अहिल्याबाई होलकर हमेशा नारी जगत के लिए प्रेरणास्रोत रही हैं. उन्होंने न सिर्फ पति और ससुर के देहांत के बाद अपने राज्य की गद्दी संभाली, बल्कि एक ऐसे शासन का उदाहरण पेश किया, जो हर दौर के लिए एक आदर्श बन सकता है. उन्होंने अपने शासन काल में हमेशा लाभ-हानि को दरकिनार करते हुए समाज और अपनी प्रजा की जरुरतों को समझा. यही कारण है कि वह नई उम्मीद बनकर उभरीं और लोगों ने उन्हें ‘देवी’ माना. तो, आईये इनके जीवन के कुछ अन्य पहलुओं से रूबरू होते हैं:
औरंगजेब की मत्यु के बाद मुगलों की शक्ति कम हो रही थी और मराठाओं का विस्तार बढ़ रहा था. इसी कड़ी में पेशवा वाजीराव ने अपने कुछ सेनापतियों को छोटे-छोटे राज्यों का स्वतंत्र कार्यभार सौंपा. मल्हारराव होलकर को भी मालवा की जागीर मिली, तो उन्होंने अपने राज्य की स्थापना की और इंदौर को अपनी राजधानी बनाया.
मल्हारराव का एक पुत्र था खंडेराव, जो उनकी तरह न तो पराक्रमी था और न ही उसका मन राज्य के कामकाज में लगता था. इसलिए मल्लार अपने बेटे के लिए ऐसी पत्नी चाहते थे, जो उनके पुत्र के साथ-साथ राज्य को भी संभाल सके.
Subhedar Malhar Rao Holkar (Pic: holkars.blogspot)
एक बार उन्हें कहीं से लौटते हुए शाम हो गई थी, इसलिए उन्होंने पास में मौजूद चौन्दी गांव में ठहरने का मन बनाया. वह जब गांव के अंदर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि गांव के लोग वहां मौजूद एक मंदिर में शाम की आरती के लिए जा रहे हैं. तभी उनके कानों में एक सुंदर संगीत की आवाज सुनाई दी. उन्होंने पलट कर देखा तो एक 10-12 साल की बच्ची मंदिर के अंदर आरती गा रही थी.
आवाज इतनी ज्यादा मीठी थी कि मल्हारराव से रहा नहीं गया. उन्होंने पास से गुजरने वाले व्यक्ति को रोकते हुए पूछा, सुनो यह बच्ची कौन है? उस व्यक्ति ने मल्लार को आश्चर्य से देखते हुए कहा, आप परदेशी मालूम पड़ते हैं, इसलिए ही हमारी अहिल्या को नहीं जानते. यह हमारे मान्कोजी शिन्दे की बिटिया है. वह व्यक्ति आगे बढ़ता इससे पहले मल्हारराव ने उससे कहा, क्या आप मेरा परिचय करा देंगे उनसे. उसने जवाब दिया क्यों नहीं और मल्हारराव को अपने साथ ले जाकर मान्कोजी से मिलवा दिया.
मल्हारराव के नमस्कार का जवाब देते हुए मान्कोजी ने कहा माफ करियेगा मैंने आपको पहचाना नहीं. इस पर मल्हारराव ने कहा कैसे पहचानेंगे मैं यहां पहली बार आया हूं, पेशवा का सेवक हूं. यह सुनकर मान्कोजी की आंखें चमक उठी, उन्होंने कहा महाराज आपको कौन नहीं जानता. आपकी यश और वीरता के किस्से किसी से छिपे हुए नहीं हैं. अगर आप अनुमति दें तो मैं आपका आज रात के लिए अतिथि सत्कार करना चाहता हूं. मल्हारराव मान गये और रात मान्कोजी शिंदे के यहां रुक गये.
शिंदे ने अपनी बेटी को आवाज लगाते हुए कहा, अहिल्या इन्हें प्रणाम करो. अहिल्या ने प्रणाम किया और सभी एक साथ मान्कोजी के घर की ओर बढ़ चले. रास्ते भर मल्हारराव अहिल्या को निहारते रहते. उसकी सुंदरता और कला से वह बहुत प्रभावित हो गये थे. मन ही मन उन्होंने तय कर लिया था कि अहिल्या को वह अपनी पुत्रबधु बनाएंगे. रात्रि के भोजन के दौरान उन्होंने अपना प्रस्ताव मान्कोजी के सामने रखा, जिसे मान्कोजी शिन्दे ने झट से मान लिया.
