‘जब तक हमारी रगों में खून दौड़ रहा है, तब तक हम अपनी मातृभूमि के लिए लड़ते रहेंगे’
ये शब्द उन ‘रानियों’ के थे, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए अपना तन, मन, धन सबकुछ समर्पित कर दिया.
ये बात कौन नहीं जानता कि अंग्रेजों से लड़ाई के वक्त वतन ने कई वीर सपूत खोए. मगर जब आंदोलन की आग सबसे तेज थी, तब महिलाओं को भी इस लड़ाई में आने को कहा गया.
रैलियां हुईं, आह्वान हुए, पर दुर्भाग्यवश देश उस वक्त पुरुष प्रधान था! लिहाजा महिलाएं घर में बैठकर विरोध करने से ज्यादा कुछ नहीं कर सकती थीं.
हालांकि, इन सबके बीच महिलाओं का एक समूह भी वजूद में था, जिनका जज्बा दूसरों से कुछ हटकर करने का था. इन्हीं महिलाओं का समूह कहलाया ‘रानी झांसी रेजिमेंट’!
ऐसे में अब सवाल ये है कि आखिर ये रेजिमेंट कब और क्यों बना…आखिर वो कौन-कौन सी महिलाएं थीं, जो इसका हिस्सा बनी?
आईए जानते हैं-
सुभाष चंद बोस ने रखी थी नीव
वो 12 जुलाई 1943 का दिन था. सिंगापुर में नेता जी सुभाष चंद्र बोस की सभा आयोजित की गई थी. भीड़ यहां मौजूद थी, मगर इस भीड़ में कुछ ऐसा था जो सभी को आकर्षित कर रहा था. वो था सभा में मलाया और थाईलैंड से 25 हजार महिलाओं का यहां पहुंचना हुआ.
ये महिलाएं यहां नेता जी के विचारों को सुनने के लिए पहुंची थीं.
‘तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंगा’. नेता जी के इन शब्दों ने यहां आई सभी महिलाओं के दिलों में वो आग भड़का दी, जो देश की आजादी के लिए उस वक्त सबसे ज्यादा जरुरी थी.
इसके बाद वो दिन आया, जब हुआ रानी झांसी रेजिमेंट का गठन! 15 जुलाई 1943 को 20 महिला सैनिकों की भर्ती के साथ एक रेजिमेंट बनाया गया और इस रेजीमेंट को नाम दिया गया ‘रानी झांसी रेजिमेंट’! असल में सुभाष चंद्र बोस जानते थे कि सिर्फ पुरुषों की भागीदारी से आजादी की जंग नहीं जीती जा सकती.
हालांकि, जब सुभाष चंद्र बोस ने इस रेजिमेंट के बनने की घोषणा की तो लोग चौंके भी. ऐसा इसलिए क्योंकि उस वक्त समाज पितृसत्तात्मक यानी पुरुष प्रधान था. वहीं दूसरी तरफ महिलाओं में इसे लेकर उत्साह था.
Subhash Chandra Bose (Pic: commons)
वक़्त के साथ-साथ हुआ विस्तार
चूंकि, रेजिमेंट का विस्तार जरुरी था.
लिहाजा जुलाई 1943 के आखिर में इस रेजिमेंट में 50 और महिला सैनिकों की भर्ती की गई. डॉ. लक्ष्मी स्वामी नाथन को रेजीमेंट का पहला कैप्टन बनाया गया. उन्होंने अंग्रेजों से मोर्चाबंदी में मुख्य भूमिका निभाई.
इसके बाद अगस्त के महीने में 500 महिलाओं को सैन्य प्रशिक्षण के लिए चुना गया. इसमें से सिर्फ 150 महिला सैनिकों का ही चयन रानी झांसी रेजीमेंट के लिए हुआ.
