खबरिया चैनलों पर भुखमरी को लेकर अक्सर चर्चाएं गर्म रहती हैं. समय-समय पर रिपोर्ट भी आती रहती हैं, जो बताती है कि अमुक देश में इतने प्रतिशत लोग भूख से मरते हैं, उस देश में उतने प्रतिशत लोग मरते हैं.
किन्तु, क्या आपने किसी ऐसी घटना के बारे में सुना है, जिसमें इंसान की भूख ने उसे आदमखोर बना दिया हो!
ऐसा आदमखोर कि वह अपनी भूख का मिटाने के लिए अपने ही बच्चों को मार कर खाने लगे.
यकीन मानिये विश्व के इतिहास में ‘होल्डोमोर नाम का एक काला अध्याय भी दर्ज है, जिसके बारे में सुनकर ही लोगों की रुह कांप जाती है.
भयावह थी ‘त्रासदी‘ की शुरुआत
यह त्रासदी पहले विश्व युद्ध के करीब 10 साल बाद हुई. साल 1929 – 30 के समय यूक्रेन में सोवियत संघ आकार ले रहा था. सोवियत संघ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाना चाहता था. इसके चलते संघ ने यूक्रेन में कई तरह की योजनाएं लागू की, जोकि पूरी तरह से जनविरोधी साबित हुई.
खासकर संघ द्वारा किसानों के एकत्रीकरण करने की योजना से लोग नाखुश थे. इसके तहत संघ द्वारा किसानों को उनके पशुओं समेत उनके स्वामित्व वाले खेतों में ले जाया जाना था. वहां उनसे जबरदस्ती मजदूरों की भांति कार्य कराने की योजना थी. शुरुआत से ही इस योजना का दबे मुंह विद्रोह शुरु हो गया था.
किन्तु, यह विद्रोह उस वक्त बढ़ता दिखा, जब 1930 के आसपास सरकार ने अनाज के निर्यात को बढ़ाने के लिए विशेष खाद्य मांग का कार्यक्रम शुरू किया. इसके चलते संघ ने किसानों से अनाज लेकर उसे अपने स्वामित्व वाले शैलटरों में जमा कर लिया. यही नहीं, उसने अधिक मात्रा में अनाज को निर्यात करना शुरु कर दिया. इसका परिणाम यह हुआ कि यूक्रेन में अनाज की कमी पैदा हो गई.
इस त्रासदी को लाने में प्राकृतिक संसाधनों ने भी बड़ी भूमिका निभाई. उस समय यूक्रेन के अनाज पैदा करने वाले पौधों में कीड़े लग गये. इसके साथ 1932 में सूखा व बारिश ने लगभग 20% प्रतिशत फसल को नष्ट कर दिया.
The Famine Genocide of Ukraine, 1932-1933. In the (Pic: Pinterest)
महंगी पड़ी सोवियत संघ को मनमानी
यह यूक्रेन के लिए अकाल की एक चेतावनी जैसी थी, जिसे नजरअंदाज कर दिया गया. फलस्वरुप वहां की खेती का आधारभूत ढांचा गिरता चला गया. कुछ प्रकाशनों की मानें तो यूक्रेन में अनाज की कमी के बावजूद सोवियत सरकार मास्को के लोगों को अनाज पहुंचाने में लगी थी.
संघ की मनमानी यहीं नही रुकी, उन्होंने एक आर्डर भी पास किया जिसके तहत कोई भी किसान अपने खेत में अनाज नही उगा सकता था. अगर कोई व्यक्ति अनाज उगाता या संघ के शैलटरों से अनाज लेता पकड़ा जाता तो उसे मौत की सजा या फिर 10 साल कैद की सजा सुनाई जाती थी. परिणाम यह रहा कि यूक्रेन अकाल की ओर बढ़ चला.
सबसे पहले यूक्रेन के शहर ‘ऊमान’ से भूख के कारण हुई मौतों की खबर आई. इसके बाद भुखमरी पूरे यूक्रेन में मानो किसी महामारी की तरह फैली. शहर के शहर इसकी चपेट में आने लगे. लोग घंटों के हिसाब से कमजोर पड़ रहे थे. क्या बच्चे, क्या बूढ़े और क्या महिलाएं हर कोई भूख से बेहाल था.
