भारत के प्रभावशाली हिंदू राजाओं की गाथा बेमिसाल है. इससे पहले आप दो अन्य लेखों के पहले और दूसरे भाग में 16 ताकतवर हिंदू राजाओं की यशकीर्ति के क़िस्सों को पढ़ चुके हैं.
अपने पराक्रम और यश से इन राजाओं ने वीरता की एक से बढ़कर एक मिसाल दीं. ये राजा देश, धर्म, संस्कृति तथा स्वतंत्रता की रक्षा हेतु जीवनभर जूझते रहे, लेकिन अपने घुटने नहीं टेके. तो आइये बात करते हैं ऐसे ही कुछ दूसरे नामों की, जिनमें अधिकांश का सम्बन्ध दक्षिण भारत से रहा है…
पुलकेशी प्रथम
पुलकेशी चालुक्य नरेश रणराग के पुत्र थे. उन्हें चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी राजा माना जाता है. उन्होंने दक्षिण भारत में चालुक्य वंश के विस्तार में अपनी अहम भूमिका निभाई. उन्होंने वातापी के समीपवर्ती प्रदेशों को जीत कर अपनी शक्ति को जग जाहिर किया था. उनकी यशकीर्ति को इसी से समझा जा सकता है कि वह बीजापुर ज़िले में, बादामी को अपनी राजधानी बनाकर एक स्वतंत्र राज्य बनाने में सफल रहे थे.
यही नहीं, उन्होंने ‘अश्वमेध’ जैसा बड़ा यज्ञ अपने शासन काल में करवाया था. उनकी वीरता के चलते उन्हें ‘रण विक्रम’, ‘धर्म महाराज’, ‘पृथ्वीवल्लभराज’ और ‘राजसिंह’ जैसी उपाधियों से नवाजा गया था.
India’s Great Hindu kings (Pic: dailymotion)
कर्णदेव
कर्णदेव कलचुरी वंश के शासक थे. यह वहीं राजा थे, जिन्होंने परमार वंश के प्रतापी राजा भोज को हराया था. यहीं नहीं यह कलिंग विजय करने में भी सफल रहे थे. इसके बाद उन्हें ‘त्रिकलिंगाधिपति‘ की उपाधि मिल गई थी. माना जाता है कि एक लंबे समय तक इनको हराने वाला कोई शासक नहीं हुआ था. वह केवन चन्देल नरेश कीर्तिवर्मन के सामने कमजोर पड़े थे.
एक युद्ध में उन्हें कीर्तिवर्मन से हार का सामना करना पड़ा था. बस यहीं से उनके सम्राज्य का पतन शुरु हो गया था. धीरे-धीरे चन्देल शासकों ने उनके अधीन राज्यों को जीतना शुरु कर दिया था.
महेंद्र वर्मन प्रथम
दक्षिण में महेंद्र वर्मन ने प्रथम दुश्मनों को अपनी शक्ति का लोहा मनवाया. उन्होंने अपने समय के प्रतापी कहे जाने वाले पुलकेशी द्वितीय से लगातार लोहा लिया. हालांकि, उन्हें इन युद्धों में कई बार हार का सामना करना पड़ा. बावजूद इसके वह कांची में अपनी स्वतंत्र सत्ता क़ायम रखने में सफल रहे थे. उनके शासन काल में पल्लव साम्राज्य हर तरीके से खूब फला-फूला.
फिर चाहे वह राजनीति का क्षेत्र रहा हो या फिर साहित्यिक एवं कलात्मकता का. इन्होंने अपने समय में ब्रह्मा, विष्णु और शिव के अनेक मन्दिर बनावाकर लोगों का दिल जीत लिया था. वह दक्षिण भारत में मण्डप वास्तु शैली को प्रोत्साहित करने के लिए भी जाने जाते हैं.
नरसिंह वर्मन प्रथम
नरसिंह वर्मन प्रथम अपने पिता महेन्द्र वर्मन प्रथम की तरह ही पल्लव वंश के शक्तिशाली राजाओं में एक थे. अपने पराक्रम के कारण वह ‘महामल्ल’ के नाम से भी जाने जाते थे. उन्होंने चालुक्य नरेश पुलकेशी द्वितीय जैसे शासकों को कई युद्धों में हराकार अपनी शौर्यता का परिचय दिया था. वह चालुक्यों की राजधानी बादामी को जीतने भी कामयाब रहे थे. उनकी यह जीत इतिहास के गौरवमयी घटनाओं में एक थी.
कांची के निकट बसे महामल्लपुरम को बसाने का श्रेय नरसिंह वर्मन प्रथम को ही दिया जाता है. यही नहीं इनके ही शासन काल में महाबलीपुरम के सप्तरथ बने थे.
