यह बात बहुत कम ही लोगों को पता है कि भारतीय इतिहास में वेलू नचियार ऐसी पहली शासक थीं, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. वे शिवगंगई की रानी थीं.
उन्होंने 1857 के विद्रोह से 77 साल पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला था. उन्होंने अग्रेजों को हराकर अपने राज्य की रक्षा की थी. इससे भी कम जाने जानी वाली बात यह कि जिस तकनीक से वेलू ने अंग्रेजों को धूल चटाई.
वह तकनीक उनकी एक महिला कमांडर ने तैयार की थी. इस महिला कमांडर का नाम कुईली था. उसने अपनी तकनीक और बलिदान से भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है.
तो आईए बहादुर कमांडर कुईली की वीरता और बलिदान को करीब से जानते हैं…
पिता से सुनीं बहादुरी की कहानियाँ
कुईली का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था. कुईली के पिता का नाम पेरियामुथुन और माता का नाम राकू था. दोनों खेतों में काम करने वाले साधारण मजदूर थे. उनका परिवार अरुणथथियर में रहता था. उनकी मां बहुत बहादुर थीं. खेतों में खड़ी फसल को वे अक्सर जंगली जानवरों से बचाया करती थीं. इसी चक्कर में उनकी मृत्यु हो गई थी.
अपनी पत्नी की मृत्यु से दुखी होकर उनके पिता उन्हें शिवगंगई ले आए. यहाँ उनके पिता ने एक मोची का काम करके अपना और अपनी बेटी का पेट पालना शुरू किया. यह कहा जाता है कि रात में सोते समय कुईली के पिता उसे उसकी मां की बहादुरी की कहानियाँ सुनाया करते थे. उन्हें सुनकर वह रोमांच से भर जाती थीं. उन्हें भी अपनी मां जैसा बनने की इच्छा होती थी.
दोनों बाप-बेटी का जीवन तो सामान्य चल रहा था लेकिन शिवगंगई राज्य के हालात अच्छे नहीं थे. शिवगंगई के राजा पेरिया थेवर के ऊपर कर्नाटक का नवाब सर झुकाने का दबाव बना रहा था. इसमें उसका साथ अंग्रेज दे रहे थे. पेरिया ने सर झुकाने से मना कर दिया, तो नवाब ने अंग्रेजों के साथ मिलकर उनपर हमला कर दिया.
इस युद्ध में पेरिया की मृत्यु हो गई और शिवगंगई अंग्रेजों और नवाब के नियंत्रण में आ गया. अब रानी वेलू नचियार के पास अपने राज्य को मुक्त कराने की जिम्मेदारी थी. इसके लिए उन्होंने अपनी कमर कस ली थी.
रानी ने बनाया कमांडर
रानी इस समय भूमिगत हो गई थीं और अपने गुप्तचरों के माध्यम से राज्य की जानकारी रख रही थीं. इसी क्रम में उन्होंने कुईली के पिता को अपना एक गुप्तचर बनाया हुआ था. यह वही समय था जब कुईली अपने पिता के साथ रानी से मिलने लगी थीं. रानी को भी कुईली का जज्बा बहुत पसंद आता था.
कुईली अक्सर रानी से अंग्रेजों और नवाब को मार भगाने की बात किया करती थीं. जल्द ही कुईली ने रानी के ह्रदय में विशेष स्थान बना लिया था. इस बीच अंग्रेजों और नवाब को यह भनक लग गई थी कि रानी अपना राज्य वापस पाने के लिए जी-जान से जुटी हुई हैं. इसलिए उन्होंने रानी को मारने के लिए षणयंत्र रचने शुरू कर दिए थे.
एक ऐसे ही षणयंत्र को कुईली ने अपनी जान पर खेलकर नाकाम किया था. असल में एक दिन रानी जब सो रही थीं, तब एक घुसपैठिया उनका कत्ल करने के इरादे के साथ कमरे में घुस आया था. कुईली को वह कमरे में घुसता हुआ दिखा, तो वे तुरंत ही उसके पीछे गईं. वहां उन्होंने देखा कि वह रानी के ऊपर हमला करने जा रहा है.
