विश्व युद्ध दुनिया के इतिहास का एक ऐसा हिस्सा है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है.
पहले विश्व युद्ध की ही भांति दूसरा विश्व युद्ध भी अपने पीछे तबाही के ऐसे मंजर छोड़ गया, जिसके निशान आज भी मौजूद हैं.
वैसे तो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कई ऐसी घटनाएं घटीं व बहुत से ऐसे ऑपरेशन को अंजाम दिया गया, जो आज ऐतिहासिक घटनाओं के रूप में जाने जाते हैं. इसी युद्ध के दौरान एक ऐसे ऑपरेशन की भी योजना तैयार की गई थी, जिसे बनाने में एक लंबा समय लगा.
हालांकि ये कभी अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सका. ये ऑपरेशन जापान द्वारा अमेरिका के विरुद्ध किया जाना था.
कहते हैं कि अगर इस ऑपरेशन को अंजाम दिया जाता, तो इसकी चपेट में आने से अमेरिका के सेन डियागो शहर के करीब 10,000 लोग मारे जाते.
ऑपरेशन को नाम दिया गया 'ऑपरेशन चैरी ब्लॉसम्स एट नाईट'. तो चलिए इसके बारे में एक बार जान लेते हैं –
कमांडर लशी की देन था ये ऑपरेशन
इस बात से तो पूरा विश्व परिचित है कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान ने कई लड़ाईयां लड़ीं. ऐसे में इसे कई बार हार का सामना भी करना पड़ा. अपने वर्चस्व के लिए जीत जरूरी थी. ऐसे में कई बार जापान ने जंग में जैविक हथियारों का प्रयोग करने के बारे में भी सोचा.
इसकी पूरी जिम्मेदारी जापानी सेना के बड़े अधिकारियों और कमांडर शिरो लशी को सौंपी गई.
विश्व युद्ध के दौरान जब जापान जैविक हथियारों के दम पर एक बार फिर से अपनी बढ़त बनाने की सोच रहा था, तभी जर्मनी ने जंग में आत्मसमर्पण कर दिया. जिसके साथ ही अब जापान को अमेरिका के साथ आमना सामना करना था.
युद्ध में अमेरिका पर जीत हासिल करने के लिए लशी ने दूरी से मार करने वाले एक बड़े हमले की योजना बनाई. वह अपने विरोधी राष्ट्र को अपंग कर देना चाहते थे.
लशी ने युद्ध के अंतिम कुछ महीने इस ऑपरेशन को अंतिम रूप देने में बिताए. मगर ये ऑपरेशन एक आत्मघाती मिशन साबित होने वाला था.
जांच के लिए पूरे गांव की दे दी बलि
इस मिशन में जिन जैविक हथियारों का इस्तेमाल किया जाना था, उन्हें जापान की विशेष सेना टुकड़ी यूनिट 731 की निगरानी में मनचुरिया क्षेत्र में तैयार किया जा रहा था.
ऑपरेशन में इस्तेमाल किए जाने वाले बम से होने वाले नुकसान के बारे में जानने के लिए, इसे एक गांव पर प्रयोग किया गया. इसकी जानकारी इससे होने वाली तबाही का नजारा देख चुके एक शख्स ने दी थी. जिसने बताया कि “उस समय वह महज 15 साल था, जब एक दिन उनके गांव के ऊपर से कुछ जापानी जहाज गुजरे और उन्होंने सारे गांव में धुंआ फैला दिया. इसके कुछ दिन बाद अचानक से गांव के लोग एक-एक कर मरने लगे. लोगों को एक दम से तेज बुखार व पेट में सुजन और दर्द की शिकायत हो गई. हर दिन लोग मर रहे थे और लोगों के रोने की आवाजें गांव में चारों और फैल गई. मेरा पूरा परिवार भी इस दौरान मारा गया था. मैं अपने परिवार का एक अकेला सदस्य था जो जिंदा बचा.”
कुछ इसी तरह का नजारा लशी अमेरिका में देखने की उम्मीद कर रहा था.