22 अक्टूबर 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने रानी झांसी रेजीमेंट की घोषणा पूरी दुनिया में कर दी. जब नंवबर का महीना आया, तब इस रेजीमेंट में महिलाओं की संख्या 300 के पास पहुंच चुकी थी. ऐसा नहीं है कि सिर्फ सिंगापुर में ही रेजिमेंट की महिला सैनिकों को प्रशिक्षित किया गया. बल्कि, सिंगापुर के बाद रंगून के तिगांन्यू मे दूसरा प्रशिक्षण शिविर लगा.
Story Of Rani Jhansi Regiment (Pic: defenceforumindia)
कड़ी ट्रेनिंग के बाद बनती थीं ‘महिला सिपाई’
रेजीमेंट में मुख्य तौर पर 2 विभाग थे. पहला सैन्य विभाग और दूसरा परिचारिका. बहुत कम लोग ये जानते हैं कि रानी झांसी रेजिमेंट में जो महिलाएं शामिल थीं, उन्हें ‘रानी’ कहकर पुकारा जाता था.
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस रेजिमेंट में महिलाओं को प्रशिक्षित कैसे किया जाता रहा होगा? तो बताते चलें कि इनका प्रशिक्षण पुरुषों सेना की तरह ही था. महिलाएं-लड़कियां पहले साड़ी में देश रक्षा की शपथ लेती थींं. उसके बाद उन्हें वर्दी दी जाती थी.
रेजिमेंट में शामिल महिलाओं की वर्दी का रंग खाकी हुआ करता था. यही नहीं महिलाओं को अपने लंबे बालों की भी कुर्बानी देनी पड़ती थी. जंग के दौरान बाल बाधा न बने इसके लिए महिलाओं को अपने बाल छोटे करवाने पड़ते थे.
महिलाएं और लड़कियां रैंक के हिसाब से कंधे पर बैच लगाती थीं.
चूंकि देश के अलग-अलग हिस्सों से आकर महिलाएं, इस रेजिमेंट में शामिल होती थीं. लिहाजा सभी की भाषा अलग-अलग होती थी. मगर ऐसे में संवाद में किसी तरह की दिक्कत न हो इसके लिए सभी महिला सैनिकों का हिंदी जानना बेहद जरुरी होता था. ताकि वो आपस में ठीक से बातचीत कर सकें. महिलाओं को ट्रेनिंग के दौरान हाथ गोले फेंकने भी सिखाए जाते थे.
आपको जानकर हैरानी होगी कि महिला सैनिक अपने साथ पोटैशियम सायनाइड (जो कि एक जहर है) लेकर चलती थीं, लेकिन कभी भी इसके इस्तेमाल की जरूरत उन्हें नहीं पड़ी.
महिलाओं को नक्शा पढ़ना व सेना में काम करने के तौर तरीकों के बारे में भी बताया जाता था. ताकि, वो हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहें. कहते है कि उन्हें ये तौर तरीके खुद नेताजी सुभाष चंद्र बोस सिखाते थे!
इम्फाल के युद्ध में दिखाया हुनर
वह द्वितीय विश्वयुद्ध का समय था, जब जापान ने बर्मा पर कब्जा कर लिया था. बर्मा पर कब्जा करते ही जापान ने मित्र सेनाओं की जमीन पर मौजूद सप्लाई चेन काट दी.
इसके बाद जापानी सेना पूर्वोत्तर भारत के नगालैंड और मणिपुर में दाखिल हुई. कोहिमा इम्फाल रोड पर जापानी सेना ने अपना नियंत्रण कायम कर लिया.
जापानी सेना को रोकने के लिए मित्र सेनाओं के पास हवाई हमले के अलावा कोई विकल्प नहीं था. वहीं जमीन पर जापान को आगे बढ़ने से रोकने की जिम्मेदारी कोहिमा में ब्रिटिश इंडियन फौज के पास थी.इस दौरान भारतीय सेना के साथ इन रानियों को भी बर्मा में तैनात किया गया था.
