31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई.
इस घटना को कुछ ही घंटे बीते होंगे कि अगले प्रधानमंत्री के लिए राजनीतिक गलियारों में बहस छिड़ गई!
इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीसी एलेक्जेंडर ने अपनी किताब ‘माई डेज विद इंदिरा गांधी’ में लिखा है कि ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट के गलियारे में सोनिया और राजीव आपस में किसी बात को लेकर झगड़ रहे थे. राजीव सोनिया को बता रहे थे कि “पार्टी उन्हें प्रधानमंत्री बनाना चाहती है.”
सोनिया का जवाब बिल्कुल अप्रत्याशित था. सोनिया ने राजीव को जवाब दिया कि “नहीं हरगिज नहीं, वो तुम्हें भी मार डालेंगे.” उसके प्रत्युत्तर में राजीव ने कहा कि “मेरे पास कोई विकल्प नहीं है, मैं वैसे भी मारा जाऊंगा”
और इसके हत्या के कुछ ही घंटों बाद शाम के लगभग 6:45 बजे राजीव गांधी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हैं.
प्रधानमंत्री बनने के बाद हत्या तक राजीव गांधी के सफर पर एक नजर डालते हैं –
राजीव के मिलनसार व्यवहार ने बढ़ाया खतरा
राजीव गांधी की हत्या के मामले की जांच करने वाली स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) के अध्यक्ष डी. आर. कार्तिकेयन अपनी किताब ‘सत्य की विजय: राजीव गांधी की हत्या एक अन्वेषण’ में लिखते हैं कि राजीव बेहद मिलनसार व्यक्ति थे.
9 नवंबर, 1982 को गुलबर्गा और बीदर में राजीव को दो जनसभाएं होनी थीं, अगले ही दिन से राजीव कर्नाटक राज्य का पथ भ्रमण करना चाहते थे और उस दौरान राजीव नहीं चाहते थे कि कोई भी पुलिसकर्मी उनके साथ रहे. राजीव जनता के बीच खुली जीप में सफ़र करना चाहते थे.
हालांकि ख़ुफ़िया विभाग ने उनकी इस बात को मानने से इनकार कर दिया. और इस बात पर सहमति बनी कि राजीव पर बिना वर्दी में पुलिसकर्मी नजर रखेंगे.
बहरहाल, इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजीव कितने मिलनसार नेता थे और जनता से मिलने के लिए अपनी सुरक्षा के साथ भी समझौता कर लेते थे.
हालांकि राजीव ने कभी नहीं सोचा था कि उनकी हत्या की साजिश रचने वाले उनके इस मिलनसार रवैये का फायदा उठा लेंगे. और शायद यही बात उनकी हत्या का कारण भी बनी.
Prime Minister Rajiv Gandhi and Sri Lankan President J.R. Jayewardene. (Pic: jansatta)
जाफना की घेराबंदी और ऑपरेशन पूमलाई
श्रीलंका के उत्तर पूर्वी भाग में तमिल मूल के लोगों की जनसंख्या बहुमत में थी. वे लोग इस क्षेत्र पर अपना दावा करते थे. इस क्षेत्र में रहने वाले तमिल लोग एक स्वतंत्र देश यानी ‘तमिल ईलम’ का गठन करना चाहते थे.
मई 1976 में श्रीलंका के उत्तर और पूर्वी हिस्से को स्वतंत्र कराकर वहां तमिल राज्य की स्थापना के उद्देश्य के साथ वेलुपिल्लई प्रभाकरण ने ‘द लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम’ यानी लिट्टे की स्थापना की.
इस स्थापना ने वहां हिंसक पृथकतावादी अभियान शुरू कर दिया और इससे श्रीलंका में दो तरफा युद्ध की शुरूआत हो गई.
1987 को तमिल अलगाववादी आंदोलन के खिलाफ श्रीलंका की सेना ने जाफना की घेराबंदी कर ली थी. इससे तमिल लोगों के लिए खाने-पीने तक की नौबत आ गई और श्रीलंका में स्थिति बिगड़ गई.
संकट बढ़ रहा था, इसलिए भारत ने वहां मानवीय सहायता पहुंचाने की कई बार कोशिश की, लेकिन श्रीलंकाई सेना के आगे उसकी एक न चली.
इसलिए 4 जून 1987 को राजीव गांधी ने वहां हवाई मार्ग से राहत कार्य का ओदश दे दिया. भारतीय वायुसेना ने ‘ऑपरेशन पूमलाई’ (Operation Poomalai) के तहत मानवीय सहायता की शुरूआत करते हुए वहां कैद लोगों को राहत सामग्री बांटी.
5 एंटोनोव एन 32एस विमानों ने जाफना के ऊपर उड़कर लगभग 25 टन सामग्री की हवाई आपूर्ति की.
इसके बाद जाफना की घेराबंदी को समाप्त कर दिया गया और वहां शांति प्रयासों के तहत राष्ट्रपति जे आर जयवर्धने ने राजीव गांधी सरकार के साथ 29 जुलाई 1987 को एक शांति समझौता कर लिया.
हालांकि इस बातचीत में वार्ता के लिए लिट्टे को एक पक्ष के रूप में शामिल नहीं किया गया था.
