बच्चों को क्या पसंद होता है!
इस छोटे से सवाल के बहुत से जवाब हो सकते हैं. जैसे खेलना, मस्ती करना, दोस्तों के साथ वक्त बिताना और भी बहुत कुछ…
किन्तु, क्या किसी बच्चे को अपनी उम्र की इन सारी गतिविधियों से ज्यादा इस बात में रूचि हो सकती है कि आखिर शरीर के भीतर के पुर्जे कैसे काम करते हैं? कैसे किसी बीमारी का इलाज हो सकता है और डॉक्टर कैसे शरीर के भीतर की गड़बड़ियों को सही कर पाते हैं…
बेशक, आप सोचेंगे कि इस बच्चे में डॉक्टर बनने के लक्षण नजर आ रहे हैं, लेकिन नहीं!
यह सवाल जिस बच्चे के मन में कौंध रहे थे. वह डॉक्टर नहीं बनना चाहता था. उसे चीजों को जानने की उत्सुकता थी. वह कुछ ऐसा करना चाहता था, जिससे मानव जाति का कल्याण हो सके. उसकी इसी सोच ने महज 25 साल की उम्र में उसे ‘नोबेल’ हासिल करवाया.
हम बात कर रहे हैं भौतिक वैज्ञानिक ‘विलियम लारेन्स ब्राग’ की, जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही अपने पिता की लैब में काम करना शुरू किया और फिर ‘वह’ आविष्कार किया, जिसके लिए आज पूरी दुनिया उनकी कृतज्ञ है.
तो चलिए विलियम लारेन्स ब्राग को और नजदीक से जानने की कोशिश करते हैं—
लैब में जाने के लिए खाई चोट
1862 में इंग्लैंड के विग्टन में जन्में हेनरी ब्राग 18वीं शताब्दी खत्म होने तक देश के जाने-माने गणितज्ञ और भौतिक शास्त्रियों में शुमार हो चुके थे. उन्होंने रेडियोऐक्टिवता पर कई तरह के शोध किए थे. पूरे देश में छात्र उनके लिखे गए शोध पत्रों को पढ़ा करते थे.
हेनरी ने अपने घर के पिछले हिस्से में ही एक लैब बना रखी थी. कॉलेज से आने के बाद उनका ज्यादातर समय यहीं गुजरता था. लारेन्स ब्राग उन्हीं के बेटे थे, जो अक्सर लैब की खिड़की के बाहर खड़े होकर अपने पिता को देखते रहते थे.
उनके मन में हमेशा यह जिज्ञासा रही कि आखिर पिता क्या कर रहे हैं? वहीं दूसरी ओर जर्मन वैज्ञानिक विल्हेम रोंटजेन ने 1895 तक ‘एक्स-रे’ का आविष्कार कर लिया था. उनकी खोज को आगे बढ़ाते हुए हेनरी रेडियोएक्टिविटी, ध्वनि, प्रकाश की गति और क्रिस्टल विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रहे थे. हालांकि अब तक उन्हें कोई बड़ी उपलब्धी हाथ नहीं लगी थी.
लारेन्स रोज अपने पिता को घंटों तक प्रकाश की किरणों के बीच देखते थे. उनके पास एक्सरे था, जिसे जानने की उत्सुकता लारेन्स के मन में बनी रही.
हालांकि, उनके पिता का सख्त आदेश था कि उनकी अनुमति के बिना वहां कोई न आए. चूंकि बात एक्सरे की थी इसलिए पिता ने बच्चे को उसकी हानिकारक किरणों से दूर रखना ही बेहतर समझा. लारेन्स के लिए यह छोटी बात नहीं थी!
वह जानना चाहते थे कि आखिर एक्सरे काम कैसे करता है? इसलिए उन्होंने खेलने के बहाने खुद को झूले से गिरा लिया. गिरने के कारण उनके पैर में चोट लगी. आखिर पिता हेनरी उन्हें उठाकर लैब में लाए और एक्सरे की सहायता से देखा कि लारेन्स के पैर की हड्डी टूट गई है!
