‘गुरुवार, मार्च 29.
“मैं ग्यारह दिन से अपने टेंट में फंसा हूं. बाहर निकलने की कोशिश करता हूं पर निकल नहीं पा रहा हूं. मैं जानता हूं कि मेरी सारी उम्मीदें ख़त्म हो चुकी हैं. मैं अपनी ताकत भी खोता जा रहा हूं, पर मुझे लिखना ही पड़ेगा. वैसे तो यह मेरे लिए जरूरी नहीं है, लेकिन मैं लिखना चाहता हूं, ताकि लोग मेरे साथियों के साहस की कहानी को जान सकें. दुनिया को जानना चाहिए कि वह किस तरह बर्फ में रहे थे.”
चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था. हम इस वक्त के निकलने का इंतजार कर रहे थे. तभी अचानक एक बर्फीले तूफ़ान ने हम सबको हैरान कर दिया था. यह तूफान हमारे लिए मुसीबत लेकर आया था. इससे लड़ते-लड़ते हमारे शरीर की ताकत ख़त्म हो चुकी थी. दिमाग मानसिक दबाव से फटा जा रहा था. वहीं कभी न हार मानने वाला खोजकर्ता अपनी जिंदगी के इन आखिरी पलों को अपनी डायरी के पन्नों पर कैद करने में लगा हुआ था.
परिस्थितियां गंभीर थीं, लेकिन स्कॉट के हौंसले बुलंद थे. उसे पता था कि मौत चौखट पर है, ऐसे में जीने की इच्छा ही उसे वहां खड़ा रख सकती थी. तो आईये साहस के मिसाल साउथ पोल विजय करने वाले रॉबर्ट फाल्कन स्कॉट की कहानी को जरा नजदीक से जानने की कोशिश करते हैं:
बचपन से था ‘एडवेंचर’ का शौक
स्कॉट का जन्म 6 जुलाई, 1868 को इंग्लैंड के प्लायमाउथ में हुआ था. उसके एक चाचा नौसेना में थे, जिन्हें देखकर ही स्कॉट में एक सपना पनपा था. वह चाहता था कि एक दिन वह भी समंदर पर अपने चाचा की तरह ही घूमे. इसी सपने ने स्कॉट को ब्रिटिश नौसेना ले जाने में मदद की थी.
1895 में भूगोल शास्त्रियों की एक कांफ्रेंस में यह तय हुआ कि साउथ पोल की रिसर्च के लिए एक ऑपरेशन किया जाना चाहिए. यह कॉन्फ्रेंस ‘रॉयल जियोग्राफिक सोसाइटी’ के द्वारी की गई थी. इसमें तय किया गया कि इस मिशन की जिम्मेदारी किसी एक काबिल लीडर को दी जानी चाहिए. क्लेमेंट मार्कम जो इसके अध्यक्ष थे, उन्होंंने एक काबिल लीडर की खोज शुरू कर दी थी.
इसी बीच क्लेमेंट नौसेना के काम से वेस्ट इंडीज गया हुआ था. वहां, उसकी नज़र स्कॉट पर पड़ी. वहां उसने स्कॉट की जांबाजी के कुछ नजारे देखे और उसका कायल हो गया. मन ही मन उसने सोच लिया था कि स्कॉट ही उसके मिशन का हिस्सा होगा. उसके अंदर वह सब कुछ था, जो ‘साउथ पोल’ को छूने के लिए चाहिए था. कुछ वक्त बाद ही क्लेमेंट ने स्कॉट से मुलाकात की और उसे मिशन का लीडर बना दिया था.
मिशन ‘साउथ पोल’ स्कॉट के लिए आसान नहीं था. पूरा का पूरा साउथ पोल हर वक्त बर्फ की चादर से ढका रहता था. दूर-दूर तक जहां तक नज़र जाती थी, वहां-वहां तक बर्फ ही बर्फ दिखाई देती थी. बर्फ के अलावा यहां जानलेवा तूफान आने की पूरी संभावना रहती थी. इससे पहले कोई भी खोजी दस्ता साउथ पोल में इससे आगे नहीं गया था. अधिकतर सैलानी वहां के खतरनाक मौसम में अपनी जान गंवा चुके थे. बावजूद इसके स्कॉट के अंदर का ज़ज्बा कम नहीं हुआ था.
