तारीखें इतिहास के गर्त में छिपे ऐतिहासिक तथ्यों को बताने का आईना हैं.
'डे' इन हिस्ट्री की इस कड़ी में आज हम 19 जुलाई के दिन भारत में घटी कुछ ऐसी ही विशेष घटनाओं पर नजर डालेंगे.
मसलन, आज ही के दिन एक ओर जहां 1857 की क्रांतिके जनक मंगल पांडे पैदा हुए, तो वहीं दूसरी ओर अंग्रेजों के बल पर बंगाल का नवाब बना मीर कासिम अली इन्हीं अंग्रेजों से युद्ध हार गया.
19 जुलाई को ही उत्तराखंड की सुंदर रियासत टिहरी गढ़वाल का भारत में विलय हुआ, वहीं, भारत की आयरन लेडी इंदिरा गांधी ने 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर भारत के आर्थिक विकास को पंख लगाए थे.
तो चलिए इन घटनाओं पर एक बार नजर डाल लेते हैं –
क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म
गुलाम भारत में पहली गदर को शुरू करने वाले क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म आज ही के दिन 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था. कहीं-कहीं पर इनका जन्म स्थान फैजाबाद जिले का सुरहुरपुर गांव बताया जाता है.
बहरहाल, मंगल पांडे कलकत्ता की बैरकपुर छावनी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री में एक पैदल सिपाही थे.
1857 की क्रांति की चिंगारी यहीं से भड़की थी. जिसे पहला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह या 1857 की गदर भी कहा जाता है.
इसकी शुरूआत हुई 0.577 कैलीवर की एक नई एनफील्ड बंदूक से, जिसे सिपाहिओं के सुपुर्द किया गया था. इसके कारतूस को दांतों से खोलना पड़ता था, जिसके ऊपर सुअर और गाय की चर्बी का इस्तेमाल किया गया था.
ये बात सिपाहिओं को पता चली तो, उन्होंने इसका विरोध किया. गाय हिंदू धर्म में पूजी जाती है और सुअर मुस्लिमों के लिए वर्जित है, ऐसे में हिन्दू और मुस्लिम धर्म के सिपाही एक हो गए.
इसी क्रम में 29 मार्च 1857 को इन कारतूसों के प्रयोग का आदेश दिया गया. लेकिन मंगल पांडे ने इस अंग्रेजी आदेश को मानने से इंकार कर दिया.
आदेश की अवहेलना करने पर अधिकारी ने सेना के जवानों से उसे गिरफ्तार करने को कहा, लेकिन कोई भी सिपाही उन्हें पकड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाया.
ऐसी स्थिति अंग्रेज सार्जेंट मेजर ह्यूसन खुद मंगल पांडे को गिरफ्तार करने के लिए आगे बढ़ा. पांडे ने उसके सामने अपनी बंदूक तान दी. अंग्रेज इस सोच में था कि सिपाहिओं से भरी इस जगह पर मुझे कोई कुछ नहीं कर सकता, लेकिन पांडे ने ट्रिगर दबा ही दिया और ह्यूसन जमीन पर औंधा गिर पड़ा.
इसके बाद एक और अंग्रेज अफसर लेफ्टिनेंट बॉब पांडे की ओर बढ़ा, उसे मंगल की बंदूक ने घायल कर दिया.
और अंत में उसने मंगल को मारने के लिए अपनी पिस्टल और फिर तलवार निकाल ली, लेकिन इस क्रांतिकारी ने उसका वो हाथ ही काट दिया.
इतना कुछ होने के बाद कुछ अंग्रेज अफसरों और सिपाहिओं ने मंगल पांडे को धर दबोचा.
इस प्रकार 1857 की क्रांति की ज्वाला भड़काने वाले भारत के वीर सिपाही को 6 अप्रैल, 1857 को मौत की सजा सुना दी गई. और इसके दो दिन बाद ही उन्हें फांसी पर लटका दिया गया.
अंग्रजों से हारा बंगाल का नवाब मीर कासिम
प्लासी के युद्ध के बाद 1760 में मीर कासिम ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद से बंगाल का नवाब बन बैठा. और इसके 3 साल बाद ही अपनी हठधर्मिता के कारण हुए अंग्रेजों से एक युद्ध में हार गया.
मीर कासिम का पूरा नाम मीर मुहम्मद कासिम अली खान था. अंग्रेजों ने सन 1760 में उसके ससुर मीर जाफर को गद्दी से उतार दिया और उसे बंगाल का सूबेदार बना दिया. कासिम ने बंगाल का नवाब बनने के लिए कंपनी को लाखों रुपए की रिश्वत दी और इसी के साथ बर्दवान, मिदनापुर व चटगांव (आज बांग्लादेश में) भी कंपनी के सुपुर्द कर दिए.
नवाब बनते ही उसने ईस्ट इंडिया कंपनी को दरकिनार कर बंगाल में अपने हिसाब से राज-पाठ शुरू कर दिया था. और अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद बना ली.
असल में अंग्रेज उसके काम से खुश नहीं थे, न ही वो अंग्रेजों के मनमुताबिक काम कर पा रहा था. इससे कंपनी को अपना प्रभाव कम होने की आशंका थी और उसे नुकसान हो रहा था.
