ठग शब्द का सामान्य अर्थ है – ऐसा व्यक्ति जो धोखा देकर लोगों के धन लूट लेता हो, लेकिन अंग्रेजी शब्दकोश में इस शब्द का मतलब इससे कुछ ज्यादा है. इंग्लिश डिक्शनरी में ठग का अर्थ ऐसे व्यक्तियों से है, जो लूटने के बाद हत्याएं करता हो.
यानी अंग्रेजी में ठग शब्द के अर्थ में लूट के बाद हत्या अनिवार्य रूप से जुड़ा है.
असल में अंग्रेजी शब्दकोश और भाषा में ठग शब्द 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आया और इसका अपना एक खूनी इतिहास है.
18वीं शताब्दी के आखिर से लेकर 19 शताब्दी के मध्य तक भारत में ठगों का एक बड़ा गिरोह सक्रिय था. यह गिरोह न केवल यात्रियों को लूटता था, बल्कि बड़ी बेरहमी से उनकी हत्याएं भी करता था.
इस गिरोह में एक नाम बहुत कुख्यात था. वह था ठग बेहराम.
ठग बेहराम की यह कहानी किसी फिल्मी प्लॉट कम मजेदार नहीं है.
भारत में बहुत पुराना है ठगों का इतिहास
देखा जाए, तो भारत में ठगों का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन इसे तारीख में जगह मिली 17वीं शताब्दी के बाद. 17वीं शताब्दी में अंग्रेज व्यापार करने के इरादे से भारत में आए, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने भारत पर अधिपत्य कायम करना शुरू किया.
इसी दौर में मध्य भारत में लूट और हत्या की घटनाएं इतनी ज्यादा होने लगीं कि अंग्रेजों की नींद उड़ गयी. दिलचस्प बात यह थी कि सभी हत्याओं का तौर-तरीका एक-सा था.
सबसे पहले ठग यात्रियों से दोस्ती करते. उनका भरोसा जीतते. साथ खाते-पीते और कहीं अनजान जगह पर पहुंचकर पीले रंग के रूमाल (रूमाल में एक सिक्का लगा होता था) से गला दबाकर हत्या कर देते. हत्या करने के बाद उनका सारा सामान लूट लेते.
कहते हैं कि उस दौर में हर साल औसतन 40 हजार मुसाफिरों की हत्याएं की जाती थीं.
Thugs of India (Representative Pic: damninteresting)
ऐसे हुआ ठगों की दुनिया में बेहराम का प्रवेश
18वीं शताब्दी के मध्य तक आते-आते ठगों के कई गिरोह सक्रिय हो गए थे.
इसी दौर में सन् 1765 में बेहराम का जन्म मध्य भारत के जबलपुर (संप्रति मध्यप्रदेश का हिस्सा) के किसी गुमनाम गांव में हुआ था.
उसके बारे में इतिहास में बहुत अधिक जानकारी दर्ज नहीं है. फिर भी अलग-अलग स्रोतों से जो तथ्य मिलते हैं, उनके मुताबिक बेहराम बचपन में बहुत सीधा-सादा था.
बाद में जब उम्र बढ़ी, तो उसकी दोस्ती सैयद अमीर अली से हो गयी. उस वक्त बेहराम की उम्र करीब 25 साल रही होगी. बताते चलें कि अमीर अली भी अपने समय का कुख्यात ठग था. उसे सन 1839 में इंग्लैंड ले जाया गया था, जहां उसका बयान दर्ज किया गया.
अमीर अली के बयान के आधार पर एक किताब लिखी गयी-कनफेशन्स ऑफ ए ठग. यह किताब उस जमाने की बेस्टसेलर थी.
बहरहाल, हम लौटते हैं बेहराम की कहानी की ओर.
अमीर अली ने बेहराम को ठगों की खूंखार दुनिया से परिचय कराया. फिर क्या था, देखते ही देखते बेहराम ठगों का सरदार बन बैठा और अमीर अली बना उसका लेफ्टिनेंट.
बेहराम के साथ एक महिला भी रहा करती थी. उसका नाम था डॉली. हालांकि, बाद में दोनों में विच्छेद हो गया.
Thug Behram (Representative Pic: Saga Edberg/Youtube)
बेहराम के नेतृत्व में 2 हजार से ज्यादा ठग थे सक्रिय
सन् 1790 में बेहराम ठगों की दुनिया में आया था और 10 साल में ही उसने इतनी हत्याओं को अंजाम दिया था कि उसका नाम खौफ का पर्याय बन गया. वह अपने पास हमेशा पीले रंग का रेशम का एक रूमाल रखा करता था, जिसे गले में फंसाकर वह मुसाफिरों की हत्या करता और उसका सामान लूट लेता.
