आज की राजनीति, सामाजिक मसलों और चटपटी खबरों को कुछ देर के लिए विराम देकर यदि इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि हम उस देश में पैदा हुए हैं, जो रहस्यों से घिरा है. हजारों ऐसी कहानियां हैं, जो रौंगटे खड़ी कर देती हैं और लाखों ऐसे वचन हैं, जो जीवन जीने का सलीका सिखाते हैं.
भारत वो धरती है, जिसकी माटी के नीचे सदियों से जाने कितना सोना और खजाना छिपा हुआ है. रहस्यों से घिरा यह खजाना और उसकी कहानियां हर किसी को आर्कषित करती हैं. देश का शायद ही कोई कोना होगा, जहां की जमीन के नीचे दबे खजाने के किस्से आम न हो! ऐसा ही एक किस्सा है 'बिहार की सोन गुफाओं' का.
जी हां अक्सर खजाना खोदकर निकाला जाता है, पर बिहार के राजगीर में ऐसी गुफाएं हैं, जहां सोने की पर्तें साफ दिखाई देती हैं और एक विशाल दरवाजा... इसके पीछे जाने कितनी ही अकूत संपत्ति दबी है. यह बात और है कि सदियों से बंद इस दरवाजे को आज तक कोई खोल नहीं पाया. कहा जाता है कि यह खजाना महाभारत कालीन राजा जरासंध का है.
वहीं कुछ लोग इसे मगध साम्राज्य के राजा बिंबसार का भी मानते हैं.
तो चलिए आज आपको लेकर चलते हैं बिहार की रहस्यमयी सोन गुफाओं में, और जानते हैं इस खजाने का राज!
बिंबसार जानता था इसका रहस्य
बिहार में एक कस्बेनुमा शहर है राजगीर. जहां विभारगिरि पर्वत की तलहटी में कुछ गुफाएं हैं. जिसकी दिवारों पर ही सोना मढा हुआ है. इतिहास में दर्ज है कि चंद्रगुप्त मौर्य के शासन से भी सैंकडों साल पहले 558 ईसा पूर्व मगध के राजा बिंबसार थे.
राजगीर बिंबसार के साम्रराज्य की राजधानी थी. जहां उनका महल भी था. वह केवल 15 साल की उम्र में सम्राट बने और 52 साल की उम्र तक राज किया. कहा जाता है कि मगध में इतनी संपत्ति थी कि उससे पृथ्वी के कई देशों की अर्थव्यवस्था कम से कम 50 सालों तक निरंतर बिना किसी रूकावट के चल सकती है.
बिंबसार के कार्यकाल के दौरान कई राजाओं ने उनकी अधीनस्थता स्वीकार की थी और अपनी संपत्ति राजा को समर्पिंत की थी. महल में रहते हुए बिंबसार के दुश्मनों की भी कमी नहीं थी. इसलिए उन्होंने विभारगिरि पर्वत के आसपास कुछ गुफाओं का निर्माण करवाया. जहां उन्होंने महल का सारा सोना, हीरे और जवाहरात सुरक्षित रखे.
इन गुफाओं की सुरक्षा के लिए राजा का सबसे अच्छा सैनिक दस्ता हर वक्त तैनान रहता था.
इन गुफाओं का निर्माण और खजाने को रखने के राज के बारे में विश्वसनीय सैनिकों के अलावा किसी और को कोई जानकारी नहीं थी. बिंबसार को राजगीर में ही गौतम बुद्ध से ज्ञान प्राप्त हुआ था. उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाकर उसका संरक्षण करने का निर्णय लिया. इस बात से बिंबसार का पुत्र आजातशत्रु नाराज था.
वह जल्द से जल्द राजा बनना चाहता था, साथ ही अपने पूर्वजों के खजाने का भी पता लगाना चाहता था. उनके अपने ही पिता को बंदी बनवा लिया और तब तक उन्हें भोजन नहीं दिया, जब तक वे खजाने का पता नहीं बता देते.
बिंबसार ने आखिरी वक्त तक मुंह बंद रखा और एक दिन उनकी मृत्यु हो गई. कहा जाता है कि तब से यह खजाना एक राज ही बना हुआ है. खजाने का दरवाजा खोलने की विधि केवल बिंबसार जानता था.
कहा जाता है कि तब से लेकर आज तक कोई भी दरवाजे के पीछे का रहस्य नहीं जान पाया.
...तो क्या जरासंध की है संपत्ति
वैसे तो पुरातत्व विभाग को गुफाओं का मुआयना करने पर जो भी प्रमाण हासिल हुए हैं, वे राजा बिंबसार की थ्योरी को पुख्ता करते हैं. पर यहां से जुड़ी दूसरी कहानी भी है. यह कहानी है महाभारत कालीन राजा जरासंध की.
जरासंध कंस का ससुर था और उसका वध पांडु पुत्र भीम ने किया था.
