भारत के दक्षिण में स्थित चारों ओर समुद्र से घिरा श्रीलंका आज जितना शांत है, शायद 31 साल पहले नहीं था. उस दौरान घरेलू आतंकवादी संगठनों ने वहां अपने पैर जमाए, और इसे हिंसा की आग के हवाले कर दिया.
जब विद्रोही किसी भी तरह शांत नहीं हुए, तो श्रीलंकाई सरकार ने भारतीय सेना से मदद मांगी. जिसके बाद भारतीय सेना ने त्वरित कार्रवाई करते हुए 'ऑपरेशन पवन' को अंजाम दिया.
11 अक्टूबर, 1987 को ये ऑपरेशन चलाया गया. भारतीय सेना को कुशल रणनीति के चलते इस ऑपरेशन में काफी हद तक सफलता भी मिली थी, लेकिन इससे सेना को काफी नुकसान भी उठाना पड़ा.
ऐसे में आइए एक बार जान लेते हैं कि आखिर उस दौरान हुआ क्या था –
खुफिया एजेंसियों ने भारतीय सेना को दी जानकारी
एक बड़े से टापू के ऊपर बसे श्रीलंका में उस समय लिट्टे बड़ा चरमपंथी संगठन था. उत्तरी श्रीलंका में एक छोटा शहर पलाली है. पलाली में भारतीय सेना की इंडियन पीस कीपिंग फोर्स (IPKF) का बेस कैंप था. जहां से भारतीय सेना श्रीलंका में चल रहे विद्रोह को थामने की कोशिश कर रही थी.
ये आर्मी बेस कैंप जाफना क्षेत्र के और श्रीलंकाई मुख्यभूमि के बीच संपर्क करने का अहम केंद्र था. वहीं, श्रीलंका की जाफना यूनिवर्सिटी में विद्रोह संगठन का कब्ज़ा था. लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) अपनी गतिविधियों को चलाने के लिए जाफना यूनिवर्सिटी का प्रयोग करता था.
ऐसे में भारतीय खुफिया एजेंसियों को जानकारी मिली कि 11 अक्टूबर, 1987 को लिट्टे के बड़े आतंकियों की मीटिंग होने जा रही है. इस मीटिंग को खत्म करने और मीटिंग के दौरान ही आतंकियों को मारने के लिए खासतौर पर 'ऑपरेशन पवन' डिज़ाइन किया गया था.
120 कमांडो, 60 जवान श्रीलंका रवाना हुए
खुफिया एजेंसियों से इनपुट मिलने के बाद भारतीय सेना ने 120 कमांडो तैयार किए. ये कमांडोज किसी भी देश में जाकर मुश्किल हालात में युद्ध करने में सक्षम थे.
कमांडोज के साथ बैकअप के तौर पर 13वीं सिख लाइट इनफैंट्री के 60 जवान भी श्रीलंका के जाफना भेजे गए. माना जाता है कि भारतीय सेना का यह एकमात्र मिशन था, जिसे इतनी तेज़ी के साथ कम समय में लड़ा गया.
योजना के तहत कमांडो और सेना के जवानों को हेलिकॉप्टर की मदद से श्रीलंका की जाफना यूनिवर्सिटी के पास मैदान में उतारने का फैसला लिया गया.
ऑपरेशन के बारे में लिट्टे को थी जानकारी!
माना जाता है कि लिट्टे के कमांडर्स को इस पूरे ऑपरेशन के बारे में पहले से ही भनक लग चुकी थी. लिट्टे के लड़ाकों ने भारतीय और श्रीलंकाई सेना के रेडियो सिग्नल पकड़ लिए थे. जिससे ऑपरेशन कमज़ोर और गलत साबित हो गया.
खुफिया सिग्नल को डिकोड करके उन्होंने जवाबी हमले की पूरी तैयारी कर ली थी. यानी अब तैयारियां दोनों और से ही हो रही थीं, फ़र्क बस इतना था कि भारतीय सेना को यह नहीं पता था कि लिट्टे के आतंकियों को हमले की जानकारी पहले से ही है. इसलिए भारतीय कमांडो अलग रणनीति पर काम कर रहे थे.
