अंधेरे में सितारों सी चमक उठती मेरी आंखें, मेरी अम्मा मेरी आंखों में जब काजल लगाती है...कवि अवशेष कुमार विमल की ये पंक्तियां इतना बताने के लिए काफी हैं कि हमारे बचपन की सबसे सुनहरी यादों में से एक है मां के हाथ से काजल लगवाना.
लड़का हो या लड़की, बचपन में हर किसी ने काजल से आंखें रंगी हैं. काजल ने कभी खूबसूरत बनाया है, तो कभी नजर से बचाया है. हममें से शायद ही कोई जानता होगा कि आखिर काजल असल में कहां से आया? क्योंकि मां ने तो घर पर घी का दीपक जलाकर काजल बनाया था. या फिर अपनी आंख का काजल हमारे कान के पीछे लगाया था.
पर सवाल उठता है कि आखिर काजल को इतना महत्वपूर्ण बनाने वाला पहला शख्स कौन रहा होगा? कैसे काजल न केवल भारतीय संस्कृति में बल्कि कई और सभ्यताओं में भी टोटके और खूबसूरती के सुंदर प्रतीक के रूप में पहचान बना पाया?
तो चलिए आज इन्हीं सवालों का जवाब जानते हैं और चलते हैं काजल की विकास यात्रा पर!
मिस्र से जुड़ा है काजल का रहस्य
काजल को सुरमा, कोहल और कोल जैसे शब्दों से भी जाना जाता है. भारत में महिलाओं के सोहल श्रृंगार को तो काजल के बिना अधूरा ही माना जाता है. भला कौन सी दुल्हन होगी जो काजल के बिना नजर आए या फिर किस घर के बच्चे को काजल का टीका नहीं लगाया जाता? आजकल काजल पेंसिल के रूप में आ गया है और मेकअप बॉक्स की शोभा बढ़ा रहा है.
पर एक वक्त था, जब काजल घी के दीपक के उपर छोटी सी डिब्बी को उल्टा रखकर बनाया जाता था. यह काजल बनाने का परंपरागत तरीका रहा है. काजल और कोहल शब्द अरबी भाषा के कुहल से निकले हैं. यह धारणा गलत है कि भारतीय पुरातन इतिहास काजल के अविष्कार का कारक है. बल्कि काजल का सबसे पहले इस्तेमाल मिस्र में किया गया.
इतिहासकारों के अनुसार काजल का अविष्कार और इस्तेमाल मिस्र में 3100 बीसी में शुरू हुआ. सबसे पहले काजल का उपयोग आंखों से संबंधित बीमारियों के इलाज के लिए किया गया. चिकित्सकों ने पाया कि यदि काजल रोजाना इस्तेमाल करते हैं तो फुंसी, गुहेरी और आंखों से पानी आने जैसी समस्याएं नहीं होती. तभी से काजल को रोजाना इस्तेमाल में शामिल किया गया.
न केवल महिलाएं बल्कि पुरूष और बुजुर्ग भी काजल का बखूबी इस्तेमाल करते थे. उनका मानना था कि काजल लगाने से आंखें सूरज की तेज रौशनी में सुरक्षित रहती हैं और चमक के दौरान आंखें साफ देख पाती हैं.
उनका मानना था कि कोहल कठोर सूरज किरणों से आंखों की रक्षा कर सकता है, और इसलिए आंखों के ऊपरी और निचले भाग को काजल की रेखाओं से ढांक लिया जाता था. इसे 'गैलेना आई पेंट' का भी नाम दिया गया.
मिस्त्र के साथ ही अफ्रीकी देशों की आदिवासी जनजातियों में भी काजल का इस्तेमाल देखा गया है. वे न केवल आंखों में बल्कि माथे, नाक और शरीर के अन्य अंगों में भी काजल का प्रयोग करते आए हैं.