ठगों के खौफ का आलम ये था कि लोगों को भनक भी लग जाती कि फलां रास्ते में ठगों को देखा गया है, तो लोग अपना रास्ता बदल लेते. बेहराम ने करीब 2 हजार ठगों का एक ग्रुप बना लिया था, जिसने मध्य भारत में डर का साम्राज्य कायम कर रखा था.
इधर, ठगों के आतंक की कहानी इंग्लैंड में भी गूंजने लगी थी. ब्रिटिश हुकूमत ने ठगों का पता लगाने के लिए 5 जांचकर्ताओं की एक टीम भारत भेजी. काफी मेहनत करने के बाद भी जांचकर्ता इतना ही पता कर पाए कि ठगों के सरदार का नाम बेहराम है.
यह सूचना गवर्नर-जनरल तक तो पहुंची, लेकिन इस बीच पांचों जांचकर्ता की हत्या भी हो गयी.
Meet Thug Behram With His Gang (Representative Pic: Bodahub)
स्लीमैन को मिली बेहराम को पकड़ने की जिम्मेवारी
पूरे मध्य भारत में बेहराम व उसके गिरोह का आतंक बढ़ता ही जा रहा था, जिससे अंग्रेज भी काफी दबाव में आ गए थे. जितने भी जांचकर्ता भेजे गए थे, सबकी हत्या की जा चुकी थी.
ऐसे नाजुक वक्त में ठगों को गिरफ्तार करने की जिम्मेदारी कैप्टन विलियम स्लीमैन को मिली. कैप्टन स्लीमैन का जन्म 1788 में कॉर्नवाल में हुआ था. हिन्दुस्तानी और अरबी भाषा उसे बहुत भाती थी, इसलिए उसने दोनों ही भाषाएं सीखीं.
ब्रिटिश आर्मी में भर्ती होकर दूसरे देश में काम करना उसकी दिली ख्वाहिश थी. यह ख्वाहिश सन् 1809 में पूरी हुई, जब आर्मी का कैप्टन बनकर वह भारत आया. उसने कलकत्ता में लंबा वक्त बिताया. इसके बाद उसका ट्रांसफर मध्य भारत में कर दिया गया.
सन् 1822 में वह नरसिंहपुर जिले का मजिस्ट्रेट बन गया. उस समय उसके पास जानकारी के नाम पर इतना ही पता था कि ठगों के सरदार का नाम बेहराम है. ठगों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए स्लीमैन एक शहर से दूसरे शहर में भटकता रहा, पर कामयाबी कोसों दूर थी.
इस बीच भारत के गवर्नर जनरल के रूप में लॉर्ड बेंटिक की नियुक्ति हुई. ठगों के गिरोह का पर्दाफाश करने में सेलीमैन को लॉर्ड बैंटिक की तरफ से न केवल खुली छूट मिली, बल्कि सुरक्षाबलों की मदद भी दी गयी.
Portrait of General Sir W. H. Sleeman (Representative Pic: Projectgutenberg)
…और ठग अमीर अली ने उगल दिए सारे राज
शुरू के कुछ सालों तक स्लीमैन को हर कदम पर नाकामयाबी ही हाथ लगी.
बहुत कोशिश के बाद उम्मीद की एक चमकदार किरण उसे तब दिखी जब बेहराम के सहयोगी ठग सैयद अमीर अली के ठिकाने के बारे में सूचना मिली.
ब्रिटिश फौज अमीर अली के घर पहुंचती कि अमीर अली फरार हो चुका था. घर में उसकी मां व परिवार के अन्य सदस्य मिले, तो उन्हें ही गिरफ्तार कर लिया गया.
पारिवार को बचाने की खातिर सन् 1832 में अमीर अली ने सरेंडर कर दिया. जेल में उसे भयानक यातना दी जाने लगी, तो आखिरकार उसने बेहराम के बारे में पूरी जानकारी अंग्रेजों को दे दी. अमीर अली की निशानदेही पर सन 1838 में बेहराम को भी गिरफ्तार कर लिया गया.
बेहराम से जब पूछताछ की गयी, तो उसने बताया कि एक छोटे से रूमाल से उसने 9 सौ से अधिक लोगों की हत्या की थी!
गिरफ्तारी के महज एक साल बाद यानी 1839 में बेहराम को फांसी दे दी गयी.
Thug Behram Found Man Hanging (Representative Pic: opramixes)
इस तरह इतिहास में उसका नाम एक ऐसे निष्ठुर व्यक्ति के रूप में दर्ज हुआ, जिसने अपनी जिंदगी में महज एक रूमाल से रिकॉर्ड 931 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था.
Web Title: Story of Serial Killer Thug of India Thug Behram, Hindi Article
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