दुश्मन ऊंची पहाड़ी से ताबड़तोड़ गोलियां बरसा रहा था. आगे बढ़ने की कोशिश में कुछ साथी जान गँवा चुके थे. कुछ बुरी तरह घायल दर्द से कराह रहे थे. स्थिति बेकाबू होती जा रही थी…
इसी बीच एक जांबाज सिपाही ने अपने कंधे पर गन मशीन रखकर दुश्मन की ओर दौड़ना शुरु कर दिया. वह दुश्मन के हर वार का मुंहतोड़ जवाब दे रहा था!
दुश्मन की आंखों में उसका खौफ साफ तौर पर देखा जा सकता था, इसी बीच उस वीर की बंदूक में गोलियां खत्म हो गई. दुश्मन को लगा कि उनकी मौत टल गई. वह अपने भगवान को थैंक्स कहते, इससे पहले वह योद्धा उन पर काल बनकर टूट पड़ा.
यह योद्धा कोई और नहीं कारगिल युद्ध के परमवीर चक्र से सम्मानित ‘राइफलमैन संजय कुमार’ थे!
तो आईये कारगिल युद्ध में उनकी जांबाजी की पूरी कहानी जानने की कोशिश करते हैं–
अपनों से मिला था ‘देश सेवा’ का भाव
संजय का जन्म 03 मार्च, 1976 को हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में हुआ था. घर के आर्थिक हालात ज्यादा अच्छे नहीं थे. उनके पिता दुर्गाराम जैसे-तैसे घर का खर्च चलाते थे. बावजूद इसके उन्होंने संजय की पढ़ाई में कोई अवरोध नहीं आने दिया. उन्होंने शुरुआती शिक्षा के लिए संजय को पहले ‘कलोलच हाई स्कूल’ भेजा और बाद में उच्च शिक्षा के लिए बिलासपुर.
संजय के चाचा भी फौज में थे, जो 1965 के भारत-पाक युद्ध का हिस्सा रह चुके थे. यही नहीं संजय के गांव के कई अन्य लोग फौज में थे. इस लिहाज से वह बचपन से ही फौज के किस्से सुनकर बड़े हुए थे.
Rifleman Sanjay Kumar (Pic: southreport)
जब ‘डाकिया चाचा’ नियुक्ति-पत्र लाये
बिलासपुर से उच्च शिक्षा लेने के बाद तुरंत बाद ही संजय ने अपने बचपन के सपने को पूरा करने के लिए हाथ-पैर मारने शुरु कर दिए. वह फौज में रहे लोगों के पास जाते, और उनसे फौजी बनने के गुर सीखते. उन्होंने खुद को पूरी तरह फौजी बनने के लिए झोंक दिया था. जल्द ही वह दिन आ गया, जिसका उनको इंतजार था.
साल 1996 उनके लिए खुशखबरी लेकर आया था. गांव के ‘डाकिया चाचा’ उनके नाम का एक पत्र लेकर आये थे. भूरे रंग के इस लिफाफे को खोलकर संजय ने देखा तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा. फौज से बुलावा आया था.
वह फौज की परीक्षा पास करने में सफल हो चुके थे. खुशी-खुशी वह पिता का आशार्वाद लेते हुए अपनी ट्रेनिंग के लिए निकल गये.
नौकरी के तीन साल में ही ‘कारगिल’
ट्रेनिंग के बाद वह 13 जम्मू एण्ड कश्मीर राइफल्स का हिस्सा बने. उनकी नौकरी को कुछ ही वक्त ही बीता था कि 1999 में पाकिस्तान ने कारगिल का युद्ध छेड़ दिया.
उनकी यूनिट को फ्लैट टॉप प्वाइंट 4875 पर तिरंगा फहराने का जिम्मा दिया गया था. उन्हें अपनी टुकड़ी के साथ हजारों मीटर ऊपर बैठे दुश्मन को मार गिराने का जिम्मा सौंपा गया. उन्होंने पहाड़ी पर चढ़ना शुरू ही किया था कि दुश्मन ने अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरु कर दी. इस हमले में उनके कुछ साथी शहीद हो गये थे.
वह रुकना चाहते थे, लेकिन अपने साथियों के लिए आंसू बहाने तक का समय उनके पास नहीं था. चूंकि इस रास्ते में दुश्मन सतर्क था, इसलिए उनके अफसर ने ऐसे रास्ते से उन तक पहुंचने का प्लान बताया, जिसके बारे में दुश्मन कभी सोच भी नहीं सकता था.
