अकबर के नवरत्नों में से एक राजा मान सिंह का भी नाम शामिल है. ये अपनी बुद्धिमत्ता और सैन्य कुशलता के कारण अकबर के काफी करीबी रहे. इनके कार्यों से खुश होकर अकबर इन्हें फरजंद और कभी ‘राजा मिर्जा’ कहकर पुकारते थे.
मान सिंह अकबर के सेनापति के रूप में कई ऐतिहासिक युद्ध लड़े, जिसके लिए इतिहास में काफी मशहूर भी हुए.
पर क्या आप जानते हैं कि वह मान सिंह ही थे, जिन्होंने अकबर के रत्न रहे बीरबल की मौत का बदला लिया था.
तो आईए मान सिंह को जरा नजदीक से जानने की कोशिश करते हैं-
विरासत में मिला था साहस और पराक्रम
राजा मान सिंह का जन्म 1540 में हुआ था, जो आमेर (अम्बर) के राजा थे. इनके पिता का नाम राजा भगवानदास था. वहीं भगवानदास जिन्होंने गुजरात युद्ध के समय अकबर का साथ दिया था. यही नहीं उन्होंने कई युद्धों में अकबर की मदद की.
इस लिहाज से कहा जा सकता है कि राजा मान सिंह को पराक्रम और साहस विरासत में मिला था.
आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि राजा मान सिंह महाराणा प्रताप जैसे सूरमा से लोहा लेने से पीछे नहीं हटे. एक मत के अनुसार एक बार जब वह युद्ध से वापस आ रहे थे, तभी उन्होंने महाराणा प्रताप से मिलने की इच्छा जताई.
मान सिंह का पैगाम पाते ही महाराणा प्रताप उनसे मिलने के लिए राजी हो गए. जैसे ही मान सिंह उनके दरबार पहुंचे, तो उनका जोरदार स्वागत किया गया. अगली कड़ी में रात के वक्त खाने का भी इंतेज़ाम किया गया.
मान सिंह खाने के लिए बैठे तो महाराणा ने अपने पुत्र को इनके साथ खाने के लिए भेज दिया. चूंकि, वह खुद नहीं आए थे, इसलिए मान सिंह ने इसे अपना अपमान समझा. जबकि, महाराणा ने भोज में शामिल न हो पाने का वाजिब कारण भी बताया था. उन्होंने बताया था कि उनके सिर में दर्द था, इसलिए वह भोज में नहीं आ सके.
महाराणा प्रताप जैसे सूरमा से ली टक्कर!
इतिहासकारों की मानें आगे चलकर 1576 में राणा का यह व्यवहार हल्दी घाटी युद्ध का सबब बना. इस युद्ध में अकबर ने अपने बेटे सलीम (जहांगीर) को मुग़ल सेना का नेतृत्व सौंपा था.
इसमें राजा मान सिंह और महावत खां के साथ एक बड़ी मुग़ल सेना महाराणा प्रताप से युद्ध करने पहुंची थी. इस युद्ध में मुग़ल सेना के आगे महाराणा प्रताप की सेना बहुत कम थी.
खैर, इस भयानक युद्ध से महाराणा प्रताप बच निकलने में कामयाब रहे थे, मगर उनका घोड़ा ‘चेतक’ शहीद हो गया था.
हल्दी घाटी युद्ध के बाद मुग़ल सेना को उस प्रान्त को लूटने का फरमान जारी किया गया. मगर राजा मान सिंह ने ऐसा करने से इंकार कर दिया था. उनके इस फैसले के बाद कुछ दिनों तक मुग़ल दरबार से इनकी दूरियां भी रहीं...
...और लिया बीरबल की मौत का बदला!
जब राजा मान सिंह के पिता को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया गया, तब इन्हें सीमांत प्रान्त का कार्यभार सौंपा गया था. इसी दौरान अकबर के भाई मिर्जा मुहम्मद हकीम की मृत्यु हो गई. ऐसे में राजा मान सिंह को काबुल भेजा गया.
