‘गांधी वध’!
यह हाथ में तमंचा लेकर भीड़ में लाठी लेकर खड़े एक बूढ़े आदमी की साधारण हत्या नही थी.
यह हत्या थी एक विचार की, एक सिद्धांत की, जिसने सालों तक अंग्रेजों का मुकाबला किया और भारत को आजाद करवाया.
यह वो ऐतिहासिक घटना थी, जिस पर हिंन्दू और मुसलमान, हर किसी ने अफसोस किया. ‘गांधी वध’ से 70 साल पहले तो भारत हिल ही गया था, किन्तु उसके झटके आज भी जब-तब महसूस किए जाते हैं.
29 जनवरी 1948 यानि हत्या से ठीक एक दिन पहले ही उन्होंने कहा था कि ‘मुझे डर है कि मेरी मृत्यु किसी बीमारी से न हो. ऐसी मौत पर लोग मुझे झूठा महात्मा कहेंगे. मेरे सीने में गोली लगने से मेरी मौत होगी… और मुंह से ‘राम’ निकलेगा, तो मैं खुद को असली महात्मा समझूंगा’.
अगले दिन नाथूराम गोडसे ने इसे चरित्रार्थ कर दिया.
तब से लेकर आज तक महात्मा गांधी की हत्या विवादों में उलझी है. गांधी की हत्या किराए के हत्यारों ने नही की थी!
इसमें किसी आतंकी संगठन का नाम भी नही था!
कोई अंग्रेज या मुगल बादशाह भी नही था इसके पीछे, बल्कि इस हत्या को देश के लोगों ने ही अंजाम दिया था.
महात्मा गांधी की हत्या के पीछे संघ, हिन्दू महासभा, वीर सावरकर और नाथूराम गोडसे का अलग-अलग तरीके से नाम लिया जाता है, पर सच क्या क्या है किसी को नहीं मालूम!
ऐसे में ‘गांधी वध’ के पहलुओं को जानना दिलचस्प होगा—
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका?
संघ के बारे में इस सम्बन्ध में कई परस्पर विरोधी विचार सामने आते हैं!
27 सितंबर 1925 को भारत में डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की. संघ का उद्देश्य पहले दिन से स्पष्ट था. वे हिन्दूवादी राष्ट्र चाहते थे.
आरएसएस द्वारा प्रकाशित किताब ‘आधुनिक भारत के निर्माता डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार’ में लिखा गया है कि बापू ने 1930 में अपना नमक सत्याग्रह शुरू किया, तब उन्होंने (हेडगेवार ने) ‘हर जगह यह सूचना भेजी कि संगठन के तौर पर संघ इस सत्याग्रह में शामिल नहीं होगा.
हालांकि, व्यक्तिगत रूप से लोगों को आंदोलन में भाग लेने से संघ ने नहीं रोका.
इसके अतिरिक्त, एक और बात कही जाती है.
गांधी जी के निजी सचिव प्यारेलाल नैय्यर की किताब के अनुसार जिस दिन नाथूराम ने ‘गांधी वध’ किया उस दिन एजी नूरानी समेत आरएसएस कार्यकर्ता रेडियो चालू करके बैठे थे, क्योंकि उन्हें ‘खुशखबरी’ का इंतजार था. इसके बाद कार्यकर्ताओं ने मिठाईयां भी बांटी.
संघ पर दोष डालने वाले सरदार पटेल का रेफरेंस अवश्य देते हैं.
सरदार पटेल ने 18 जुलाई, 1948 को एक खत में हिंदू महासभा के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी के लिए लिखा, जिसमें कहा कि, ‘‘हमारी रिपोर्टों से यह बात पक्की होती है कि इन दोनों संस्थाओं (आरएसएस और हिंदू महासभा) ख़ासकर आरएसएस की गतिविधियों के नतीजे के तौर पर देश में एक ऐसे माहौल का निर्माण हुआ, जिसमें इतना डरावना हादसा मुमकिन हो सका.’’
कुछ दिनों के बाद आरएसएस और हिन्दू महासभा के नेताओं की गिरफ़्तारियां हुई थीं और संगठन को प्रतिबंधित कर दिया गया था.