वे घबराकर उन्हें हॉस्पिटल ले जाने की तैयारी कर रहे थे. जबकि लारेन्स अपना दर्द भूलकर देख रहे थे कि आखिर एक्सरे से कैसे शरीर के भीतर के टूटे हुए अंग को देखा जा सकता है.
बस यहीं से शुरू हुआ लारेन्स का वैज्ञानिक बनने का सफर. उन्होंने खुद को पूरी तरह से विज्ञान के लिए समर्पित कर दिया.
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अभिनय, कला और नृत्य के साथ खेल में रूचि ले रहे थे, लेकिन लारेन्स अपनी उम्र के बच्चों से बिल्कुल अलग गणित और भौतिकी के नियमों को समझ रहे थे. उन्होंने अपनी कक्षा से बड़ी कक्षाओं के बच्चों की किताबों को पढ़ना शुरू किया.
Lawrence Get Himself Injured To Get In His Father’s Lab (Representative Pic: youtube)
पढ़ाई में लारेन्स ने सबको पीछे छोड़ दिया
हेनरी लारेन्स की विलक्षण प्रतिभा से प्रभावित थे. वे विश्वास नहीं कर पा रहे थे किे लारेन्स बड़े छात्रों की किताबों के भौतिकी सूत्रों को आसानी से हल कर लेते हैं. उन्होंने लारेन्स की प्रतिभा को सम्मान दिया और इंग्लैंड के नामचीन क्वींस स्कूल में उनका एडमिशन करवाया.
इस स्कूल में उन्हीं बच्चों का प्रवेश संभव था, जो विज्ञान, गणित और अन्य विषयों के कठिन पाठ्यक्रम को समझने की क्षमता रखते हों.
लारेन्स ने किसी को निराश नहीं किया. उन्होंने स्कूल में सबसे अच्छे नम्बर हासिल कर जता दिया कि उनका उद्देश्य साफ है. लारेन्स ने भौतिकी और गणित में सबसे बेहतर काम किया था. स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के बाद हेनरी ने लारेन्स को 1906 में एडीलेड विश्वविद्यालय में दाखिला दिलवाया. दाखिले के समय लारेन्स की उम्र केवल 15 साल थी.
यहां लारेन्स को भौतिक और गणित को पढ़ने का सबसे अच्छा मौका मिला. ग्रेजुएट होने के लिए आमतौर पर चार साल का वक्त लगता था, लेकिन लारेन्स को उनकी असाधारण प्रतिभा के कारण दो साल में पदोन्नत कर दिया गया.
चूंकि, वह अपनी उम्र से बड़े छात्रों के साथ पढ़ाई कर रहे थे. इसलिए उनका कोई मित्र नहीं बना. आगे चलकर यह उनके लिए फायदेमंद रहा. ऐसा इसलिए क्योंकि लारेन्स ने दोस्तों और इधर-उधर की बातों में समय गंवाए बिना ग्रेजुएशन पूरा कर लिया.
1909 में जब तक लारेन्स अकादमिक सफलता के शिखर पर बढ़ रहे थे, तब तक उनके पिता हेनरी भौतिक विज्ञान की दुनिया में पहचाने जाने लगे थे.
वे इंग्लैंण्ड के लीड्स में कैवेंडिश प्रोफेसर बन गए. पिता के लिए यह सम्मान का मौका था. लारेन्स की एक महत्वपूर्ण सफलता ने इसमें चार चांद लगा दिए. लारेन्स को इसी साल कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से स्कॉलरशिप मिली. इसके बाद पूरा परिवार आॅस्ट्रेलिया से इंग्लैंण्ड आ गया.
लारेन्स को गणित विषय के लिए स्कॉलरशिप मिली थी, लेकिन उन्होंने विश्वविद्यालय में पहुंचकर गणित की बजाय भौतिकी को चुना. शिक्षकों को डर था कि वे गणित के अलावा किसी अन्य विषय में खास प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे, लेकिन हेनरी को अपने बेटे पर पूरा विश्वास था.
