जैसा कि आप जानते हैं कि साल 1971 से पहले तक बांग्लादेश पाकिस्तान का ही एक हिस्सा था, जिसे पूर्वी पाकिस्तान के रूप में जाना जाता था.
मगर पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले लोगों के साथ हमेशा नाइंसाफी की गई.
इसके अलावा पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले लोग बांग्ला बोलते थे, जबकि पश्चिमी पाकिस्तानियों का इससे कोई वास्ता नहीं था. ऐसे में पाकिस्तान की सरकार में हमेशा पश्चिमी पाकिस्तान का ही बोलबाला रहा, जिससे पूर्वी पाकिस्तान को जरूरी उन्नति नहीं मिल सकी.
पूर्वी पाकिस्तान के लोग अब पश्चिमी पाकिस्तान से नफरत करने लगे थे. इसी के साथ वहां अलगाव की राजनीति शुरू हो गई, जो अब भयानक रूप ले चुकी थी.
इस अलगाव या कहें विद्रोह को दबाने के लिए पूर्वी पाकिस्तान ने बल प्रयोग किया और कई सैन्य आपरेशन भी चलाए.
ऐसी स्थिति में भारत पर खतरा आन पड़ा था, बड़ी संख्या में पूर्वी पाकिस्तान के लोग भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने लगे. इस स्थिति से निपटने के लिए भारत ने सैन्य ऑपरेशन चलाया.
हालांकि इसमें अमेरिका ने अपनी टांग अड़ानी चाही और उसने भारत पर हमले के लिए अपने पोत बंगाल की खाड़ी में भेज दिए. लेकिन भारत के सहयोगी रूस ने अमेरिका की इस नीति को फेल कर दिया.
आखिरकार पाकिस्तान का बंटवारा कर दिया गया और एक बांग्लादेश नाम के नए राष्ट्र का उदय हुआ.
पाकिस्तान के पक्ष में था अमेरिका
बंगाली शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान से निकलकर भारत में आने लगे थे, जोकि भारत के लिए परेशानी का सबब बनते जा रहे थे. इन हालातों पर गंभीरता बरतते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को इस बारे में जानकारी दी कि पूर्वी पाकिस्तान में हालात बदतर हो रहे हैं और वहां से लोग भागकर भारत में आ रहे हैं.
निक्सन को इस बात की भनक लग चुकी थी कि भारत पाकिस्तान के खिलाफ जंग छेड़ने की तैयारी में है.
दरअसल अमेरिका पाकिस्तान के साथ सेनटो और सिएटो संधि के तहत जुड़ा हुआ था और अमेरिका को डर था कि अगर युद्ध हुआ और भारत जीत गया तो उनके समर्थन से एशिया में सोवियत संघ का विस्तार और बढ़ जाएगा.
28 मार्च, 1971 को अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट विल रोजर को पाकिस्तान से एक खत आता, जिसमें लिखा था कि हमारी सरकार देश में पूर्वी हिस्से में फैली असंतुलन की स्थिति को काबू करने में पूरी तरह से फेल हो गई है.
ऐसे में अब अमेरिका को यकीन हो गया था कि जंग तय है, उसने चीन को भी इसमें शामिल करने की योजना बना ली. इसके लिए उन्होंने पाकिस्तान के जरिए चीन को संदेश पहुंचाया.
...और हमले के लिए अमेरिका ने भेज दिया युद्धपोत
बहरहाल, भारत इस बात से बेखबर था कि अमेरिका इस मुद्दे पर भारत को घेरना चाहता है.
इससे बेखबर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पूर्वी पाकिस्तान के बंगाली लोगों की स्थिति को सुधारने की आस लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के पास पहुंचीं. उन्होंने निक्सन को बंगालियों के हालातों के बारे में बताया और इस स्थिति में हस्तक्षेप करने की गुजारिश की.
लेकिन निक्सन ने उन्हें किसी भी तरह की मदद देने से इंकार कर दिया. ऐसे में अब भारत के पास युद्ध ही एक मात्र रास्ता रह गया था.
खतरनाक होती स्थिति के बीच भारत ने अपनी पूर्वी सीमा पर बंगाल की खाड़ी में युद्धपोत तैनात कर दिए.
हालांकि जब तक भारत की ओर से पहला वार किया जाता, तब तक 3 दिसंबर की रात को पाकिस्तान की ओर से भारत पर हमला कर दिया गया.