उनको अब बिल्कुल खड़ी चट्टान की मदद से ऊपर जाना था.
Rifleman Sanjay Kumar, Kargil (Representative Pic: indianexpress)
कूट-कूट कर भरी थी ‘लीडरशिप’
जल्द ही संजय की टोली दुश्मन-बंकर के नजदीक जा पहुंची. इसी के साथ दोनों तरफ से गोलियों की बौछार शुरु हो गई. दुश्मन उंचाई का फायदा उठाते हुए लगातार गोलियां दाग रहा था. बीच-बीच में तो उसने बमबारी तक शुरु कर दी थी. यह देखकर संजय ने सोचा कि अगर वह दुश्मन के इस बंकर को उड़ा देते हैं, तो उनका आगे बढ़ना आसान हो जायेगा.
इसी सोच के साथ वह अपनी बंदूक को लेकर दुश्मन की ओर दौड़ पड़े. उनके साथियों ने उन्हें रोकना चाहा, लेकिन वह नहीं रुके. तेजी से बढ़ते हुए उन्होंने एक हथगोला दुश्मन के बंकर पर दाग दिया. हथगोला फटते ही बंकर नष्ट हो गया. उन्होंने साथियों से कहा, किसी भी सूरत में आज अपनी पोस्ट को हासिल करना है.
संजय के शब्दों ने साथियों में जान फूंकने का काम किया!
वह दुश्मन पर टूटे तो दुश्मन बौखला गया. उसने छिपकर गोलियां बरसानी शुरु कर दीं. इसमें दो गोलियां संजय को आ लगी. वह बुरी तरह से घायल हो गए. उनके शरीर से खून बह रहा था, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और दुश्मन पर गोलियों की बौछार जारी रखी.
Sanjay Kumar in Kargil War 1999 (Representative Pic:: rightlog.in)
जल्द ही दुश्मन पस्त हो गया. इसका फायदा उठाकर संजय ने छिपे घुसपैठियों को भी मार गिराया. यह उनकी बड़ी सफलता थी, लेकिन अभी मिशन अधूरा था. देर न करते हुए वह अपने कंधे पर मशीनगन रखकर आगे बढ़े और गोलियां बरसाना शुरु कर दीं. दुश्मन उनकी बंदूक की नोक पर था, तभी उनकी गोलियां खत्म हो गई. दुश्मन ने सोचा कि बच गया, लेकिन संजय उन पर बिना हथियार के ही झपट पड़े.
अंतत: वह सफल रहे और बंकर में छिपे घुसपैठियों का काम तमाम कर दिया.
संजय कुमार को इस तरह लड़ते देख उनके साथी उत्साह से भर उठे. वह ‘जय माता दी’ के नारे के साथ दुश्मन पर टूट पड़े. इसके बाद तो देखते ही देखते दुश्मन के बाकी बंकर भी संजय की टोली ने खत्म कर दिए. मिशन पूरा हो चुका था ‘फ्लैट टॉप प्वाइंट 4875’ पर भारतीय तिरंगा लहरा रहा था.
घायल संजय कुमार को हेलिकाप्टर से श्रीनगर लाया गया, उनको देखकर सभी का सीना गर्व से चौड़ा था. सबकी जुबान पर यहीं शब्द थे कि ‘शाब्बास! राइफलमैन संजय कुमार’… देश को तुम पर नाज है.
Indian Flag In Kargil War 1999 (Representative Pic: gourangachatterjee)
इस युद्ध में संजय की दाहिनी टांग और पीठ पर गोली लगी थी, जिनको बाद में ऑपरेशन करके उनके शरीर से निकाला गया.
इस तरह से देश का यह जांबाज जीत हासिल करने के साथ-साथ मौत को भी मात देने में सफल रहा. वर्तमान में वह बतौर नायाब सूबेदार देश की सेवा कर रहे हैं. संजय को उनकी दिलेरी के लिए भारत सरकार उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित कर चुकी है.
बताते चलें कि संजय मात्र तीन वर्ष सेना में रह कर ही ‘परमवीर चक्र सम्मान’ पाने वाले सिपाही हैं. उनकी दिलेरी की कहानी को आने वाला वक्त हमेशा याद रखेगा.
Web Title: Story of Rifleman Sanjay Kumar, Hindi Article
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