इतिहास एक दिन में नहीं बनता, लेकिन हर दिन इतिहास के बनने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है.
28 जून के इतिहास के लिए भी यही मायने हैं. इस दिन इतिहास की कुछ बहुत महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं.
तो आईए नज़र डालते हैं, इस दिन घटी ऐतिहासिक घटनाओं पर-
प्रेस पर पाबंदी के साथ दर्ज हुआ काला दिन
28 जून 1975 के दिन भारत सरकार ने स्वतंत्रता के बाद प्रेस के ऊपर सबसे कठिन सेंसरशिप लगा दी. यह सेंसरशिप सरकार के खिलाफ चल रहे प्रतिरोधों को दबाने के उद्देश्य से लगाई गई.
इससे पहले 21 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के कहने पर राष्ट्रपति फखुरुद्दीन अली अहमद ने देश में आपातकाल लगा दिया था. इस दौरान नागरिकों से उनके संवैधानिक और मूल अधिकार छीन लिए गए थे.
यह आपातकाल 21 महीनों तक चला था.
असल में 12 जून 1975 के दिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक फैसला सुनाया था. इस फैसले में कोर्ट ने इंदिरा गाँधी को चुनाव के दौरान सरकारी तंत्र का गलत प्रयोग करने का दोषी पाया था.
इस फैसले के बाद विपक्षी नेताओं ने इंदिरा के खिलाफ देशव्यापी विरोध खड़ा किया था. इसके बदले इंदिरा गाँधी ने आरोप लगाया कि विपक्षी नेता उनकी सरकार को हिंसा द्वारा उखाड़ फेंकना चाहते हैं.
इस आरोप के साथ ही उन्होंने देश में आपातकाल लगा दिया था.
इस दौरान प्रेस के ऊपर सेंसरशिप लगा दी.
ज्यादातर सम्पादक तो पहले से ही सरकार का साथ दे रहे थे, लेकिन जो इस आपातकाल का विरोध कर रहे थे, उन्हें जेल में डाल दिया गया. अखबारों में खबर छपने से पहले सरकारी अधिकारी उन्हें चेक करते थे.
साथ ही अपने अनुसार काट-छांट करने के बाद ख़बरों को छपने देते थे.
अंत में 21 मार्च 1977 को आपातकाल हटा दिया गया.
आपातकाल हटने के बाद लोकसभा के चुनाव हुए और इसमें इंदिरा गाँधी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा.
440 अनुच्छेद वाली वर्साय की संधि
28 जून 1919 के दिन वर्साय की संधि हुई. इस संधि के साथ ही प्रथम विश्व युद्ध का अंत हो गया. इस संधि के तहत ब्रिटेन, फ़्रांस और अमेरिका ने जर्मनी पर भारी जुर्माना लगाया.
इससे पहले उपनिवेशों के बंदरबांट को लेकर विभिन्न साम्राज्यवादी देशों के मध्य 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हुआ था. इस युद्ध में ब्रिटेन, फ़्रांस और अमेरिका एक तरफ थे और जर्मनी तथा रूस दूसरी तरफ.
चार वर्षों तक चले इस महायुद्ध में जर्मनी और रूस की हार हुई थी.
इस संधि में पंद्रह भाग और 440 अनुच्छेद थे.
इसी संधि के तहत लीग ऑफ़ नेशंस का निर्माण किया गया था. इसका प्रमुख उद्देश्य विश्व को आने वाले युद्धों से बचाना था.
इस संधि के तहत जर्मनी के कई भागों को बेल्जियम, फ़्रांस, डेनमार्क और पोलैंड के बीच बाँट दिया गया. इसके साथ ही जर्मनी के ऊपर सैन्य ताकत बढाने की भी पाबन्दी लगा दी गई.
इस संधि के चौथे भाग के तहत जर्मनी से उसके सभी उपनिवेश छीन लिए गए. इसके साथ ही जर्मनी के ऊपर तरह- तरह की वित्तीय पाबंदियां भी लगाई गईं. जर्मनी की सरकार ने इस संधि पर भारी विरोध के बीच हस्ताक्षर किए. दक्षिणपंथी राजनीतिक दल इस संधि का लगातार विरोध करते रहे.
