भारत की सरजमी पर तमाम मुस्लिम वंशों ने सैकड़ों वर्षों तक राज किया. इस दौरान सत्ता को हथियाने के लिए राजनीति समेत हमले भी हुए. भाई ने भाई को मारकर सत्ता हथियाई, तो पिता पुत्र के हाथों पराजित तक हुआ.
समय के साथ-साथ बादशाह बदले, सत्ताधारी वंश बदले.
इन सबके बीच एक वंश ऐसा भी रहा, जिसके बारे में सुनकर आज भी आश्चर्य होता है. आमतौर पर ऐसा होता था कि किसी सत्ता पर या तो तत्कालीन बादशाह का कोई वंशज बैठता था या फिर किसी अन्य शासक द्वारा उसे हराकर सत्ता प्राप्त कर ली जाती थी.
ऐसे में यह सुनने में आश्चर्य जनक लगता है कि किसी बादशाह के बाद उस गद्दी पर उसके गुलाम का अधिकार हो गया हो! इतना ही नहीं बल्कि उसके बाद उसके वंशजों ने वर्षों तक उस गद्दी को संभाला हो. गुलाम वंश इसका प्रत्यक्ष प्रमाण साबित हुआ.
तो आइए जानते हैं कि किसने इस वंश की स्थापना की और कैसा रहा इनका शासक–
कौन थे गुलाम?
बात करेंगे हम ममलुक वंश की जिसे दास वंश अथवा गुलाम वंश भी कहा जाता है.
यहाँ दास का अर्थ केवल घरों में काम काज करने वाले गुलामों से नहीं, बल्कि उन दासों से था, जिन्हें उचित मूल्य देकर खरीदा गया था. ये सेना में सिपाही के रूप में काम करते थे. इन्हीं गुलामों में से कुछ ने मुस्लिम राज्यों की राजनीतिक गतिविधियों पर अपना कब्जा जमा लिया.
साथ ही वहां के बादशाह तक बन गए.
आगे जैसे-जैसे इनका साम्राज्य बढ़ता गया, वैसे-वैसे इस वंश की नींव मजबूत होती गयी. ममलुक शब्द अरबी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है गुलाम. इन गुलामों ने कई वर्षों तक भारत सहित मिस्र, सीरिया तक में शासन किया.
9वीं सदी में इन मुस्लिम सेनाओं द्वारा इन गुलामों का इस्तेमाल करना आम हो गया था. इस कारण मुस्लिम सेना में इनकी संख्या अत्यधिक हो गयी थी. इस चलन की शुरुआत बगदाद में अल मुतसिम (833-842) ने की थी. बाद में ज्यादातर मुस्लिम राज्यों ने इसका चलन शुरू कर दिया.
नतीजा यह रहा कि स्थानीय बादशाहों के लिए यह परेशानी का सबब बन गए.
अपनी क्षमता का अनुमान लगते ही गुलामों ने वैध राजनितिक अधिकारों पर अपना कब्ज़ा जमा लिया तथा सत्ता को अपने अधीन कर लिया. समय के साथ 13वीं शताब्दी में ये गुलाम इजिप्ट और भारत में अपना खुद का साम्राज्य स्थापित करने में सफल हो गए.
A Mameluke in Full Armour (Pic : Wikipedia)
भारत में गुलाम वंश का उदय
मोहम्मद गौरी की विजय के बाद सन 1526 तक दिल्ली पर मुस्लिम सुल्तानों का शासन रहा. इसे दिल्ली सल्तनत कहा जाता था.
इस दौरान पांच वंशों ने शासन किया, जिनमें एक था गुलाम वंश!
मोहम्मद गौरी का कोई उत्तराधिकारी ना होने के कारण उसकी मृत्यु के तुरंत बाद ही उसके प्रांतीय राज्य प्रतिनिधियों ने अपने अपने क्षेत्रों में अपनी सत्ता स्थापित कर ली.
गजनी के सिंहासन पर किरमान का शासक ताजूद्दीन याल्दूज आसीन हुआ, मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने बंगाल का शासन संभाल लिया तथा 1206 ई. में मोहम्मद गौरी का गुलाम व सेनापति क़ुतुबदीन ऐबक दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बना. ताजुद्दीन को ऐबक की इस उपलब्धि से जलन होने लगी तथा उसने पंजाब पर कब्ज़ा करने के मंसूबे से हमला कर दिया.
