अगर कभी अपनी ज़िंदगी पर अफसोस हो तो एक बार सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय सेना के जवानों को ज़रुर देख लें. कई डिग्री माइनस तापमान में सेना के जवान फ़ौलाद बनकर सरहदों की रखवाली जो करते हैं.
भारतीय सेना के जवान देश और हमारी हिफ़ाज़त के लिए हर वक़्त मौत से आंख मिचौली खेलते रहते हैं. लाखों जवानों का लहू बॉर्डर पर बहा है तब कहीं जाकर हम आज ख़ुली फिज़ाओं में सांस ले पा रहे हैं.
यूं तो भारतीय सेना की हर रेजिमेंट एक से बढ़कर एक है. अगर गोरखा रेजिमेंट अपनी आक्रामकता के लिए मशहूर है तो पुणे होर्स वॉरियर्स देश को जांबाज सिपाही देने के लिए विख़्यात है.
शायद ही कोई ऐसा पैमाना हो जिससे हम इंडियन आर्मी की रेजिमेंट्स की बहादुरी को नाप सकें. इस कड़ी में आज हम आपको इंडियन आर्मी की एक ऐसी रेजिमेंट के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे सबसे पुरानी रेजिमेंट होने का गौरव प्राप्त है.
बिल्कुल ठीक सोचा, हम बात कर रहे हैं मद्रास रेजिमेंट के बारे में. यह भारतीय सेना के शुरूआती समय से उनके साथ जुडी हुई है.
आईये ज़रा करीब से इंडियन आर्मी की मद्रास रेजिमेंट को जानते हैं–
1758 में पड़ी बुनियाद
जी हां इसमें बिल्कुल हैरानी वाली बात है. मद्रास रेजिमेंट की बुनियाद इंडियन आर्मी के वजूद में आने से पहले ही पड़ गई थी. हालांकि यह बात और है कि उस समय इसका नाम कुछ और था और यह सेना के अधीन नहीं आती थी.
सबसे पहले जब मद्रास रेजिमेंट वजूद में आई तो इसका नाम ‘मद्रास यूरोपियन रेजिमेंट’ रखा गया.
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस रेजिमेंट की नींव ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने रखी थी. कहा जाता है कि उस दौर में जब ब्रिटिशर्स इंडिया आये थे तब उन्हें इस बात का ख़तरा था कि अन्य देश के लोग भी इंडिया में आकर इस पर राज करने का सपना न देखने लगें. इसलिए उन्होंने अपनी ज़रुरत के हिसाब से बटालियन तैयार करना शुरु कर दी थी.
यूँ तो अंग्रेजों के पास अपनी खुद की सेना थी मगर वह शुरुआत में लड़ने वालों के रूप में भारतीय सैनिकों को तैयार कर रहे थे.
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के ऑफिसर मेजर स्ट्रिंगर लॉरेंस को भारत में सेना बनाने का काम दिया गया था. वह उस समय मद्रास में थे इसलिए उन्होंने वहीं पर भारत की पहली रेजिमेंट बनाने का फैसला किया.
इन्होंने ही मद्रास रेजमेंट के बीज बोये थे. शुरुआत में इसमें ब्रिटिश और भारतीय दोनों ही देशों के सैनिक थे. जहां ब्रिटिश सैनिकों को अफसर का दर्जा दिया जाता था, वहीं दूसरी ओर भारतीय सैनिकों को हवलदार का पद दिया जाता था. यहीं से शुरू हुआ भारत की पहली रेजिमेंट का सफ़र.
India Army Oldest Regiment Madras Regiment (Pic: armchairgeneral)
सियाचिन से लेकर ‘ऑपरेशन पवन’ तक में लहराया तिरंगा
मद्रास रेजिमेंट को सबसे पुरानी रेजिमेंट होने का ही गौरव प्राप्त नहीं है, बल्कि इस रेजिमेंट के पास कई ऐसी उपलब्धियां हैं जिससे भारतीय सेना का डंका दुनिया भर में बजता है. वजूद में आने के बाद मद्रास रेजिमेंट के बलबूते ब्रिटिशर्स ने कई देशों के सैनिकों को परास्त किया. ब्रिटिशर्स ने मद्रास रेजिमेंट के निडर सैनिकों के बूते ही 1803 में लड़ा गया मराठा वॉर जीता था.