पर एक सच्चाई यह भी है कि आगे के दिनों में संघ पर ठोस ढंग से कोई आरोप साबित नहीं हो सका. जहाँ तक महात्मा गांधी के विचारों की बात रही है, तो आरएसएस के पूर्णकालिक स्वयंसेवक रहे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रत्येक जगह गांधी के विचारों को प्रोत्साहन दिया है, जिसका समर्थन संघ में नीचे तक गया है.
हाँ, दबी जुबान से यह बात अवश्य कही जाती है कि पाकिस्तान के रूप में अलग राष्ट्र-निर्माण के लिए कई राष्ट्रवादी महात्मा गाँधी को सीधा दोष देते थे. यही नहीं, संघ समेत दूसरे राष्ट्रवादियों की ख़ुशी की जो बात कही जाती है, उसके पीछे एक व्यावहारिक वजह गिनाई जा सकती है.
हिन्दू-मुसलमान की बढती खाई के बीच महात्मा गाँधी के सद्भावना प्रयास जारी थे, और उन्होंने कहा था कि ‘बंटवारा उनकी लाश’ पर होगा. कहते हैं, उनके कथन पर पाकिस्तान के हिस्से में रहने वाले हिन्दुओं को काफी विश्वास था कि ‘बंटवारा’ नहीं होगा. ऐसे में वह निश्चिन्त थे, किन्तु तब बंटवारा हुआ और मानव इतिहास का सबसे बड़ा क़त्ल-ए-आम भी, पलायन भी!
जाहिर तौर पर जिसके रिश्तेदार पलायन और बंटवारे के समय फैली साम्प्रदायीकता में मारे गए, उन्होंने गाँधी को ही इसके लिए दोषी माना. रिचर्ड एटनबरो की ऑस्कर से सम्मानित फिल्म ‘गांधी’ के अंतिम दृश्य अगर आपने देखे हों, तो यह बात निश्चित ही समझ जायेंगे.
हाँ, पलायन के बाद पाकिस्तान से आये लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बहुतायत में जुड़े, जिसके कारण यह धारणा बनी हो सकती है.
समझा जा सकता है कि अगर महात्मा गांधी को आज़ादी दिलाने का श्रेय दिया जाता है तो भारत-बंटवारे और उस समय हुए क़त्ल-ए-आम के छींटों से यह बड़ा नेता कैसे मुक्त रह सकता था? सवाल यह भी है कि बात सिर्फ गांधी-वध पर ही नहीं, बल्कि लाखों निर्दोष लोग जो भीषण दंगों में मार डाले गए उस पर चर्चा क्यों नहीं होती है?
हालाँकि, हत्या या हिंसा का समर्थन किसी हाल में नहीं किया जाना चाहिए और कम से कम संघ ने खुले तौर पर ऐसा नहीं किया है.
Rashtriya Swayamsevak Sangh volunteers (Pic: Getty)
सिद्धांतों से टकराते गांधी-सावरकर
महात्मा गांधी और विनायकराव सावरकर के बड़े भाई नारायणराव सावरकर की शुरुआती मुलाकात लंदन में 1889-90 में हुई थी. वे अक्सर रामायण, महाभारत और गीता के वास्तविक निहितार्थों पर चर्चा किया करते थे.
इसके बाद उनके छोटे भाई गणेश और विनायक सावरकर भी लंदन पहुंचे. तीनों पर गीता और महाभारत की उनकी ‘युद्धवादी’ समझ की झलक साफ दिखती थी. जबकि गांधी इससे बि ल्कुल विपरीत रहे. गांधी और सावरकर बंधु दोनों ही भारत की आजादी चाहते थे, लेकिन उनके तरीकों में अंतर था.
1909 में ही सावरकर बंधुओं के साथी मदनलाल ढींगरा ने लंदन में कर्नज वॉयली की सरेआम हत्या कर दी. इसके पीछे सावरकर बंधुओं की आक्रामक सोच थी. जबकि, बापू ने साफ शब्दों में कहा कि दंड ढींगरा को नहीं, बल्कि उसे सिखाने वाले को दिया जाना चाहिए. हालांकि, उन्होंने कभी भी सावरकर बंधुओं से मतभेद नही रखा.
1920 में जब गांधी पूरे भारत में असहयोग आंदोलन कर रहे थे, तब नारायणराव ने उनसे गुजारिश की कि गणेश और विनायक के काले पानी की सजा खत्म करने के लिए सरकार पर दवाब बनाएं. सावरकर बंधुओं को इस शर्त पर रिहा गया था कि वे 1924 से 1929 के बीच पांच वर्षों तक रत्नागिरी जिले से बाहर नहीं जाएंगे. न ही किसी राजनीतिक क्रियाकलाप में भाग लेंगे.