राजा करिकला चोलान
करिकला उस चोल सम्राज्य के शासक थे, जिसे दक्षिण भारत का एक सभ्य राजवंश माना जाता है. करिकला ने अपने कार्यों से दक्षिण भारत में एक स्थायी छाप छोड़ी. उन्होंने वहां मंदिरों के निर्माण के साथ-साथ तमिल साहित्य को भी संरक्षित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके बारे में कहा जाता है कि वह एक ऐसे राजा थे, जिन्हें दक्षिण भारत का अधिपति बनने में बहुत कम समय लगा था. वह एक योद्धा ही नहीं अच्छे प्रशासक भी थे.
उनके समय में बनाये गये कई मंदिर आज भी मौजूद हैं, जिनमें मौजूद पत्थर की मूर्तियों में चोल कला का बेहतरीन काम देखने को मिलता है. कांची का कैलाशनाथार व तंजावुर का ‘बृहदेश्वर मन्दिर’ इस सम्राज्य में बने सुंदर मंदिरों के कुछ बड़े उदाहरण हैं.
Bruhadeshwar Mandir (Pic: thanjavurpalacedevasthanam)
कृष्ण प्रथम
कृष्ण प्रथम का नाम राष्ट्रकूट वंश से जुड़ा हुआ है. उन्हें चालुक्य वंश को कमजोर करने के लिए जाना जाता है. कृष्ण प्रथम ने मैसूर के गंगो की राजधानी मान्यपुर को अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया. वह दक्षिण कोंकण के कुछ भाग को भी जीतने में सफल रहे थे. वह ‘राजाधिराज परमेश्वर’ की उपाधि ग्रहण करने वाले शासक थे.
बाद में वह ‘कैलाश मन्दिर‘ का निर्माण कराने के लिए विश्वविख्यात हुए. बताते चलें कि यह वही कैलाश मंदिर था, जिसका निर्माण एलोरा में पहाड़ काटकर किया गया
मयूरवर्मन
मयूरवर्मन ने बनवासी के कदंब वंश की स्थापना की थी. वहीं कदंब वंश, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने सबसे पहले आधुनिक कर्नाटक की भूमि पर राज्य किया था. मयूरवर्मन के साथ एक दिलचस्प बात जुड़ी हुई है. कहते हैं कि वह ब्राह्मण थे, लेकिन वह चाहते थे कि लोग उन्हें क्षत्रिय समझें, इसलिए उन्होंने अपना नाम मयूरवर्मन कर लिया था.
मयूरवर्मन ने अपनी इच्छा शक्ति के दम पर एक अलग स्वतंत्र राज्य का सपना देखा और उसको पूरा करने के लिए खुद को झोंक दिया. उनके ही प्रयासों का फल था कि कदंब वंश अपना स्वतंत्र राज्य बनाने में सफल रहा था. यहां तक कि कन्नड़ को यहां की राज्य भाषा तक बना दिया गया था.
नेदुनचेझियान द्वितीय
पांड्यन साम्राज्य दक्षिण भारत का एक मुख्य सम्राज्य हुआ करता था. यह तमिल प्रदेश के दक्षिणी पूर्वी छोर से लेकर उत्तर पुथुक्कट्टै राज्य तक फैला हुआ था.
नेदुनचेझियान द्वितीय इसी सम्राज्य के शासक थे. उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने इस सम्राज्य की दिशा और दशा बदल डाली थी. वह चोल समेत कई अन्य कई सरदारों को हराने में कामयाब रहे थे. इसी कड़ी में जब उन्होंने थैलैलांगनाम को हराया, तो उसकी यशकीर्ति चारों ओर फैल गई थी.
माना जाता है कि पांड्य सम्राज्य के इसी शासक के शासन काल में प्रसिद्ध मीनाक्षी अम्मान मंदिर का निर्माण हुआ था. यह मंदिर तमिलनाडु के मदुराई शहर की वैगई नदी के दक्षिण किनारे पर स्थित है. यह माता माता पार्वती को समर्पित माना जाता है.
Madurai Meenakshi Amman Temple (Pic: findmytemple)
तो, ये थी दक्षिण भारत के ताकतवर कुछ हिंदू राजाओं से जुड़ी जानकारी. निश्चित रूप से भारत ने कई अन्य महान राजाओं का शासन भी देखा है. सम्भव है कुछ और नाम इतिहास के पन्ने में छिपे होंगे या फिर जिन्हें हम देख नहीं पाए होंगे.
ऐसे राजाओं के नाम हमें कमेन्ट सेक्शन में बताएं, जिनसे जुड़ा इतिहास अगले लेखों में हम लाने की कोशिश करेंगे.
और हाँ! उत्तर भारत के हिन्दू राजाओं की सीरीज की पहली और दूसरी कड़ी को पढ़ना नहीं भूलियेगा.
Web Title: South India’s Great Hindu kings, Hindi Article
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