कौमी झंडा फहराए फर फर,
दुश्मन का सीना कांपे थर थर!!
आया विजय का ज़माना, चलो शेर जवानों!!
उपरोक्त ये पक्तियां एक ऐसे क्रांतिवीर की है, जो अपने बचपन में हाथों में तिरंगा लिए अपने गांव की गलियों में देश प्रेम के गीत गुनगुनाया करते थे. जब इस बच्चे ने थोड़े होश संभाले. तो फांसी के फंदे को अपने गले में डालकर क्रांतिकारियों को याद किया करता.
जब कोई उनसे पूछता कि ऐसा क्यूँ करते हो, तो जवाब था. “मैं भी भगत सिंह की तरह देश की खातिर हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर लटक जाना चाहता हूँ.”
यह बच्चा कोई और नहीं भारत के महान क्रांतिकारी हेमू कलानी थे, जिन्होंने देश को आज़ाद कराने के लिए अंग्रेजों के कई बार दांत खट्टे किए. अपने क्रांतिकारी गतिविधियों के चलते हेमू अंग्रेजों के निशाने पर आ गए थे.
इनको ब्रिटिश सरकार ने महज 19 साल की आयु में ही फांसी के फंदे पर लटका दिया गया. ऐसे में हमारे लिए सिंधी के भगत सिंह कहे जाने वाले हेमू कलानी से जुड़े दिलचस्प किस्सों के बारे में जानना रोचक होगा.
तो आइये रूबरू होते हैं हेमू कलानी के क्रांतिकारी जिंदगी से…
बचपन से ही क्रांतिकारी प्रभातफेरियों का किया नेतृत्व
हेमू कलानी का जन्म 23 मार्च 1923 को सिंध के सक्खर में हुआ. इनके पिता का नाम पेसूमल कलानी था. इनकी माता जेठी बाई एक गृहिणी थीं. इनके पिता एक सम्मानित व्यक्ति और इज्जतदार खानदान से थे. जिनके ईटों के भट्ठे थे. इनके पिता का सम्मान कुछ अंग्रेज़ अधिकारी भी किया करते थे.
हेमू का पूरा परिवार देशभक्ति से ओत-प्रोत था. उन्हें बचपन में भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों के किस्से कहानियां सुनाई जाती थी. इससे वे बहुत प्रभावित हुए. उनमें बचपन से ही देश पर कुर्बान होने की भावना उत्पंन हो चुकी थी. बाल्यावस्था में ही हेमू बड़े होशियार व बुद्धिमान थे.
इनकी शिक्षा पांच वर्ष की आयु में गांव के प्राइमरी पाठशाला से शुरू हुई. यहां सिर्फ कक्षा 4 तक ही पढ़ाई होती थी. आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने सक्खर के तिलक हाईस्कूल कालेज में एडमीशन लिया था.
हेमू जितने पढ़ाई में काबिल थे. उतने ही खेल-कूद में होनहार भी थे. अपने स्कूल में हेमू पढ़ाई के साथ ही हर प्रकार के खेल में हमेशा अव्वल नंबर पर रहते थे. उनको कुश्ती का भी बड़ा शौक था. वे अपने चाचा से कुश्ती के सारे दांव पेंच सीखा करते.
हेमू ने कई बार कुश्ती में अंग्रेजी पहलवानों को भी मात दी. इसके अलावा कबड्डी खो-खो, वालीबाल, क्रिकेट और फुटबॉल इनके पसंदीदा खेलों में से एक थे.
दिलचस्प यह है कि, हेमू गांव की गलियों में अपने दोस्तों के साथ तिरंगा झंडा लिए देश प्रेम का गीत गाते और भारत माता की जय के नारे के साथ लोगों में जोश भरने का कार्य करते थे. 7 वर्ष की आयु में ये अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी दल बनाकर उनका नेतृत्व करते.
जब बन्दूक लेकर पिता को रिहा कराने निकल पड़े
हेमू बचपन से ही निडर थे. गांव में जब अंग्रेज़ अधिकारी अपने लश्कर के साथ निकलते थे. तो लोग डर के मारे घरों व दुकानों की दरवाजे व खिड़कियाँ बंद कर लेते थे, मगर हेमू अधिकारियों के सामने उन पर तंज कसते हुए खुलेआम घूमा करते थे. अपने सहपाठियों व दोस्तों के साथ गीत गाते हुए कहते कि
जान देना देश पर, यह वीर का काम है!
