भारत में हमेशा से ही कई ऐसे महान राजा हुए हैं, जिन्होंने न केवल युद्ध शैली से सबका दिल जीता है, बल्कि राजपरंपरा से अपनी एक अलग पहचान बनाई है. देश में चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक महान, हर्षवर्धन और राजा भोज जैसे न जाने कितने ऐसे राजा हैं, जिन्होंने इतिहास को न केवल बदल दिया, बल्कि उसमें अपनी अलग छाप छोड़ दी.
इसी कड़ी में एक नाम आता है दक्षिण भारत के एक राजा का. इस राजा का नाम है कृष्णदेव राय. यह वह राजा हैं जिनकी सोच का कायल अकबर भी था.
तो आइये जानते हैं कृष्णदेव राय के जीवन से जुड़ी कुछ ख़ास बातें–
सेनानायक के बेटे से बन गए राजकुमार!
तुगलक वंश के शासक मुहम्मद तुगलक के शासनकाल (1324-1351) के अंतिम समय उसकी गलत नीतियों की वजह से पूरे राज्य में अव्यवस्था फ़ैल गई थी. इसका दक्षिण के राजाओं ने खूब फायदा उठाया. उन्होंने अपने राज्यों को स्वतंत्र घोषित कर दिया था. इसी दौरान हरिहर और बुक्का ने 1336 ई. में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की. इस राज्य के सबसे शक्तिशाली राजा कृष्ण देवराय थे.
महान राजा कृष्ण देव राय का जन्म 16 फरवरी को 1471 में कर्नाटक के हम्पी में हुआ था. उनके पिता थे तुलुव नरस नायक. उनके पिता सालुव वंश के एक सेनानायक थे. नरस नायक सालुव वंश के दूसरे और अंतिम शासक इम्माडि नरसिंह के संरक्षक थे. अल्पायु इम्माडि नरसिंह को कैदी बना कर उनके पिता ने 491 में विजयनगर की बागडोर ले ली.
पिता के राजा बनते ही कृष्ण देव की किस्मत ही बदल गई. पल भर में उनकी जिंदगी एक सेनानायक के बेटे से राजा के बेटे में बदल गई. हर सुविधा उनके पास आ गई. एक आलीशान जिंदगी वह व्यतीत करने लगे. हालांकि तभी उनके ऊपर बुरी किस्मत के बादल मंडराने लगे. उनके पिता को राज संभाले ज्यादा वक़्त हुआ ही नहीं था कि उनकी मौत हो गई. पिता की मौत के बाद राज्य बिखरने लगा. ऐसी स्थिति में कृष्ण देव के बड़े भाई आई गद्दी संभालने के लिए.
Krishnadevaraya Was A Son Of A Warrior (Representative Pic: photomagic123)
गिरते राज्य को फिर से संभाला कृष्ण देव ने…
पिता की मौत के बाद बड़े भाई नरसिंह को राजगद्दी मिली. उन्होंने 1505 से 1509 तक राज्य को संभाला. राज्य सँभालते हुए उनके सामने कई बड़ी समस्याएं थी. एक तरफ जहाँ पूरे राज्य पर आक्रमण हो रहे थे. वहीं दूसरी ओर राज्य में भी विरोध के सुर सुनाई दे रहे थे. इस वजह से उनका पूरा शासनकाल सिर्फ आंतरिक विद्रोह एंव आक्रमणों से लड़ते हुए गुजरा. इस दौरान 40 की उम्र में उनकी मौत हो गई. बेहद विपरीत हालात में राज्य की बागडोर कृष्ण देवराय ने अपने हाथों में ली. वो 1509 में राजगद्दी पर बैठे.
राजगद्दी, जो दूर से सोने का सिंहासन नज़र आ रही थी वो कृष्ण देव राय के लिए एक काटों का हार थी. गद्दी पाने के बाद उनके पिता और भाई, तो पहले ही मर चुके थे. राज्य के अंदर लड़ाई चल रही थी. हर चीज उथलपुथल के दौर से गुजर रही थी. कोई और होता, तो शायद इस राजगद्दी से दूर भाग जाता मगर कृष्ण राय ने ऐसा नहीं किया.
कृष्ण देव राय की किस्मत में कुछ और ही था.
