कुछ लोग अपनी जिंदगी में वो मुकाम हासिल कर जाते हैं कि आने वाली पुश्तें उनके पद चिह्नों पर चलती हैं. यही कारण है कि उनके याेगदान को कभी भी भुलाया नहीं जाता. यहां तक कि उनके मरने के बाद भी उनका नाम तारीखों के साथ स्वर्ण अक्षरों में कैद हो जाता है.
वहीं ये ऐतिहासिक तारीखें हमें उस दिन के इतिहास को भी बताती हैं.
आज हम आपको ऐसे ही चुनिंदा लोगों की ज़िंदगी से रुबरु कराएंगे, जिनके लिए 13 मार्च महज़ एक तारीख़ नहीं, बल्कि कभी न भूलने वाला इतिहास है–
उस्ताद विलायत खान का निधन
भारतीय शास्त्रीय संगीत के उस्ताद माने जाने वाले विलायत खान आज ही के दिन दुनिया को अलविदा कह गए. महज़ आठ वर्ष की उम्र में सितार बजाने वाले विलायत खान ने अपने संगीत से दुनियाभर में सुर्खियां बटोरीं.
विलायत खान का जन्म गौरीपुर (अब बांग्लादेश का हिस्सा है) में 28 अगस्त 1928 को हुआ था. उनके दादा इमदाद खान अपने समय के मशहूर सितार वादक कहलाते थे. यही कारण था कि विलायत खान का पूरा खानदान उनके दादा के नाम से मशहूर इमदादी घराना कहलाता था.
बंगाल में जन्म होने के कारण विलायत खान ने बंगाली गायन क्षेत्र में काफी संगीत दिया. अपनी अनोखी कला के कारण उन्हें आफताब-ए-सितार कहा जाता था. वहीं स्टेज पर अपनी बेजोड़ परफॉरमेंस के कारण वह भारत सितार सम्राट के नाम से मशहूर थे.
उस्ताद विलायत खान ने कई बार सरकार से पद्म अवार्ड लेने से मना कर दिया. उनका कहना था कि सरकार ने शास्त्रीय संगीत को बढ़ाने के लिए कोई अहम फैसले नहीं लिए.
हालांकि, उन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण अवॉर्ड देने की पेशकश की गई थी, किन्तु उन्होंने किसी भी तरह के अवॉर्ड को लेने से साफ इंकार कर दिया था.
13 मार्च 2004 को यह मशहूर सितारवादक 75 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गया.
Ustad Vilayat Khan. (Pic: bazaar)
नाकाम रही हिटलर को मारने की साजिश
जर्मनी के तानाशाह हिटलर को कई बार मारने की कोशिश की गई, लेकिन हर बार वो बच निकला और एक दिन उसने खुद ही अपने आपको गोली मार ली.
अपनी 56 साल की ज़िंदगी में क्रूरता की एक नई इबारत लिखने वाले हिटलर ने यहूदियों को मौत के घाट उतारने के लिए वह सब किया, जो शायद एक इंसानी दिमाग सोच भी न सके.
ऐसा ही हुआ जब 13 मार्च, 1943 को हिटलर एक और हमले से बच निकला. हिटलर को मारने के लिए उसके विमान पर बम विस्फोटक लगाया गया था, जो अंतिम समय पर नहीं फटा और यहां भी हिटलर मौत के साथ आंख मिचौली के खेल से बच गया.
जर्मन के कुछ सैन्य अधिकारी और देश के राजनेता हिटलर को मारने की साजिश रच रहे थे, उन्होंने फैसला किया था कि हिटलर के प्लेन में बम लगाकर उसे मार दिया जाएगा.
इसके तहत उन्होंने बम को एक शराब की बोतल में रखा था, किंतु कई कारणों के चलते बम नहीं फटा और हिटलर सकुशल बच निकला.
Adolf Hitler, leader of Nazi Germany. (Pic: biography)
टेस्ट क्रिकेट में न्यूज़ीलैंड की पहली जीत
आज का दिन क्रिकेट इतिहास के लिहाज़ से भी काफी महत्वपूर्ण है. आज ही के दिन यानी 13 मार्च 1956 को न्यूज़ीलैंड टीम ने टेस्ट क्रिकेट इतिहास में अपनी पहली जीत दर्ज करते हुए इतिहास रचा था.
जॉन रीड की कप्तानी में न्यूज़ीलैंड ने उस दौर की सबसे मजबूत मानी जाने वाली वेस्टइंडीज़ क्रिकेट टीम को हराया था. वेस्टइंडीज़ टीम में उस समय गैरी सौबर्स जैसे दिग्गज़ खिलाड़ी हुआ करते थे. बावजूद इसके न्यूज़ीलैंड यह मैच जीत गई थी, लेकिन सीरीज़ बचाने में असफल रही. चार टेस्ट मैचों की सीरीज़ में शुरुआती तीन मैच हारने के बाद न्यूज़ीलैंड ने अंतिम मैच जीतकर टेस्ट क्रिकेट इतिहास में अपना जीत का खाता खोला था.