Robert Scott Tragic Story Of South Pole (Pic: pixabay)
सफल रहा स्कॉट का पहला मिशन
स्कॉट की साउथ पोल की रिसर्च सबसे पहले 1901 में शुरू हुई थी. इस वक्त वह मजह 32 साल के थे. उनके साथ टीम में अर्नेस्ट हेनरी, डॉ. विलसन, अल्बर्ट, लुईस के साथ कुछ अन्य होनहार खोजकर्ता थे. एक दमदार और मज़बूत जहाज़ ‘डिस्कवरी‘ इस मिशन के लिए तैयार किया गया था. यह 172 फीट लंबा और 34 फीट चौड़ा था. साथ ही यह अपने साथ 485 टन का सामान ले जा सकता था. स्कॉट की जिम्मेदारी थी कि वह यह सुनिश्चित करें कि जहाज़ पर खाने की पूर्ती हर दम रहे और जहाज़ की गति गहरे समंदर में बरकरार रहे.
पहले पड़ाव में स्कॉट का जहाज़ आइसलैंड के पास गया था. आगे इसको पूर्व की ओर बढ़ा दिया गया था. सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. तभी स्कॉट को एक बुरी खबर मिली. खाना उम्मीद से पहले ख़त्म होने लगा था. उनके पास अब कुछ कुत्ते ही बचे हुए थे. मजबूरन उन्हें वापस लौटना पड़ा था.
इसके बाद स्कॉट को इंग्लैंड वापस लौटना पड़ा था. उनका पहला मिशन खत्म हो चुका था. मिशन के दौरान साउथ पोल के काफी अंदर तक पहुंचने की खबर फैल चुकी थी. इसने उन्हें स्टार बना दिया था. वह चर्चा में आ चुके थे. यहां तक कि एक अख़बार में उनकी खबर छपी जिसका शीर्षक था, “स्कॉट के नेतृत्व में चला साउथ पोल मिशन आज तक का सबसे बेहतरीन मिशन.
Ship Sailing In Antarctica (Pic: niemanstoryboard)
पत्नी ने ‘दूसरे मिशन’ के लिए किया प्रेरित
अपनी वापसी के थोड़े समय बाद ही स्कॉट के अंदर एक बार फिर से साउथ पोल जाने का भूत सवार हो गया था. इस बार वह और भी अंदर तक जाना चाहते थे. स्कॉट की नज़र में वह अभी भी साउथ पोल को नहीं हरा पाया था. 1908 में स्कॉट ने अपनी लंबे समय से रही प्रेमिका कैथरीन से शादी कर ली थी. माना जाता है कि वह स्कॉट को हर बात पर प्रोत्साहित करती थी.
उसी साल के एक अख़बार में स्कॉट ने यह बताया कि वह एक बार फिर से साउथ पोल जा रहा है. स्कॉट ने यह भी कहा कि इंग्लैंड का नागरिक होने के नाते वह सबसे पहले वहां पर देश का झंडा लगाएगा.
अपने पिछले अनुभव से ही स्कॉट जानता था कि साउथ पोल का यह सफ़र आसान नहीं होने वाला है. इस मिशन पर उसकी मौत भी हो सकती है. इस काम के लिए बहुत सारी तैयारी की जरूरत थी. तैयारी करने के लिए स्कॉट ने नौसेना से छह महीने की छुट्टी ले ली थी. इसके बाद उसने इस मिशन के लिए पैसे भी जमा करने शुरू कर दिए थे. हर कोई स्कॉट की मदद के लिए सामने आ गया था. कहते हैं कि खुद इंग्लैंड की रानी ने यह बोला था कि स्कॉट जिस झंडे को अपने साथ ले जाएगा, वह रानी खुद अपने हाथ से बनायेंगी. स्कॉट के इस मिशन के लिए ‘टेरा नोवा’ नाम का एक खास जहाज़ भी तैयार किया गया था.
जब सारी तैयारियां पूरी हो गई तो उसके बाद जून 15, 1910 को स्कॉट के जहाज़ ने अपनी यात्रा शुरू की. हजारों की संख्या में लोग स्कॉट को विदा करने के लिए आए थे. 12 अक्टूबर को स्कॉट मेलबर्न पहुंचे. वहां आते ही उन्हें एक ख़त मिला था. उसमें लिखा था कि नॉर्वे का एक एडवेंचर प्रेमी भी साउथ पोल की तरफ बढ़ रहा है. यह पढ़ते ही स्कॉट गुस्से से भर गया था. स्कॉट को पता था कि अगर वह पहले नहीं गया, तो साउथ पोल पर इंग्लैंड नहीं बल्कि नॉर्वे का झंडा दिखाई देगा. स्कॉट ने उसी वक़्त यह सोच लिया था कि अब वह पहले से भी ज्यादा तेजी से साउथ पोल की ओर जाएगा.