1923 में जेल में रहते हुए ही विनायकराव सावरकर ने 55 पेज की किताब हिंदुत्व: हिन्दू कौन है? लिखी. जिसमें साफ शब्दों में कहा गया कि गैर भारतीय धर्मों के लोगों को कभी भी “हिंदुओं” के रूप में नहीं पहचाना जा सकता है.
सावरकर की हिंदुत्व विचारधारा राष्ट्रीयता को धर्म , संस्कृति और नस्ल के आधार पर परिभाषित कर रही थी. यही वही समय था जब बापू भारत छोड़ आंदोलन में हिन्दुओं और मुस्लमा नों की सहभागिता का प्रयास कर रहे थे. सावकर की इस किताब ने उनके सिद्धांतों को चोट पहुंचाई.
उनका कहना था कि ‘ईसाई और मुसलमान समुदाय, हाल तक हिंदू थे लेकिन उनकी नई पीढि़यों ने नया धर्म स्वीकार कर लिया है. उनमें हिन्दुत्व का रक्त है पर नया पंथ अपना कर उन्होंने हिंदू संस्कृति का होने का दावा खो दिया है.’
सावरकर के लिए गांधी हिन्दू राष्ट्रवादी रथ-यात्रा के लिए परेशानियां खड़ी कर रहे थे.
गांधी हत्या केस में दिगंबर बागड़े के बयान से यह साफ हो चुका था कि योजना का क्रियान्वयन सावरकर के सानिध्य में हुआ, लेकिन उनके खिलाफ कोई स्वयंत्र साक्ष्य नही मिला. लिहाजा वे बरी हो गए. इसके बाद सावरकर के खुद न्यायाधीश कपूर आयोग के सामने स्वीकार किया था कि वे ‘गांधी वध’ में शामिल थे. हालांकि, यह रिपोर्ट 1969 में सार्वजनिक हुई. जबकि इसके पहले 1966 में सावरकर की मृत्यु हो चुकी थी.
इसके साथ एक तथ्य यह भी है कि सावरकर का तेल-चित्र संसद में लगाया गया और उनके राष्ट्रवादी विचारों को पूरी तरह नकारा नहीं गया.
Mahatma Gandhi, Nehru and Savarkar (Pic: afternoonvoice)
गांधी-सावरकर के बीच गोडसे का चुनाव
गोपाल गोडसे ने अपनी किताब ‘गांधी वध और मैं’ में नाथूराम के बारे में लिखा है कि नाथूराम के जन्म के समय पंडित ने माता-पिता से कहा था कि इसका पालन पोषण लड़कियों की तरह करना, क्योंकि यह भावनात्मक रूप से कमजोर है.
इसके बाद नाथूराम की परवरिश लड़कियों की तरह की गई. ऐसा करते समय उसे नाक में नथ भी पहनाई गई , जिसकी वजह से उसका नाम नाथूराम हो गया.
हिंदुत्व को परिभाषित करने वाले सावरकर के साथ 1929 में रत्नागिरी में हुई एक बैठक उसके लिए एक स्थायी प्रभाव साबित हुई. 22 वर्ष की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हो गया, और 1932 में पश्चिमी महाराष्ट्र के एक विस्तारित दौरे में हेडगेवार और बाबूराव सावरकर (वीडी सावरकर के भाई) के साथ रहा.
1944 में उसने सावरकर की मदद से ‘ दैनिक अग्रणी’ समाचार पत्र शुरू किया. इस बीच वे हिन्दु महासभा का खुलकर साथ देते रहे और सावरकर के विचारों को जनजन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उठा ली. उसने बापू और सावरकर दोनों को पढ़ा था.
दोनों के विचारों को पढ़कर गोडसे ने महसूस किया कि पहला दायित्व हिंदुत्व और हिंदुओं के लिए होना चाहिए. यदि 30 करोड़ हिंदुओं की स्वतंत्रता और हितों की रक्षा की गई तो भारत अपने आप सुरक्षित होगा.
