इतिहास में कई सूफी संत और कवि हुए हैं, उनमें से कई कवियों की रचनाओं को बहुत पसंद भी किया गया.
कुछ ऐसे भी कवि हुए, जिनका संकलन कुछ दिनों के बाद ही कहीं गुम सा हो गया.
मगर आज हम एक ऐसे महान सूफी कवि के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके महाकाव्यों का संकलन लगभग 900 वर्षों बाद भी खूब पढ़ा जाता है.
आइए जानते हैं, ऐसे महान कवि मौलाना जलालुद्दीन मोहम्मद रूमी के बारे में –
एक अज़ीम शख्सियत थे रूमी
जलालुद्दीन रूमी 13वीं शताब्दी के महान फारसी कवि, इस्लामिक दरवेश और रहस्यवादी सूफी माने जाते हैं.
आज के आधुनिक युग में भी रूमी की कविताएं बहुत प्रचलित हैं, खासकर प्रेमियों के लिए.
ऐसा माना जाता है कि रूमी का नाम आज भी अमेरिका जैसे देश में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले कवियों में शुमार है!
रूमी की कविताओं ने खासकर अफगानिस्तान, ईरान और ताजिकिस्तान के फारसी वक्ताओं के बीच विशेष रूप से लोकप्रियता हासिल की.
1207 ई. को फारस के बल्ख शहर (आज अफगानिस्तान) में पैदा हुए जलालुद्दीन रूमी के पिता शेख बहाउद्दीन अपने वक़्त के एक महान विद्वान हुआ करते थे. फारस के अमीर लोग और अन्य विद्वान इनका उपदेश सुनने आते थे. साथ ही किसी मसले पर इनसे फतवा भी लिया जाता था.
ऐसा कहा जाता है कि मंगोलों से किसी मतभेद के कारण उनके परिवार को बल्ख नगर छोड़ना पड़ा था. बाद में इनके पिता ने तुर्की के कोन्या को अपना ठिकाना बनाया.
जलालुद्दीन रूमी के बचपन का नाम मोहम्मद था, जबकि उनको मौलाना जलालुद्दीन मोहम्मद रूमी के नाम से जाना जाता है.
जलालुद्दीन रूमी ने प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता से हासिल की थी.
पिता की मौत के बाद इनकी आगे की शिक्षा सैय्यद बुरहानुद्दीन मुहक्किक-अल-तर्मिदी से प्राप्त की, सैय्यद बुरहानुद्दीन मुहक्किक-अल-तर्मिदी इनके पिता के सबसे खास शागिर्दों में से एक थे और इनको अपनी जिंदगी में ही इन्होंने अपने बेटे की शिक्षा के लिए वसीयत कर दिया था.
पिता की मौत के एक साल बाद बुरहानुद्दीन तुर्की के कोन्या पहुंचे और लगभग 9 साल तक इनको अपने साथ रखकर गहन प्रशिक्षण दिया.
उसके बाद आगे की तालीम हासिल करने रूमी को अलेप्पो के एक हनफी काॅलेज में पढ़ने भेज दिया.
बाद में रूमी सीरिया भी गए और अपनी शिक्षा-दीक्षा हासिल करने के बाद तुर्की के कोन्या में वापस आकर अपने पिता के मदरसे को शिक्षक के रूप में सभाला.
तब तक रूमी एक महान विद्वान और दार्शनिक के तौर पर ख्याति प्राप्त कर चुके थे, और अपने पिता की तरह ही इन्हें भी सुनने दूर-दूर से लोग आया करते थे.
शम्स तबरेज की मुलाक़ात ने बदली जिंदगी
पहले ही एक शिक्षक और धर्मशास्त्री के रूप में अपनी पहचान बना चुके रूमी अब तक कई किताबों को लिख चुके थे. लेकिन उनकी जिंदगी को पढ़ने पर पता चलता है कि रूमी को इतना कुछ पाने के बाद भी खालीपन महसूस होता था, जबकि उनके कई सारे शुभचिंतक और शिष्य थे.
वहां उनको चाहने वालों की कोई कमी नहीं थी.
एक दिन रूमी की जिंदगी में ऐसा मोड़ आया, जब उनकी जिंदगी के मायने ही बदल दिए.
बात उस वक़्त की है जब एक दिन रूमी अपने मदरसे से निकलकर बाज़ार की तरफ निकले थे, तब उनकी मुलाकात उस वक़्त के महान दरवेश और सूफी शम्स तबरेज़ से मुलाक़ात हुई. जो लंबे समय से एक सूफी और अध्यात्मिक साथी की तलाश में थे.