इस तरह अहिल्या होलकर परिवार की बहू बनीं. अहिल्या ने ससुराल पहुंच कर जल्द ही अपने व्यवहार से सभी का दिल जीत लिया. सास की देखरेख में उन्होंने तेजी से घर की जिम्मेदारी संभाल ली और ससुर के सहयोग से वह राजकाज के काम देखने लगी. इस बीच वह एक बेटे और एक बेटी की मां भी बनीं.
पति व्यवहार से ठीक नहीं थे, जिस कारण उन्हें शुरुआत में परेशानी का सामना करना पड़ा. लेकिन जल्द ही वह पति को भरोसे में लेने में कामयाब रहीं. अब पति भी राज्य का कामकाज देखने लगे थे. सबकुछ सही चल रहा था, तभी अचानक एक युद्ध में अहिल्या के पति खाण्डेराव होलकर वीरगति को प्राप्त हुए.
अहिल्या के लिए यह एक बड़ी क्षति थी. वह बुरी तरह टूट चुकी थीं. यहां तक कि वह सती होना चाहती थीं, लेकिन ससुर मल्हारराव ने उन्हें समझाया. उन्होंने यह कहते हुए अहिल्या को प्रेरित किया कि तू ही मेरा बेटा है? तेरे सिवा मेरे पास अब क्या बचा है? बेटी तू चली जायेगी तो मैं क्या करूंगा? इस बूढ़े बाप के बारे में सोच और सती होने की बात मन से निकाल दे. पिता समान ससुर को आसुंओं में भीगा देखकर अहिल्या का मन पसीज गया और उन्होंने दिल पर पत्थर रखकर उनकी बात मान ली.
Inspiring Story of Ahilyabai Holkar (Pic: twitter.com)
पति की मौत के बाद अहिल्या पूरी तरह से अपने ससुर के कामकाज में हाथ बंटाने लगीं. होलकर राज्य विकास के रास्ते पर तेजी से बढ़ रहा था. तभी कुछ समय बाद ससुर मल्हारराव भी चल बसे. अहिल्या के लिए यह एक और बड़ा झटका था, क्योंकि ससुर मल्हारराव की मृत्यु के बाद सारे राज्य की जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी. उन्हें जल्द ही राज्य के लिए कोई बड़ा फैसला लेना था.
इसी कड़ी में अहिल्या ने अपने पुत्र मालेराव को यह कहते हुए राजगद्दी सौंपी कि उसे अपने दादा की तरह विवेक से राज्य को चलाना है. पर शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था. अपने राजतिलक के कुछ दिनों बाद ही मालेराव गंभीर रुप से बीमार हो गया और फिर कभी उठ नहीं सका. महज 22 साल के बेटे को इस तरह खोने के बाद मां अहिल्या की छाती फटी जा रही थी, लेकिन प्रजा की चिंता के कारण उन्होंने एक बार फिर से अपने आंसू पी लिए.
राज्य का पतन न हो जाये, इसलिए वह गंभीर होकर राज काज में लग गईं. चूंकि होल्कर परिवार के पास अब कोई भी पुरुष राजा न था, इसलिए राज्य के ही एक कर्मचारी ने दूसरे राज्य के राजा राघोवा को पत्र लिखकर होल्कर पर कब्जा करने का न्यौता दे डाला. जल्द ही अहिल्या को इसका पता चल गया और उन्होंने घोषणा की कि अब वह खुद राजगद्दी पर बैठेंगी.
उनके सेनापति तुकोजो राव ने उनका पूरा सहयोग दिया. आसपास के राज्यों में इस बात की सूचना दी गई. यहां तक की पेशवा बाजीराव को भी इस बात की जानकारी दी गई. सभी अहिल्या के इस कदम से खुश थे और उन्होंने उनकी मदद करने का आश्वासन भी दिया. सभी का साथ पाकर अहिल्या ने राज्य की मजबूती के लिए रसद और अस्त्र शस्त्र इक्कट्टे करने शुरु कर दिए. साथ ही उन्होंने अपने नेतृत्व में एक महिला सेना बनाई. इन महिलाओं को सभी प्रशिक्षण दिए गये और युद्ध कौशल भी सिखाए गए.