भारत-श्रीलंका शांति समझौते का उद्देश्य तमिल विद्रोहियों को निःशस्त्र कर वहां शांति की स्थिति को बनाना था.
Sri Lanka Map. (Pic: 3dnews)
शांति की पहल बनी हत्या का कारण!
हालांकि इस समझौते को लेकर श्रीलंका के राष्ट्रपति जयवर्धने खुश नहीं थे.
इसके बाद लिट्टे प्रमुख तमिल मांग पर बात करने के लिए राजीव गांधी से मिलने दिल्ली आया. हालांकि यहां राजीव ने उसकी एक न सुनी और उसके ऊपर समझौते की शर्त को मानने के लिए दबाव डाला. यहां तक कि उसे एक होटल में तब तक नजरबंद रखा गया, जब जक कि वो शर्तों को मानने के लिए राजी नहीं हो गया.
बहरहाल, प्रभाकरन ने शर्तों पर हामी भरी और यहीं से वह राजीव का दुश्मन बन गया. इसके बाद उसने श्रीलंका पहुंचकर राजीव की हत्या की साजिश रच डाली.
समझौते के तहत भारत को शांति बहाली के लिए अपनी सेना को श्रीलंका के उग्र इलाकों में तैनात करनी थी. लेकिन श्रीलंकाई लोगों के मन में इस बात के लिए सहमति नहीं थी और उन्होंने भारतीय सेना का विरोध करना शुरू कर दिया.
जब राजीव गांधी शांति समझौते के लिए कोलंबो पहुंचे, तो स्वागत परेड के दौरान श्रीलंका नेवी के एक सिपाही ने राजीव पर अपनी बंदूक की बट से जानलेवा हमला कर दिया.
गनीमत रही कि बगल के अंगरक्षकों की वजह से और राजीव की सतर्कता के कारण उन्हें कोई गहरी चोट नहीं पहुंची और राजीव इस घटना से बाल-बाल बच गए.
इस शांति मिशन में अपने लगभग 1200 सैनिकों को खो चुके भारत ने ने तब अपने आपको और अधिक ठगा हुआ महसूस किया जब श्रीलंका के राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदास ने भारतीय शांति सेना को देश से निकालने के लिए लिट्टे से हाथ मिला लिया.
1989 आते-आते राजीव की सरकार चली गई और केंद्र की वीपी सिंह सरकार ने अपने एक आदेश के तहत सेना को श्रीलंका से वापस बुला लिया.
Attacked on Rajiv Gandhi. (Pic: thenewsminute)
राजीव की एक घोषणा ने रची साजिश!
सरकार जाने के बाद राजीव गांधी ने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में घोषणा की कि अगर केंद्र में दोबारा से उनकी सरकार आती है तो वह एक बार फिर श्रीलंका में शांति सेना भेजेंगे.
राजीव की इस घोषणा ने श्रीलंका के तमिलों और शेष श्रीलंका के लोगों के मन में भय भर दिया.
इसी समय वीपी सिंह की सरकार गिर गई और राजीव अगले चुनावों की तैयारी में लग गए. वह पूरे देश में घूम-घूम कर अपनी पार्टी का प्रचार कर रहे थे.
ऐसे ही एक चुनाव प्रचार के लिए राजीव का तमिलनाडु जाने का कार्यक्रम तय हुआ. 21 मई, 1991 की रात करीब दस बजे राजीव तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर पहुंचे.
वहां अच्छी खासी भीड़ अपने पसंदीदा नेता का इंतजार कर रही थी. राजीव गांधी महिला दीर्घा में अभिवादन के लिए जाने लगे.
इतने में एक 30 साल की लड़की चंदन का एक हार लेकर राजीव की ओर बढ़ी. हालांकि पुलिस कांस्टेबल अनसुईया उस लड़की को रोकना चाहती थीं, लेकिन राजीव ने उस महिला पुलिसकर्मी को मना कर दिया.
उस महिला ने राजीव के गले में हार पहनाया और उनके पैर छूने को जैसे ही नीचे झुकी वहां जोर का धमाका हुआ और राजीव गांधी उस आवाज और धुंए के गुबार में कहीं खो गए.
जो महिला राजीव के पैर छूने की कोशिश कर रही थी, वह लिट्टे की आतंकवादी और मानव बम थिनमोझी राजारत्नम (धनु) थी. उसने पैर छूने के बहाने से अपने कपड़ों में छिपा रिमोट दबा दिया और वहां विस्फोट हो गया.
आस-पास खड़े लगभग 12 लोगों की मौत हो चुकी थी, और पत्रकारों ने राजीव को ढूंढने की कोशिश की, लेकिन उनका धड़ कई हिस्सों में बंट चुका था और सिर जमीन पर औंधा पड़ा हुआ था.
Rajiv Gandhi at the rally where he was assassinated. (Pic: Livemint)
आखिरकार, लगभग 7 साल बाद सोनिया का अंदेशा सही निकला और राजीव की हत्या कर दी गई.
उस रात 10 जनपथ ने सोनिया की चींख और रोने की आवाज को महसूस किया था.
Web Title: Story behind Rajiv Gandhi Assassination: Sonia Gandhi did not want Rajiv to Join Politics, Hindi Article
Feature Image Credit: The Quint