उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता!
जिस मुल्क के सरहद की निगहबान हैं आँखे!!
दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां भारतीय सेना के हर एक जवान पर सटीक बैठती हैं.
आखिर, सेना के जवान ही तो होते हैं, जो देश की सरहदों पर दुश्मनों को धुल चटाने के लिए हमेशा अपनी आँखों को खुली रखते हैं. जिनकी वजह से हम देश के किसी कोने में सुकून से अपना जीवन-यापन कर पाते हैं.
भारत-पकिस्तान के बीच हुआ 1971 का युद्ध इसका बड़ा उदाहरण है. पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे इस युद्ध में भारतीय जवानों ने दुश्मन को धूल चटाई. इस युद्ध में हमारे कई सैनिक देश के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए.
फ़्लाइंग ऑफ़िसर निर्मलजीत सिंह सेखों उन्हीं में से एक नाम है. वे भारतीय वायुसेना के एक मात्र परमवीर चक्र पाने वाले जवान हैं. ऐसे में इस जांबाज़ की जांबाजी की कहानी को जानना दिलचस्प रहेगा -
बचपन से ही वायु सेना में होना चाहते थे भर्ती
निर्मलजीत सिंह का जन्म 17 जुलाई 1943 को लुधियाना में हुआ था. पंजाब के एक छोटे से गांव में जन्मा यह बच्चा, बचपन से ही भारतीय सैनिक बनने का सपना देखने लगा, क्योंकि इनके पिता तारलोचन सिंह सेखों भारतीय वायुसेना के लेफ्टिनेंट थे. पिता की तरह निर्मलजीत भी वायु सेना में भर्ती होना चाहते थे और देश के लिए कुछ कर दिखाने का जज्बा रखते थे.
खैर, अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 1967 में निर्मलजीत सिंह सेखों को पायलट आफिसर का पद मिला. इनको भारतीय वायु सेना के अन्य साथी प्यार से ‘भाई’ कहकर पुकारते थे, जो इनका उपनाम बन गया था.
इसके बाद इनकी शादी मंजीत कौर से हो गई. शादी के कुछ ही दिन बीते थे कि दिसंबर 1971 में भारत और पकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया. अभी मंजीत कौर के हाथों की मेहँदी भी नहीं छूटी थी, लेकिन देश का यह वीर जवान भी क्या करता.
दुश्मनों ने देश पर आक्रमण जो कर दिया था. ऐसे में निर्मलजीत अपनी पत्नी मंजीत से जल्द वापस आने का वादा किया और देश के दुश्मनों को सबक सिखाने रणभूमि की तरफ चल दिए.
रनवे के दौरान बाल-बाल बचे निर्मलजीत
घर से वापस आने के बाद निर्मलजीत कश्मीर में अपनी सुरक्षा टीम के साथ तैनात हो गए. ये वहां पर 18 नेट स्क्वाड्रन विमान के साथ मौजूद थे. 17 दिसंबर को श्रीनगर एयरफील्ड पर पकिस्तान के 6 साइबर जेट विमानों ने हमला करना शुरू कर दिया.
सुबह लगभग 8 बजकर 2 मिनट पर दुश्मन के आक्रमण की चेतावनी दी जा चुकी थी.
सुबह के समय एयरफील्ड में काफी धुंध था. चेतावनी मिलने पर निर्मलजीत के साथी बलदीर सिंह घुम्मन ने भी अपनी कमर कस ली और 8 बजकर 4 मिनट पर घुम्मन ने अपनी विमान के उड़ान का संकेत दिया और बिना उत्तर मिले ही विमान लेकर उड़ गए.
घुम्मन अपने दोस्तों के बीच जी-मैंन के नाम से जाने जाते थे और एक सीनियर पायलट थे. घुम्मन के उड़ने के बाद निर्मलजीत ने भी अपनी विमान को उड़ाने के लिए रनवे किया. तभी अचानक रनवे के दौरान ही उनके विमान के पास दुश्मन ने बम गिरा दिए.
हालांकि, किसी तरह निर्मलजीत बचते हुए अपने विमान को हवा में उड़ा दिए.
उधर इनके साथी घुम्मन दुश्मन के एक विमान का पीछा कर रहे थे, वहीं निर्मलजीत भी पाकिस्तान के दो विमानों का पीछा करने लगे. उनमें से एक विमान वहीं था, जिसने इनके रनवे के दौरान बम गिराया था.
खैर, दुश्मन के हमले के बाद भारतीय वायुसेना के ये दो जाबाज़ सिपाही हमलावरों को मात देने के लिए पूरी तरह तैयार थे.
पाकिस्तान के तीन विमानों को मार चुके थे निर्मलजीत!