उन्होंने लारेन्स का सपोर्ट किया और उसका नतीजा यह रहा कि लारेन्स ने पूरे विश्वविद्यालय में टॉप किया. इसके साथ ही जगह-जगह उनका नाम होने लगा था.
He Was A Topper In His College Days (Pic: theconversation)
पिता और बेटे ने मिलकर मचाया धमाल
पढ़ाई खत्म होने के बाद बिना समय जाया किए लारेन्स ने पिता के साथ उनकी लैब में काम करना शुरू कर दिया. पिता-पुत्र का पूरा दिन वैज्ञानिक चर्चाओं में गुजर जाता.
वे साथ में प्रयोग करते और साथ में असफल होते. इसके बाद एक-दूसरे का हौंसला बढ़ाते और फिर कोशिश करते. हेनरी हमेशा से अपने प संदीता विषय रेडियोऐक्टिवता और प्रकाश पर काम कर रहे थे. लारेन्स उनकी सहायता करते थे. धीरे—धीरे उनकी भी प्रकाश तरंगों और रेडियोऐक्टिवता विषय में रूचि पैदा हो गई.
जहां पिता-पुत्र अपने शोधकार्य में व्यस्त थे. वहीं दूसरी ओर दुनिया के अन्य वैज्ञानिक ‘एक्स-रे कणों’ पर काम कर रहे थे. 1912 में जर्मन वैज्ञानिक मैक्स वॉन लाउ ने शोध करके बताया कि एक्सरे एक प्रकार की लहर है, जो क्रिस्टल से विकसित की जाती है.
इस नतीजे ने लारेन्स को शोध के लिए नया विषय दे दिया. उन्होंने मैक्स वॉन के शोध परिणाम पर काम करना शुरू कर दिया. साल के अंत तक शोध सफल हुआ और उन्होंने दुनिया को एक नए नियम से परिचित करवाया. इसे ‘‘ब्राग लॉ ऑफ़ एक्स-रे’ के नाम से जाना जाता है.
हालांकि, इस शोध को पूरा करने में उनके पिता ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.
Lawrence Started Working With His Dad (Pic: Adelaide)
‘ब्राग लॉ ऑफ़ एक्स-रे’ को भी जरा समझिए
एक छोटे से छेद के माध्यम से गुजरने वाले प्रकाश की रौशनी की तरंगों के बीच अंतर होता है. दैर्ध्य तरंगों की उपस्थिति में दो समान स्त्रोत से उभरने वाली दो समान निकट-तरंगों के प्रसार में कमी होती है. इसे गैर-ग्रहणशील कहा जाता है.
यह दो प्रकार की होती हैं. जहां सिम्फिसिटी की तरंगें होती हैं. वहां ग्रहणशील तरंगों का विस्तार और तीव्रता बहुत अधिक होती है. इसे रचनात्मक कृतज्ञता कहते हैं.
जबकि, इसके विपरीत होने पर तरंगों की तीव्रता घट जाती है. इससे ‘विनाशकारी बपतिस्मा’ कहा जाता है. प्रकाश, ध्वनि, रेडियो तरंगों, यहां तक कि पानी की सतह पर मौजूद तरंगे इसका उदाहरण हैं.
नियम के अनुसार विचलन तब ही संभव है जब किन्हीं दो तरंगों के बीच खाली जगह न हो. लारेन्स ने तर्क दिया कि अब तक एक्स-रे और क्रिस्टल के बीच परमाणुओं की संरचना की गलत तरीके से व्याख्या की गई है. उन्होंने तस्वीरों के माध्यम से समझाया कि क्रिस्टल और परमाणुओं के बीच की सही दूरी हो, तो इसे मानव आंखों से देखना संभव है.
उन्होंने एक्स-रे-स्पेक्ट्रोमीटर तैयार किया जिससे सही दूरी का अंदाजा लगाया जा सकता था.