यह वह दौर था, जब अफगान में कुछ सरदारों ने लूटमार मचा रखी थी. लोगों में उनको लेकर खौफ था. ऐसे में राजा मान सिंह बड़ी बहादुरी से उन लुटेरों को खदेड़ने में कामयाब रहे और जनता को लूटपाट से निजात दिलवाई.
इन्हीं लुटेरों में से एक युसुफजई कबीला भी था, जिससे युद्ध के दौरान अकबर के प्रिय राजा बीरबल की भी दर्दनाक मौत हो गई. इस कारण जैन खां कोका और अब्दुल फतह को वापस बुला लिया गया.
ऐसे में इस कार्य को भी पूरा करने के लिए राजा मान सिंह को चुना गया. माना जाता है कि मान सिंह ने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और युसुफजई कबीले के सरदार को मारकर ‘राजा बीरबल’ की मौत का बदला ले लिया.
मुग़ल सम्राज्य का किया विस्तार
आगे अकबर ने इन्हें काबुल का शासक नियुक्त किया. फिर उनको बिहार में कछवाहों की जांगीर सौंपी गई. इसके दम पर पूर्णमल कंधोरिया पर आक्रमण कर दिया. साथ ही वहां के कई स्थानों पर अपना कब्ज़ा जमा लिया.
इसके बाद ही उन्हें पांच हज़ारी मनसब मिला और साथ ही ‘राजा’ के पद से भी नवाजा गया था.
आगे, मान सिंह ने पटना की ओर रुख किया और वहां की सत्ता को अपने अधीन कर लिया. उनका विजयी अभियान यहीं नहीं रूका. उन्होंने झारखण्ड के रास्ते उड़ीसा पर भी हमला करते हुए कब्ज़ा जमा लिया था.
इस दौरान राजा मान सिंह ने कई छोटे छोटे राज्यों को हराकर मुग़ल सम्राज्य में मिला लिया था. ऐसे में इनके कार्यों से खुश होकर अकबर ने इन्हें 7 हज़ारी मनसब अता किया, जो इनकी वफादारी और साहस का इनाम था.
अकबर की मृत्यु के बाद बदल गई जिंदगी
ऐसी मान्यता है कि जब तक बादशाह अकबर जिंदा रहे, तब तक राजा मान सिंह के सितारे बुलंद रहे! जबकि, उनकी मौत के बाद उनके सितारे कमजोर होने लगे. अकबर का बेटा जहांगीर उन्हें पंसद नहीं करता था.
असल में उसके पिता अकबर बीमार पड़े तो उसने बगावत करते हुए उनके नवरत्न अबुल फज़ल की हत्या करवा दी थी. ऐसी स्थिति में अकबर ने खुसरो को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहा.
अब चूंकि, अकबर के इस फैसले का समर्थन राजा मानसिंह ने भी किया था, इसलिए जहांगीर की उनसे नाराजगी लाजमी थी. आगे, जब अकबर की मृत्यु हुई और जहांगीर मुग़ल दरबार का बादशाह बना, तो उसने राजा मान सिंह को बगावत के डर से बंगाल की तरफ भेज दिया था. वह जानता था कि राजा मान सिंह के पास बड़ी संख्या में बहादुर राजपूत सैनिक का साथ है!
खैर, अगले कुछ दिनों बाद ही 1614 में राजा मानसिंह ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.
दिलचस्प यह है कि राजा मानसिंह के पास 15,000 रानियां थीं. सभी रानियों से दो से तीन बच्चे भी हुए, मगर इनके सभी बच्चे इनकी जिंदगी में ही मर गए. उनमें से सिर्फ झाऊ सिंह ही उनके निधन के बाद बचे थे!
तो ये थे बीरबल की मौत का बदला लेने वाले अकबर के 'रत्न' राजा मान सिंह के जीवन से जुड़े कुछ पल.
अगर आपके पास भी इनसे जुड़ी कोई और जानकारी है तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताना न भूलें.
Web Title: Raja Mansingh Was One of The Navratanas of Akbar, Hindi Article
Feature Image Credit: Life