ऐसा कहा जाता है कि एक व्यक्ति अपने जीवन में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग किरदार अदा करता है.
ये किरदार कभी-कभी एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत होते हैं. इतने विपरीत कि कि इनको निभाते हुए व्यक्ति पूरी तरह से टूट तक जाता है. भारतीय हिंदी सिनेमा की स्टार मानी जाने वाली नरगिस दत्त का जीवन भी कुछ ऐसा ही रहा.
कहते हैं उन्हें कभी पूरी तरह से सुकून नहीं मिला.
क्यों आईए जानते हैं-
बनना चाहती थीं डॉक्टर, मगर...
नरगिस का जन्म 1 जून,1929 को कलकत्ता में हुआ था. इनके पिता एक अमीर व्यापारी और माता भारतीय शास्त्रीय संगीत की विख्यात गायिका थीं. नरगिस शुरुआत से ही डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन उनकी मां ने उन्हें फिल्मों में जाने को कहा.
उनका फिल्मी जीवन बहुत छोटी उम्र से ही शुरू हो गया. अपनी सुन्दरता और टैलेंट के दम पर वे जल्द ही सिनेमा जगत में एक बड़ा नाम बन गयीं, लेकिन कहीं न कहीं उन्हें यह पसंद नहीं आ रहा था. उन्हें अपना स्टारडम नकली लगने लगा था.
जबकि उनके नाम अंदाज, बरसात, और श्री-420 जैसी सुपरहिट फ़िल्में तो दर्ज थीं. बावजूद इसके वह खुश नहीं थीं. उन्हें इस बात का बड़ा दुःख था कि उनके परिवार और खासकर मां ने उनकी इच्छाओं को कभी नहीं समझा.
वे करना कुछ और चाहती थीं, लेकिन कर कुछ और रही थीं!
असल में उनका परिवार चाहता था कि वे बस ज्यादा से ज्यादा पैसा और नाम कमाएं. जबकि, नरगिस को यह सब नकली लगता था. उन्हें तो डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा करनी थी. पर वे अपने परिवार के दवाब से बाहर ही नहीं आ पायीं.
राज कपूर ने दिया धोखा और...
अपनी फिल्मी सफ़र के दौरान उन्हें राज कपूर मिले. वे राज की तरफ आकर्षित होने लगीं. राज भी उन्हें चाहने लगे. नरगिस को लगा कि अब शायद जिंदगी को थोड़ा आराम मिलेगा. इसी बीच नरगिस ने राज के साथ मिलकर एक के बाद एक सुपरहिट फ़िल्में कीं. उनकी जोड़ी परदे पर गजब की केमिस्ट्री के साथ उतरती थी.
सच कहा जाए वे दोनों को एक-दूसरे से प्यार में थे. उनके प्यार के चर्चे सिनेमा जगत से लेकर दर्शकों के बीच आम हो गए थे, लेकिन दिक्कत यही थी कि राज कपूर शादीशुदा थे.
इन चर्चाओं के बाद से राज ने भी नरगिस पर ध्यान देना बंद कर दिया. बाद में, जब नरगिस को लगने लगा कि राज उनके ऊपर ध्यान नहीं दे रहे हैं, तो उन्होंने राज से पूछ ही लिया कि क्या वे अपनी पत्नी को तलाक देकर उनके पास आएँगे!
जवाब में, राज ने साफ मना कर दिया.
यह सुनकर नरगिस बुरी तरह से टूट गईं. उन्हें लगा कि उनके जीवन में गहन उदासी के सिवा अब कुछ नहीं बचा. कहते हैं कि वे इतनी निराश हो गईं कि आत्महत्या करने तक ली बात सोच डाली. इस दौरान लोग उनसे शादी करने की बात पूछते तो वह कह देतीं कि एक तवायफ की लड़की से शादी कौन करेगा! ऐसा कहकर वह राज कपूर की बेवफाई पर तंज कसती थीं.