उन्होंने बिना देर किए उसे पकड़ लिया. हाथापाई में वह मारा गया. इसमें कुईली भी घायल हो गईं. इसके बाद रानी ने अपनी साड़ी का एक हिस्सा फाड़कर उनके घावों पर पट्टी बाँधी. कुईली ने ऐसे कई बार रानी की जान बचाई. इसका परिणाम यह हुआ कि रानी ने उन्हें अपना अंगरक्षक बना लिया.
आगे अंग्रेजों ने कुईली को पकड़ लिया. उन्होंने कुईली से रानी का पता पूछा. कुईली ने नहीं बताया, तो अंग्रेजों ने दलितों के ऊपर बहुत जुल्म ढहाए. कुईली किसी तरह अंग्रेजों के चंगुल से छूटकर रानी के पास वापस आ गईं.
उन्होंने रानी को जब सारी आप-बीती सुनाई, तो रानी का चेहरा क्रोध से लाल हो गया. उन्होंने कहा कि अब अंग्रेजों और नवाब के ऊपर हमला करने का अंतिम समय आ गया है. इसी क्रम में उन्होंने कुईली को सेना का कमांडर बना दिया.
राज्य के लिए कर दी जान न्योछावर
रानी को यह पता था कि वे अकेले दम पर अंग्रेजों को नहीं हरा पाएंगी. इसलिए उन्होंने हैदर अली और टीपू सुल्तान से मदद मांगी. दोनों की मदद से रानी ने अंग्रेजों के ऊपर हमला बोल दिया. रानी के सैनिक बहुत बहादुर थे. पिछले समय में उन्होंने कई युद्ध भी जीते थे, लेकिन अंग्रेजों के उच्च तकनीक के हथियारों के आगे वे टिक नहीं पा रहे थे.
इस युद्ध को अब जीतने का केवल ही रास्ता था कि अंग्रेजो के उच्च तकनीक वाले हथियार नष्ट कर दिए जाएं. कुईली ने यह काम अपने जिम्मे लिया. अंग्रेजों के ज्यादातर हथियार शिवगंगई के किले में रखे थे. उस किले में कुईली का जाना आसान नहीं था. लेकिन इस किले के भीतर राजराजेश्वरी का एक मंदिर बना हुआ था.
नवरात्र के समय राज्य की जनता को उस मंदिर के भीतर जाने के अनुमति मिलती थी. संयोग से युद्ध के समय भी नवरात्र चल रहे थे.कुईली ने इस मौके का फायदा उठाया. वे अपने सैनिकों के साथ साधारण कपड़ों में किले के भीतर प्रवेश कर गईं. उन्होंने फूलों की डालियों में फूलों के नीचे हथियार छिपा रखे थे.
किले के भीतर पहुँचते ही उन्होंने अंग्रेजी सैनिकों के ऊपर हमला बोल दिया. वे सैनिक इस अकस्मात हमले के लिए तैयार नहीं थे. आगे अंग्रेजी सैनिकों को मारते हुए कुईली हथियारों के भण्डार के पास पहुँच चुकी थीं. यहाँ उन्होंने अपने साथियों से उनको तेल और घी से नहला देने को कहा. उनके साथियों ने ऐसा ही किया.
इसके बाद जो हुआ, उसे इतिहास में सबसे बड़े बलिदानों में गिना जाता है.
कुईली ने खुद को आग लगा ली और सभी हथियारों को एक झटके में नष्ट कर दिया.
अब अंग्रेजों के पास हथियार नहीं बचे, तो वे युद्ध हार गए और रानी वेलू नचियार को राज्य वापस मिल गया.
Web Title: Kuyuli: The Commander, Whose Sacrifice Has Been Forgotten By HIstory, HIndi Article
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