रजनी तिलक एक एक्टिविस्ट थी, जो एक लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी मशहूर हुईं. इन्होंने खास तौर से महिलाओं के उत्थान के लिए बेहतर कार्य किया था.
ये अपनी कविताओं के माध्यम से भी महिलाओं के अधिकारों की वकालत किया करती थीं. वहीं ज़मीनी स्तर पर भी महिलाओं और युवाओं के बेहतर व्यवस्था के लिए हमेशा लड़ती रहीं.
ऐसे में इस क्रांतिकारी और सामाजिक महिला की जिंदगी से रूबरू होना दिलचस्प होगा-
आईटीआई के दौरान हुईं सक्रिय
रजनी तिलक का जन्म 27 मई 1958 को दिल्ली में हुआ था. इनके पिता एक दर्जी थे. इनके परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी. इनके पूर्वज काम की तलाश में दिल्ली आये थे, फिर यहीं के होकर रह गए.
पिता ने इनको बेहतर शिक्षा देने की भरपूर कोशिश की, मगर 1975 में उच्च माध्यमिक शिक्षा हासिल करने के बाद आर्थिक तंगी इनकी पढ़ाई की रुकावट बनी. फिर वह सिलाई, कढ़ाई और स्टेनोग्राफी जैसे कामों को सीखने लगी.
आगे की पढ़ाई पूरी न होने की वजह से रजनी को काफी दुःख हुआ था, जिसका बाद में इन्होंने ज़िक्र भी किया था.
मगर पिता के बस में जितना था. उन्होंने इनको पढ़ाया. रजनी घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए परिवार की मदद करने का फैसला किया. फिर अपनी कुशलता के अनुसार इन्होंने भाई-बहनों के देखभाल का भी बीड़ा उठा लिया.
फिलहाल, आईटीआई के दौरान जब रजनी ने अन्य समान विचारधारा वाली महिलाओं और दोस्तों के संपर्क में आईं. तभी से सामाजिक कार्यों में उनकी सक्रियता शुरू हो चुकी थी.
महिलाओं के लिए उठाई आवाज़!
इन्होंने उन महिलाओं के साथ मिलकर लड़कियों के खिलाफ होने वाले भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया था. खास तौर पर इन्होंने समाज से वंचित छात्रों की छात्रवृत्ति और सुरक्षा आदि मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित किया. रजनी ने अपनी सशक्त आवाज़ से सार्वजनिक मंचों पर महिलाओं का मुद्दा बखूबी उठाया.
एक बार इन्होंने विश्वविद्यालय के कैम्पस में महिलाओं के साथ होने वाले भेद भाव के खिलाफ एक पत्रिका को ज्ञापन सौंपा था. इस ज्ञापन में इन्होंने पुलिस पर भी लापरवाही का आरोप लगाया था.
रजनी इस मुद्दे में महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों को बड़ी निडरता के साथ उजागर किया. उस दौरान इन्होंने कहा कि, विश्विद्यालयों में विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाली महिलाएं अभी भी संघर्ष कर रहीं हैं. आगे, रजनी ने अपने संगठन को प्रगतिशील ‘छात्र संघ’ के साथ विलय कर दिया.
फिर इन्होंने विचारात्मक और राजनितिक मतभेदों के आधार पर छात्र संघ के साथ काम करने लगीं.
एक तरफ जहां रजनी छात्र आंदोलनों के नाम पर राजनीतिक दलों को मजबूत कर रहीं थी और छात्रों की जातिवाद जैसे मूलभूत मुद्दों को हल करने का कार्य गंभीरता से ले रहीं थी. वहीं दूसरी तरफ जाति आंदोलन का भी बिगुल बजा चुकी थीं.
इस दौरान रजनी ने अम्बेडकर व चन्द्रिका प्रसाद जैसे विचारकों को पढ़ना भी शुरू कर दिया था. इन्होंने जातिवाद पर मजबूत पकड़ बनाने के बाद इसको राजनीति की ओर पोषित करना शुरू कर दिया.
आगे, इन्होंने सिर्फ दलित मुद्दों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया और पाया कि, किस तरह पितृसत्ता इनकी समस्याओं को अनदेखा कर रहा है.
कई संगठनों के साथ मिलकर किया आंदोलन !
रजनी ने दिल्ली में भारतीय दलित पैंथर्स के नाम से एक संगठन स्थापित किया. इन्होंने आह्वान थियेटर नामक एक समूह और युवा अध्ययन मंडल की स्थापना करके छात्रों की जागरूकता को बढ़ाने का भी बीड़ा उठाया.