आगे कई नेताओं को आतंकवादियों ने इस संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मार दिया.
यही संधि आगे चलकर जर्मनी में हिटलर जैसे क्रूर तानाशाह के लिए उदय का कारण बनी.
आगे हिटलर ने जो तबाही मचाई, उसका नज़ारा तो पूरे विश्व ने आगे देखा ही.
सोवियत संघ और यूगोस्लाविया के बीच मतभेद
28 जून 1948 को सोवियत संघ ने युगोस्लाविया को कम्युनिस्ट इनफार्मेशन ब्यूरो से निकाल दिया. यह निष्कासन इसलिए हुआ क्योंकि, उस समय यूनान में चल रहे गृहयुद्ध पर यूगोस्लाविया का रुख सोवियत संघ के अनुरूप नहीं था.
कम्युनिस्ट इनफार्मेशन ब्यूरो की स्थापना 1947 में हुई थी. यह विभिन्न देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच संवाद करने का एक मध्यम था. पश्चिमी देश इसे कम्युनिस्ट इंटरनेशनल का ही एक प्रारूप मानते थे.
असल में ग्रीस में गृहयुद्ध चल रहा था...
ऐसे में यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसेफ टीटो ने आरोप लगाया कि सोवियत संघ के राष्ट्रपति जोसफ स्टालिन ग्रीस में कम्युनिस्ट पार्टी को उचित मदद नहीं दे रहे हैं. हालाँकि, स्टालिन इस आरोप को सिरे से ख़ारिज करते रहे. मगर टीटो ने उनकी आलोचना नहीं बंद की. इस कारण स्टालिन ने यूगोस्लाविया को कम्युनिस्ट इनफार्मेशन ब्यूरो से बाहर निकाल दिया.
इसके बाद भी यूगोस्लाविया कम्युनिस्ट देश बना रहा. अमेरिका ने उसे अपनी तरफ करने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं गया.
आगे 1956 में सोवियत संघ ने कम्युनिस्ट इनफार्मेशन ब्यूरो को बंद कर दिया.
चार्ल्स बने नए रोमन सम्राट
28 जून 1519 के दिन चार्ल्स प्रथम को रोम का नया राजा चुना गया. चार्ल्स प्रथम अपने दादा के उत्तराधिकारी बने. इनके दादा मक्सीमिलन एक लंबे समय तक रोम के राजा रहे थे. चार्ल्स प्रथम (जो फर्दिनेंद द्वितीय और इसाबेला के भी पोते थे) ने जन्म के समय से ही अधिकाँश यूरोप और स्पेनिश अमेरिका को जीत लिया था.
रोम का राजा बनने के लिए उनके सामने इंग्लैंड के हेनरी आठवें, फ़्रांस के फ्रांसिस प्रथम और सैक्सोनी के ड्यूक फ्रेडेरिक जैसे बड़े नाम थे. कहते हैं मत पड़ने से पहले चार्ल्स प्रथम ने जर्मनी के राजकुमारों को उनके पक्ष में वोट देने के लिए घूस दी थी.
राजा बनने के बाद चार्ल्स का प्रमुख उद्देश्य रोमन साम्राज्य का प्रसार करते हुए विभिन्न राज्यों को अपनी आधीनता में लाना था. हालाँकि, इसी समय जर्मनी में प्रोटेस्टेंट आन्दोलन शुरू हो गया था. यह आन्दोलन आनुवंशिक राजशाही के विरूद्ध अभियान चला रहा था. फ़्रांस में इस आन्दोलन को बड़ी सफलता मिल चुकी थी.
आगे इस आन्दोलन के निशाने पर तुर्की का औटोमन ओर रोम का साम्राज्य था.
इस आन्दोलन ने आगे चार्ल्स के लिए बड़ी दिक्कतें खड़ी कीं.
तो ये थीं 28 जून के दिन इतिहास में घटी कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं.
अगर आपके पास भी इस दिन से जुडी किसी घटना की जानकारी हो तो हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Day In History 28 June, Hindi Article
Feature Image Credit: Quartz