की दरकार थी.
दूसरी पारी में भारत की शुरुआत अच्छी नहीं रही और 78 रनों के स्कोर पर टीम ने 4 विकेट खो दिए.
अब लग रहा था कि भारत यह मैच हार जाएगा. इस बीच पहली पारी के हीरो वेंगसरकर भी 33 रन बनाकर आउट हो गए.
ऐसे में रवि शास्त्री क्रीज पर आए और उन्होंने संभल कर खेलना शुरू किया. उनके साथ दूसरे छोर पर मोहम्मद अजहरुद्दीन टिके थे.
110 रन के स्कोर पर अजहरुद्दीन आउट हो गए. इसके बाद क्रीज पर कपिल देव आए. उन्होंने एक ओवर में तीन चौके और एक छक्का लगाकर मैच ख़त्म कर दिया.
इस तरह भारत ने अपने 11वें प्रयास में लॉर्ड्स में अपना पहला टेस्ट जीत ही लिया.
फ़्रांस-ब्रिटेन के साथ इटली का युद्ध
10 जून 1940 के दिन इटली के तत्कालीन तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी ने फ्रांस और ब्रिटेन के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. युद्ध की यह घोषणा मुसोलिनी ने द्वितीय विश्वयुद्ध में हिटलर का साथ निभाने के तहत की.
हालाँकि, पहले पहल मुसोलिनी किसी भी तरह का युद्ध नहीं करना चाहता था, लेकिन जब उसने देखा कि हिटलर लगातार यूरोप में जीत हासिल करता जा रहा है, तब उसे हिटलर के साथ जाने में फायदा दिखा.
इससे पहले फ़्रांस और ब्रिटेन ने मुसोलिनी को अपनी तरफ करने का प्रयास किया था. उन्होंने उसे अफ्रीका में अपने उपनिवेशों में हिस्सेदार बनने का प्रलोभन भी दिया.
आगे 20 जून से इटली की सेना फ़्रांस की तरफ बढ़ने लगी थी. इसका नतीजा यह हुआ कि ब्रिटेन ने अपने यहां रह रहे इटली के सभी नागरिकों को बंधक बना लिया. वहीं, अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने एक संदेश प्रसारित किया. इस संदेश में उन्होंने फ़्रांस और ब्रिटेन की हर संभव मदद करने की घोषणा की.
आगे द्वितीय विश्व युद्ध में सोवियत संघ ने भी ब्रिटेन और फ़्रांस का साथ दिया और दूसरी तरफ जर्मनी और इटली को जापान का साथ मिला.
अंत में जर्मनी, इटली और जापान की हार हुई.
आकाशीय बिजली से बचाव का प्रयोग
10 जून 1752 के दिन बेंजामिन फ्रैंकलिन ने एक पतंग उड़ाकर आकाश में कड़कने वाली बिजली से इमारतों को क्षतिग्रस्त होने से बचाने का प्रयोग किया.
बारिश और बिजली कड़कने के संयोग के बीच इन्होंने रेशम के रूमाल और लकड़ी की पट्टियों से बने एक क्रॉस का प्रयोग कर एक पतंग तैयार की.
पतंग के एक सिरे पर बाहर निकलता हुआ एक लोहे का तार बांध दिया.
इस पतंग को उड़ाने के लिए प्रयोग में लाए गए धागे के एक सिरे पर सिल्क का रिबन बंधा था और धागे व सिल्क रिबन के बीच लोहे की एक चाबी लगा दी गई थी.
अब पतंग को कड़कती बिजली और तेज बारिश में उड़ाया गया.
इस प्रयोग के निष्कर्षों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि बिजली चमकना वास्तव में एक प्राकृतिक विद्युतीय डिस्चार्ज प्रक्रिया है. और इस प्रकार बेंजामिन ने भवनों को बिजली से होने वाली हानि से बचाने का एक कारगर उपाय इज़ाद कर लिया.
17 जनवरी 1706 को बोस्टन में पैदा हुए फ्रैंकलिन ने शुरूआत में अपने भाई के साथ मिलकर एक प्रिंटिंग प्रैस खोली थी, लेकिन इनका मन तो विज्ञान के क्षेत्र में ही लगा.
बिल्डिंग और पानी के जहाजों की सुरक्षा करने वाली बिजली की छड़ियों की खोज के अलावा इन्होंने बैट्री, कंडक्टर और इलेक्ट्रीशियन जैसे शब्दों का प्रतिस्थापन किया.
शुरू हुई 'दोंग सोई' की लड़ाई
10 जून 1965 के दिन उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम के बीच 'दोंग सोई' की लड़ाई शुरू हुई. इसमें अमेरिका दक्षिणी वियतनाम का साथ दे रहा था.
10 जून की सुबह करीब 1,500 उत्तरी वियतनामी गुरिल्ला लड़ाकों ने 'दोंग सोई' पर हमला बोल दिया. इससे पहले कि अमेरिका को पता चलता, इन लड़ाकों ने उसकी मिलिट्री सप्लाई को ब्लाॅक कर दिया.
इसके साथ ही उन्होंने इस क्षेत्र में उपस्थित अमेरिकी सैन्य कैम्पों को भी घेर लिया. इस तरह उन्होंने अमेरिका को बुरी तरह फंसा दिया.
आगे अमेरिका ने हवाई हमले किए. इससे उत्तरी वियतनाम के लड़ाके कुछ पीछे जरूर हटे, लेकिन तब तक उन्होंने 900 दक्षिणी वियतनामी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया.
इसके साथ ही 7 अमेरिकी सैनिक मारे, 12 लापता और 35 घायल हो गए. वहीं, करीब 350 उत्तरी वियतनामी लड़ाके भी मारे गए.
बाद में उत्तरी वियतनाम ने दक्षिणी वियतनाम और अमेरिका को हरा दिया.
तो ये थीं, 10 जून के दिन इतिहास में घटी कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं. अगर आप भी इस दिन से जुड़ी कोई विशेष और ऐतिहासिक घटना जानते हैं, तो नीचे कमेंट बॉक्स में हमारे साथ अवश्य शेयर करें.
Web Title: Important Historical Events of 10th June, Hindi Article
Feature Image Credit: Cricfit