हालांकि, ऐबक ने उसे परास्त कर गजनी की सत्ता भी उससे छीन ली. यही नहीं उसने 40 दिनों तक गजनी को अपने कब्जे में रखा. वह बात और है कि ऐबक के शासन से वहां के नाखुश लोगों ने ताजुद्दीन की गुप्त रूप से सहायता की तथा उसे फिर से ऐबक पर हमला करने का मौका मिल गया. इस बार ताजुद्दीन चूका नहीं तथा ऐबक को वहां से भागना पड़ा.
इस तरह भारत-अफगान राजनितिक एकता की संभावनाएं खत्म हो गयीं, जोकि बाबर की विजय के बाद ही संभव हो पाई. इस तरह कुतुब-उद-दीन सिर्फ भारत का सुल्तान रह गया.
Egyptian Mameluke warriors (Pic : Pinterest)
कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया विस्तार
कुतुबुद्दीन ऐबक तुर्की का एक गुलाम था, जो मोहम्मद गौरी की सेवा में आने से पहले कई सुल्तानों द्वारा खरीदा जा चुका था. जब ऐबक गौरी के संपर्क में आया, तब गौरी ने उसकी कार्यकुशलता से प्रभावित होकर उसे गुलामों का सरदार बना दिया. आगे भी समय के साथ ऐबक के ओहदे भी बढ़ते रहे. बाद में गौरी की मृत्यु के बाद वह दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बनने में सफल रहा.
चूंकि, ऐबक एक वीर एवं उदार हृदय वाला सुल्तान था. साथ ही वह निर्भीक एवं सैन्य पराक्रम में माहिर था, इसलिए वह कभी किसी युद्ध में पराजित नहीं हुआ. उसने अपने अनवरत विजय अभियानों से हिंदुस्तान के एक बड़े भाग पर शासन किया.
दान करने में भी वह खुले दिल का था. उसकी उदारता के लिए कई इतिहासकारों ने उसे लाखबख्श नाम से भी संबोधित किया. इस नाम का मतलब था ‘लाखों में दान करने वाला’. दिल्ली में उसने क़ुतुब उल इस्लाम मस्ज़िद तथा अजमेर में ढाई दिन का झोंपड़ा जैसे एेतिहासिक स्मारकों का निर्माण करवाया.
भारत की प्राचीन धरोहरों में से एक माने जाने वाले कुतुबमीनार का निर्माण भी कुतुबुद्दीन ने ही आरंभ करवाया था. शायद वह एक सफल शासक हो सकता था, किन्तु उससे पूर्व ही लाहौर में पोलो खेलते वक़्त घोड़े से गिर जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी.
कुतुबुद्दीन ने 1206 ई. में गुलाम वंश की स्थापना से लेकर 1210 ई. तक शासन किया.
Qutub-din-Aibak (Pic : Anjanadesigns)
कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद
कुतुबुद्दीन की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत का अगला सुलतान बना उसका पुत्र अरमशाह. हालांकि, वह ज़्यादा समय तक सत्ता को अपने कब्जे में नहीं रख पाया. उसे महज एक वर्ष के बाद ही सिंहासन छोड़ना पड़ा. कहते हैं कि वह एक षड्यंत्र का शिकार हो गया था.
उसके कुछ विरोधियों ने उसे गद्दी से हटाने के लिए इल्तुतमिश की मदद ली थी. इल्तुतमिश ने अरमशाह को दिल्ली के निकट जुद के मैदान में परास्त कर दिया और दिल्ली सल्तनत का नया सुल्तान बन बैठा. इसके बाद अरमशाह का क्या हुआ, इसकी सटीक जानकारी नहीं मिलती.
अरमशाह को परास्त करने के बाद शम्स-उद-दीन इल्तुतमिश दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाला गुलाम वंश का तीसरा सुल्तान बना.
इल्तुतमिश ने 1211 ई. से 1236 ई. तक दिल्ली सल्तनत पर राज किया. इस दौरान उसने अपनी राजधानी को लाहौर से दिल्ली स्थानांतरित किया. साथ ही मुल्तान के नसर-उद-दीन क्वाचा तथा गजनी के तजुदीन इल्दोज को युद्ध में परास्त करते हुए अपनी सल्तनत को मजबूत किया.
Sultan Iltutmish (Pic : Historydiscussion)
रजिया सुल्तान ने भी संभाली बागडोर
इसी कड़ी में रुक्न-उद-दीन फ़िरोज़ गुलाम वंश का चौथा सुल्तान बना, जो दिल्ली के सिंहासन पर बैठा. वह अप्रैल 1236 से नवम्बर 1236 तक रहा सत्ता में रहा. फ़िरोज़ के बाद दिल्ली के सिंहासन पर कोई सुल्तान नहीं, अपितु सुल्ताना आसीन हुईं.