अपनी पूरी तैयारी के बाद उन्होंने अपने राज्य पर बुरी नज़र रखने वाले राघोवा को पत्र लिखकर चेतावनी दी कि हम तुम्हारी सेना पर वार करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने लिखा हे! राजन तुमने मुझे एक अबला समझने की भूल की है, इसलिए मैं तुम्हें युद्धभूमि पर बताऊंगी कि अबला क्या कर सकती है. मेरे अधीन मेरी महिला सेना तुम्हारा सामना करेगी.
युद्ध के लिए तैयार हो जाओं, लेकिन याद रखना अगर हमारी इस युद्ध में हार होती भी है, तो दुनिया कुछ नहीं कहेगी. पर अगर इस युद्ध में तुम हारे तो इस कलंक को अपने माथे से कभी नहीं हटा पाओगे कि तुमने महिलाओं से युद्ध किया. इसलिए अच्छा होगा कि इस लड़ाई से पहले एक बार दोबारा विचार कर लो, अन्यथा परिणाम के तुम स्वयं जिम्मेदार होगे.
अहिल्या का संदेश पढ़कर रघुनाथराव परेशान हो गया. उसका मुंह खुला का खुला रह गया और जब वह बोला तो उसके मुंह से यही निकला बाप रे बाप, क्या एक अबला के स्वर हैं यह? उसने मन बना लिया था कि वह युद्ध नहीं करेगा, लेकिन उसके पास मौजूद कुछ अधिकारी नहीं मान रहे थे.
वह रघुनाथराव को भड़का रहे थे. वह कह रहे थे महाराज अहिल्या आपके सामने कहीं भी नहीं टिकेगी. आखिर वह है तो महिला ही. पर रघुनाथराव नहीं माने. उन्हें आभास हो चुका था कि उन्हें लेने के देने पड़ सकते हैं. वह जानते थे कि अहिल्या कमजोर नहीं है. उनके पास तुकोजी राव जैसा कुशल सेनापति भी है, जिसने होल्कर के लिए कई युद्ध जीते हैं.
आखिरकार उसने अहिल्या को पत्र लिखकर युद्ध से अपने कदम पीछे हटा लिए. इस तरह रघुनाथराव बाजी हार चुका था और होलकर राज्य पर आया हुआ संकट दूर हो चुका था.
इसके बाद अहिल्या की यशकीर्ति दूर-दूर तक फैल गई. उनकी वीरता के चर्चे होने लगे, लेकिन उनका ध्यान राज्य के विकास से तनिक भी नहीं हटा. वह अपने राज्य के डाकुओं का खात्मा करने में सफल रहीं. उन्होंने जंगल में रहने वाले, उन लोगों को ही जंगल के रास्तों का संरक्षक बना दिया. जो लोग यात्रियों के साथ लूट-पाट करते थे. इसके अलावा उन्होंने कई मंदिर, घाट, कुओं, मार्गों का निर्माण कराया. राज्य को पटरी में लाकर वह 6 महीने के लिये पूरे भारत की यात्रा पर निकल गईं. इस दौरान उन्होंने अकावल्या के पाटीदार को राजकाज सौंप दिया था.
कहते हैं कि अहिल्या के घर के दरवाजे दीन दुखियों के लिए हमेशा खुले रहते थे. वह सब के लिए मां थीं. वह सबकी बात सुनती थीं और मदद करती थीं. इसलिए जब 1795 में उनका निधन हुआ तो चारों तरफ शोक फैल गया. सब इस तरह फूट-फूट कर रो रहे थे मानो उन्होंने अपनी मां को खो दिया हो. अहिल्याबाई के निधन के बाद तुकोजी ने इंदौर की गद्दी संभाली.
Ahilyabai Holkar Palace (Pic: panoramio.com)
यह थी अहिल्याबाई के जीवन से जुड़ी एक कहानी, जो हर किसी के लिए प्रेरक हो सकती है. अपना कमेन्ट देकर हमारा उत्साहवर्धन करना न भूलें.
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