रानी अब्बक्का चौटा!
एक ऐसी रानी जिन्हें भारत के इतिहास में पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर भी याद किया जाता है. उनके अदम्य साहस और निर्भीकता ने उनका नाम सदा के लिए भारत के इतिहास में दर्ज कर दिया है.
उन्होंने न सिर्फ पुर्तगालियों से मुकाबला किया बल्कि दो बार लगातार उन्हें करारी शिकस्त भी दी. ऐसे में, उनकी वीरता की कहानी को जानना दिलचस्प रहेगा.
आइये, जानते हैं उल्लाल की रानी अब्बक्का चौटा की बहादुरी की कहानी-
बचपन से ही प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था
बचपन से ही रानी अब्बक्का चौटा ने प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था. उन्हें एक अच्छा शासक बनने के लिए प्रशिक्षित किया गया. उन्होंने तलवार चलाना, तीरंदाजी, सैन्य रणनीतियों, कूटनीति और अन्य विषयों पर शिक्षा प्राप्त की.
उन्होंने उस हर विषय पर कुशलता हासिल की, जो राज्य चलाने के लिए आवश्यक था. रानी चौटा जैन धर्म की थीं. इसके बावजूद, आगे चलकर उन्होंने एक ऐसे राज्य पर शासन किया जिसमें मुख्य रूप से हिंदु और मुस्लिम शामिल थे.
उनकी सेना की विविधता की कोई सीमा नहीं थी. उनके राज्य के मोगावेरा मुस्लिम मछुआरे उनके लिए बहुत कीमती साबित हुआ. समाज के इस वर्ग के पुरुष उनके लिए एक बेहद मजबूत संपत्ति थे.
आगे चलकर इन्होंने पुर्तगालियों के साथ नौसेना की लड़ाई में काफी मदद की.
उल्लाल की रानी के रूप में ताजपोशी
1498 में, वास्को डी गामा की लंबी समुद्री यात्रा के बाद कालीकट पहुंचे. इस प्रकार, उन्होंने भारत आने का समुद्री रास्ता ढूंढ लिया. इसके साथ ही, वो ऐसा करने वाले पहले यूरोपियन बन गए.
पुर्तगालियों ने वास्को डी गामा की सहायता से भारत के लिए एक नया व्यापार मार्ग खोज लिया था. पुर्तगालियों ने बीस वर्षों के अंदर ही हिंद महासागर पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया.
यूरोपीय उपनिवेशवाद अपने चरम पर था. पुर्तगालियों ने पांच साल बाद कोचीन में अपना पहला किला बनाया. इस दौरान, उन्होंने कई और किलों की स्थापना भी की. भारतीय महासागर जिसमें भारत, इंडोनेशिया, श्रीलंका और चीन भी शामिल थे.
वहीं दूसरी ओर, रानी अब्बक्का का छोटा साम्राज्य भारत के पश्चिमी तटीय क्षेत्र में स्थित था. गोवा पर कब्जा करने के बाद इस क्षेत्र ने पुर्तगालियों का ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने मंगलौर तटीय रेखा के साथ विभिन्न बंदरगाहों की स्थापना की.
उल्लाल एक उपजाऊ क्षेत्र था. मसालों और वस्त्रों के निर्यात के लिए एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था. जो रानी अब्बक्का चौटा के नेतृत्व में बढ़ रहा था.
‘उल्लाल’ चौटा राजा थिरुमाला राय तृतीय की राजधानी थी. विजयनगर साम्राज्य के चौटा जैन राजा थे, जो मूल रूप से 12 वीं शताब्दी में गुजरात से तुलु नाडू (वर्तमान में कर्नाटक के दक्षिणी कन्नड़ जिले) आये थे.
चूंकि चौटा एक मैट्रिलिनल राजवंश था. लिहाज़ा, राजा की उत्तराधिकारी उनकी युवा भतीजी अब्बक्का थी. ऐसे में, अब्बक्का को उल्लाल की रानी का ताज पहनाया गया.
वह समुद्र तट पर पुर्तगाली उपस्थिति के उत्पन्न खतरे से जागरूक थी. रानी का विवाह मैंगलोर के शासक लक्ष्मण बंगाराजा के साथ हुआ. उल्लाल के शासक के तौर पर रानी अब्बक्का शादी के बाद भी अपने घर में रहती रहीं.
उनके तीन बच्चे भी उनके साथ ही रहते थे. हालांकि, जब बंगाराजा ने पुर्तगालियों के साथ समझौता किया तो विवाह टूट गया.
पुर्तगालियों के मंसूबों पर पानी फेरा
रानी के नेतृत्व में उल्लाल का व्यापार बहुत बाधा था. पुर्तगालियों की नजर अब उल्लाल पर थी. उन्होंने उल्लाल पर व्यापार कर लगा दिया. रानी ने इसे मानने से इनकार कर दिया. पुर्तगाली धमकी देकर भी उनसे कर नहीं वसूल पाए.