दीवाली का काजल होता है खास
मिस्त्र और अफ्रीका के बाद दक्षिण एशिया में काजल का उपयोग बाहुलता से किया गया. जिसमें भारत और अरबी देश शामिल हैं. भारत में राज्यवार काजल के अलग-अलग नाम हैं. जैसे पंजाबी और उर्दू में इसे 'सुरमा' कहा जाता है. जबकि 'कणमाशी' मलयाली में कहा जाता है. कन्नड़ में कादीज, तेलुगु में कातुका है, और तमिल में इसे कान माई कहते हैं.
भरतनाट्यम और कथकली नर्तकियों के अलावा ठुमरी-दादरा करने वाले कलाकारों की आंखें भी काजल से रंगी हुई होती हैं. भारतीय रंगमंच पर पारंपरिक नृत्य करने वाले कलाकारों का काजल लगाना लगभग अनिवार्य है.
भारतीय महिलाओं के श्रंगार को भी काजल के साथ ही पूरा माना जाता है.
भारत में खासतौर पर दीपावली की रात में परिवारों में काजल तैयार करने की प्रथा है. दरअसल इस दिन भगवान गणेश और लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है. उनके आगे घी के दीपक जलाए जातते हैं और फिर इन्ही दीपक की लौ से घर के बाकी हिस्सों मे रखे दीपकों को जगमगाया जाता है. यह सुनिश्चित किया जाता है कि भगवान के सामने रखा दीपक पूरी रात जले.
इसी दीपक की लौ के जरिए काजल बनता है और फिर वह परिवार के सभी सदस्यों की आंखों में लगाया जाता है. माना जाता है कि इस दीपक में देवताओं का आर्शीवाद होता है. जब इस तेज से काजल बनाकर लगाया जाता है, तो हमारी आंखों की रौशनी तो बढ़ती ही है साथ ही आंखों में सकारत्मक ऊर्जा का संचार होता है.
यानि किसी भी चीज को देखने के नजरिए में सकारात्मकता आती है.
कपूर और बादम की मदद से बनाएं काजल
अब बात करते हैं काजल बनाने के तरीके की. घरों में आमतौर पर बनने वाले काजल के बारे में तो जान लिया है पर इसे पाने के कई और भी तरीके हैं. काजल बनाने के लिए बादम और कपूर की भी मदद ली जा सकती है.
इसके लिए कपूर को जलाकर उसपर उल्टी थाली रख दें. जो भी कालिख थाली में जमा होती है उसे काजल के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं. ऐसे ही घी में भीगे हुए बादामों को कुछ देर घी के दीपक के साथ जलने दें.
जब यह जलना बंद हो जाएं तो उसकी कालिख को निकालकर डिब्बी में रख लें. इस तरह का काजल आंखों को ठंडक पहुंचाता है. काजल का सबसे पहले इसी प्रकार निर्माण किया जाता था.
एक अन्य तरीका है कैस्टर आयल से काजल बनाने का. जिसके लिए दीपक में कैस्टर आयल रखा जाता है. उसमें रूई की बाती जलाई जाती है. इसकी लौ को एक प्लेट से ढांका जाता है पर इस प्रकार कि वह बुझे नहीं. जब कालिख जमा हो जाती है तो इसे डिब्बी में निकाल लें. काजल गाढा है तो उसमें कपूर या बादाम के तेल की कुछ बूंदे डाली जाती हैं.
हालांकि, अब बाजार में काजल पेंसिल के रूप में उपलब्ध है. यह न केवल काले बल्कि सफेद, हरे और नीले रंगों में भी मिल रहा है. पर खास बात यह है कि यह पूरी तरह से कैमिकल से तैयार होता है जो आंखों को नुकसान पहुंचाता है. इन काजल पेंसिल में रासायनिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है. यह लंबे समय तक चल सके इसलिए स्प्रिट जैसे तरल पदार्थ मिलाए जाते हैं, जो आंखों में गंभीर रोग का कारण बन सकते हैं. यही कारण है कि चिकित्सक भी घर में बने काजल के प्रयोग पर बल देते हैं.
