इतिहास गवाह है कि युद्ध से कभी किसी को कुछ हासिल नहीं हो पाया है!
युद्ध बुरी यादों के अलावा और कुछ नहीं देता. वैसे तो पुराने समय से ही दुनिया में युद्ध होते आए हैं, मगर इंसानियत के दिल पर जो जख्म विश्व युद्धों ने दिए हैं, उनकी भरपाई आज तक नहीं हो पाई है.
बात चाहे प्रथम विश्व युद्ध की हो या द्वितीय की, दोनों ही बुरी यादों से ओतप्रोत हैं, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के समय की कुछ घटनाएं ऐसी थी कि जिन्हें जानने के बाद किसी का भी दिल दहल जाए.
ऐसी ही एक घटना है डनकिर्क तट की!
शायद ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं जानते होंगे, लेकिन यकीन मानिए इस घटना से रुबरु होने के बाद एक बार को आपका दिल भी सहम जाएगा.
यह कहानी है एक टापू पर फंसे उन लाखों फ्रेंच और ब्रिटिश सैनिकों को बचाने की कवायद की, जिसकी पहरेदारी हिटलर की नाज़ी सेना कर रही थी. आखिर किस प्रकार फ्रेंच व ब्रिटिश आर्मी ने संयुक्त ऑपरेशन कर अपने लोगों को वहां से बाहर निकाला. कैसे उन्होंने नाजियों की ऑटोमैटिक मशीन गनों और लड़ाकु जहाजों से बचकर इस काम को अंजाम दिया, आइये जानते हैं–
नाजी सेना के आगे झुकी संयुक्त सेना!
जैसा कि आप जानते ही हैं कि साल 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हो गई थी. हिटलर की नाज़ी सेना ने जर्मनी में अपना प्रभुत्व कायम करने के बाद अन्य देशों की ओर अपना रुख किया. नाजियों ने फ्रांस के उत्तरी क्षेत्र की ओर से अपना हमला शुरु किया. उन्होंने 10 मई 1940 को पुरी ताकत से बेल्जियम, होलैंड और लक्ज़मबर्ग पर धावा बोला. वहां तैनात डच आर्मी ज्यादा समय तक नाजी सेना का सामना नहीं कर पाई और उन्होंने अपने घुटने टेक दिए. इससे नाजियों के हौंसले बुलंद हो गए और उन्होंने अपनी कवायद जारी रखी.
वह लगातार आगे बढ़ते रहे और जल्द ही उन्होंने बेल्जियम के अर्देंनेस क्षेत्र व फ्रांस की सोममे नदी तक के क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया. हालांकि इस दौरान फ्रांस और ब्रिटिश सेना ने संयुक्त तौर पर नाजियों का सामना किया, मगर वह भी ज्यादा देर टिक नहीं पाए.
धीरे-धीरे पूरा उत्तरी क्षेत्र नाजियों के अधीन हो गया.
लगातार अपनी जगह से पीछे हट रही संयुक्त सेना अब एक तट डनकिर्क पर आकर फंस गई थी, क्योंकि अधिकतर जगहों को नाजी अपने कब्जे में ले चुके थे. इस समय 3,00,000 से अधिक फ्रेंच और ब्रिटिश सैनिक डनकिर्क तट पर फंसे थे, जोकि फिलहाल नाजियों की गिरफ्त से बचा हुआ था.
वहीं इन हालातों से भली भांति परिचित ब्रिटिश कमांडर लार्ड जॉन गोर्ट इस सोच में डूबे थे कि आखिरकार अपने लाखों सैनिकों को डनकिर्क से सुरक्षित वापिस कैसे लाया जाए. इसी दौरान जर्मन सेना के अधिकारी हर्मन गोरिंग ने हिटलर समेत अन्य सेना नेताओं को इस बात पर राजी कर लिया कि वह अपने लड़ाकु जहाजों की मदद से डनकिर्क की सुरक्षा कर सकता है. इसलिए वहां तैनात आर्मी को तट से हटा दिया जाए और उन्हें अन्य क्षेत्रों के लिए भेज दिया जाए.
इसके चलते नाजियों ने डनकिर्क की सुरक्षा में तैनात सैनिकों को वापिस बुला लिया. यह ब्रिटिश आर्मी के लिए एक मौके के समान था जब वह डनकिर्क पर फंसे अपने सैनिकों को वहां से वापिस ला सकते थे. ज्यादा देरी न करते हुए संयुक्त सेना के उच्च अधिकारियों ने इस कार्य को करने का फैसला किया.
इसे ‘ऑपरेशन डायनमो’ का नाम दिया गया.
Lakh’s Of Soldier Got Stuck In Dunkirk (Representative Pic: Hollywood Reporter)
फिर शुरु हुआ ‘ऑपरेशन डायनमो’
ऑपरेशन डायनमो की शुरुआत 26 मई 1940 को हुई.