मौत की परवाह न कर, जिसका हकीकत नाम है!!
देशभक्ति से लिपटी उनके गीत लोगों में स्वतंत्रता संग्राम के लिए जागरूकता पैदा करती थी. इनकी निडरता का हर कोई कायल था. एक बार का वाक्या है कि इनके पिता को किसी बात पर अंग्रेजी सिपाही पकड़ ले जाते हैं. जब ये घर आये तो इनकी माता रो रही थीं. इन्होंने उनसे पूरा माजरा पूछा.
हकीकत जानने के बाद हेमू ने अपनी मां से पिता को छुड़ाकर वापस लाने की कसम खाई.
इसके बाद बंदूक खोसे अपने एक साथी के साथ पिता को छुड़ाने निकल पड़े थे. खैर, उनके टीचर ने जब उनको समझाया कि अकेले जाना ठीक नहीं है. जब तक हमारे पास एक मजबूत संगठन नहीं होगा. तब तक हम कुछ नहीं कर सकते.
उनकी बातों को गंभीरता से लेते हुए हेमू स्वराज्य सेना मंडल दल का हिस्सा बने. बाद में वे इस दल के रीढ़ की हड्डी बनकर उभरे थे. हेमू अपने साथियों के साथ विदेशी कपड़ों का बायकाट करने के लिए लोगों में चेतना जगाने का कार्य करते. वे विदेशी कपड़ो को इकट्ठा करने के बाद उसे जला देते.
इस निडर आज़ादी के सिपाही का बस एक ही सपना था कि वे क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह की तरह देश खातिर फांसी के फंदे पर झूल जाएँ. इसके लिए वे अपने गले में फांसी का फंदा भी डालते और शहीदों को याद करते थे. वे कहते थे कि ऐसा करने पर उनके अंदर देश के लिए मर मिटने का जज्बा पैदा होता है.
कई बार ब्रिटिश सिपाहियों से हुई मुठभेड़
हेमू लोगों को अंग्रेजों के जुल्म व सितम से बचाने के लिए जान हथेली पर लेकर घूमा करते थे. उनके बुलंद आवाज़ से लगाये गए ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे से लोगों को बल मिलता था.
एक बार जब उनके कुछ दोस्तों को गिरफ्तार कर लिया गया तो उन्होंने भारी संख्या में लोगों को एकत्र किया. अंग्रजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किये. देखते ही देखते पूरे शहर में जन सैलाब उमड़ पड़ा था.
बेगुनाहों को आज़ाद किया जाये, अधिकारी माफ़ी मांगें, जिन्होंने रक्तपात किया है उनको निलंबित किया जाये, अंग्रेज़ सरकार मुर्दाबाद-मुर्दाबाद, नहीं चलेगा नहीं चलेगा अंग्रेजों का अत्याचार नहीं चलेगा जैसे नारों की आवाज़ की सदा बुलंद की जा रही थी.
अंग्रेज़ अधिकारियों के पसीने छूट चुके थे. अंत में अंग्रेजों ने गोलियों की बन्दूक से लोगों को भूनना शुरू कर दिया. ऐसे में हेमू किसी तरह वहां से निकल पाने में कामयाब हो पाए थे. उनके अंदर इस घटना को लेकर बहुत गुस्सा था. काफी लोगों की जान जा चुकी थी.
इसके कुछ दिनों के बाद हेमू ने जेल पर बमबारी करके दोस्तों को छुड़ाने का प्रयत्न किया था. वे इस घटना को अंजाम देने के बाद अंग्रेजों की नज़र से बच निकले थे.
एक बार ब्रिटिश सिपाहियों के साथ हुए मुठभेड़ में लगभग 40 अंग्रेज़ सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया था. उस घटना में इनके भी कुछ साथी शहीद हो गए थे.