यह विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि अब वैज्ञानिकों के लिए विभिन्न कोणों से क्रिस्टल छवियों की पूरी संरचना जानना संभव हो गया था. उनके इस आविष्कार के बाद परमाणु ढांचे के 3डी मॉडल की संरचना को विस्तार मिला. लारेन्स के साथ उनके पिता ने त्रि-आयामी क्रिस्टल संरचना के गठन पर काम किया.
अपने इस शोध के लिए लारेन्स ने 1915 में भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्कार जीता. जब उन्हें यह पुरस्कार दिया गया, तो वे केवल 25 साल के थे. शोध की सफलता के लिए संयुक्त रूप से उनके पिता विलयम हेनरी को भी नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
2014 में शांति के लिए नोबेल जीतने वाली 17 साल की मलाला युसुफ़ज़ई ने लारेन्स का रिकॉर्ड तोड़ा. हालांकि, भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अब भी उनका रिकॉर्ड कायम है.
His Theory Helped Scientist A Lot (Representative Pic: videoblocks)
लैब से निकलकर युद्ध के मैदान तक
विज्ञान के क्षेत्र में लारेन्स की विलक्षण प्रतिभा से पूरी दुनिया परिचित हो चुकी थी. इसी बीच 1914 में दुनिया के अलग-अलग कोने से युद्ध की खबरें आनी शुरू हुईं. कई देश बिना किसी कारण के अन्य देशों पर हमले कर रहे थे.
इंग्लैंण्ड ने भी अपनी कमान संभाली और आखिर में प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो हुआ.
लारेन्स को महसूस हुआ कि अब उनकी जरूरत लैब से ज्यादा उनके देश को है. इसलिए विज्ञान को विराम देकर उन्होंने सैनिक की वर्दी पहन हाथ में बंदूक थाम ली. इस लड़ाई में लारेन्स के छोटे भाई ने भी हिस्सा लिया.
उनका वैज्ञानिक नजरिया युद्ध के मैदान पर भी काम आया. उन्होंने ‘ध्वनि रेंज’ पद्धति का इस्तेमाल कर दुश्मन के तोपखानों का पता लगाया और सैनिकों को उसे ध्वस्त करने का रास्ता दिखाया. इस युद्ध में लारेन्स के भाई शहीद हो गया और उसे सैन्य सेवा के लिए ‘सैन्य क्रॉस’ से सम्मानित किया गया.
जंग से लौटने के बाद लारेन्स वापिस अपनी लैब में पहुंच गए. उन्होंने अपने अधूरे काम को पूरा करने पर ध्यान लगाया. इस बीच कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में भौतिकी विभाग की कैवेंडिश की कुर्सी खाली थी, जिसके लिए विश्वविद्यालय को लारेन्स से बेहतर कोई और नहीं लगा. वे 1938 को की प्रोफेसर बन गए. 1941 में ब्रिटेन के किंग जॉर्ज VI ने उन्हें नाइटहुड से भी सम्मानित किया.
कुछ सालों बाद लारेन्स ने एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी बनाई. इसके जरिए क्रिस्टल के आण्विक और परमाणु संरचना की सही गणना करना संभव हो सका. इस आविष्कार ने रेडियोएक्टिवता और प्रकाश विज्ञान पर काम करने वाले वैज्ञानिकों की बड़ी मदद की.
Lawrence Even Joined The Army (Pic: europeana)
लारेन्स एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे. उन्होंने न सिर्फ विज्ञान, बल्कि जंग के मैदान पर भी अपना नाम रोशन किया . विज्ञान के प्रति उनकी रूचि ही थी, जिसके कारण वह छोटी सी उम्र में नोबेल पुरस्कार ले पाए. लारेन्स के बारे में आपके क्या विचार हैं कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं.
Web Title: Lawrence Bragg Youngest Person Who Won Nobel, Hindi Article
Featured Image Credit: loredanacrupi/chemistryworld/thenobelprize