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भारतीय सेना म्यांमार की सीमा के भीतर घुसकर हल्ला बोल चुकी है.
ये तारीखें भारतीय इतिहास में दर्ज हो गई हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि इन हमलों को पूरी दुनिया से छिपाकर अंजाम दिया गया.
हालांकि इंडियन आर्मी का शौर्य, उसकी जांबाजी, उसकी हिम्मत सिर्फ इन तीन ऑपरेशनों तक नहीं सिमटी है.
ऐसा ही एक ख़ुफ़िया आॅपरेशन 1988 में भी अंजाम दिया गया था, जिसका नाम था ‘आॅपरेशन कैक्टस’.
इस आॅपरेशन की मुख्य हीरो थी भारतीय एयरफोर्स. उन्होंने कुछ ही घंटों में विदेशी धरती पर विरोधियों का संहार कर दिया था. यह आजादी के बाद का वह पहला सफल आॅपरेशन था, जिसे सेना ने विदेशी धरती पर अंजाम दिया था.
आइए जानते हैं भारतीय रणबांकुरों के जज्बे को सलाम करती ‘आॅपरेशन कैक्टस’ की कहानी–
मालदीव में छाए थे संकट के बादल
इन दिनों भी मालदीव में संकट के बादल छाए हुए हैं. यह देश मदद की गुहार कर रहा है. ऐसा पहली बार नहीं है जब मालदीव में आंतरिक विरोध बढ़ा हो और तख्तापलट का प्रयास किया गया हो.
इसके पहले 1988 में भी ऐसा ही प्रयास किया गया था.
मौमून अब्दुल गयूम मालदीव के राष्ट्रपति थे, पर उनकी सत्ता मालदीव के अप्रवासी व्यापारी अब्दुल्ला लुथूफ़ी और उनके साथी सिक्का अहमद इस्माइल मानिक को रास नहीं आ रही थी.
वे देश में तख्तापटल की तैयारी की योजना तैयार कर चुके थे.
1988 को ग़यूम भारत यात्रा पर आने वाले थे. उनको लाने के लिए एक भारतीय विमान दिल्ली से उड़ान भर चुका था.
तभी राजीव गांधी ने उन्हें फोन करके बताया कि उन्हें जरूरी कार्यक्रम में शामिल होना है. इसलिए विमान को वापिस बुलाया जा रहा है. गयूम ने सहमति दे दी पर मालदीव में भारत के तत्कालीन उच्चायुक्त इस यात्रा के सिलसिले में दिल्ली पहुंच चुके थे.
इधर लुथूफ़ी और सिक्का ने श्रीलंका में योजना तैयार की थी कि जब गयूम भारत में होंगे तभी अचानक हमला बोला जाएगा. हालांकि अचानक गयूम की भारत यात्रा टल जाने के कारण उनकी मुश्किलें बढ़ गई.
अपनी योजना को अंजाम देने के लिए वे मालदीव में पहले ही अपने लड़ाके तैनात कर चुके थे.
ये लड़ाके पर्यटकों के भेष में वहां छिपे हुए थे. दोनों ने योजना में बदलाव किया और श्रीलंका के चरमपंथी संगठन पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ तमिल ईलम (PLOTE) के भाड़े के लड़ाकुओं को पर्यटकों के भेष में स्पीड बोट्स के ज़रिए पहले ही माले पहुंचा दिया था.
माले के किनारे पर जब उनकी बोट पहुंची तो लोगों को लगा कि वह पर्यटक हैं और उनका स्वागत किया.
लड़ाको ने तुरंत ही अपनी बंदूकें निकाली और आम लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बसरसानी शुरू कर दीं.
यह खबर मिलते ही शहर में पहले से मौजूद लड़ाके भी बाहर निकल आए और बमों से सरकारी इमारतों पर हमले शुरू कर दिए. विद्रोहियों ने एयरपोर्ट, बंदरगाह, सरकारी इमारतें, टेलीफोन स्टेशन, बिजली स्टेशनों पर कब्जा कर लिया.
लोग अपनी जान बचाने के लिए घरों में छिप गए. दुकानों के शटर खुले छोड़कर दुकानदार भी भाग निकले. जो सड़क पर दिखाई दिया वह लड़ाकों की बंदूक का शिकार बना.
तब मालदीव में दहशत का माहौल शुरू हो गया था.
Operation Cactus Maldives (Pic: wikipedia)
हरकत में आया भारत!
राष्ट्रपति ग़यूम को एक सेफ हाउस में पहुंचाया गया, जहां से उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, चीन के विदेश मंत्रालयों में फोन कर मदद की गुहार लगाई, पर कोई भी देश आगे नहीं आया.
गयूम की आखिरीउम्मीद थी भारत!
उन्होंने भारत में माले के भारतीय उच्चायोग के जरिए विदेश मंत्रालय में फोन कर इस विद्रोह की सूचना देते हुए मदद की अपील की. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी उस वक्त चुनावी दौरे के लिए कलकत्ता में थे. इसलिए यह जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव रोनन सेन को दी गई.
उन्होंने प्रधानमंत्री से बात की. राजीव गांधी को जब इस हमले की खबर लगी तो उन्होंने तुरंत ही मालदीव की मदद के लिए हामी भर दी.