भारत को इस बात का अंदाजा था, इसलिए तैयारी पूरी थी. लिहाजा भारतीय सेना ने भी युद्ध का बिगुल फूंक दिया.
जब अमेरिका को इस बात का पता चला तो वह खबरा गया और उसने पाकिस्तान का साथ देने के लिए अपना युद्धपोत यूएसएस एंटरप्राइसेस बंगाल की खाड़ी के लिए रवाना कर दिया.
अमेरिका ने सोचा कि वह अपने युद्धपोत के दम पर भारत को आत्मसमर्पण के लिए धमका लेगा.
10 दिसंबर को भारतीय खुफिया एजेंसी ने राष्ट्रपति निक्सन द्वारा सेक्रेटरी किस्सिंगर को भेजा गया एक संदेश पकड़ा. इसमें निक्सन ने कहा कि उनका 75000 टन न्यूक्लियर पॉवर एयरक्राफ्ट युद्धपोत यूएसएस एंटरप्राइसेस अपने निर्धारित स्थान पर पहुंच गया है.
खबर मिलते ही भारतीय नौसेना ने भी जवाब में अपने युद्धपोत विक्रांत को मैदान में उतार दिया.
अब यूएसएस एंटरप्राइसेस और भारतीय शहरों के बीच विक्रांत चट्टान बनकर खड़ा था.
ब्रिटिश भी थे भारत के खिलाफ
इसी बीच सोवियत खुफिया एजेंसी से एक खबर आई कि ब्रिटिश युद्धपोत ईगल भारतीय महाद्वीप की ओर बढ़ रहा है.
हालांकि इसके बावजूद भारत घबराया नहीं और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सख्त रवैया अपनाते हुए दुश्मन का सामना करने का फैसला किया.
इस दौरान इंदिरा गांधी ने इंडो-सोवियत संधि के तहत रूस से मदद मांगी.
और 13 दिसंबर को एडमिरल व्लादिमीर करुपलयाकोव के नेतृत्व में सोवियत संघ ने न्यूक्लियर हथियारों से लैस युद्धपोत और सबमरीन भेज दी.
अपनी मौजूदगी को जताने के लिए सबमरीन को भारतीय महासागर के तल पर रखा गया, ताकि दुश्मन को पता चल जाए कि भारत अकेला नहीं है. रूस के बढ़ते कदम देख ब्रिटिश उल्टे पांव वापस हो गए.
उनके साथ ही अमेरिका ने भी खाड़ी से अपनी सेना को वापस बुला लिया.
बांग्लादेश को मिली स्वतंत्रता
इस बीच प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक नया दस्तावेज पारित किया और पूर्वी पाकिस्तान को अलग देश बनाने की अपनी योजना को आगे बढ़ाया.
भारतीय सेना ने पूरी ताकत से हमला किया और लाहौर के रास्ते पाकिस्तान में दाखिल हो गई.
पाकिस्तानी सेना का क्षेत्रीय रक्षण भारतीय सेना के सामने कमजोर पड़ रहा था. इसे देखते हुएआखिरकार 14 दिसंबर को पाकिस्तान आर्मी के जनरल ए.ए.के निआज़ी ने ढाका में मौजूद अमेरिकी उच्चायुक्त से कहा कि वह आत्मसमर्पण करना चाहते हैं.
जिसके बाद ये बात वाशिंगटन पहुंची और फिर वहां से नई दिल्ली में यह खबर आई.
इसके बाद भारतीय सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया गया और पाकिस्तान ने भारत के आगे आत्मसमर्पण कर दिया.
भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी सहमती के साथ पूर्वी पाकिस्तान को अलग देश घोषित कर दिया गया, जिसे बांग्लादेश नाम दिया गया.
यह भारतीय इतिहास का एक अहम लम्हा था, क्योंकि भारत ने सिर्फ पाकिस्तान पर जीत हासिल नहीं की थी बल्कि अमेरिका, चीन और ब्रिटेन को अपनी ताकत का एक नमूना भी दिखाया था.
इस युद्ध के दौरान इंदिरा गांधी द्वारा लिए गए फैसलों और सूझबूझ की बदौलत भारत दक्षिणी एशिया का एक ताकतवर देश बनकर ऊभरा.
Web Title: 1971 War: When America Ordered to Target India, Hindi Article
Feature Representative Image Credit: indiatimes