न्यूज़ीलैंड के ऑकलैंड में खेले गए इस चौथे टेस्ट मैच की चौथी पारी में न्यूज़ीलैंड की ओर से रखे गए 268 रनों का पीछा करते हुए वेस्टइंडीज़ की टीम महज 77 रनों पर सिमट गई थी.
न्यूज़ीलैंड की इस जीत के बाद पूरे न्यूज़ीलैंड में जश्न का माहौल था.
New Zealand’s first test cricket win, 1956. (Pic: espncricinfo)
भूकंप से दहल गया था तुर्की
13 मार्च 1992 का दिन तुर्की को गहरे और नहीं भूलने वाले ज़ख्म दे गया था. आज ही के दिन पूर्वोत्तर तुर्की का क्षेत्र तेज़ भूंकप से थर्रा गया. इस भूकंप में करीब 500 लोग मरे थे, जबकि करीब पचास हज़ार से अधिक लोग अपने घर गंवा चुके थे.
तुर्की में भूकंप आने के कई दिन बाद तक बचाव कार्य चलता रहा, जिसमें कई मरे हुए लोगों को मलबे के नीचे से निकाला गया और हज़ारों लोगों को राहत सामग्री पहुंचाई गई.
भूकंप ने तुर्की में भयंकर तबाही मचाई थी, वहीं रमज़ान के पवित्र महीने में भूकंप ने तुर्की में दस्तक दी थी. शुक्रवार को जब भूकंप आया तो लोग शाम को अपना रोज़ा खोलने की तैयारी में भोजन तैयार कर रहे थे.अचानक आए इस भूकंप से पूर्वोत्तर तुर्की अंधेरे में डूब गया था. रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 6.8 आंकी गई थी.
इस भूकंप को तुर्की के इतिहास में सबसे ख़तरनाक भूकंप माना जाता है.
Earthquake hits Turkey. (Representative Pic: thenational)
ऊधम सिंह ने ‘माइकल ओ डायर’ को मारी गाेली
आज ही के दिन पंजाब में जन्मे क्रांतिकारी ऊधम सिंह ने लंदन के मीटिंग हॉल में माइकल ओ डायर पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर उसे मौत के घाट उतार दिया था.
13 मार्च 1940 को ऊधम सिंह ने इस घटना को अंजाम दिया था.
असल में माइकल ओ डायर को मारने के पीछे ऊधम सिंह का सबसे बड़ा कारण पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में मारे गए निहत्थे और निर्दोष भारतीय लोगों की मौत का बदला लेना था. ब्रिटिश काल के दौरान पंजाब के अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को कर्नल रेगिनाल्ड डायर ने जलियांवाला बाग में एकत्रित हुए लोगों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था.
उस दौर में पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर रहते हुए माइकल ओ डायर ने जलियांवाला बाग घटना का समर्थन किया था, जिससे ऊधम सिंह के दिल में बदले की भावना ने जन्म लिया.
माना जाता है कि ऊधम सिंह ने डायर को मारने की कसम खाई थी, जिसके लिए उन्होंने करीब 21 साल तक इंतज़ार किया, यहां तक कि वाे डायर को माने के लिए इंग्लैंड तक चले गए और वहीं सही मौके और सही समय का इंतज़ार करते रहे.
लंदन में केंद्रीय एशियाई सोसाइटी और ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की एक बैठक के दौरान मौजूद माइकल ओ डायर को ऊधम सिंह ने मौका मिलते ही गाेलियों से भून दिया.
ऊधम सिंह एक किताब के अंदर रिवॉल्वर छुपाकर लाए थे. गजब की बात तो यह थी कि ऊधम गोली मारने के बाद वहां से भागे नहीं और गिरफ्तार कर लिए गए. कोर्ट में उन्होंने कहा कि उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा नहीं और वह अपने देश के लिए मरने से नहीं डरते.
इसी कड़ी में 31 जुलाई 1940 को भारत के लिए ऊधम सिंह ने अपने आपको कुर्बान कर दिया.
Shaheed Udham Singh. (Pic: pinterest)
तो ये थीं केलैंडर में दर्ज कुछ ऐतिहासिक घटनाएं. अगर आपको भी 13 मार्च से जुड़ी अतीत की कुछ बातें पता हैं तो कमेंट बॉक्स में हमारे साथ जरूर शेयर करें.
Web Title: Important Historical Events of 13th March, Hindi Article