1947 से पहले भारत में 500 से अधिक छोटी-बड़ी रियासतें शामिल थीं. इनमें से कुछ पर राजा, महाराजा, नवाब, खान या निजाम जैसी पदवी रखने वाले शासकों का अधिकार था, तो कुछ पर ब्रिटिश सरकार का.
सिंध, दिल्ली, अवध, रुहेलखण्ड, बंगाल, मैसूर, हैदराबाद, भोपाल, जूनागढ़ और सूरत की रियासतों में मुस्लिम शासकों की धमक थी, तो पंजाब, सरहिंद जैसे अधिकांश हिस्सों में सिखों का डंका बजता था.
इसी कड़ी में असम, मणिपुर, कछार, त्रिपुरा, जयंतिया, तंजोर, कुर्ग, त्रावणकोर, सतारा, कोल्हापुर, नागपुर, मध्य भारत और हिमाचल के राज्यों में हिंदू शासकों का बोलबाला था.
वह बात और है कि आजादी के बाद रियासतों के एकीकरण की नीति के तहत सरदार बल्लभभाई पटेल ने सबको एक करके अखण्ड भारत की ओर मजबूत कदम उठाया था.
तो आईये आज बात करते हैं ऐसी ही कुछ बड़ी रियासतों के बारे में जो ब्रिटिश भारत में तो स्वतंत्र रहीं, लेकिन बाद में सरदार पटेल की कोशिशों के चलते अखण्ड भारत का हिस्सा बनीं–
जम्मू-कश्मीर
जम्मू कश्मीर रियासत ब्रिटिश भारत की सबसे बड़ी रियासत थी, जो मुस्लिम बहुसंख्यक थी. हालांकि, वहां के महाराजा एक हिन्दू थे. इसके पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में चीन का जिनजियांग प्रांत, पूर्व में तिब्बत और उत्तर पश्चिम में अफगानी जमीन थी. इस रियासत के राज हमेशा से स्वतंत्र रहना चाहते थे, किन्तु 1947 के बाद सारा माहौल बदल चुका था.
पाकिस्तान की नज़रें उस पर लगी हुई थीं. इसके लिए वह राजा हरि सिंह पर लगातार दबाब बनाने की कोशिश कर रहा था. 12 अगस्त को पाकिस्तान ने महाराजा के विराम समझौते पर हस्ताक्षर करके डाक और तार सेवाएं अपने नियंत्रण में ले लीं. जबकि, भारत ने इस समझौते पर हस्ताक्षर से इंकार कर दिया.
दूसरी तरफ महाराजा हरिसिंह का जम्मू कश्मीर को सम्मिलित या स्वतंत्र रखने को लेकर अपने निर्णय को स्पष्ट नहीं कर रहे थे. इस कारण पाकिस्तान को इस बात का डर था कि कहीं हरि सिंह भारत से नाता न जोड़ लें. इसके चलते उसने योजना के तहत एक बड़ी संख्या में कबाइलियों के जत्थे को राजा हरिसिंह की रियासत में भेज दिया.
अचानक हुए इस हमले की स्थिति में महाराजा ने भारत से सैन्य मदद की दरख्वास्त के साथ भारत में मिलने के समझौते पर दस्तखत कर दिए और भारत में अपना विलय कर दिया.
इसी के आधार पर जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना!
Maharajah Ranbir Singh of Jammu and Kashmir (Pic: Wikipedia)
हैदराबाद
हैदराबाद भारत की दूसरी बड़ी रियासत थी, जिसकी जनसंख्या में 85 प्रतिशत हिंदू आबादी थी. हैदराबाद का निजाम मीर उस्मान अली खान एक बूढ़ा और सनकी तानाशाह था. भारत की स्वतंत्रता के बाद उसने हैदराबाद के स्वतंत्र रहने का ऐलान कर दिया.
हालांकि, निजाम पाकिस्तान की ओर झुकाव रखता था. उसने अपना एक प्रतिनिधि पाकिस्तान में तैनात कर रखा था.दूसरी तरफ उसने हैदराबाद में रहने वाले हिंदुओं पर जुल्म ढाना शुरू कर दिया. नतीजा यह रहा कि हिंदुओं के खिलाफ दंगे भड़काए गए.
