राजधानी दिल्ली की बात हो, या फिर गुलाबी शहर जयपुर की!
वहां देखने लायक स्थलों की बात जाती है, तो ‘जंतर-मंतर’ का नाम कहीं न कहीं आ ही जाता है. बहरहाल, ‘जंतर-मंतर’ केवल हमारे लिए नहीं, बल्कि विश्वभर के लिए शोध व चर्चा का विषय रहा है.
असल में कहा जाता है कि भविष्यवाणी, ग्रह-नक्षत्र, समय या यूं कहें कि खगोलीय समाचार के लिए जंतर-मंतर को बनाया गया. खास बात तो यह रही कि इसका निर्माण किसी वैज्ञानिक ने नहीं, बल्कि भारतीय शासक राजा जय सिंह ने कराया. उन्होंने भारत में एक नहीं, बल्कि पांच ‘जंतर-मंतर’ बनवाएं.
तो आईये भारत को ‘जंतर-मंतर’ जैसी धरोहर देने वाले इस महान राजा और उनकी इस अद्भुत खोज को जानने की कोशिश करते हैं–
कौन थे राजा जय सिंह?
जय सिंह का जन्म 1688 में राजस्थान के अम्बेर में हुआ था. वह महज 12 साल के थे, जब उनके पिता बिशन सिंह मृत्यु को प्यारे हो गए. ऐसे में बहुत छोटी सी उम्र में उन्हें सत्ता संभालनी पड़ी. वह उम्र में भले ही छोटे थे, किन्तु, उनके अंदर सीखने का जज्बा शुरु से ही था. यही कारण था कि पिता के जाने के बाद उन्होंने प्रभावशाली तरीके से पिता की विरासत को आगे बढ़ाया.
17 वीं सदी के आसपास उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर जिस तरह से आमेर से कुछ मील की दूरी पर एक नया शहर बसाया, उसकी जितनी चर्चा की जाए उतनी कम होगी. खास बात यह थी कि उन्होंने इस शहर को इतना सुन्दर बसाया कि वह इतिहास बन गया. शुरुआत में उन्होंने इसका नाम ‘सवाई जयनगर’ रखा, जोकि आज का जयपुर है.
राजा जय सिंह की सबसे खास बात यह थी कि वह प्रतापी राजा तो थे ही, किन्तु इसके साथ-साथ वह गणित और खगोल, ज्योतिष में भी खासी दिलचस्पी रखते थे. युद्ध और राजनीति में उलझे रहने के बावजूद उन्होंंने खगोलशास्त्र के नाम अपना लम्बा जीवन दिया. इसके लिए उन्होंने अपने गुरु पंडित जगन्नाथ सम्राट की मदद से न सिर्फ खगोलविद्या की शिक्षा ली, बल्कि अपने राज्य में इसका विस्तार भी किया.
1724 ईस्वी में उन्होंंने सबसे पहले दिल्ली की वेधशाला में धातु को छोड़ कर चूने और तराशे गए पत्थर से बड़े-बड़े गणना यंत्र बनवाए और बाद में जयपुर, मथुरा, बनारस उज्जैन और मथुरा में जंतर-मंतर का निर्माण कराया.
Sawaii Jai Singh (Pic: Rooms and Menus/Youtube)
इस कारण बनाए ‘जंतर-मंतर’
जंतर-मंतर को मौलवी-पंडित बहस की देन माना जाता है. बताया जाता है कि जयसिंह को जंतर-मंतर बनाने की प्रेरणा 1719 ई. में मुगल बादशाह मोहम्मद शाह के दरबार में किसी मुहूर्त को लेकर वहां पंडितों और मौलवियों में बहस छिड़ने के बाद मिली.
दरअसल मोहम्मद शाह को सैन्य कूच पर निकलना था, जिसके लिए शुभ मौके की तलाश थी, लेकिन ग्रहों की स्थिति को लेकर दोनों पक्षों में विवाद हो गया. विवाद के बाद उनके मन में भारी उथल-पुथल मची.