एयरफील्ड पर बम गिरने की वजह से सब कुछ धुंआ धुंआ हो गया, जिसकी वजह से दूर तक देख पाना बड़ा मुश्किल था. टीम का नेतृत्व 1965 में हुए युद्ध के अनुभवी कमांडर चंगज़ी कर रहे थे.
हवा में दुश्मनों का पीछा करते हुए घुम्मन और निर्मलजीत का संपर्क एयरफील्ड से टूट चुका था. लेकिन इन दोनों बहादुरों का संचार वयवस्था काम कर रहा था. तभी निर्मलजीत की आवाज़ घुम्मन को सुनाई पड़ी.
“मैं दो सबर जेट जहाजों के पीछे हूँ….मैं उन्हें जाने नहीं दूंगा ….” इस संदेश के कुछ देर बाद ही निर्मलजीत ने पाकिस्तान के एक विमान को मार गिराया, जिसके बाद उन्होंने दोबारा अपना संदेश दिया: "मैं मुकाबले पर हूँ और मुझे मज़ा आ रहा है मेरे इर्द-गिर्द दुश्मन के दो सबर जेट हैं. मैं एक अब एक का ही पीछा कर रहा हूँ, दूसरा मेरे साथ-साथ चल रहा है."
इस संदेश को सुनते ही घुम्मन अपने साथी की मदद के लिए जाना चाहते थे, मगर वो मजबूर थे क्योंकि वो भी दूसरे विमान को मारने की फ़िराक में थे. इसके कुछ देर बाद हवा में एक और धमाके की गूंज सुनाई दी.
मगर यह गूंज फिर से दुश्मन पाकिस्तान के सेबर जेट विमान की थी.
निर्मलजीत ने बड़ी बहादुरी के साथ अपने जी विमान से विरोधियों के दो विमान मार गिराए थे और इसका वो भरपूर जोश के साथ आनंद ले रहे थे. अब उनके सामने उनके बराबरी में चलने वाला सेबर जेट विमान टारगेट पर था.
उन्होंने अपने विमान को उसके पीछे लिया और उसको भी मार गिराया.
निर्मलजीत भी दुश्मन के निशानों पर थे, फिर...
निर्मलजीत बड़ी साहस के साथ दुश्मनों के साथ युद्ध कर रहे थे और उन्होंने पाकिस्तान के तीन विमानों को ध्वस्त कर दिया था, मगर कुछ देर बाद भारतीय वायु सेना के इस बहादुर ऑफिसर का एक आखिरी संदेश अपने दोस्त को सुनाई पड़ता है:
“शायद मेरा नेट विमान निशाने पर आ गया है...जी-मैंन (घुम्मन) अब तुम मोर्चा संभालो.”
यह निर्मलजीत का आखिरी संदेश देना ही था कि दुश्मन विमान ने इन पर हमला कर दिया, जिसके बाद इनका कंट्रोल खो गया.
फिर इनका विमान तेजी से जमीन की ओर गिरने लगा. निर्मलजीत अपने विमान से बाहर निकलने की कोशिश की, मगर इजेक्शन सिस्टम लॉक हो गया था. जिसकी वजह से वो विमान से निकल पाने में असमर्थ रहे.
फिर उनका विमान बडगाम के पास क्रैश हो गया और निर्मलजीत सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए.
मिला परमवीर चक्र
निर्मलजीत ने बड़ी बहादुरी और साहस के साथ लड़ते हुए देश के लिए बलिदान दे दिए. उनके शहीद होने के बाद उनकी नई नवेली दुल्हन उनकी विधवा हो चुकी थी.
हालांकि इनकी शहादत के बाद देश के इस वीर सिपाही को परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया, जिसमें इनकी विधवा पत्नी और और लेफ्टिनेंट पिता मौजूद थे. दोनों को एक तरफ जहां निर्मलजीत को खोने का दुःख था.
वहीं दूसरी तरफ उनकी शहादत पर गर्व.
इस तरह देश के लिए अपनी जान का बलिदान देने वाले भारत का यह सिपाही परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाला पहला वायु सैनिक बना. अंततः इनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया.
इस युद्ध में पाकिस्तान को भारत के सामने घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा था.
भाई सेखों जैसे जाबाज़ सिपाही हर रोज़ पैदा नहीं होते, इसीलिए हमको भारत के सभी वीर सैनिकों को याद किया जाना चाहिए.
तो ये थी बहादुर वायु सैनिक निर्मलजीत सिंह सेखों के साहस के कुछ महत्वपूर्ण अंश.
Web Title: Param Vir Chakra Nirmailjeet Singh Sekhon, Hindi Article
Feature Image Credit: BaruSahib