रानी ने उनकी अनुचित मांगों को मानने से इंकार कर दिया. उन्होंने अरब देशों से अपना व्यापार जारी रखा. इसके बावजूद कि पुर्तगालियों ने व्यापार वाली जहाजों पर हमला किया.
इसके बावजूद रानी ने बिलकुल भी हार नहीं मानी. लिहाज़ा, 1556 में पहली लड़ाई हुई. पुर्तगाली जहाज को एडमिरल डॉन अल्वारो डी सिल्विरा के नेतृत्व में लाया गया. उनकी ये पहली कोशिश नाकाम रही.
उन्हें लगा था कि लगभग 30 वर्षीय रानी को वो आसानी से हरा देंगे. रानी ने उनके इन मंसूबों पर पानी फेर दिया. इसके बाद भी कई कोशिशें हुई जिसमे पुर्तगाली नाकाम रहे.
इसके बाद दो साल बाद, पुर्तगालियों ने एक बड़ी ताकत के साथ हमला किया. इस हमले में लगा कि उल्लाल पर शायद वो कब्जा कर लें.
रानी अब्बक्का की कुशल युद्ध रणनीति और राजनयिक रणनीति ने उन्हें एक बार फिर से पीछे ढकेल दिया. उन्हें इस युद्ध में अरब मूर और कोझिकोड के ज़मोरिन के सहयोग मिला था.
अगली लड़ाई के दौरान, जनरल जोआओ पिक्सोटो की कमांड में पुर्तगाली सेना ने उल्लाल पर हमला किया. इस बार वह शाही महल पर कब्जा जमाने में कामयाब रहे. इस दौरान रानी अब्बक्का को वो फिर भी नहीं पकड़ पाए.
...और पति ने कभी नहीं दिया साथ
अपने 200 वफादार सैनिकों के साथ, उन्होंने रात में पुर्तगालियों के कैंप पर छापा मारा. उन्होंने जनरल समेत उसके 70 सैनिकों को मार गिराया. रानी के इस हमले से डरकर शेष पुर्तगाली सैनिक अपने जहाजों में भाग गए
अब पुर्तगाल रानी अब्बक्का की बढ़ती प्रतिष्ठा से चिंतित हो गया. जब वह लगातार हमले करने के बावजूद जीत हासिल नहीं कर पा रहे थे. इस बार उन्होंने विश्वासघात का सहारा लिया.
पुर्तगालियों ने रानी के खिलाफ कई अध्यादेश पारित किए. जिनके मुताबिक उनके साथ किया हुआ हर गठबंधन गैर-कानूनी था. इसके अलावा, रानी के इस युद्ध में हारने की एक बड़ी वजह थे उनके पति. उन्होंने उनका साथ कभी नहीं दिया.
पुर्तगालियों ने उन्हें ये कहकर धमकी दी कि अगर उनकी मदद उनके पति बंगाराजा ने की. ऐसे में, वो उनकी राजधानी जलाकर खाक कर देंगे. इस धमकी के डर से डरकर वो चुप बैठे रह गए.
फिर भी, रानी अब्बक्का युद्ध के मैदान पर डटी रहीं. इस बार उल्लाल पर हमला करने के लिए एंथनी डी 'नोरोन्हा (गोवा के पुर्तगाली वाइसराय) को भेजा गया.
घायल रानी को पुर्तगालियों ने कैद किया
1851 में, युद्धपोतों के एक आर्मडा द्वारा समर्थित 3000 पुर्तगाली सैनिकों ने उल्लाल पर अचानक हमला किया.
उस समय रानी अब्बक्का अपने परिवार के मंदिर की यात्रा से लौट रही थीं. उन्हें गार्ड्स ने पकड़ा लिया. बावजूद इसके वो तुरंत अपने घोड़े चढ़ी और युद्ध में अपनी सेना का नेतृत्व किया.
उस रात पुर्तगाली आर्मडा में कई जहाजों को जला दिये गए. रानी क्रॉसफायर में घायल हो गयी थीं. कुछ रिश्वतखोर सरदारों की वजह से उन्हें बंधक बना लिया गया. वह अपने आखिरी समय तक लड़ती रहीं.
पुर्तगालियों ने उन्हें कैद कर दिया और निडर रानी ने वहीँ आखिरी बार कैद में सांस ली. बाद में, उन्हीं की तरह उनकी बहादुर बेटियों ने पुर्तगालियों से तुलु नाडू की रक्षा जारी रखी.
बताते चलें, 2003 में भारतीय पोस्ट ने रानी अब्बक्का को समर्पित एक विशेष डाक टिकट जारी किया था.
Web Title: Rani Abbakka Chowta: Queen Who Almost Defeated Portugals, Hindi Article
Feature Image Credit: vagabomb