लिहाजा, इस तरह से अपनी मनमानी करने के कारण मीर कासिम ब्रिटिश अधिकारियों के निशाने पर आ गया.
आखिरकार, कासिम के प्रशासन से असंतुष्ट अंग्रेजों ने उसके ससुर मीर जाफर के साथ 7 जुलाई, 1763 को मीर कासिम के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया.
अंग्रेजी कमांड मेजर थॉमस एडम्स एक छोटी सी सेना के साथ बंगाल के नवाब की पहली चौकी कटवा पहुंची. जिसमें अत्याधुनिक हथियारों से लैस लगभग 6000 सिपाही थे. यहां अर्मेनियाई जनरल गुर्गिन खान के नेतृत्व में नवाब के लगभग 25,000 सैनिक पहले से मौजूद थे.
बहरहाल, 17 जुलाई, 1763 को युद्ध शुरू हो गया. नवाब की सेना अंग्रेजों की तोपों के सामने ढेर होती जा रही थी और फिर इस कमजोर सेना ने अंग्रेजों के आगे आत्मसमर्पण कर दिया.
इधर, लेफ्टिनेंट ग्लेन ने कटवा किले पर अपना कब्जा कर लिया.
इसके बाद 19 जुलाई, 1763 की सुबह मुहम्मद ताकी खान ने अपनी सेना को कटवा की ओर भेजा. और फिर इनमें युद्ध शुरू हो गया.
आखिरकार, अंग्रेजों ने मुहम्मद ताकी खान को मार दिया. इस हार के साथ मीर कासिम को दोहरा झटका लगा. इधर युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई और उधर हारकर मीर कासिम जान बचाकर भाग निकला.
14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के 14 बड़े व्यावसायिक बैंकों का आज ही के दिन यानी 19 जुलाई, 1969 को राष्ट्रीयकरण किया था.
भारत को आजादी के बाद ये पहली बार था, जब आर्थिक विकास के लिए इतने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया.
इससे पहले वाणिज्यिक बैंक निजी क्षेत्र से संबंधित होते थे. चूंकि ये वाणिज्यिक बैंक औद्योगिक घरोनों द्वारा संचालित थे, इसलिए वे सरकार की मदद नहीं कर पाते थे.
ऐसी स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार ने 14 प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण का फैसला लिया.
इसके बाद अप्रैल 1980 में दूसरी बार 7 और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया. इससे पहले केवल भारतीय स्टेट बैंक ही एकमात्र राष्ट्रीयकृत बैंक था.
उस समय मोरारजी देसाई वित्त मंत्री थे, जिन्होंने एक बैंकों के इस राष्ट्रीकरण के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था. हालांकि इंदिरा रुकने वाली नहीं थीं, और उन्होंने 19 जुलाई को एक अध्यादेश लाकर 14 बैंकों का स्वामित्व सरकार के हवाले कर दिया.
उस समय इन 14 बैंकों के पास देश की 70 प्रतिशत पूंजी जमा थी.
टिहरी गढ़वाल का भारत में विलय
देव भूमि उत्तराखंड के बाहरी हिमालयी की दक्षिणी ढलान में पड़ने वाला पहाड़ी जिला टिहरी गढ़वाल अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है.
भारत की आजादी से पहले गुलाम भारत में ये दोहरी गुलामी का शिकार था. पहला तो भारत पर अंग्रजों का शासन था, दूसरा टिहरी गढ़वाल में राजा की सत्ता चलती थी.
भारत की स्वतंत्रता के लगभग डेढ़ साल बाद आज ही के दिन यानी 19 जुलाई 1949 को इस जिले का स्वतंत्र भारत में विलय हो गया. और इसी के साथ इसे राजा की गुलामी से भी आजादी मिल गई.
कहा जाता है कि मालवा के राजकुमार कनक पाल और उनके वंशजों ने 1803 तक लगभग 915 सालों तक गढ़वाल पर शासन किया.
इसके बाद गढ़वाल रियासत 1815 में बंट गई. इसी के साथ अब यहां लोग राजशाही के खिलाफ खड़े होने लगे थे.
23 जनवरी 1939 को टिहरी राज्य प्रजामंडल के गठन के साथ राजा का विरोध और राज्य की स्वतंत्रता का आंदोलन शुरू हो गया.
प्रजामंडल के पहले मंत्री श्रीदेव सुमन को जेल भेज दिया गया. हालांकि इन्होंने राजा का विरोध करना नहीं छोड़ा. और रिहा होने के बाद 25 जुलाई 1944 को 84 दिन की भूख हड़ताल की, हालांकि इसमें वो शहीद हो गए.
इसी समय गांधी जी का भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो चुका था, जिसमें यहां के लोगों ने भी भाग लिया.
इसी क्रम में 1947 में भारत को आजादी मिली और उधर टिहरी के लोगों ने भी स्वतंत्र भारत में विलय के लिए आंदोलन छेड़ दिया. आंदोलन बड़ा था, राजा को लोगों की बात माननी पड़ी और फलस्वरूप पंवार वंश के शासक महाराजा मानवेंद्र शाह ने शासन की कमान भारत सरकार को सौंप दी.
इसी के साथ 1949 में टिहरी का उत्तर प्रदेश राज्य में विलय कर दिया गया.
Web Title: Important Historical Events of India 19th July, Hindi Article
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