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान हुए गिरफ्तार
हेमू को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ छापामार गतिविधियों, वाहनों को जलाने व क्रांतिकारी जुलूसों जैसे क्रांतिकारी के तौर पर पहचाना जाने लगा था.
1942 में जब महात्मा गाँधी ने भारत छोड़ो आंदोलन चलाया तो हेमू अपने साथियों के साथ बड़े जोश व खरोश के साथ उसमें कूद पड़े. आगे जब इस आंदोलन से जुड़े महात्मा गाँधी, खान अब्दुल गफ्फार जैसे क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया. तो इस आंदोलन की ज्वाला और भड़क उठी.
हेमू ने सिंध में तो तहलका मचा दिया था. इनके जोश को देखते हुए लोग जगह-जगह पर अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने लगे. हेमू ने अंग्रेजी सरकार को भारत से उखाड़ फेंकने का दमखम दिखाया. उन्होंने कई घटनाओं को अंजाम दिया. ब्रिटिश उनकी निडरता से भरे कार्यों को देखने के बाद खौफ खाने लगे थे.
अक्टूबर 1942 में जब हेमू को पता चला की अंग्रेजों का एक दस्ता हथियारों से भरी ट्रेन को उनके नगर से लेकर गुजरने वाले हैं. तब उन्होंने अपने साथियों के साथ पटरी की फिश प्लेट खोलकर रेल को पटरी से उतारने का एक प्लान बनाया.
वो अपने साथियों के साथ इस काम को अंजाम दे ही रहे थे कि अंग्रेजों ने उन्हें देख लिया. हेमू ने जब अंग्रेज़ अधिकारियों को पास आते देखा तो उन्होंने अपने सभी साथियों को भागने को कहा और वे खुद वहीं खड़े रहे. उनके सभी साथी भाग चुके थे. उनको अंग्रेज सिपाहियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया.
19 साल की उम्र में हुई फांसी
यह पहली बार था, जब हेमू अंग्रेजों के हाथ आये थे. पहले से ही ब्रिटिश सरकार उनके कार्यों से परेशान थी. उन पर इस घटना को लेकर मुकद्दमा चलाया गया. अंग्रेजीं सिपाहियों ने हेमू को जेल के अंदर बहुत प्रताड़ित किया. वे उनसे उनके साथियों के नाम उगलवाना चाहते थे.
मगर, कई सारी यातनाएं झेलने के बाद भी हेमू ने मुंह नहीं खोला. अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें कई सारे प्रलोभन भी दिए. इसके बावजूद उन्होंने अपने दोस्तों का नाम नहीं बताया.
अंत में उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई. जब उन्हें सजा का फरमान सुनाया गया तो एक तरफ जहां उनके लोगों की आँखे नाम थीं. वहीं हेमू कलानी की आँखों में एक चमक दिख रही थी.
ऐसा होता भी क्यूँ न उनके बचपन का जो यह सपना था कि शहीद भगत सिंह की तरह वो भी देश की आज़ादी में ख़ुशी-ख़ुशी फांसी के फंदे पर झूल जाएं.
बहरहाल, ब्रिटिश शासन के इस फैसले से सिंध में जगह-जगह पर विरोध प्रदर्शन होने लगा. कई बड़े राजनेताओं व क्रांतिकारियों ने भी इसका विरोध किया था. इसके बावजूद इस नौजवान क्रांतिकारी को 19 साल की उम्र में 23 जनवरी 1943 को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया.
शहीद हेमू कालानी की दुखद मृत्यु की खबर सुनते ही सिंध ही नहीं पूरे भारत के लोग दुखी थे. इनकी अंतिम यात्रा में कई बड़े क्रांतिकारियों के साथ हजारों की तादाद में लोगों का हुजूम उमड़ गया था.
तो ये थी भारत के वीर युवा क्रांतिकारी शहीद हेमू कलानी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए ख़ुशी-ख़ुशी मौत को गले लगा लिया.
आज भले ही हेमू कालानी जैसे महान क्रांतिकारी हमारे बीच उपस्थित नहीं हैं, मगर उनके देश की खातिर मर मिटने वाली सोच आज भी हमें प्रभावित करती हैं.
Web Title: Sacrifice Of Young Revolutionary Hemu Kalani, Hindi Article
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