उच्चायुक्त ए के बनर्जी चूंकि दिल्ली में ही थे इसलिए उन्हें भी फोन करके साउथ ब्लॉक में आर्मी ऑपरेशन रूम में आने के लिए कहा गया. ऑपरेशन रूम में यह तय हुआ कि मालदीव की रक्षा के लिए नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स को भेजना चाहिए, मगर सेना ने इस बात को खारिज कर दिया.
फिर तय हुआ कि आगरा की 50 पैरा ब्रिगेड के सैनिकों को माले में पैराशूट के ज़रिए उतारा जाएगा. हालांकि समस्या यह थी कि पैराशूट उतारने के लिए कम से कम 12 फुटबॉल मैदान के बराबर जमीन की जरूर थी.
बैठक में शामिल किसी भी अधिकारी अथवा सेना अध्यक्ष को माले के एयरपोर्ट अथवा शहर के नक्शे की जानकारी नहीं थी, इसलिए यह अंधेरे में तीर मारने जैसा था.
अच्छी बात यह थी कि माले के एयरपोर्ट को भारतीय कंपनी ने तैयार किया था. इसलिए उसे तैयार करने वाले अधिकारियों से तत्काल नक्शा मंगवा लिया गया. इस आॅपरेशन को नाम दिया गया —’आॅपरेशन कैक्टस’
Operation Cactus Maldives (Pic: dailymirror)
फिर शुरू हुआ ‘असली काम’
मालदीव के बारे में सेना ने थोड़ी बहुत जानकारी इकठ्ठा की. उन्होंने जाना कि हुलहुल एअरपोर्ट शायद अभी भी विद्रोहियों के कब्ज़े में नहीं आया है. अतः उन्होंने कमांडोज को वहीं पर उतारने का प्लान बनाया.
पैराशूट लेकर जवान तैयार हुए और विमान में सवार हो गए. आगरा के खेरिया रनवे से विमानों का उड़ना शुरू हुआ.
सीधी उड़ान भरते हुए सेना के तीन परिवहन विमान मालदीव के आकाश में पहुंच गए. विमान में 150 के करीब सैनिक थे.
माले के एयरपोर्ट पर जब विमान उतारा गया तो वहां बिल्कुल अंधेरा था. इसलिए पायलटों ने अंदाजे के साथ विमान उतारा. विमान से बाहर निकलते ही सेना ने एअरपोर्ट को अपने कब्ज़े में लेना शुरू कर दिया.
सेना ने गयूम को ख़ुफ़िया तरीके से रेडियो पर अपने आने की खबर दी. हालांकि तब तक काफी देर हो चुकी थी. विद्रोहियों को गयूम के ठिकाने की खबर लग गई थी और उन्होंने उसे चारों ओर से घेर लिया था.
सैनिकों के पास सेफ हाउस पहुंचने के लिए केवल पर्यटक केन्द्र से मिला नक्शा था. उसके आधार पर सैनिकों ने आगे बढ़ना शुरू किया.
इसी बीच कुछ लड़ाके उनके सामने भी आए जिन्हें सेना ने तुरंत ही मार दिया.
…और सुरक्षित बचा लिए गए ‘राष्ट्रपति’
जब भारतीय सैनिक सेफ़ हाउस के नज़दीक पहुंचे, तो वहाँ ज़बरदस्त गोलीबारी हो रही थी. सेना ने राष्ट्रपति ग़यूम से वहां पहुँच कर संपर्क किया. उन्होंने सेफ हाउस के बाहर गार्ड्स तैनात करने के लिए कहा. वह चाहते थे कि गार्ड्स उन्हें सीधा राष्ट्रपति के पास ले जाएँ. हालांकि ऐसा हो नहीं सका क्योंकि गार्ड्स तक यह संदेश पहुंचा ही नहीं.
भारतीय सेना ने आगे बढ़ते हुए एक—एक कर विद्रोहियों को मारना शुरू कर दिया. जैसे ही वे सेफ हाउस के मुख्य दरवाजे पर पहुंचे सुरक्षा गार्डों ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया.
सैनिकों ने अपना परिचय दिया पर गार्ड उन पर भरोसा करने को तैयार ही नहीं थे. काफी समझाने के बाद गार्डों ने भारतीय सैनिकों को आगे बढ़ने की जगह दे दी.
सैनिक राष्ट्रपति गयूम के पास पहुंच गए और उन्हें अपने साथ चलने के लिए कहा.
सुबह 4 बजे सेटेलाइट फ़ोन से राजीव गाँधी से संपर्क कर उन्हें ‘आॅपरेशन कैक्टस’ की सफलता की सूचना दे दी गई.
सफलता की खबर सुनते ही राजीव गांधी ने राहत की सांस ली. साथ ही सेना को इस सफल मिशन की बधाईयाँ भी दी गयीं.
Rajiv Gandhi And Sonia Gandhi with Mrs. Gayoom (Pic: thewire)
ऑपरेशन कैक्टस के जरिए भारतीय सेना ने यह बताया कि वह सिर्फ अपनी धरती नहीं, बल्कि दुश्मन की ज़मीन पर भी जीत हासिल कर सकती है. उस दिन जब सब ने मालदीव का साथ छोड़ा तो सिर्फ भारत ही उनके निकट खड़ा हुआ.
ऑपरेशन कैक्टस तो महज एक शुरुआत भर थी. इसके बाद तो भारतीय सेना ने कितने ही और मिशन किए विदेशी सरजमीं पर.
Web Title: Operation Cactus Maldives, Hindi Article
Featured Image Credit: newsx