इस बीच 4 अप्रैल से 22 जून 1944 तक कोहिमा में भयंकर युद्ध हुआ. इसे बैटल ऑफ कोहिमा के नाम से भी जाना जाता है. मार्च से जुलाई 1944 तक इम्फाल में भी भीषण लड़ाई चली. ये युद्ध निर्णायक साबित हुए. दोनों जगह करीब 80 हजार सैनिक मारे गए.
इन हारों ने दक्षिण एशिया में जापान का आगे बढ़ना रोक दिया.
इसके बाद जापानी सेना के पैर उखड़ने लगे. इस जीत में रानी रेजिमेंट का सहयोग अभूतपूर्ण था. कहा जाता है कि जब सुभाष चंद्र बोस ने इन्हें युद्ध से वापस आने का आदेश दिया तो, इन्होंने एक कागज में अपने खून से हस्ताक्षर कर लिखा कि ‘जब तक हमारी रगों में खून दौड़ रहा है तब तक हम अपनी मातृभूमि के लिए लड़ते रहेंगे’.
इसके साथ ही रानी झांसी रेजिमेंट की इन वीरांगनाओं ने पूरी दुनिया को अपनी ताकत दिखा दी.
The Battle of Kohima (Representative Pic: armytigers)
किसी जासूस से कम नहीं थीं यह महिलाएं!
रानी झांसी रेजिमेंट का हर एक सदस्य देशभक्ति की भावना से हमेशा ओतप्रोत रहता था.
देश के आजाद होने से पहले जब अंग्रेजी हुकूमत से लड़ाई चल रही थी. इस दौरान इस रेजिमेंट की महिला सदस्यों ने अपना सहयोग दिया. जब भी झड़पें होती थीं, तब वो भी अंग्रेजों से मुकाबला करती थीं.
यही नहीं जब अंग्रेज यहां थे, तो शिविरों में महिलाओं को निर्दोष लड़कियों के रूप में खड़ा किया जाता था. ताकि उनके जाने के बाद वह उनकी गोपनीय बातों को जान सकें.
अंग्रेज सोचते थे कि ये लड़कियां हैं इसलिए वो इन्हें नजर अंदाज कर देते थे, जोकि उनकी बहुत बड़ी गलती साबित हुई. यह लड़कियां इतनी समझदार थीं कि अंग्रेजी अफसरों की हर बात सुनकर अपने आगे का प्लान बना लेती थीं.
Story Of Rani Jhansi Regiment (Pic: scoopwhoop)
ऐसे भंग हुआ था रेजिमेंट !
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की शिकस्त के बाद ब्रिटिश सेनाओं ने आजाद हिंद फ़ौज के सैनिकों की भी धरपकड़ शुरू की. इसी धरपकड़ में सिंगापुर में इस रेजिमेंट की कैप्टन डॉ. लक्ष्मी सहगल को गिरफ्तार किया गया.
कहा जाता है कि इनकी गिरफ्तारी के बाद ही रेजिमेंट को भंग करने की घोषणा कर दी गई. यह लक्ष्मी सहगल की सूझ-बूझ और औरतों को प्रोत्साहित करने का तरीका ही था, जिसके दम पर ‘रानी झांसी रेजिमेंट’ काफी समय तक ताकतवर बनी रही.
एक बार जैसे ही उन्हें पकड़ा गया सब को इस बात का डर सता गया कि कहीं रेजिमेंट से जुड़ी सारी बातें सामने न आ जाए. अगर ऐसा हो जाता तो बाकी महिलाओं के लिए यह एक बड़ी परेशानी बन जाता. यही कारण था कि इसे हमेशा के लिए ख़त्म करने का फैसला ले लिया गया.
इसके साथ ही बहादुर महिलाओं की इस रेजिमेंट का अंत हो गया.
Captain Lakshmi Sahgal (Pic: thebetter)
‘रानी झांसी रेजिमेंट’ ने जो योगदान दिया वो सराहनीय है. आप भी अगर इस रेजिमेंट के बारे में कुछ जानते हैं तो हमे नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं.
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