कहा जाता है कि मगध देश के राजा जरासंध ने अलग-अलग हिस्सों में दो मांओं की कोख से जन्म लिया था और राक्षसी जरा ने अपनी माया से उसे एक शरीर प्रदान किया था. इसलिए उसका नाम जरासंध कहलाया. जरासंध बहुत ही क्रूर प्रवृत्ति का था.
वह शिव भक्त था और खुद को चक्रवर्ती सम्राट बनाना चाहता था. उसने तय किया था कि 100 राजाओं को युद्ध में हरा कर उनकी एक साथ बलि देगा. जिसके बाद दुनिया पर केवल उसे ही राजधिराज मना जाएगा.
जरासंध ने अपनी योजना को पूरा करते हुए करीब 86 राजाओं को परास्त किया और उन्हें पहाड़ी किले में कैद कर लिया. इसके साथ ही उसने हारे हुए राजाओं के राज्य के खजाने लूट लिए. उन्हें विभारगिरि पर्वत की तलहटी में सुरक्षित रख लिया. इसके पहले कि वह 100 राजाओं की बलि दे पाता. पांडवों ने उसे युद्ध के लिए ललकारा.
जरासंध ने भीम के साथ बिना किसी अस्त्र के कुश्ती लड़ना स्वीकार किया. दोनों के बीच 13 दिनों तक लगतार कुश्ती होती रही. 14वें दिन श्री कृष्ण का इशारा करने पर भीम ने जरासंध की शरीर के दो टुकड़े कर दिए और उसकी मृत्यु हो गई.
इसके बाद सभी बंदी राजाओं को छुड़वा लिया गया. उन सभी ने युधिष्ठिर को अपना राजा स्वीकार किया. पर वे यह कभी नहीं जान पाए कि जरासंध ने उनके खजाने के साथ क्या किया?
इस प्राकार वह खजाना गुफाओं में ही दबा रह गया.
कुछ तो है उन गुफाओं के अंदर!
बहरहाल सोना छिपाने के लिए गुफाओं का निर्माण महाभारत काल में हुआ हो, या फिर मौर्यकाल में, लेकिन दिलचस्प है तो इन गुफाओं की बनावट. पुरातत्व विभाग के अनुसार इन गुफाओं को अलग-अलग पत्थरों से नहीं, बल्कि केवल एक चट्टान को काटकर बनाया गया है. यही कारण है कि इनमें कहीं कोई जोड़ नजर नहीं आता और इसलिए वे गुफाएं सदियों से संरक्षित हैं.
गुफाओं में दो बड़े कमरे बनवाए गए थे. एक सैनिकों के ठहरने के लिए और दूसरा खजाना रखने के लिए. खजाने वाले कमरे पर एक बड़ी चट्टान रखी हुई है, जिसे आजतक कोई डिगा नहीं पाया.
कहा जाता है कि इसी कमरे में सोना रखा हुआ है, जब अंग्रेजों को बिहार की इन गुफाओं के बारे में पता चला था तो उन्होंने बड़ी चट्टान पर तोप चलवाईं थीं, जिसके निशान आज भी बने हुए हैं. हालांकि उसका कोई असर नहीं हुआ.
वैसे सोने की इन गुफाओं के कई और भी रहस्य हैं, जिन्हें सुलझाना बाकी है. जैसे गुफाओं पर सोनेनुमा पेंट किया गया है, जो सदियों से संरक्षित है. माना जाता है कि यह असली सोने की पर्त है. गुफा के कमरे में चट्टान पर शंख लिपि में कुछ लिखा है. जिसे अब तक कोई समझ नहीं पाया. कहते हैं कि यह खजाने का दरवाजा खोलने का तरीका लिखा हुआ है.
सोन भंडार की इस गुफा में जैन धर्म के अवशेष भी मिलते हैं. पास ही स्थित कुछ और गुफाओं में छह जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां भी चट्टान में उकेरी गई हैं. इससे कायास लगाए जाते हैं कि इन गुफाओं का संरक्षण जैन अनुयायियों ने भी किया है.
इन गुफाओं के बाहर भगवान विष्णु की प्रतिमा से अनुमान लगाया गया है कि कुछ काल तक गुफाओं का संरक्षण वैष्णव संप्रदाय के अधीन रहा. हालांकि भगवान की यह प्रतिमा अधूरी है. इससे साफ है कि वे किसी कारणवश उन लोगों को भगवान की मूर्ति पूरी किए बिना ही वहां से जाना पड़ा.
बहरहाल सवाल चाहे जितने भी हों, उसके जवाब समय की गर्त में ही छिपे हैं. खजाना राजा जरासंध या बिंबसार में से किसी का भी हो, यदि वह है और उसे खोजा जा सका तो शायद यह भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए अभूतपूर्व खोज होगी.
Web Title: Secrets Of The Old Treasure Hidden In The Mysterious Caves of Rajgir, Hindi Article
Representative Feature Image Credit: Medium