सुनील दत्त का मिला साथ, पर...
नरगिस हताशा के दौर से गुजर रहीं थीं, तभी उनके जीवन में सुनील दत्त आते हैं. सुनील उनके जीवन में जीने की ललक पैदा करते हैं. दरअसल बात 1957 में आई फिल्म मदर इंडिया फिल्म की है. इस फिल्म की शूटिंग के समय सेट पर भीषण आग लग जाती है. आग में नरगिस बुरी तरह से फंस जाती हैं और सुनील अपनी जान पर खेलकर उन्हें बचाते हैं.
इसके बाद नरगिस सुनील के बगल में बैठती हैं और सोचती हैं कि जीवन में पहली बार किसी ने उनके लिए कुछ किया है. यह सोचकर नरगिस को सुनील से प्यार हो जाता है. सुनील भी नरगिस को समझते हैं और उनसे कहते हैं कि मैं तुम्हें एक सामान्य इंसान की तरह जीते हुए देखना चाहता हूं. यह बात नरगिस को गहरे तक छू जाती है.
सुनील उनके हर दुःख को सुनते थे. उन्हें रोने के लिए अपना कंधा देते रहे. सुनील के कपड़े नरगिस के आंसुओं को सोख लेते थे. इस प्रकार दुनिया को पता ही नहीं चलता था कि नरगिस रोती भी हैं. इसलिए, कोई उनका मज़ाक नहीं उड़ा पाता था.
नरगिस के लिए सुनील एक मज़बूत सहारे साबित हुए. उन्हें सुनील से वह सम्मान मिला, जिसकी वे सच में हकदार थीं. तारीफ तो सुनील की भी करनी पड़ेगी, क्योंकि नरगिस को संभालना किसी आम व्यक्ति के बस की बात नहीं था.
सुनील के जीवन में नरगिस अपने सभी दुखों के भार के साथ आई थीं और सुनील को यह बात अच्छे से पता थी!
...और फिर हो गया कैंसर
1958 में दोनों ने शादी कर ली. नरगिस को लगा कि अब आराम करने का समय आ गया है, इसलिए उन्होंने उस सिनेमा जगत से सन्यास ले लिया. सुनील के आने से उनके जीवन में स्थिरता आ चुकी थी.
अब उन्होंने निर्णय लिया कि वे अपना मन अपने पसंदीदा काम (समाजसेवा) में लगाएंगी.
इसी क्रम में उन्होंने ना केवल खुद के समाजसेवी संगठन खोले, बल्कि दूसरों से भी जुड़ीं और कमजोर तथा अपाहिज बच्चों की मदद की. इसके साथ ही उन्होंने महिलाओं के हक में भी आवाज उठाई. यही कारण था कि उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया गया और इस तरह वह राज्यसभा पहुंच गईं.
अब सब कुछ ठीक चल रहा था. इसी बीच पता चला कि उन्हें कैंसर हो गया है. वे कैंसर के इलाज के लिए न्यूयॉर्क तक गई, मगर इसका कोई फायदा नहीं हुआ. 3 मई 1981 को अंतत: कैंसर से लड़ते हुए हमेशा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.
आज उनके जीवन के बारे में यही कहा जा सकता है कि, उन्होंने कला और मानवता की अभूतपूर्व सेवा की. उन्होंने अपने दु:खों से ज्यादा दूसरों की चिंता की. बाद में जब कोई उन्हें, उनके दुःख मिटाने वाला मिला, तो उसकी कद्र भी की.
इस तरह एक इंसान के रूप में नरगिस ने अपनी जिम्मेदारियां पूरी ईमानदारी से निभाई, लेकिन उनके जीवन में अंत तक कोई न कोई कसक बनी ही रही.
क्यों सही कहा न?
Web Title: Nargis Dutt: Lesser Known Facts, Hindi Article
Feature Image Credit: The World