इसी दौरान रजनी ने आंगनबाड़ी श्रमिकों के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर एक संघ का गठन किया. इस संघ के अंतर्गत वेतन के मुद्दों को लेकर एक बड़ी सभा का आयोजन भी किया, जिसमें लगभग 40 हजार आगनबाड़ी महिलाओं को एक साथ इकठ्ठा किया गया था.
रजनी ‘नेशनल फेडरशन फॉर दलित वीमेन’, नेकडोर और 'वर्ल्ड डिगनिटी फोरम' के साथ भी जुड़ीं रहीं. वहीं सेंटर फॉर अल्टरनेटिव दलित मिडिया की कार्यकारी निदेशक भी थीं. इनका मानना था, कि पहले दलित आंदोलन का उद्देश्य ब्राह्मणवाद, पूंजीवाद, और पितृपक्ष से लड़ना था.
मगर, अब दलित आंदोलन का मतलब रोजगार, शिक्षा और मूलभूत समस्याओं से सम्बंधित मुद्दों को उठाना है.
अगर, इनके नारीवादी आंदोलनों की बात करें, तो इनकी शुरुआत तब हुई, जब 1972 में इनके एक सहकर्मी के साथ मथुरा में बलात्कार हुआ था. इस घटना ने इनको झकझोर कर रख दिया. जिसके बाद इन्होंने दिल्ली में एक बड़ा आंदोलन किया था. उस आंदोलन में इनकी मुलाकात साहेली नामक एक क्रांतिकारी महिला से हुई थी.
कलम को भी बनाया हथियार
फिर साहेली भी रजनी के साथ कंधा से कंधा मिलाकर संघर्ष करने लगी थी. रजनी ने अपने एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि, साहेली के साथ कार्य करते वक़्त मैंने इनसे बहुत कुछ सीखा. उन्होंने इस दौरान पाया कि मुख्यधारा नारीवादी आंदोलनों में सावित्रीबाई फुले, अम्बेडकर और ज्योतिबा फुले जैसे आदर्शों की कमी है.
खैर, रजनी बड़ी साहस के साथ महिलाओं की आवाज़ से आवाज़ टकराती रहीं, फिर चाहे वो आंदोलनों में हिस्सा लेकर या फिर अपनी लेखनी के माध्यम से ही सही.
रजनी एक शानदार लेखक थी. इन्होंने कविता के दो संग्रह लिखी थीं. पहला ‘पदचाप’ और दूसरा ‘हवा सी बेचैन युवतियां’, जो काफी पसंद की गई. इन्होंने समकालीन दलित महिला लेखन और सावित्रीबाई फुले की रचनाओं का अनुवाद भी किया था, जिसकी लगभग 10 हजार प्रतियां पेश की गई थीं.
रजनी तिलक ने 10 मार्च फुले की मृत्यू दिवस को ‘महिला दिवस’ के रूप में मनाया था. वहीं इनकी यौमे पैदाइश (जन्मदिन) के मौके पर ‘शिक्षा दिवस’ के रूप में ख़ुशियाँ मनाई थीं.
इन्होंने अपने अथक प्रयास से दलित आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहीं. रजनी खासियत ये थी कि, ये किसी दूसरे के द्वारा आयोजित किये गए आंदोलनों में भी बड़ी सक्रिय भूमिका निभाती थीं.
जब, दुनिया को कहा अलविदा
इन्होंने अपने निजी लाभ के लिए कभी कार्य नहीं किया. हमेशा सामाजिक कार्यों के उद्देश्य के साथ अपना जीवन यापन करती रहीं. रजनी तिलक अपने नारीवादी आंदोलनों से लाखों महिलाओं की मसीहा बन चुकी थी. मगर वह अब उम्र के आखिरी पड़ाव में पहुँच चुकीं थीं. तब बीमारी ने इनको जकड़ना शुरू कर दिया.
आगे, बीमारी ने गंभीर रूप ले लिया, जिसके बाद हमेशा आवाज़ से आवाज़ टकराने वाली रजनी की आवाज़ हमेशा के लिए शांत हो गई. 30 मार्च 2018 को रजनी तिलक ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया...
इस तरह दलितों आंदोलन की सशक्त महिला का अंत हो गया.
बहरहाल, रजनी तिलक ने महिलाओं के उत्थान के साथ ही अन्य सामाजिक कार्यों में अपना योगदान देती रहीं.
यही कारण है कि आज भी अपने कार्यों के लिए वह याद की जाती हैं!
Web Title: Rajini Tilak a Great Socialist, Hindi Article
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