सपनों का शहर, आमची मुंबई, बंबई, माया नगरी शहर एक है, लेकिन नाम अनेक!
जहां रात हो या दिन सुबह हो या शाम हर पल ज़िंदगी एक जोश के साथ दौड़ती नज़र आती है.
जहां कोई थमता नहीं, कोई रुकता नहीं. शायद इसीलिए मुंबई के बारे में कहा जाता है कि 'ऐसा शहर जो कभी नहीं सोता.'
इस जागते शहर पर कई साम्राज्यों ने राज किया है. बात तब की है, जब इसका नाम मुंबई नहीं था.
तब ये पुर्तगालियों के अधीन हुआ करता था, और फिर इस पर अंग्रेजों का कब्जा हुआ.
लेकिन कैसे..? क्या आप जानते हैं.
एक वक़्त था, जब मुंबई को दहेज के तौर पर दे दिया गया था. इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है.
तो आईए बंबई पर अंग्रेजी शासन और उसके इतिहास पर नजर डाल लेते हैं –
सात द्वीपों पर बसी है मुंबई
मुंबई सात द्वीपों से बना एक शहर है, जहां पहले इसके मूल निवासी मछुवारे थे. इन द्वीपों पर छोटे छोटे गांव हुआ करते थे.
हालांकि, मुंबई में मिले प्राचीन अवशेषों से यह साबित होता है कि मुंबई द्वीप समूह पाषाण युग से बसा हुआ है. यहां 250 ई.पू. में भी लोग रहा करते थे.
इसके बाद तीसरी शताब्दी ई.पू. में मुंबई के इन द्वीपों पर मौर्य साम्राज्य के महान सम्राट अशोक का शासन रहा.
बालकेश्वर मंदिर और एलिफेंटा की गुफाएं भी अति प्राचीन हैं, हालांकि तब इसे 'हैप्टानेसिया' कहा जाता था.
वहीं, लगभग 1200 ई. के आसपास इस द्वीप पर माहिम बस्ती की स्थापना हुई. और 1343 ई. के आसपास गुजरात के हिन्दू राजाओं ने यहां पर राज्य किया.
इसके बाद, भारत आने वाले पुर्तगालियों ने 1507 में इस पर हमला किया, हालांकि वो असफल रहे, लेकिन अब उनकी नजर बंबई पर पड़ चुकी थी.
इंग्लैंड के प्रिंस की कैथेरीन ऑफ ब्रेगेंजा से शादी
इसके बाद 1534 ई. में सुल्तान बहादुर शाह के शासनकाल में पुर्तगालियों ने दोबारा से बंबई पर हमला किया और इस बार वह बहादुर शाह से इस द्वीप समूह को हथियाने में कामयाब रहे.
पुर्तगालियों ने वहां पर व्यापार के लिए एक कारखाना खोला और उन्होंने इसे बोम बहिया कहा, जिसका अर्थ था एक 'अच्छी खाड़ी.'
हालांकि बाद में यही नाम अंग्रेजों के उच्चारण के द्वारा बॉम्बे हो गया.
1626 ई. के आसपास बॉम्बे में रेशम, कपास, चावल और तम्बाकू जैसे माल का व्यापार शुरू कर दिया गया.
जल्द ही यहां एक शिप बिल्डिंग यार्ड और उसके बाद एक बड़ा गोदाम व सुरक्षा के लिए एक किला बनाया गया.
उस वक़्त ब्रिटिश शासन की भी नज़र मुंबई पर थी, लेकिन वहां पुर्तगालियों का शासन हुआ करता था, जिसके लिए दोनों में कई बार विवाद भी हुए.
हालांकि, इस विवाद को ख़त्म करने के लिए पुर्तगाल के राजा ने अपनी बेटी कैथरीन का विवाह इंग्लैंड के राजा से करने का फैसला किया.
मुंबई पर हुआ अंग्रेजों का कब्ज़ा
इस तरह से सन 1661 में पुर्तगाल के राजा ने अंग्रेजों से अपना गठबंधन मजबूत करने के लिए इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय से अपनी बेटी कैथरीन की शादी कर दी.
इस शादी के बदले पुर्तगाल ने बहुत कुछ ब्रिटेन को दिया और साथ ही बंबई भी दहेज़ के रूप में इंग्लैड के राजा को दे दी गई.
हालांकि राजा की इस द्वीप में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी लिहाजा उन्होंने इसे 1668 में ईस्ट इण्डिया कंपनी को 10 पाउंड में पट्टे पर दे दिया.
इस तरह मुंबई पर अंग्रेजों का कब्ज़ा हो गया.