इसके आगे भी मद्रास रेजिमेंट की कई उपलब्धियां हैं. मद्रास रेजिमेंट ने देश में ही नहीं देश के बाहर भी अपनी ताक़त का लोहा मनवाया है. मद्रास रेजिमेंट के जांबाज सिपाहियों ने प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लिया. अपनी निडरता और बेख़ौफ़ होकर लड़ने की क्षमता के कारण विश्व युद्ध में मद्रास रेजिमेंट को 11 बैटल आनर्स के ख़िताब से नवाज़ा गया.
आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत की आज़ादी के बाद भारतीय सेना ने देश और विदेशों में जितने भी युद्ध लड़े, उन सभी युद्धों में इस रेजिमेंट का योगदान रहा. चाहे बात जम्मू कश्मीर के सियाचिन ऑपरेशन की हो या बात हो इंडो-पाक वॉर की या फिर लोगों के ज़ेहन में श्रीलंका की ज़मी पर भारतीय सेना का ऑपरेशन पवन याद हो.
इन सभी युद्ध को फ़तह कर मद्रास रेजिमेंट के वीरों ने विजय तिरंगा लहराया था.
3rd Battalion Of Madras Regiment (Pic: madrasregiment)
‘वीरा मद्रासी, अडी कोलू, अडी कोलू’ है नारा
इंडियन आर्मी की हर रेजिमेंट का एक युद्ध नारा होता है. भारतीय सेना के यह नारे ही सेना की ताकत बढ़ाते हैं. जब सैनिक इन्हें चीखता हुआ दुश्मन के पास जाता है तो उसकी भी रूह कांप जाती है. यही कारण है कि सब ही सेना रेजिमेंट को उनके अलग-अलग नारे दिए हुए हैं.
गोरखा रेजिमेंट का नारा है कि ‘कायरता की ज़िंदगी जीने से बेहतर है मरना’. वहीं दूसरी ओर 17 पुणे होर्स का नारा था कि ‘ईश्वर का हाथ सभी हाथों से ऊपर है’.
ठीक इसी तरह मद्रास रेजिमेंट का नारा है ‘वीरा मद्रासी अडी कोलू, अडी कोलू’. यह नारा मद्रासी में है. अगर आपको यह समझ नहीं आया तो कोई बात नहीं हम इसका हिंदी अनुवाद आपको बताते हैं.
शुरु की पंक्ती का मतलब है ‘वीर बहादुर मद्रासी’ अंतिम दो एक जैसी पंक्तियों का मतलब है ‘प्रहार करो और जान से मारो’. मद्रास रेजिमेंट के इस नारे से साफ़ जाहिर होता है कि वह युद्ध मैदान में न तो दुश्मन को मारने से डरते हैं और न ही खुद मरने से डरते हैं. वह एक वीर की तरह हर परिस्थिति में व्यवहार करते हैं.
आपको जानकर हैरत होगी कि पिछले कई सौ सालों में मद्रास रेजिमेंट के बहादुर सिपाही युद्ध में यह नारा दोहराते हुये दुश्मनों को चारों ख़ाने चित करते आ रहे हैं.
India Army Oldest Regiment Madras Regiment (Pic: indiandefencereview)
सेना के हर बड़े पदक से नवाज़ा गया है मद्रास रेजिमेंट को
किसी भी रेजिमेंट के कमांडर के लिए सबसे अहम बात यह होती है कि जब भी देश को उनकी रेजिमेंट की ज़रुरत पड़े तो वह साया बनकर देश की हिफ़ाज़त करने की ज़िम्मेदारी निभाये. यह कर्तव्य निभाते हुये उसके रेजिमेंट के सिपाहियों की जान भी चली जाये तो कोई गम नहीं.
