संजय गांधी भारतीय राजनीति के इतिहास में एक ऐसा नाम, जो अपनी बेबाकी और स्पष्टीकरण के लिए जाना जाता है.
कहते हैं संजय को रफ़्तार से बड़ा लगाव था. चाहे वह कार हो या फिर हवाई जहाज. उनके राजनीतिक जीवन की बात करें, तो उसमें भी उन्होंने बड़ी रफ्तार के साथ खुद को स्थापित किया. हालांकि, यही रफ़्तार आगे इनकी मौत की वजह भी बनी.
संजय की जिंदगी पर गौर करें तो पाएंगे कि उनकी जिंदगी विवादों से भरी रही. फिर चाहे वह आपातकाल हो या फिर मारुति विवाद. ऐसे में जानना दिलचस्प होगा कि आखिर कैसे वह एक के बाद एक विवादों से घिरते चले गए-
बिना डिग्री 'इंजीनियर' बनना चाहते थे संजय
14 दिसंबर 1946 को दिल्ली में जन्में संजय गांधी बचपन से ही जिद्दी स्वभाव के थे. उनका पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता था. बावजूद इसके इनका दाखिला देहरादून के दून कालेज में कराया गया. मगर माता इंदिरा और पिता फिरोज गांधी की कोशिशें उस वक्त बेकार हो गईं, जब उन्होंने अपने स्कूल की पढ़ाई को बीच में ही छोड़ दिया.
दिलचस्प बात तो यह थी कि उनके पास कोई डिग्री नहीं थी. इसके बावजूद वो ऑटोमोबाइल इंजीनियर बनना चाहते थे. ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में अपना करियर बनाने के लिए उन्होंने इंग्लैंड की ओर अपना रुख किया. वहां उन्होंने प्रसिद्ध कंपनी रोल्स-रोयल कंपनी के साथ लगातार तीन सालों तक इंटर्नशिप की. इसके बाद वह वापस भारत लौट आए.
संजय की कारों के प्रति दीवानगी के साथ-साथ उड़ान भरने का भी शौक था. इसके लिए इन्होंने पायलट बनने की ट्रेंनिग ली और कमर्शियल पायलट का लाइसेंस प्राप्त कर लिया.
हालांकि, कार और हवाई जहाज के शौक़ीन होने के बावजूद उन्होंने परिवार की तरह राजनीति में अपनी उड़ान भरी.
आपातकाल के दौरान रहे विवादों में...
1974 से पहले तक भारतीय राजनीति में संजय ने पूरी तरह से प्रवेश नहीं किया था. विपक्षी कांग्रेस के खिलाफ एकजुट होकर लगातार विरोध-प्रदर्शन जाहिर कर रहे थे. ऐसे में बगावत का अंदेशा देख इंदिरा गांधी ने 1975 में पूरे देश में आपातकाल की घोषणा कर दी. इसी दौरान संजय भारतीय राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हो गए.
संजय के कदम रखते ही उनके कुछ अलग करने की चाहत ने पूरी भारतीय राजनीति में उथल-पुथल मचा दी. आपातकाल के दौरान इंदिरा के सलाहकार की भूमिका निभाते-निभाते उन्होंने पूरी सत्ता को अपने कब्जे में कर लिया. यहां तक कि वो न किसी मंत्री की सुनते और न ही किसी बड़े नेता की.
पूरे आपातकाल के दौरान अपनी मर्ज़ी चलाई. साथ ही नागरिकों को इनके कठोर निर्णय के लिए विवश भी होना पड़ा. उनके प्रभाव को इसी से समझा जा सकता है कि आपातकाल के दौरान अधिकारियों को भी इनके दबाव में काम करना पड़ा. यही नहीं उनकी दखलंदाजी के कारण इंदिरा कैबिनेट में मंत्री रहे इंद्र कुमार गुजराल को भी मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
ज़बरदस्ती नसबंदी कराना मंहगा पड़ा
संजय ने आपातकाल में अपना 5 सूत्रीय कार्यक्रम चलाया था, जिसमें शिक्षा, परिवार नियोजन, वृक्षारोपण, जातिवाद से निपटारा और दहेज़ प्रथा को खत्म करना शामिल था. देश हित के लिए इनका 5 सूत्रीय प्रोग्राम ठीक भी था, लेकिन इन्हीं कार्यक्रम में शामिल परिवार नियोजन के लिए लोगों की ज़बरदस्ती नसबंदी कराना संजय को ही नहीं पूरी कांग्रेस पार्टी को बहुत महंगा पड़ा.