कुछ सालों के भीतर ही कंपनी के गवर्नर गेराल्ड औंगियर ने कई गोदामों के साथ बंदरगाहों के निर्माण कराने की योजना बनाई, और उसकी रिपोर्ट लंदन भेजी गई.
कंपनी ने इनकी योजनाओं का समर्थन दिया और उन्हें एक नया शहर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया. इसके बाद यहां पर लोगों के लिए जमीन खरीदने और घर बनाने की सुविधाओं का प्रबंध किया गया.
गेराल्ड ने कई इमारतें और द्वीपों को जोड़ने का काम किया और लोगों के लिए महल, अस्पताल, चर्च और एक टकसाल का निर्माण कराया.
आकड़ों के अनुसार 1670 में कंपनी के पास रहने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए 1,500 सैनिक थे, जिसमें अंग्रेजी और स्थानीय दोनों प्रकार के लोग शामिल थे.
इसके बाद बॉम्बे में पहली बार 1670 में प्रिंटिंग प्रेस स्थापित की गई और कई कारखाने लगाए गए.
सन 1661 में बंबई की आबादी लगभग 10 हजार ही थी. बढ़ते व्यापार और काम की तलाश में यहां लोग बढ़ते चले गए. वहीं अंग्रेजों को भी बड़ी संख्या में लोगों की आवश्यकता थी, इसलिए 1675 में यहां की आबादी बढ़कर 60 हज़ार हो गई.
और इसके कुछ सालों बाद बढ़ते काम को देखकर सन 1687 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना मुख्यालय सूरत से स्थानांतरित करके मुंबई बना लिया.
मुगलों ने किया मुंबई पर आक्रमण
ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यवसाय के लिए यहां लोगों को काम पर लगाया और उन मेहनतकश भारतीयों ने अपने खून पसीने से इस द्वीप को एक नए शहर की तरह चमका दिया.
हालांकि, एक वक़्त ऐसा भी आया, जब मुंबई पर मुगलों की सेना ने आक्रमण कर दिया.
बात उस वक़्त की है, जब अंग्रेज, डच और पुर्तगाली समुद्र पर राज किया करते थे. ऐसे में इनके जहाजों के कप्तान लगातार विदेशी जहाजों पर भी अपना कब्ज़ा कर लिया करते थे.
सन 1668 ई. के आसपास अंग्रेजों और मुगलों के बीच संघर्ष का दौर शुरू हुआ, जब अंग्रेजों ने मुगलों के 14 जहाजों पर कब्ज़ा कर लिया और उन्हें बंदरगाह पर खड़ा कर दिया गया.
ऐसे में मुगलों ने बदला लेने के लिए 1689 ई. में एक सैन्य टुकड़ी को बॉम्बे भेजा. मुगलों की सेना ने बंदरगाह में प्रवेश किया और किले को चारों तरफ से घेर लिया.
इस तनातनी में कई लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी और वहां की आबादी में भी इससे भारी गिरावट आई.
मुगलों की सेना ने घरों और बागानों को तबाह कर दिया.
हालांकि, बाद में दोनों में समझौता हो गया और ये लड़ाई खत्म हो गई. लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी को इसके लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ी और मुंबई एक बार फिर से बदहाल हो गया.
हालांकि, इस भारी नुकसान के बीच बंबई की विकास रफ्तार धीमी नहीं पड़ी.
बॉम्बे के गवर्नर सर रोबर्ट ग्रांट ने 1779 से 1883 के बीच कई सड़कों का निर्माण कराया. इसके बाद 1853 में विक्टोरिया और थाणे को जोड़ने वाली पहली भारतीय रेलवे लाइन का निर्माण हुआ.
हालांकि, 1857 के विद्रोह के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी पर कुप्रबंधन का आरोप लगा और इन द्वीपों पर ब्रिटिश क्राउन का नियंत्रण हो गया.
इसके बाद विक्टोरिया टर्मिनस, जनरल पोस्ट ऑफिस, नगर निगम, प्रिंस ऑफ़ वेल्स संग्रहालय, राजबाई टावर, बॉम्बे विश्वविद्यालय, ओल्ड सचिवालय जैसी कई इमारतों का निर्माण हुआ.
वहीं, 1911 में राजा जार्ज और रानी मैरी के भारत आगमन पर गेट-वे ऑफ़ इंडिया बनाया गया. इसी के साथ भारत की आजादी का समय आ चुका था और 1947 को बॉम्बे के साथ पूरा भारत अंग्रेजों से आज़ाद हो गया.
आज़ादी के बाद बॉम्बे को महाराष्ट्र की राजधानी बनाया गया. और बॉम्बे का नाम बदलकर मुम्बा देवी के नाम पर मुंबई कर दिया गया.
Web Title: Mumbai: Portugal Hands Over to British King Charles II in Dowry, Hindi Article
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