फिर शुरू हुई ऑपरेशन की कवायद
इस ऑपरेशन के लिए सबमरीन, लड़ाकू विमान और कुछ जाबाज सिपाही चाहिए थे, जो जैविक हथियारों के साथ दुश्मन पर हमला करेंगे. हालांकि सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि इस मिशन पर जाने वाले सिपाहियों के लिए जिंदा बचकर वापस आ पाना बहुत ही ज्यादा मुश्किल था.
लशी युद्ध में बढ़त हासिल करने के लिए इस ऑपरेशन को अंजाम देना चाहते थे. जिसके चलते 25 मार्च 1945 को ऑपरेशन शुरू करने की तैयारियां प्रारंभ कर दी गईं. इसके लिए 5 आई-400 दूर तक मार करने वाली सबमरीन को चुना गया. ये जापान के शोरलाइन तट से चलकर प्रशांत महासागर के रास्ते अमेरिका की ओर बढ़ेंगी.
इनमें से हर सबमरीन तीन एची-एम6ए सेइरान एयरक्राफट लेकर जाने वाली थी. सबमरीन पर लदे जहाजों में बम थे, जिनके अंदर प्लेग से ग्रस्त मक्खियां, पतंगे, चूहे और कुछ आटा भरा था.
जैसे ही जापानी सबमरीन अमेरिकी शहर सेन डिआगो के नजदीक पहुंचतीं, वैसे ही जहाज शहर की ओर उड़ान भरते. शहर के ऊपर पहुंचते ही जहाज शहर में बम गिरा देते. और इसी के साथ 'ऑपरेशन चैरी ब्लॉसम्स एट नाईट' पूरा हो जाता.
हजारों की मौत का था अनुमान
उधर जैसे ही बम जमीन पर गिरेंगे, वह हल्के धमाके से फट जाएंगे. इस दौरान जब चूहे आटा खाते होंगे, तो पतंगे उन्हें काट कर इंफैक्टीड कर देंगे. फिर ये चूहे और पतंगे धीरे-धीरे लोगों में प्लेग का रोग फैलाएंगे.
फिर यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति और एक घर से दूसरे घर में फैल जाएगी.
इस जापानी योजना के मुताबिक, हमले में करीब 10000 लोगों की जान जाने का अनुमान था. लशी के इस खतरनाक ऑपरेशन को जापानी सेना की ओर से मंजूरी दे गई.
इसके लिए 22 सितंबर 1945 का दिन भी तय कर लिया गया. मगर कुछ समय बाद इस ऑपरेशन को लेकर कुछ परेशानियां सामने आईं. दरअसल जब ऑपरेशन को करने की घोषणा की गई, तो जापानी नौसेना को ऐहसास हुआ कि यह ऑपरेशन बेहद खतरनाक है, क्योंकि इसमें वह अपनी सबमरीन को खो सकते थे, जबकि इन्हीं सबमरीन की मदद से जापान के तटवर्ती क्षेत्रों की रक्षा होती थी.
...और जापान ने कर दिया आत्मसमर्पण
ऐसे में नेवी सबमरीन को खोने का जोखिम नहीं उठा सकती थी. अभी इस ऑपरेशन को लेकर राय कायम हो ही रही थी कि 15 अगस्त को जापान ने अमेरिका के आगे आत्मसमर्पण कर दिया. इसी के साथ इस ऑपरेशन का भी अंत हो गया.
जो भी लोग इस ऑपरेशन के बारे में जानते थे, वह इस बात से सहमत थे कि इसके बाद जापान इस युद्ध में जीत ही जाता. ऐसे में द्वितीय विश्व युद्ध का अंत कुछ और ही होता.
बहरहाल, यह थी उस ऑपरेशन की कहानी जो कभी नहीं हो सका.
क्या मालूम अगर अमेरिका जापान पर परमाणु हमला न करता, तो शायद जापान अमेरिका पर अपना यह जैविक ऑपरेशन करता. और अगर ऐसा होता तो आज का अमेरिका और जापान दोनों काफी अलग होते.
Web Title: Operation Cherry Blossom: The Japanese Operation That Could Change The result of World War II, Hindi Article