इस ऑपरेशन की सम्पूर्ण कमांड एडमिरल बोल्टन रामसे के हाथों में दी गई. इस मिशन के योजनाकर्ताओं के लिए सबसे बड़ी समस्या यह थी कि आखिर वह लाखों लोगों को बीच से वापिस कैसे लायेंगे.
इसके लिए सेना ने ब्रिटिश नागरिकों से अपील करते हुए कहा कि उन्हें इस मिशन के लिए उनकी नौकाओं की जरुरत है. इसके बाद लोगों ने सेना को सैकड़ों की गिनती में नाव दीं और फिर इस मिशन की शुरुआत हुई.
योजना के मुताबिक सैकड़ों नावें डनकिर्क की ओर चल पड़ी.
मिशन के योजनाकर्ता कैप्टन विलियम टेन्नेट का सुझाव था कि यदि वह सीधे डनकिर्क से लोगों को लेंगे तो वह दुश्मन के लिए आसान निशाना बन जाएंगे. इसलिए वह बचाव दल को सीधे डनकिर्क ले जाने की बजाए पूर्वी क्षेत्र में मौजूद बंदरगाह पर बने बांध के रास्ते अंदर ले गए.
उनका प्लान काफी अच्छा था. जैसी उन्हें उम्मीद थी, उसी तरह से उन्होंने काम किया. बिना किसी परेशानी और बिना दुश्मन की नजर में आए वह सैनिकों को लेने पहुँच गए थे. कुछ ही वक़्त में समुद्र तट के पास सैनिकों को बचाने नाव आ गई. उन्हें देख सैनिकों को भी उम्मीद हो गई थी कि अब वह सुरक्षित अपने वतन जा पाएंगे.
नाव तैयार थी अपने सफ़र के लिए… मगर तभी उन पर जर्मन लड़ाकू जहाजों का हमला शुरू हो गया. एक-एक कर नाजी जहाजों ने समुद्र में मौजूद सैकड़ों नावों को अपना निशाना बनाना शुरु कर दिया था. उन्होंने कई नावों को अपने बमों से उड़ा दिया. इस दौरान नावों में सवार लाखों सैनिक बस यही प्रार्थना कर रहे थे कि आसमान से बरस रहे बम उनकी नाव पर न गिरे.
इसी बीच ब्रिटिश सेना की ओर से ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए हवाई मदद भेज दी गई.
इस दौरान ब्रिटिश रॉयल एयर फोर्स के जहाजों ने जर्मन जहाजों पर जबरदस्त हमला किया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. नतीजतन ‘ऑपरेशन डायनमो’ कामयाब रहा और ब्रिटिश सेना 330,000 से अधिक सैनिकों को बचाने में कामयाब रही.
इन सैनिकों ने आगे चलकर जर्मनी की हार में बड़ी भागीदारी की.
Dunkirk Evacuation (Pic: wikipedia)
फ्रांस के आम लोगों ने चुकाई बड़ी कीमत!
इस कार्यवाही के दौरान यकीनन सेना ने अद्भुत पराक्रम का परिचय देते हुए अपने लाखों सैनिकों को बचाया. साथ ही सैनिकों ने भी काफी बदतर हालातों का सामना किया, मगर इस सब में अगर किसी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ तो वह थे डनकिर्क, बेल्जियम व फ्रांस के अन्य निहत्थे आम लोगों का.
कई लोगों को इस युद्ध के कारण अपने घरों को छोड़कर भागना पड़ा. हजारों लोगों को बिना किसी कारण अपनी जान गंवानी पड़ी. दूसरे विश्व युद्ध की आग ने सालों पुराने उनके घर का पूरा नक्शा ही बदल दिया था. वहां महज़ बिखरे-टूटे पत्थर ही बाकी रह गए थे.
हालांकि, युद्ध-समाप्ति के बाद उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंक्लिन डी रूजवेल्ट ने रेडियो के माध्यम से सभी लोगों के साथ सांत्वना प्रकट की.
इसके बावजूद युद्ध-समाप्ति के वर्षों बाद तक लोगों के दिलों में युद्ध के उन भयानक मंजरों की यादें जीवित रहीं. उन्हें फिर से सामान्य होने में काफी समय लग गया, क्योंकि युद्ध ने लोगों के दिलों पर जो निशान छोड़े थे उन्हें मिटा पाना आसान नहीं था.
Many People Lost Their House Because Of Dunkirk Evacuation (Pic: time)
डनकिर्क की इस कहानी को अभी हाल ही में हॉलीवुड फिल्म के जरिए लोगों के सामने पेश किया गया. इसमें दिखाया गया कि कैसे लाखों सैनिक मदद की उम्मीद आँखों में लिए बैठे हैं. दर्शकों ने इस फिल्म को काफी पसंद किया.
वैसे भी बहादुरी की दास्तान सदियों और सहस्त्राब्दियों तक पुरानी नहीं होती.
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Web Title: Mission Dynamo Largest Rescue Mission of Military History, Hindi Article
Feature Image Credit: rolexmagazine