मद्रास रेजिमेंट के नायकों ने समय- समय पर अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हुये देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये. सेना की रेजिमेंट्स के लिए सबसे बड़ा सम्मान उसके आसाधारण कार्यों के लिए मिलने वाले वीरता पुरस्कार होते हैं. यही पुरस्कार होते हैं जो एक रेजिमेंट को अमूल्य बनाते हैं.
सरहद पर मद्रास रेजिमेंट के सिपाहियों की वीरता के लिए इस रेजिमेंट को सेना के हर बड़े सम्मान से नवाज़ा गया है. रेजिमेंट को अशोक चक्र, महावीर चक्र, वीर चक्र, परम विशिष्ट सेवा मेडल, कीर्ति चक्र, शौर्य चक्र जैसे बड़े सैन्य सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है.
मद्रास रेजिमेंट को मिल चुके सैन्य पुरस्कार की सूची इतनी लंबी है जो एक बार में नहीं लिखी जा सकती. यह रेजिमेंट भले ही ब्रिटिश अफसरों द्वारा बनाई गयी थी, मगर इन्होंने हमेशा ही भारत के लिए बलिदान दिया. यह रेजिमेंट जितनी पुरानी है इसने भारत के लिए उतने ही बलिदान भी दिए हैं.
वह ‘महानायक’ जिन्होंने बढ़ाई ‘रेजिमेंट की शान’
मद्रास रेजिमेंट का इतिहास इतना ग़हरा और गौरवशाली है कि एक लेख़ में इसको पिरो पाना बेहद मुश्किल है. खैर, आप अगर इंडियन आर्मी के बहुत बड़े प्रशंसक हैं तो एक नाम आप आज भी नहीं भूले होंगे. वह नाम है लांस नायक हनुमनथप्पा का.
दिमाग़ पर ज़ोर डालेंगे तो आपको सियाचिन के वह सफ़ेद पहाड़ याद आ जायेंगे.
वहीं पर बहादुर हनुमनथप्पा माइनस डिग्री तापमान में देश सेवा के लिए बॉर्डर पर तैनात थे. नसों का खून तक जमा देने वाले उस तापमान में हनुमनथप्पा खड़े हो कर देश के दुश्मनों पर नजर रख रहे थे. अचानक ही पहाड़ी धधकने से बर्फ की सफ़ेद चादरें नीचे गिर गई थीं. बर्फ बहुत ज्यादा थी और हनुमनथप्पा के साथ उनके कई साथी बर्फ की उस चादर के नीचे दब गए थे.
कोई और इंसान होता तो शायद उस बर्फ में दबने के बाद तुरंत ही ठंड से मर जाता, मगर हनुमनथप्पा के साथ ऐसा नहीं था. उनके अंदर जीने की आग थी, जिसने उन्हें मुश्किल हालात में भी जिंदा रखा. कई घंटों तक वह बर्फ के नीचे ही दबे रहे जब आखिर में जा के सेना उन्हें ढूंढ पाई. हर कोई यह देख कर हैरान हो गया था कि आखिर इतनी ठंड में भी हनुमनथप्पा जीवित कैसे थे?
उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टर उन्हें बचा न सके.
फरवरी 2016 को इस हादसे में हनुमनथप्पा के साथ नौ और जवान देश की रक्षा के दौरान खुद को न्यौछावर कर गये थे. जानना चाहेंगे कि यह सभी वीर योद्धा किस रेजिमेंट का हिस्सा थे. जी हां, उस रेजिमेंट का नाम है मद्रास रेजिमेंट…
उन सभी सैनिकों ने भारतीय सेना का मान बढ़ाया था.
Hanumanthappa Brave Soldier Of Madras Regiment (Pic: zlddm)
तो देखा आपने मद्रास रेजिमेंट न सिर्फ भारत की सबसे पुरानी बल्कि सबसे काबिल रेजिमेंट में से एक है. उन्होंने हर मौके और हर मोर्चे पर खुद को साबित किया है. यही तो कारण है कि इस रेजिमेंट का नाम इतनी अदब से लिए जाता है.
आप इन वीर जांबाजों के सम्मान में क्या कहना चाहेंगे, कमेन्ट-बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करायें!
Web Title: India Army Oldest Regiment Madras Regiment, Hindi Article
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