नजीजा यह रहा कि अगली सुबह राजा को चिंतामनन में टहलते देखकर मोहम्मद शाह ने इसका कारण पूछा. इस पर जयसिंह ने जंतर-मंतर बनाने की बात कही. बादशाह ने इस शानदार विचार से खुश होकर सहमति दिखाई.
फिर क्या था राजा जय सिंह ने जंतर-मंतर का काम शुरू कर दिया और भारत की धरोहर में एक और नाम दर्ज हो गया.
इस तरह अलग हैं ‘जंतर-मंतर’
राजा जय सिंह इसी वैज्ञानिक सोच ने उन्हेंं दूसरे राजाओं से अलग कर दिया. उन्होंने भले ही कई लड़ाईयां जीती, लेकिन उन्हें दुनिया ने ‘जंतर-मंतर’ की वजह से ही सही मायने तवज्जो दी. उनके जंतर-मंतर की थीम भले ही एक रही हो पर उनमें कुछ न कुछ अंतर जरूर रहे, जिनके कारण वह अलग-अलग खासियत रखते हैं–
- राजस्थान के जयपुर में मौजूद ‘जंतर-मंतर’ को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. यह भारत के बाकी के चार जंतर-मंतर से बड़ा भी है. साथ ही इसमें ज्यादा यंत्र लगाए गए हैं. यहां मौजूद ‘सूर्य घड़ी‘ दुनिया की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी के रूप में प्रसिद्ध मानी जाती है. 2010 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया था.
- दिल्ली के कनॉट प्लेस में मौजूद ‘जंतर-मंतर’ दिल्ली के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. इसे वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण कहा जाता है. इसकी खास बात तो यह है कि इसमें 13 खगोलीय यंत्र लगे हुए है, जहां विज्ञान का अलौकिक संगम देखने को मिलता है.
- मध्यप्रदेश का जंतर-मंतर उज्जैन में बनाया गया था. इसमें 5 यंत्र लगाए गए, जोकि मध्य प्रदेश की खास धरोहरों में से एक गिना जाता है. भले ही वह नष्ट होने के कगार पर है, लेकिन उसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है.
- उत्तर प्रदेश का जंतर-मंतर बनारस में बनाया गया. इसमें मात्र 6 प्रधान यंत्र बनाए गए, जो कि सम्राट यंत्र, लघु सम्राट यंत्र, दक्षिणोत्तर भित्ति यंत्र, चक्र यंत्र, दिगंश यंत्र, नाड़ी वलय दक्षिण और उत्तर गोल के नाम से जाने जाते हैं.
- बनारस के अलावा उत्तर प्रदेश के मथुरा में भी एक जंतर-मंतर का बनवाया गया. हालांकि, अब यह देखने की हालत में नहीं है. वह पूरी तरह से जर्जर हो चुका है.
Jantar Mantar at Jaipur (Pic:Vacation India)
कुल मिलाकर राजा जय सिंह ने अपने खगोलशास्त्र के दम पर जंतर-मंतर के रूप में भारत को नायाब नमूने दिए, उसके आधार पर उन्हें उस समय का वैज्ञानिक कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा!
उनकी काबीलियत ही थी कि उनकी उपलब्धि को देश-विदेश में आज भी याद किया जाता है, जोकि हमारे लिए गर्व का विषय है.
आज हम जिस तरह से मौसम, राशिफल, ग्रहों आदि की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं, उसके लिए जय सिंह के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है.
इसमें दो राय नहीं कि ‘जंतर-मंतर’ जैसे नमूना पेश करके, उन्होंने राजा शब्द को एक अलग पहचान दी, जिसके आधार पर हम कह सकते हैं कि राजा सिर्फ युद्ध कौशल का हुनर नहीं रखता. वह अपने कौशल से एक वैज्ञानिक भी बन सकता है.
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Web Title: Story of Jai Singh and Astronomy, Hindi Article
Feature Image Credit: jantarmantar.org