यह सुल्ताना कोई और नहीं बल्कि रज़िया अल-दिन थीं. उन्हें भारत की पहली मुस्लिम महिला शासक के रूप में भी याद किया जाता है. 1236 से 1240 तक उन्होंने अपने बेहतरीन शासन द्वारा वहां के प्रतिष्ठित लोगों बहुत प्रभावित किया. अपने सल्तनत के लिए उन्होंने मलिक अल्टूनिया नामक शासक से युद्ध तक किया और पराजित होने पर उससे शादी कर ली.
बाद में अपने भाई मियुज़-उद-दीन बहरम के विद्रोह के कारण उन्हें अपने पति के साथ भागना पड़ा. अंततः 14 अक्तूबर 1240 में जाट लुटेरों द्वारा उन्हें लूट कर उनकी हत्या कर दी गयी.
इस तरह मियुज़-उद-दीन बहरम दिल्ली के सिंहासन पर बैठने में सफल रहा. वह गुलाम वंश का छठा सुल्तान था, जो दिल्ली के तख्त पर काबिज हुआ. इसी दौरान मंगोलों ने पंजाब पर हमला किया तथा लाहौर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया.
चूंकि, बहरम मंगोलों का मुकाबला करने में असक्षम था. इस कारण उसने पराजय स्वीकार कर ली. चिहलगनी उनकी इस हरकत से बहुत क्रोधित हुए अथवा उसे दिल्ली के सफ़ेद किले में कैद कर दिया और 1242 ई. में यहीं उसकी मृत्यु हो गयी.
Razia Sultana (Pic : Indiadarshan)
नहीं रुका सिलसिला…
अल-उद-दीन मसूद गुलाम वंश के सातवें शासक के रूप में दिल्ली सिंहासन पर बैठा. उसने 1242 से 1246 तक अपना शासन चलाया. असल में सत्ता पर उसका अपना कोई नियंत्रण नहीं था, वह केबल चिहलगनी के हाथों की कठपुतली था.
वह सत्ता सँभालने के बजाए मनोरंजन अथवा शराब पीने में अपना अधिक समय नष्ट करता था. अलाउद्दीन मसूद की सत्ता के प्रति बढ़ती भूख से परेशान चिहलगनी ने उसे सिंहासन से हटाकर उसी के चहेरे भाई नसीर-उद-दीन मसूद को सत्ता सौंप दी.
मसूद ने 1246 से 1266 तक सत्ता संभाली. असल में नसीर एक धार्मिक इंसान था. उसका अधिकतम समय अल्लाह की इबादत और ग़रीबों की सहायता करने में गुज़रता था. उप सुल्तान घियाथ-उद-दीन बलबन ही राज्य सम्बंधित सभी मामलों पर फैसले लेता था. उसने बाद में नौवें सुल्तान के रूप में सत्ता संभाली. 1266 से 1287 तक उसने दिल्ली सल्तनत पर राज किया.
अपने शासन काल में बलबन ने चिहलगनी नेताओं के समूह को तोड़ दिया तथा दिल्ली पर एकछत्र राज किया. उसने भारत में शांति और व्यवस्था स्थापित करने की पुरजोर कोशिश की. यही नहीं उसने जिस क्षेत्र में कुशासन देखा, वहां अपनी सैनिक चौंकियां बनाईं. असल में बलबन यह सुनिश्चित करना चाहता था कि कौन-कौन उसके और राज्य के प्रति वफादार है.
मुयुज़-उद-दीन मुहम्मद क़ईकुबाद के रूप गुलाम वंश को अपना अंतिम शासक मिला. 1287 से 1290 तक उसने राज किया. कहते हैं कि नौजवान होने के कारण, उसमें अभी उतनी समझ नहीं थी, जिस कारण उसने राज्य के सभी मामलों की उपेक्षा की. 1290 में एक खिलजी प्रमुख द्वारा उसकी हत्या कर दी गयी.
माना जाता है कि मुयुज़ुद्दीन की हत्या के साथ ही गुलाम वंश का शासनकाल भी समाप्त हो गया, जिसके बाद खिलजी साम्राज्य का उदय हुआ.
Sultan Maazuddin Kaiqubaad (Pic : Wikimedia)
वह गुलाम जिन्हें सब्जी भाजी की तरह खरीदा बेचा जाता था, उनका 84 वर्षों तक किसी सल्तनत पर अधिकार करना ग़ैरमामूली बात है.
गुलाम वंश के शासनकाल में कई एेतिहासिक धरोहरों का निर्माण हुआ, जिस कारण इस वंश और इसके शासकों को आज भी याद किया जाता है.
Web Title: Mameluke Density, Hindi Article
Feature Image Credit: Horsenomads