अक्सर किसी लेखक, राजनैतिक विश्लेषक और दार्शनिक के काम को तब सराहा जाता है, जब वो किसी समय सीमा में सीमित न हो. किन्तु, निकोलो मैकियावेली के प्रासंगिक होने का मतलब है कि दुनिया में लोकतंत्र जैसे विचार खतरे का संकेत हैं!
कोई भी व्यक्ति, जिसने निकोलो मैकियावेली को पढ़ा होगा, वो ये कतई नहीं चाहेगा के उनके विचारों पर दुनिया चले. इसकी एक मात्र वजह उनकी किताब ‘द प्रिंस’.
वैसे तो, ‘द प्रिंस’ शब्द को हम अक्सर एक ऐसे व्यक्ति से जोड़कर देखते हैं, जिसका दयालू, सौम्य और नेकदिल होने जरूरी है, लेकिन निकोलो मैकियावेली ने प्रिंस को जिस व्यवहार से जोड़ा है, वो हमारी सोच से बिल्कुल विपरीत और खतरनाक है.
अपनी किताब में निकोलो ने ऐसा क्या लिखा आईए जानने की कोशिश करते हैं-
कौन हैं निकोलो मैकियावेली!
निकोलो कि किताब ‘द प्रिंस’ के बारे में जानने से पहले मैकियावेली के बारे में थोड़ा जानना जरूरी होगा. पैदाईश की बात की जाए तो मैकियावेली 1469 में यूरोप के फलोरेंस में जन्में. बाद में वह वहां के गणतंत्र के सचिव और चांसलर भी रहे.
बाद में करीब 1512 के आसपास, जब फलोरेंस गणतंत्र की सत्ता में बदली, तो मैकियावेली को उनके पद से हटा दिया गया.
दूसरी तरफ चर्च द्वारा समर्थन पाकर सत्ता में आए मैडिची परिवार ने फ्रांस के समर्थन में बनी हुई पहले की सरकार के नुमांइदों को जेल में डलवा दिया. इसमें मैकियावेली भी शामिल थे. उन पर मैडिची परिवार के खिलाफ साजिश रचने का आरोप था.
हालांकि, आरोप साबित न होने के कारण उन्हें फलोरेंस के बाहरी क्षेत्र में जाकर रहने की शर्त के साथ रिहा कर दिया गया था. कहते हैं यही वह समय था, जब उन्होंने अपनी किताब ‘द प्रिंस’ लिखी, जिसने उनको विश्व विख्यात कर दिया.
Portrait of Niccolò Machiavelli (Pic: Wikipedia)
मैकियावेली के समय का यूरोप
मैकियावेली के काम को समझने से पहले ये समझना भी जरूरी है कि वो किस तरह के माहौल में रहे. बताते चलें कि उस समय फलोरेंस गणतंत्र यूरोप का सबसे कमजोर साम्राज्य था, जहां थोड़े-थोड़े समय के बाद सरकार बदलती रहती थी.
वहीं यूरोप के मध्यकालीन समय में चर्च और राजाओं के बीच लगातार सत्ता को नियंत्रित करने के लिए रस्साकसी होती रहती थी. दोनों के बीच खुद को भगवान का नुमाइंदा साबित करने की होड़ लगती थी.
हालांकि, चर्च और राजशाही परिवारों के अलावा यूरोप का ये समय बदलाव की चेतना को समर्पित रहा. इसमें तरह-तरह की वैज्ञानिक खोज, सत्ता और समजा से जुड़े विचार बार-बार चर्च और राजाओं को चुनौती दे रहे थे. मैकियावेली ने इस दौर में चर्च को नजरअंदाज कर राजा की भूमिका को प्राथमिकता दी थी.
यह कितना सच है, इसकी प्रामणिकता नहीं मिलती, लेकिन कहा तो यहां तक जाता है कि हिटलर, मुसोलिनी और स्टालिन जैसे 20वीं सदी के कद्दावर तानाशाह मैकियावेली से प्रेरित थे. शायद यही कारण है कि उनकी किताब ‘द प्रिंस’ को 21वीं सदी के लिए खतरनाक माना जाता है.
तोहफे के रूप में लिखी गई थी द प्रिंस
‘द प्रिंस’ एक छोटी सी किताब है, जो मैकियावेली ने फलोरेंस के राजा लॉरेंजो द मैडिची को तोहफे के रूप में लिखी थी. ‘द प्रिंस’ में मैकियावेली ने सत्ता को हासिल करने और उसको नियंत्रण में रखने के गुर सिखाए हैं. अपनी किताब के 15वें अध्याय में राजा का अपनी प्रजा और दोस्तों को लेकर कैसा व्यवहार हो इसके बारे में बताया है.
मैकियावेली का मानना है कि अगर आप एक ऐसी दुनिया में अच्छा बनने की कोशिश करते हो, जहां अधिकतर लोग बुरे हैं तो वो आपके लिए ही मुसीबत बनेंगे. उनके अनुसार यदि एक शासक को लंबे समय तक के लिए राज करना है, तो उसे बुरा होना पड़ेगा. हमेशा नहीं तो कम से परिस्थिति के मुताबिक तो निश्चित ही.
मैकियावेली आगे लिखते हैं कि लोगों ने जो अच्छे शासक के बारे में अच्छी अपेक्षाएं रखी हैं, उन्हें एक तरफ रख शासक को हकीकत पर ध्यान देना चाहिए.