इस जानकारी के बाद लिट्टे ने रातों रात जाफना यूनिवर्सिटी को एक किले के रूप में तब्दील कर दिया. अब लिट्टे के लड़ाके बैचेनी से भारतीय जवानों का इंतज़ार करने लगे. इस सबकी भनक न तो भारतीय सेना को थी और न ही श्रीलंकाई सेना को.
...और कमांडोज पर टूट पड़ा दुश्मन
भारतीय सेना ने अपनी रणनीति के तहत रात के अंधेरे में 40 पैरा कमांडोज़ की टीम को जाफना यूनिवर्सिटी के मैदान में उतारा. जब ये कमांडोज अपनी पॉजीशन ले रहे थे, तभी पहले से घात लगाए बैठे लिट्टे के लड़ाकों ने गोलीबारी शुरू कर दी.
गोलीबारी होने के कारण कमांडो कुछ समझ नहीं पाए. साथ ही हेलिकॉप्टर्स से आने वाले और कमांडोज़ के लिए दूसरी खाली जगह ढूंढ कर उसे मार्क भी नहीं कर पाए.
जब अगला हेलिकॉप्टर कमांडोज़ की खेप को उतारने वहां पहुंचा, तो पायलट को नीचे गोलीबारी का आभास हो चुका था. इस कारण पायलट को ड्रॉप ज़ोन नहीं मिला. नतीजा ये रहा कि पायलट ने बाकि कमांडोज़ को नीचे ही नहीं उतारा और वापस बेसकैंप लौट गया.
वहीं, जो कमांडोज़ पहले उतर चुके थे, उन्होंने हिम्मत न हारते हुए अपनी अंतिम सांस तक लिट्टे के खूंखार आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब दिया. जवाबी कार्रवाई करते हुए भारतीय सेना के कमांडोज़ ने कई आतंकियों को मार गिराया. बैकअप नहीं मिलने पर कमांडोज कमज़ोर पड़ रहे थे.
कमजोर हुआ लिट्टे
काफी समय बीतने के बाद जाफना की वो रात भारतीय सेना को भुलाए नहीं भूलती. लिट्टे के आतंकियों के सामने 40 भारतीय कमांडो थे. जिन्हें उन्होंने पूरी तरह से घेर रखा था.
लिट्टे को ये भी पता था कि अगली खेप ज़रूर आएगी, इसलिए उन्होंने अपनी तैयारियों को और पुख़्ता कर लिया. लिट्टे का अगला कदम था, हैलीकॉप्टर आते ही उस पर मशीनगन से हमला कर धाराशायी करना.
और फिर जैसे ही हेलिकॉप्टर आया, भारी हथियारों और मशीनगन से उस पर हमला कर दिया गया. हमले में पायलट घायल हो गए, बावजूद इसके बहादुरी दिखाते हुए उन्होंने किसी तरह कमांडोज की टुकड़ी को नीचे उतार दिया.
पहले से ही अपनी पोजिशन लिए लिट्टे के स्नाइपर्स भारतीय कमांडोज़ को अपना निशाना बना रहे थे. इंडियन आर्मी के जवान भी अपनी निडरता दिखाते हुए हार मानने को तैयार नहीं थे.
कमांडो और लिट्टे के बीच कई घंटे तक लड़ाई हुई. इस मिशन में भारतीय सेना के 6 पैरा कमांडो मारे गए. वहीं 35 से अधिक जवान मारे गए.
भारतीय सेना के इतिहास में 'ऑपरेशन पवन' सबसे घातक मिशन साबित हुआ. बावजूद इसके भारतीय जवानों ने मैदान छोड़ने की बजाए ड्यूटी करते हुए अपना फर्ज निभाना ज़्यादा ज़रुरी समझा.
फर्ज़ निभाते हुए कई जवान शहीद हो गए.
माना जाता है इस मिशन के बाद भारतीय सेना ने लिट्टे को काफी हद तक कमज़ोर कर दिया था. जिससे बौखलाए लिट्टे के आतंकियों ने 4 साल बाद 1991 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी.
Web Title: Operation Pawan: Daring Operation By The Indian Peace Keeping Force in Sri Lanka, Hindi Article
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