हालांकि, आपातकाल के दौरान प्रेस पर सेंसरशिप, लोगों पर अत्याचार, विद्रोही का जेल में डालना आदि कारणों से भी 1977 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा और संजय के साथ ही कांग्रेस को बुरी तरह पराजय का मुंह देखना पड़ा.
संजय का पहली बार सांसद बनने का सपना टूट चूका था, लेकिन जब 1980 में दोबारा लोकसभा चुनाव हुआ, तो संजय ने अमेठी लोकसभा से जीत कर पहली बार सांसद बने. इसके बाद ये लोकसभा सदस्य भी रहे.
1980 में कांग्रेस की जीत और इंदिरा के दोबारा प्रधानमंत्री बनने में संजय के बड़े योगदान की बात कही जाती है!
जब बने 'मारुती मोटर्स लिमिटेड' के निदेशक
1971 में संजय गाँधी के दबाव में इंदिरा की कैबिनेट ने एक ऐसी गाड़ी बनाने का प्रस्ताव दिया, जिसे मध्यम वर्गीय परिवार आसानी से खरीद सके. इस प्रस्ताव को पारित भी कर दिया गया.
सरकार ने मारुती मोटर्स लिमिटेड नाम की कंपनी को गठित करने की मंज़ूरी दे दी, जिसका निदेशक और प्रबंधक संजय गांधी को बनाया गया. जबकि, संजय को किसी खास तजुर्बे के बावजूद ऐसी ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी.
इसको लेकर खूब हंगामा हुआ. हालांकि, जो भी आवाज उठाई जाती उसको सरकार दबा देती!
दबाव ज्यादा बढ़ने पर संजय ने जर्मन की बहुप्रतिष्ठित कंपनी फोक्सवैगन के साथ करार भी किया, लेकिन यह करार भी परवान न चढ़ सका और आपातकाल के दौरान फिर से इसका मुद्दा ठंडा हो गया.
आगे आपातकाल के बाद, जब जनता दल की सरकार बनी तो इस परियोजना के लिए न्यायमूर्ति ए. पी गुप्ता की सदारत में एक कमीशन बिठा दिया गया. कमीशन ने इस कंपनी के काम-काज की अवहेलना की.
बताते चलें कि मारुती कंपनी संजय के जिंदगी में कोई भी कार माडल पेश न कर सकी.
जबकि, उनकी मौत के लगभग एक साल बाद मारुती सुजुकी ने जनता के लिए पहली कार 'मारुती 800' को पेश किया.
किशोर का गाना और फिल्म 'किस्सा कुर्सी का'
संजय के विवादों की सूची यहीं खत्म नहीं होती. इसी कड़ी में मशहूर गायक किशोर कुमार के गाने को बैन करने के बाद वह सुर्खियों में रहे. असल में किशोर कुमार ने यूथ कांग्रेस के लिए गाना गाने से इंकार कर दिया.
इससे नाराज होकर संजय के इशारे पर उनके गानों को 'आल इंडिया रेडियों' पर बैन कर दिया गया था.
यही नहीं अमृत नहाटा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ के जरिए इंदिरा और संजय को लपेटने की कोशिश की गई, तो सेंसरबोर्ड की सात मेम्बरों वाली कमेटी ने इसको पास न करते हुए सरकार के पास भेज दिया.
वहां से आगे बढ़ती हुई यह फिल्म 'सूचना प्रसारण मंत्रालय' पहुंची. वहां फिल्म में 51 आपत्तियों सहित कारण बताओं नोटिस जारी कर दिया गया. नोटिस भेजने के बाद अमृत ने कहा कि फिल्म में सारे पात्र काल्पनिक हैं.