कहा जाता है कि एक दिन मौलाना रूमी घर पर अपने शागिर्दों के साथ बैठे हुए थे. उनके चारों तरफ किताबों का जमावाड़ा लगा हुआ था. और वह किसी किताब का अध्यन कर रहे थे, कि अचानक उसी वक़्त शम्स तबरेज़ सलाम करते हुए आकर बैठ गए.
किताबों की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने रूमी से पूछा कि "यह क्या है?"
रूमी ने कहा, "यह वह चीज़ है जिसके बारे में आप नहीं जानते."
इतना कहना था कि तबरेज़ ने उन किताबों को आग के हवाले कर दिया.
इतने में रूमी ने तबरेज़ से कहा, "ये क्या किया?"
तो तबरेज़ ने जवाब दिया कि "यह वह चीज़ है, जिसको तुम नहीं जानते."
इतने के बाद वह वहां से चुपचाप निकल लिए और देखते ही देखते रूमी की आंखों से ओझल हो गए.
उनके इस रहस्यमय कारनामे से रूमी बहुत प्रभावित हुए और शम्स-शम्स की रट लगाते हुए उनको खोजने निकल पड़े.
आखिरकार उन्होंने कोन्या में शम्स तबरेज़ को ढूंढ ही लिया और वापस अपने साथ ले आए.
उसके बाद रूमी ने शम्स से आध्यात्मिक शिक्षा हासिल की. और यहीं से रूमी की जिंदगी में बड़ा बदलाव आया.
शम्स के प्रशिक्षण के बाद वह पूरी तरह से सूफीवाद में रम गए.
जब रूमी के शिष्यों ने उनकी ये हालत देखी तो वे शम्स से काफी नाराज़ हुए.
ऐसा माना जाता है कि आखिर में उनके किसी शिष्य ने उनको मौत के घाट उतार दिया, हालांकि इससे रूमी को गहरा धक्का लगा और वो अकेले में गम की जिंदगी गुज़ारने लगे.
शम्स के साथ इस मुलाकात ने रूमी को मशहूर कर दिया था!
महाकाव्यों ने बढ़ाई लोकप्रियता!
दीवान-ए-शम्स-तबरीज़ी और मसनवी रूमी की लोकप्रिय कृतियों में से एक हैं.
दीवान-ए-शम्स-तबरीज़ी महाकाव्य शम्स तबरेज़ को समर्पित गजलों का एक संग्रह है. जिसमें उन्होंने अल्लाह से अपने मोहब्बत के रिश्ते का इज़हार किया है. इसमें लगभग 4000 छंद शामिल हैं. वहीं, मसनवी 6 खण्डों में है, जिसमें 2500 छंद शामिल हैं.
इन दोनों का बाद में कई भाषाओँ में अनुवाद भी किया गया.
दरअसल रूमी के महाकाव्य के कई अनुवाद प्रेमी और प्रेमिकाओं की प्रेम कविताओं के रूप में मशहूर हुए. और इसी के साथ रूमी एक प्रेम कवि के रूप में प्रसिद्ध हो गए.
हालांकि ऐसा माना जाता है कि उनका ये प्यार किसी इंसान से न होकर अपने ईश्वर से था. सूफी शम्स तबरेज़ से मिलने के बाद उनकी सभी रचनाएं पैगम्बर मोहम्मद साहब और अल्लाह के प्रति मोहब्बत का भाव दर्शाती हैं.
कविता के अलावा मौलाना रूमी ने सूफीवाद के विभिन्न पहलुओं का भी अध्ययन किया है.
रूमी अपनी सूफी जीवन में इतने लोकप्रिय हुए कि जब 1273 में उनकी मौत हुई तो उस वक़्त उनके जनाज़े में सभी धर्म के लोग शामिल थे.
ऐसा इसलिए भी था क्योंकि उन्होंने अपनी रचनाओं में ईश्वर के प्रति प्रेम के भाव को पेश किया था.
मौलाना जलालुद्दीन मोहम्मद रूमी की मौत के बाद उनके शरीर को कोन्या में ही उनके पिता की कब्र के बगल में सुपुर्दे खाक (दफन) कर दिया गया.
आज भी उनकी दरगाह पर उनके चाहने वाले हाजिरी देने जाते हैं.
Web Title: Jalaluddin Muhammad Rumi: Untold Story of a Sufi Mystic Poet, Hindi Article
Feature Image Credit: HindiZen