किन्तु, सालों तक हिन्दू विचारों को गति देने वाले बापू ने जब मुस्लिमों के पक्ष में अपना अंतिम उपवास रखा, तो उसे लगा कि अब गांधी नाम के विचार को शून्य हो जाना चाहिए. इस बात की पुष्टि ‘गांधी वध और मैं’ की गई.
किताब के अनुसार गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लिए बहुत अच्छा काम किया था, लेकिन भारत आकर सही-गलत के फैसले करने लगे. वे खुद को जज मानते थे. इसी विचारधार के चलते वह दो रास्तों पर चलना स्वीकार नही कर पा रहा था.
आखिर उसने गांधीवाद को खत्म करने और सावरकर के हिन्दुत्ववादी देश की स्थापना के लिए ‘गांधी वध’ में मुख्य भूमिका अदा की.
… और महात्मा गांधी नही रहे!
14 अगस्त को पाकिस्तान और 15 अगस्त 1947 को भारत स्वंतंत्र होकर खड़े थे. दोनो ही देशों के झंडे, रंग, लोग, धर्म, विचार, सिद्धांत सब कुछ बंट चुका था. बंटवारे ने दंगे भड़का दिए.
गांधी जी किसी भी सूरत में विवाद को खत्म करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सरकार से मांग की कि तत्काल दंगों पर रोक लगाए. साथ ही पाकिस्तान को उसके हिस्से के 50 करोड़ रुपयों का भुगतान किया जाए. उनको डर था कि पाकिस्तान में अस्थिरता और असुरक्षा से भारत के प्रति उनका गुस्सा और बढ़ सकता है. इससे सीमा पर हिंसा फैल जाएगी.
इसके लिए उन्होंने अमरण अनशन शुरू कर दिया.
आखिरकार उनकी जिद के आगे सरकार झुकी और पाकिस्तान को 50 करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया गया. यह बात हिंदूवादी संगठनों को नागवार गुजरी.
खासतौर पर हिन्दू महासभा को!
उन्हें शक था कि पाकिस्तान इन रूपयों से हथियार खरीदेगा. बापू के फैसले को उन्होंने चाल समझा और महात्मा गांधी की हत्या हुयी.
20 जनवरी 1948 को मदनलाल पाहवा नाम के एक पंजाबी शरणार्थी ने प्रार्थना सभा में महात्मा गांधी को निशाना बनाकर बम फेंका. इस हमले में बापू बाल-बाल बच गए. नाथूराम पहले भी (मई 1934 और सितम्बर 1944 में) बापू की हत्या का असफल प्रयास कर चुका था.
इसके बाद उसने नारायण आप्टे और विष्णु रामकृष्ण करकरे के साथ पुणे में नई योजना तैयार की गई. करकरे पहले दिल्ली पहुंचे और फिर 27 फरवरी को आप्टे और गोडसे फ्लाइट से मुंबई से दिल्ली आए. जहां एक शरणार्थी से मोलभाव करके 500 रुपए में एक बैरेटा पिस्टल खरीदी.
30 जनवरी 1948 की शाम सरदार पटेल से मिलने के बाद बापू आभा और मनु के कन्धों पर हाथ रखकर प्रार्थना मंच की तरफ जा रहे थे, तभी वहां नाथूराम गोडसे पहुंचा. उसने बापू के पैर छुए. मनु ने उनसे कहा कि बापू को देर हो रही है, उन्हें रास्ता दीजिए.
गोडसे ने मनु को धक्का दिया और जेब में रखी ‘बैरेटा’ पिस्टल निकाल कर एक के बाद एक तीन गोलियां बापू पर दाग दीं. बापू के मुंह से अंतिम शब्द निकला ‘हे राम’.
इसके बाद उनकी आंखे बंद हो गईं.
Mahatma Gandhi Death (Pic: Onmanorama)
कहते हैं महाभारत में भीष्म को मारने के लिए शिखंडी का इस्तेमाल किया गया था और कलयुग में ‘गांधीवध’ के लिए नाथूराम का!
महात्मा गांधी की मौत पर भारत और पाकिस्तान में बसा हर आम आदमी रोया.
इस देश में बापू की सैंकडों मूर्तियां हैं और कहीं गोडसे का मंदिर भी, लेकिन ‘गांधीवध’ से जो खोया था वह शायद भारत दोबारा कभी नही पा सके!
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Web Title: Assassination of Mahatma Gandhi, Hindi Article
Feature Image Credit: Quartz