ट्रेनों में यात्रा करने वाले हिंदुओं से लूट और उनकी हत्या की जाने लगी. देखते ही देखते हैदराबाद भयानक हिंसा की चपेट में आ गया. ऐसे में स्थिति पर नियंत्रण के लिए भारत सरकार ने सेना को हैदराबाद की ओर कूच करने का आदेश दे दिया.
हैदराबाद पर कब्जा करने के लिए मेजर जनरल जे.एन.चौधरी अपनी इंफैंटी के साथ रवाना हो गए. धीरे-धीरे सेना की अन्य टुकड़ियों ने विजयवाड़ा और अन्य दिशाओं से हैदराबाद को घेर लिया. 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद स्टेट फोर्स ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और इस तरह हैदराबाद भी भारत में शामिल हो गया.
त्रावणकोर
दक्षिणी भारत में समुद्री राज्य त्रावणकोर रियासत ने सबसे पहले भारतीय संघ में शामिल होने से इंकार किया था. यहां तक कि उसने देश में जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस पर भी सवाल उठाए थे. वह उनकी नीतियों से सहमत नहीं थे.
यह रियासत रणनीतिक रूप से समुद्री व्यापार और खनिज संसाधनों के लिए बहुत समृद्ध मानी जाती थी. 1946 में त्रावणकोर के दीवान सर सी. पी. रामामस्वामी अय्यर ने त्रावणकोर को स्वतंत्र राज्य बनाने की अपनी मंशा जाहिर कर दी.
हालांकि, बात में समीकरण कुछ ऐसे बने कि उन्होंने सरदार पटेल की बात मानते हुए अपनी रियासत को अखण्ड भारत का हिस्सा बनाते हुए उसका विलय कर दिया.
Sir C. P. Ramamswamy Aiyar (Pic: thehindu)
राजपूताना
ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत की आजादी की घोषणा के साथ राजपूताना रियासतों के मुखिया स्वतंत्र राज्य बनाने की होड़ में लग गए. उस समय राजस्थान में कुल 22 देशी रियासतें थीं. इनमें अजमेर मेरवाड़ा प्रांत को छोड़कर शेष सभी रियासतों पर देशी राजा-महाराजाओं का ही राज था. हालांकि, 1947 के बाद इनको एकत्र करके राजस्थान नाम से जाना जाने लगा.
18 मार्च 1948 को शुरू हुई राजस्थान एकीकरण की प्रक्रिया नवंबर 1956 को सात चरणों में पूरी की जा सकी. बीकानेर के महाराजा उन राजाओं में से एक थे, जो सबसे पहले सरदार पटेल के पक्ष में आए.
बीकानेर के अलावा बड़ौदा और राजस्थान के कुछ अन्य राज्य सबसे पहले भारतीय संघ में शामिल हुए थे. वहीं रामपुर और पालनपुर के मुस्लिम नवाब ऐसे शासक थे, जिन्होंने बिना देरी और संकोच किए भारत में मिलने की घोषणा कर दी.
भोपाल
भोपाल एक ऐसी रियासत थी, जो सबसे बाद में भारतीय गणतंत्र में शामिल की जा सकी. 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद भोपाल ने अपनी रियासत को स्वतंत्र घोषित कर दिया. किन्तु, बाद में राज्यों की एककीकरण की नीति के चलते मई 1949 को भोपाल के नवाब ने भारत में शामिल होना स्वीकार कर लिया.
कहते हैं कि विलय के बाद भोपाल के नवाब ने सरदार पटेल को पत्र लिखते हुए कहा कि अब जब मैंने हार मान ली है, तो मुझे उम्मीद है कि आप मुझे उतना ही पक्का मित्र पाएंगे जितना पक्का मैं आपका विरोधी था.
Sardar Vallabhbhai Patel (Pic: Old Indian)
ये ब्रिटिश भारत की स्वतंत्र रियासतों के कुछ एक नाम हैं, जो बाद में अखण्ड भारत का हिस्सा बनीं. ऐसी कई और रियासतें रहीं, जिन्हें बल्लभ भाई पटेल ने एकीकरण के सूत्र में बांधकर भारत को अखण्ड बनाने का काम किया. उनके इस कार्य की जितनी सराहना की जाए, वह कम ही होगी.
रियासतों के एकीकरण पर आप का क्या कहना है, कमेन्ट-बॉक्स में बताएं!
Web Title: Princely states of British India, Hindi Article