बीते कुछ दशकों में काजल एक ब्रांड के रूप मे उभरा है. भारतीय प्रसाधन उत्पादनों में काजल की डिमांड बाकी सभी उत्पादों से ज्यादा है. पेंसिल के रूप ने इसे और आसान बना दिया है. करीना कपूर, रानी मुखर्जी, और सोनम कपूर जैसी अभिनेत्रियां जमकर रासायनिक काजलों की ब्रांडिंग कर रही हैं.
मिनरल आयल और पाऊडर के मिश्रण से तैयार NYX Jumbo Eye Pencil की डिमांड सबसे ज्यादा है. Chambor Dazzle Eye Liner Pencil शैड नंबर 101, Faces Eye Pencil, Solid Black 02 पर आधारित काजल का इस्तेमाल सबसे ज्यादा हो रहा है. चूंकि यह आयल और वैक्स से तैयार हो जाता है इसलिए इसमें किसी भी प्रकार के संक्रमण का खतरा कम है. जबकि तरल और जेल रूप में काजलों का प्रयोग करना आंखों के लिए नुकसानदायक बताया गया है.
काजल से कुछ टोटके भी जुड़े हैं
काजल का सबसे मजेदार पहलू हैं इसके टोटके. जी हां, हममें से हर कोई काजल का प्रयोग इसलिए भी करता है ताकि खूबसूरती को किसी की नजर न लगे. काजल का तंत्र साधना में भी भरपूर उपयोग किया गया है. दावा तो यहां तक किया जाता है कि काजल में वशीकरण की शक्ति होती है. हालांकि विज्ञान इन दावों को स्वीकार नहीं करता.
फिर भी भारतीय तंत्र विद्या की किताबों में काजल के कई टोटके बताए गए हैं. जैसे यदि आपके परिवार में हमेशा कलह रहता हो पारिवारिक सदस्य सुख शांति से न रहते हो तो शनिवार के दिन सुबह काले कपड़े में जटा वाले नारियल को लपेटकर उस पर काजल की 21 बिंदी लगा लें. और घर के बाहर लटका दें.
काजल के काले रंग के कारण इसे शनि देव का प्रिय माना जाता है. इसलिए शनि की साढेतारी पूजा के दौरान काजल का प्रयोग अनिवार्य बताया गया है. शनि पूजा के लिए कहा जाता है कि काला सुरमा एक शीशी में लेकर अपने ऊपर से शनिवार को नौ बार सिर से पैर तक किसी से उतरवाकर सुनसान जमीन में गाड़ दें. इसके अलावा सरसों के तेल की मालिश करने और आंखों में काला सुरमा लगाने से भी शनिदोष दूर होता है.
यदि किसी को वश में करना है तो रवि पुष्य योग (रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र) में गूलर के फूल एवं कपास की रूई मिलाकर बत्ती बनाएं तथा उस बत्ती को मक्खन से जलाएं. फिर जलती हुई बत्ती की ज्वाला से काजल निकालें. यह काजल वशीकरण के रूप में काम में लिया जा सकता है. बहरहाल इन टोटकों का कोई सैदृधांतिक महत्व नहीं है. पर काजल का वैज्ञानिक महत्व है. कपूर और बादाम वैसे भी आंखों के लिए बेहतर होता है. ऐसे में उसका काजल आंखों की कई गंभीर बीमारियों से रक्षा करता है.
उम्मीद है कि आपको बचपन में अपने रोने का करण भी मिल गया होगा. वही रोना जो तब आता था जब मां हमें काजल लगाती थी और हम उसे पोंछ देते थे. अब आप भी काजल पोंछने से पहले उसके लाभदायक पहलुओं पर गौर जरूर कीजिएगा.
Web Title: Mascara Invention and Story of Development, Hindi Article
Feature Image Credit: Ezwed