एक ओर जहां अंग्रेजों ने मराठों को दबाने की कोश्ािश की, वहीं दूसरी ओर, मैसूर मराठा साम्राज्य को नौंच लेना चाहता था.
ऐसे में मराठों को एक शासक मिला, जिसने न सिर्फ अंग्रेजों को सबक सिखाया, बल्कि मैसूर को भी उसकी औकात दिखाई.
1775 से 1783 ई. तक इन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. इसके एक साल बाद ही 1784 में मैसूर के शासक टीपू सुल्तान से युद्ध किया. इसके बाद अपनी कूटनीति का प्रयोग करते हुए टीपू सुल्तान द्वारा बलपूर्वक छीने गए मराठा भू-भाग को पुन: प्राप्त किया.
जी हां! यहां बात हो रही है पूना में पेशवा प्रशासन के दौरान मराठा साम्राज्य के प्रतिष्ठित और प्रभावशाली शासक रहे नाना फड़नवीस की.
नाना फड़नवीस को मूल रूप से बालाजी जनार्दन भानु के नाम से जाना जाता था.
इनकी चतुराई, शासन की कठोरता और अच्छी कूटनीति के कारण यूरोपीय लोग अक्सर इन्हें 'मराठों का मैकियावेली' कहते थे.
नाना फड़नवीस की दूरदृष्टि और कूटनीति की बदौलत ही पानीपत की हार के बाद मराठा साम्राज्य पुन: खड़ा हो पाया था.
ऐसे में चलिए जानते हैं नाना फड़नवीस से जुड़ी वह बातें, जो इन्हें मराठों का मैकियावेली बनाती हैं –
विरासत में मिली उपाधि
12 फरवरी 1742 ई. को सतारा के एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए नाना फड़नवीस के बचपन का नाम बालाजी जनार्धन भानु था. सभी लोग प्यार से उन्हें नाना कह कर पुकारते थे.
नाना फड़नवीस के पूर्वज मराठा साम्राज्य के पहले पेशवा बालाजी विश्वनाथ भट्ट के साथ श्रीवर्धन के पास वेलास गांव छोड़कर सतारा में बस गए थे.
इसके बाद इन्हें पेशवा के कार्यकाल में वित्त मंत्री बनाया गया.
मुगलों ने पेशवा को मारने के लिए एक साजिश रची थी, लेकिन नाना के दादा बालाजी महादजी ने पेशवा को बचाने के लिए अपनी बलि दे दी. इसके बदले में उन्हें पेशवा की सिफारिश पर छत्रपति शाहूजी महाराज की ओर से फड़नवीस (अष्टप्रधान में से एक) की उपाधि से सम्मानित किया गया.
परंपरा के मुताबिक, नाना को अपने दादा से उनकी उपाधि विरासत में मिली.
नाना ने लौटाया मराठों का खोया सम्मान
1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद, नाना फड़नवीस ने एक मंत्री के रूप में प्रमुखता से मराठों को अपनी प्रतिष्ठा और शक्ति हासिल करने में मदद की. जो पानीपत में युद्ध में काफी हद तक क्षीण हो चुकी थी.
इस समय तक मराठा साम्राज्य पूरी तरह से चरमरा गया था, राज्य की आर्थिक व्यवस्था पूरी तरह से तहस नहस हो चुकी थी. शासन प्रबंधकों का पैसों के लेन देन पर कोई काबू नहीं था, यहां तक की राज्य में बड़े स्तर पर पैसों का गबन हो रहा था.
ऐसे में राज्य की कमान पेशवा माधवराव के हाथ में थी. इन हालातों में राज्य व नवनियुक्त पेशवा को सहारा देने नाना फड़नवीस आए.
उन्होंने शासन प्रबंध को फिर से दुरुस्त करने में अहम भूमिका निभाई.
उन्होंने राज्य के अन्य विश्वासपात्र मंत्री गोपालराय पटवर्धन, त्रायमबकराय पेठे और राम शास्त्री फड़नवीस के साथ मिलकर स्थिति को सही दिशा की ओर बढ़ाया.
नाना फड़नवीस के मार्गदर्शन में धीरे-धीरे पेशवा ने राज्य के राजकोश को पुन: बहाल कर लिया. इसकी बदौलत कुछ समय बाद मराठा साम्राज्य की आर्थिक स्थिति सुधर गई.