शासक दूसरे लोगों के मुताबिक ज्यादा पब्लिक जिंदगी में रहते हैं, लोग उन्हें अच्छे और बुरे के आधार पर जज करते हैं. ऐसे में एक राजा में सारी अच्छाईयां होना अच्छी बात है, लेकिन जिंदगी के स्वभाव को देखते हुए ये नामुमकिन है. राजा को चाहिए कि वह इस तरह की भावनाओं से दूर रहे, अन्यथा इसका शासन छिन सकता है.
Book The Prince (Pic: Brewminate)
राजा कठोर हो या दयालू
16वें चैप्टर में निकोलो मैकियावेली ने एक उदाहरण देते हुए बताया है कि यदि एक राजा अच्छा और भला बनने के लिए सारी अच्छी योजनाएं लाता है, तो धीरे-धीरे वो सारा धन खर्च कर देगा. मुद्रा कोष में आए घाटे के ठीक करने के लिए उसे फिर से कर बढ़ाने होंगे और योजनाओं में कटौती करनी होगी, जो जनता को मंजूर नही होगा.
ऐसे में वो अपनी छवि को खुद से ही खराब कर लेगा. वहीं यदि कोई शासक छवि खराब होने के डर से जनता की भलाई में धन खर्च नही करता है, लेकिन युद्ध जैसे समय में उसके पास जमा अतिरिक्त धन से विदेशी आक्रमण को रोकने में कामयाब रहता है, तो ये अपने आप ही उसे अच्छा राजा होने का दर्जा दे देता है.
क्रूरता और दयालू के बीच चुनाव के बारे में लिखते हुए मैकियावेली ये प्रश्न उठाते हैं कि एक राजा के प्रति उसकी जनता के मन में प्यार होना चाहिए या डर?
सीजार बोर्जिआ का उदाहरण देते हुए वो लिखते हैं कि वो एक क्रूर छवि वाला राजा माना जाता था, लेकिन उसकी क्रूरता के दम पर रोमागना साम्राज्य में शांति कायम करने में सफल रहा.
वो लिखते हैं कि एक शासक को अपनी क्रूर छवि के बारे में चिंता नहीं होनी चाहिए. थोड़ी सी कठोरता बरतकर वो उन राजाओं से ज्यादा दयालू बन जाता है, जिनकी कुछ ज्यादा ही अच्छी छवि के कारण सत्ता बिखरने लगती है और अशांति फैलती है.
उनके अनुसार एक राजा को किसी पर भरोसा करने से पहले ध्यान से सोचना चाहिए. उसे अपनी अच्छी छवि की चिंता नहीं करनी चाहिए. अगर वो किसी पर आसानी से यकीन करने लगेगा, तो वो धीरे-धीरे बेपरवाह हो जाएगा.
वहीं यदि कुछ ज्यादा ही शक करने लगेगा तो वो शासक असहनीय भी हो जाएगा.
राजा में जानवरों जैसे गुण भी चाहिए
किताब के 18वें अध्याय में एक राजा द्वारा किए गए वादों को पूरा करने के बारे में बताया गया है. मैकियावेली लिखते हैं कि अपने वादों को पूरा करने वाले राजा की खूब तारीफ की जाती है. उसे खूब सराहा जाता है, लेकिन इतिहास में ऐसे राजा भी रहे हैं जिन्होंने अपने वादों पर ज्यादा गौर किए बिना भी बड़ी कामयाबी हासिल की है.
मैकियावेली के मुताबिक युद्ध को दो तरह से लड़ा जा सकता है. पहला कानून और नियमों के मुताबिक, दूसरा बल के आधार पर. अमूमन इंसान कानून और नियमों का सहारा लेता है, लेकिन जानवर बल का प्रयोग करते हैं.
हालांकि, ये भी देखा गया है कि कई बार केवल कानूनों के मुताबिक बात न बनती देख बल का इस्तेमाल भी कर लिया जाता है. अत: एक राजा को अपने अंदर के इंसान और जानवर दोनों का उपयोग करना चाहिए.
मैकियावेली रोम साम्राज्य का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि वहां के हीरो एच्लिस को एक चिरोन (रोमन कथाओं में पाया जाने वाला आधा आदमी औऱ आधा घोड़ा) से शिक्षा लेने के लिए भेजा गया था, ताकि उसमें दोनों के गुण हों. एक शासक को जानवरों की तरह भी व्यवहार करना आना चाहिए.
जानवरों में उनको शेर औऱ लोमड़ी की तरह होना चाहिए.
शेर फंदों से नहीं बच सकता और लोमड़ी को गीदड़ों का खौफ होता है, इसलिए शेर को फंदों से बचने के लिए लोमड़ी जैसा होना चाहिए और लोमड़ी को गीदड़ों से बचने के लिए शेर जैसा बनने की जरूरत है. ठीक इसी तरह एक समझदार शासक को वो वादे ही पूरे करने चाहिए, जिससे उसका नुक्सान न हो.
The Prince Machiavelli Book Cover (Pic: a3maal.me)
यदि ये समय राजशाही का होता तो जरूर मैकियावेली के विचारों पर अमल होता, लेकिन लोकतंत्र के दौर में जब लोगों का ही शासन हो, तो उनके विचार चेतावनी मात्र हैं, जो लोकतंत्र को बनाए रखने की इच्छा को जागृत करते हैं.
Web Title: Cruelest Philosopher Niccolo Machiavelli, Hindi Article
Featured Image Credit: Medium