‘दर्दनाक’ रहा स्कॉट का अंत
29 नवंबर को न्यूयॉर्क से साउथ पोल के लिए स्कॉट ने अपनी यात्रा शुरू कर दी थी. दुर्भाग्य से सफ़र के तीसरे ही दिन तूफ़ान शुरू हो गए थे. भारी बारिश ने खाने की सामग्री को खराब कर दिया था. स्कॉट के दो घोड़े इसी बीच अपनी जान गँवा चुके थे. जैसे ही तूफ़ान थमा स्कॉट को साउथ पोल दिखने लगा था. स्कॉट के इस सफ़र पर उसके साथ डॉ विलसन व दो और साथी थे.
वह सब खतरनाक रास्तों का सहारा लेते हुए, जानलेवा मौसम से बचते हुए आखिरकार 18 जनवरी 1912 को साउथ पोल पर अपनी मंजिल तक पहुंच चुके थे. पर नियति को कुछ और मंजूर था. अचानक उनके सामने एक ऐसा नजारा आया जिसने उनकी ख़ुशी को उड़ा दिया. उन्होंने देखा कि उनसे पहले ही नोर्वे का एडवेंचर प्रेमी रोआल्ड वहां पहुंच चुका था.
स्कॉट पहले न पहुंच पाने की वजह से बहुत दुखी था. उन्होंने वापसी करना ही उचित समझा. वह अपने साथियों के साथ वापस लौट ही रहे थे कि अचानक मौसम खराब होने लगा. मजबूरन उन्हें जहाज़ से उतरकर ज़मीन पर आना पड़ा था. उन्होंने एक तंबू में रहना उचित समझा. थोड़ी ही देर में तूफान ने अपनी दस्तक दे दी. इसमें उनका एक साथी कहीं खो गया था. सब परेशान थे. डर उनके चेहरे पर देखा जा सकता था. स्कॉट के पास सारे संसाधन ख़त्म होने की कगार पर थे.
उस एक छोटे से तंबू में एक के बाद एक स्कॉट के साथियों की मौत होने लगी थी. थोड़े वक़्त में ही स्कॉट अकेले ही रह गए थे. अपने इस मिशन को स्कॉट वक़्त की धूल में खोने नहीं देना चाहता था. स्कॉट खुद पल-पल में मौत के करीब जा रहे थे, लेकिन फिर भी उसने अपने पूरे सफ़र की कहानी को अपनी डायरी में लिखा था. आखिरी पल तक उसने हार नहीं मानी थी. अपनी कहानी पूरी करने के बाद ही स्कॉट ने मौत को गले लगाया था.
Robert Scott Tragic Story Of South Pole (Pic: frontrowcentral)
स्कॉट की मौत के आठ महीने बाद साउथ पोल से उनकी लाश और डायरी लाई गई थी. स्कॉट की डायरी ने दुनिया को बताया था कि स्कॉट ने उस एक मंजिल को हासिल करने के लिए कितनी कठिनाई सही थी.
भले ही रोआल्ड, स्कॉट से पहले साउथ पोल पहुंच गए थे, लेकिन स्कॉट के कभी हार न मानने वाले जज्बे ने उन्हें हमेशा के लिए अमर कर दिया था.
Original Article Source / Writer: Roar Bangla / Jamia Rahman Khan Tisa
Translated by: Vimal Naugain
Web Title: Robert Scott Tragic Story Of South Pole, Hindi Article
Keywords: Robert Scoot, Traveler, Adventure, Navy, England, Explorer, England, Norway, Roald Amundsen, Queen, Victoria, Flag, Ship, Dairy, Last Moment, Winner, Sea, Antarctic, New York, Melbourne, Storm, Snow, Ocean, Death, Prince Of South Pole, Environmentalist, Geographical, Royal Society London, Robert Scott Tragic Prince Of South Pole, Hindi Article
Featured image credit / Facebook open graph: btchflcks