राज्य की बागडोर हाथो में लेते ही उन्होंने राज्य में फैले विद्रोह को शांत किया और अपने राज्य की सीमा को मजबूत किया. वह बहुत ही शांति और सूजबूझ से अपने फैसले लेते थे. कहते हैं कि वह कभी भी सिर्फ अपना हित नहीं देखते थे. वह हमेशा एक बीच का रास्ता निकालते थे ताकि हर किसी का भला उससे हो. यह भी एक कारण माना जाता है कि कृष्ण देव को एक महान राजा कहा जाता था.
उन्होंने उस समय अपने राज्य को संभाला जब वह पूरी तरह से टूटने की कगार पर था. जो काम नामुमकिन सा लग रहा था उसे उन्होंने पूरा करके दिखा दिया था. इसके बाद उन्होंने अपना शासन शुरू किया.
Asta Diggaja (Representative Pic: flickr)
अष्ट दिग्गज की मदद से बनाया एक बढ़िया राज्य
कृष्णदेव राय जानते थे कि अगर उन्हें अपने राज्य को खुशहाल बनाना है, तो उन्हें प्रजा तक पहुँच रखनी होगी. इसके लिए भी उन्होंने एक अनूठी पहल शुरू की. उन्होंने अवंतिका जनपद के महान राजा विक्रमादित्य के नवरत्न रखने की परंपरा से प्रभावित होकर अष्ट दिग्गज की स्थापना की.
यह अष्ट दिग्गज पूरी तरह से राजा कृष्ण देव के अधीन थे. उनका काम था कि राज्य को सुखी बनाए रखने के लिए राजा को सलाह दें. बात दुश्मनों की हो, जंग की हो या फिर प्रजा की ख़ुशी की. कृष्ण देव के यह अष्ट दिग्गज उन्हें हर चीज की सलाह देते थे.
आपको जानकार हैरानी होगी कि बाद में अष्ट दिग्गज बदल कर नवरत्न कर दिए गए थे. इस समिति में बाद में तेनालीराम को भी शामिल कर लिया गया था. उन्हें कृष्ण देव राय के दरबार का सबसे प्रमुख और बुद्धिमान दरबारी माना जाता था.
उनकी सलाह और बुधिमत्ता की वजह से कई बार राज्य को आक्रमणकारियों से निजात मिली. वहीं दरबार में उनकी मौजूदगी से राज्य में कला और संस्कृति को भी बढ़ावा मिला. ये कहने में कोई भी शक नहीं है कि वो विजयनगर साम्राज्य के चाणक्य थे.
Krishnadevaraya With Tenali (Representative Pic: kathakids)
एक विद्वान और योद्धा भी थे कृष्ण राय
एक अच्छे राजा की हर निशानी कृष्णदेव राय में मौजूद थी. सेनानायक के पुत्र होने की वजह से उन्हें युद्ध की समझ अच्छे से थी. इसी वजह से उन्हें जंग में हराना काफी मुश्किल काम था. माना जाता है कि अपने 21 वर्ष के शासन के दौरान उन्होंने 14 युद्ध लड़े. इस दौरान उन्होंने सभी युद्धों मे जीत हासिल की. आप को जानकर हैरानी होगी कि बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी‘ में कृष्ण देवराय को भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक तक बता दिया था. कृष्ण देव राय के शासन में हर कोई उनसे प्रभावित था, फिर चाहे वह दोस्त हो या फिर दुश्मन.
कृष्ण देव राय न केवल एक योद्धा थे बल्कि एक विद्वान भी थे. उन्होंने तेलुगु के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अमुक्तमाल्यद’ या ‘विषुववृत्तीय’ की रचना की. ये बेहद हैरान करने वाली बात है, लेकिन उनकी यह रचना तेलुगु के पांच महाकाव्यों में से एक है. तेलुगु के अलावा कृष्ण देव राय ने संस्कृत भाषा में एक नाटक ‘जाम्बवती कल्याण’ को भी लिखा था.
He Was A Brave Soldier (Representative Pic: saikrishna935)
तो यह थे राजा कृष्ण देव राय. इन्हें लोग इनके तेज दिमाग के लिए जानते हैं. उन्होंने हर उस चीज को अपनाया जिसके जरिए उनका राज्य खुशहाल रहे. यही कारण है कि इतिहास में कृष्ण देव राय का नाम दर्ज है.
Web Title: Krishnadevaraya Historical King, Hindi Article
Featured Image Credit: tlm4all