इतना ही नहीं नाना फड़नवीस के दिशानिर्दोशों में मराठा सेना ने हैदराबाद के निजाम पर जीत हासिल की, जिसने मराठा साम्राज्य के सम्मान और प्रतिष्ठा को फिर कायम किया, जिसे उन्होंने पानीपत के युद्ध के बाद खो दिया था.
बारभाई कांउसिल का गठन
मराठों के चौथे पेशवा माधव राव की मौत के बाद उनके छोटे भाई नारायण राव पेशवा बने.
मगर नारायण राव अपने भाई के समान समझदार और धैर्यवान नहीं थे. ऐसे में बालाजी बाजीराव के भाई और नारायण राय के चाचा रघुनाथ राय के पास मौका था कि वह शासन पर कब्जा कर लें.
आखिर रघुनाथ राव खुद भी तो पेशवा बनना चाहते थे.
इसलिए उन्होंने पेशवा नारायण राय के विरुद्ध षडयंत्र रचने शुरु कर दिए. लेकिन रघुनाथ राव और पेशवा के बीच नाना फड़नवीस खड़े थे. इन्होंने एक-एक कर रघुनाथ राव की कई चालों को बेअसर कर दिया.
और एक रोज 1773 में रघुनाथ राव ने एक साजिश के तहत नारायण राव की हत्या कर दी.
और फिर रघुनाथ राव पेशवा बन गए.
लेकिन दूसरी ओर नारायण राव की पत्नी गंगा बाई उस समय गर्भवती थी और नाना फड़नवीस चाहते थी कि उनका वारिस ही पेशवा बने.
इसलिए नाना फड़नवीस ने बारभाई षडयंत्र रचा. जिसके तहत उन्होंने अपने अलावा 11 अन्य मराठा सरदारों को एकत्रित किया, जो रघुनाथ के विरुद्ध थे.
इन्होंने बारभाई काउंसिल का निर्माण किया और रघुनाथ राव को पेशवा के पद से हटाकर 40 दिन के अंदर माधव राव द्वितीय को नया पेशवा नियुक्त कर दिया.
हालांकि, माधव राव केवल नाम के पेशवा थे, जबकि असल में शासन की कमान नाना फड़नवीस के हाथों में थी.
अंग्रेजों ने की इन्हें हटाने की साजिश
नाना फड़नवीस दूरदर्शी थे, वह इस बात से भलिभांति परिचित थे कि मराठों के सबसे बड़े दुश्मन अंग्रेजी और फ्रांसीसी व्यापारी हैं. इसलिए नाना फड़नवीस ने इन पर नजर रखने के लिए गुप्त जासूसों का एक विभाग बनाया, जो इनकी हर छोटी बड़ी गतिविधियों पर नजर रखता था.
लिहाजा, अंग्रेज भी जानते थे कि फड़नवीस उनके लिए बड़ा खतरा हैं और उनके रहते वह मराठा साम्राज्य को तोड़ नहीं सकते.
इसलिए उन्होंने कई बार फड़नवीस को बदलने की बात पेशवा के समक्ष रखी, मगर उन्हें कभी भी समर्थन नहीं मिला.
इसी बीच मराठा साम्राज्य के गद्दार शासक रघुनाथ राव ने एक बार फिर से पेशवा बनने की कोशिश की.
इसके लिए उसने अंग्रेजी सेना की मदद ली और मराठों पर हमला बोल दिया.
लेकिन नाना ने समझदारी दिखाते हुए निजाम और भोंसले से संधि कर ली. जिसके चलते युद्ध का अंत संधि के रूप में निकला.
साल 1775 में मराठों और अंग्रेजों के बीच सूरत की संधि हुई. जिसके बाद भी अंग्रेजों ने कई बार मराठों को हराने की कोशिश की, लेकिन नाना की कूटनीति के आगे उनकी एक न चली और उन्हें हर बार मुंह की खानी पड़ी.
नाना फड़नवीस ने कभी किसी पद या उपाधि की कामना नहीं की. उनकी रुचि केवल मराठा साम्राज्य की प्रगति में थी. जब-जब राज्य में अस्थिरता आई नाना फड़नवीस ने हालातों पर काबू पाया और उन्हें फिर से स्थिर किया.
इसी बीच, 13 मार्च 1800 ई. को नाना फड़नवीस की मौत हो गई. इसी के साथ मराठा साम्राज्य भी कमजोर होता चला गया.
इसके बाद अंग्रेजों ने मराठा साम्राज्य की नींव हिला दी और फिर धीरे-धीरे मराठा साम्राज्य को उखाड़ फेंका.
Web Title: Nana Fadnavis: Machiavelli of The Maratha, Hindi Article