शहरों के बाद भुखमरी की आग गांवों की तरफ बढ़ चली और यूक्रेन के हालात बिगड़ते चले गये.
Peoples During Genocide of Ukraine (Pic: buscandomontsalva)
जब इंसानों से ‘नरभक्षक’ बने लोग
भूख ने लोगों को कुछ इस कदर बेहाल कर दिया कि वह कुछ भी खाने को उतारु हो गए. यहां तक कि एक महिला को लोगों ने उसके घर में अपने ही बच्चे को खाते हुए देखा! यह दुनिया के सामने मानवता पर भयंकर प्रश्नचिन्ह लगाने वाली घटना थी. बाद में इसी तरह के कई और तस्वीरेंं देखी गई. एक रिपोर्ट की मानें तो सरकार द्वारा उस समय करीब 2500 लोगों को ऐसी अमानवीय घटनाओं के लिए सजा सुनाई गयी थी.
बावजूद इसके भुखमरी पर कोई लगाम नहीं लगाई जा सकी. धीरे-धीरे यूक्रेन वासियों ने इसके सामने अपने घुटने टेकने टेक दिये. उन्होंने मौत को गले लगाना शुरु कर दिया. सैकड़ों लोग रोजाना मौत की आगोश में जा रहे थे. आगे देखते ही देखते यह आंकड़ा इतना बढ़ गया कि 25,000 तक पहुंच गया. यह प्रतिदिन मरने वाले यूक्रेनियन की संख्या थी.
आखिरकार वर्ष 1933 के अंत तक इस त्रासदी का प्रभाव कुछ कम हुआ. धीरे-धीरे मरने वालों की गिनती में भी गिरावट आई. हालांकि, इसके बाद भी कई वर्षों तक इसका प्रभाव चलता रहा.
बाद में 1937 में नाज़ियों ने यूक्रेन पर हमला कर उसके एक बहुत बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया, जिससे यूक्रेन में सोवियत संघ का प्रभुत्व खत्म हो गया. यह त्रासदी इतनी बड़ी थी कि इसके लिए एक जांच समिति बनाई गयी. उसने पूरे मामले की पड़ताल के बाद अपनी एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें भुखमरी के चलते 1.8 से 15 मिलियन लोगों के जान गंवाने की बात कही गई.
Holodomor (Representative Pic: renegadetribune)
अभी भी मौजूद हैं ‘होल्डोमोर’
यूक्रेन में ‘होल्डोमोर’ की कटु यादों को आज भी देखा जा सकता है. वहां इस घटना से संबधित कई स्मारक स्थल बनाए गए हैं.
इनके अलावा 2008 में ‘होल्डोमोर पीड़ितों’ की याद में राष्ट्रीय संग्रहालय स्मारक भी खोला गया था. यह पेकर्सक पहाड़ियों पर स्थित है. यहां अकाल के समय की प्रदर्शनियां और कलाकृतियां मौजूद हैं. यूक्रेन में हर साल नवम्बर के चौथे शनिवार को ‘होल्डोमोर स्मरण दिवस’ मनाया जाता है.
यूक्रेन की इस त्रासदी का गुनहगार कौन था… इसको लेकर अलग-अलग मत हैं! कुछ लोग इसके लिए प्रकृति को जिम्मेदार मानते हैं, तो कुछ लोग सोवियत संघ की नीतियों को इसका जिम्मेदार मानते हैं.
कारण कुछ भी रहे हों, मगर इसकी कीमत लाखों यूक्रेन वासियों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. इस अनहोनी को टाला जा सकता था अगर सोवियत संघ अपने प्रभुत्व को बरकरार रखने की लालसा में जन विरोधी नीतियां न बनाता!
वह आम लोगों के साथ मिलकर इस आपदा का हल निकालने की कोशिश कर सकता था.
Memorial to the Holodomor Victims (Pic: travelblog)
यूक्रेन के ‘होल्डोमोर’ जैसी त्रासदी ने पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया था. कल्पना किया जा सकता है कि ऐसी त्रासदियों के वक्त मानव सभ्यता को किस तरह की मुसीबतों से गुजरना पड़ा होगा!
Web Title: Story of ‘Holodomor’ in Ukrainian, Hindi Article
Feature Image Credit Representative Pic: El Thawra