उनका किसी भी पार्टी या व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है. इसके बावजूद इस फिल्म को सेंसरबोर्ड ने लटका दिया.
इसी बीच आपातकाल लागू हो गया. इस मौके का फायदा उठाते हुए फिल्म के मास्टर प्रिंट सहित उसके कागजों को सेंसर बोर्ड से गायब कर दिया गया. कहते है उसके प्रिंट को मारुती मोटर्स की फैक्टरी में लाकर जला दिया गया, जिसके बाद संजय गांधी व सूचना प्रसारण मंत्री विद्या चरण को दोषी ठहराते हुए दोनों पर मुकदमा चलाया गया था.
11 महीने तक चले इस मुकद्दमे के तहत दोनों को कैद की सजा सुनाई गई थी. हालांकि, बाद में इसे ख़त्म कर दिया गया.
अपने से 10 साल छोटी माडल से हुआ प्यार
उनके राजनितिक करियर के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन भी चर्चा का विषय बना रहा. इन्होंने अपने से 10 साल छोटी सिख परिवार से ताल्लुक रखने वाली मॉडल से प्रेम विवाह किया था. यह माडल कोई और नहीं, बल्कि मेनका गांधी ही थी.
कहा जाता है कि मेनका के परिवार के न चाहते हुए भी संजय ने मेनका से विवाह किया.
मेनका एक माडल बनना चाहती थीं. इसके लिए उनको उस समय के मशहूर ब्रांड 'बॉम्बे डाईंग' के विज्ञापन को करने का मौक़ा भी मिला. उस विज्ञापन की होर्डिंगों में मेनका की ख़ूबसूरत तस्वीर को देखकर ही संजय ने अपना दिल मेनका को दे दिया.
हालांकि, मेनका से उनकी पहली मुलाक़ात मेनका के रिश्तेदार वीनू कपूर ने करवाई थी. दोनों की यह मुलाकात 1973 के दौरान एक शादी पार्टी में हुई, जिसके बाद दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा और संजय ने मेनका के परिवार में शादी का प्रस्ताव रखा.
फिर 23 सितम्बर 1974 को दोनों प्रेमी-प्रेमिका शादी के अटूट बंधन में बंध गए.
गाँधी परिवार की बहु बनने के बाद ही मेनका के विज्ञापनों से उनकी फोटो हटा दी गई, जिसकी वजह संजय गांधी से उनका रिश्ता था. कहते हैं कि शादी के बाद मेनका संजय के हर दौरे पर साथ में होती थीं.
आगे शादी के लगभग 6 साल बाद ही वरुण गाँधी का जन्म हुआ.
अंत में शौक़ बना इनकी मौत का कारण
संजय गाँधी को हवाई जहाज का स्टंट करने का बड़ा शौक़ था और यही शौक़ उनकी मौत का कारण भी बना. 23 जून 1980 को संजय ने दिल्ली के सफदरगंज एयरपोर्ट से नई जहाज के लिए उड़ान भरी और उनके साथ कैप्टन सुभाष सक्सेना भी थे. संजय ने हवाई स्टंट करते हुए अपना नियंत्रण खो बैठे, जिसके कारण उनका विमान ज़मीन पर आ गिरा.
इस विमान दुर्घटना में संजय गाँधी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
इनकी मौत के बाद मेनका का इंदिरा के साथ विवाद बढ़ता चला गया और फिर मेनका ने प्रधानमंत्री आवास को छोड़ कर चली गई . हालांकि, इसके बाद भी मेनका की राजनीति में दिलचस्पी नहीं घटी.
आज ये और इनका बेटा वरुण भाजपा के बड़े लीडरों में से एक हैं.
तो ये थे संजय गांधी से जुड़े कुछ विवाद!
अगर आपके पास भी उनसे जुड़े किसी विवाद की जानकारी है, तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Sanjay Gandhi remained the most controversial in the Gandhi family, Hindi Article
Feature Image Credit: StarsUnfolded