इतिहास के पन्नों को अगर खोला जाए तो भारत की आज़ादी में सरदार वल्लभभाई पटेल का नाम अलग ही नज़र आता है.
वल्लभभाई पटेल भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े ऐसे नाम हैं, जिन्हें भारत के वर्तमान भौगोलिक स्वरूप का निर्माता माना जाता है. उन्हें 560 से ज्यादा रियासतों को भारतीय गणराज्य में मिलाने का श्रेय जाता है.
इसके लिए सरदार पटेल को ‘भारत का बिस्मार्क‘ भी कहा जाता है.
वल्लभभाई पटेल ने हमेशा अपने व्यक्तिगत हितों के बारे में ना सोचकर देश की भलाई के बारे में सोचा. वह गांधी युग के उन चंद नेताओं में शामिल थे जो सिर्फ सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं बल्कि अपने सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए जनसेवा के लिए काम करते थे.
तो चलिये आज भारत के ‘लौहपुरुष’ कहे जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवन को करीब से जानने की कोशिश करते हैं–
विदेश जाकर पैसा कमाना था सपना, लेकिन…
गुजरात के नडियाद शहर में एक किसान परिवार में सरदार पटेल का जन्म हुआ था. तारीख़ थी 31 अक्टूबर 1875.
उनके पिता का नाम झवेरभाई और माता का नाम लाडबा देवी था. सरदार पटेल अपने तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे थे.
सरदार पटेल के सपने बड़े थे. वे विदेश जाकर पढ़ना, पैसा कमाना और एक संपन्न जीवन जीना चाहते थे पर उनकी किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था.
सन 1893 में 16 साल की आयु में ही उनका विवाह झावेरबा के साथ कर दिया गया था. बावजूद इसके उन्होंने अपने सपनों को नहीं छोड़ा और उन्हें पूरा करने के लिए निरंतर प्रयास करते ही रहे. शादी के बाद वह जिंदगी की कशमकश में कुछ इस तरह फंसे कि पढ़ाई से उनका ध्यान हटने लगा.
वह परीक्षा पास ही नहीं कर पा रहे थे.
22 की उम्र गुजर गई और तब जाके सरदार पटेल अपनी मैट्रिक की परीक्षा पूरी कर पाए. पढ़ाई बाधित होने के कारण वल्लभभाई के परिवार वाले उन्हें नाकारा समझने लगे थे. उन्हें लग रहा था कि वल्लभभाई के पास भविष्य के लिए कोई लक्ष्य ही नहीं है.
वह सब अंजान थे कि कुदरत उन्हें खुद ब खुद उनकी मंजिल की ओर ही ले जा रही है!
वल्लभभाई ने कई सालों तक अपने परिवार से दूर रहकर खुद ही वकालत की पढ़ाई की. उस समय वह दूसरे वकीलों से किताबें उधार लेकर पढ़ते थे. वल्लभभाई की मेहनत रंग लाई और उन्होंने दो साल के भीतर ही अपनी परीक्षा पास कर एक वकील के रूप में अपनी पहचान बनाई.
इसके बाद वह अपनी पत्नी के साथ गोधरा आ गए. उन्होंने दाम्पत्य जीवन शुरू किया और अपनी वकालत भी. वल्लभभाई की जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आई ही थी कि उनके सामने नई मुसीबतें आ गई.
गोधरा आने के थोड़े समय बाद ही वल्लभभाई की पत्नी को कैंसर की बीमारी हो गई. उन्होंने इलाज करवाया… कई डॉक्टरों के पास वह गए, मगर कोई कुछ भी नहीं कर पाया. आखिर में उनकी पत्नी की मौत हो गई!
इस बात ने वल्लभभाई को अंदर तक तोड़ दिया था. उन्होंने अपने आप ही अपने बच्चों को पालने की ठानी और दूसरी शादी करने से मना कर दिया.
इसके बाद वह लंदन की ओर निकल गए बुरी यादों से बाहर निकलने और जीवन की नई शुरुआत करने के लिए. लंदन में ही उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई की और एक बड़े आदमी बनके अपने देश वापस लौटे.
Sardar Vallabhbhai Patel (Pic: educationflash)
महात्मा गांधी से हुए प्रभावित
वल्लभभाई पटेल जब भारत वापस आए तब तक भारत में महात्मा गांधी की लहर चल चुकी थी. वल्लभभाई ने भी उनके बारे में बहुत सुना था. उन्होंने महात्मा गांधी के विचारों को समझा और इन चीजों ने उन्हें बहुत प्रभावित किया.
सन 1917 में महात्मा गांधी से प्रभावित होने के बाद सरदार पटेल ने पाया कि उनके जीवन की दिशा बदल चुकी है. यहाँ से उनके जीवन का एक नया सफर शुरु हुआ, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में.
वह लंदन से आए तो एक सूट-बूट वाले बाबू की तरह थे मगर यहाँ आते ही वह पूरी तरह स्वदेशी बन गए.
अपने मित्रों के आग्रह पर वल्लभभाई ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा और उसमें विजयी हुए. सरदार पटेल गांधी जी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से भी काफी प्रभावित थे.
सन 1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में सूखा पड़ा. किसानों ने कर से राहत की मांग की, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मना कर दिया. गांधीजी ने किसानों का मुद्दा उठाया पर वो अपने दूसरे आंदोलनों के कारण अपना पूरा समय खेड़ा में नहीं दे सकते थे. इसलिए उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो इस संघर्ष का नेतृत्व कर सके. इस समय सरदार पटेल स्वेच्छा से आगे आये और संघर्ष का नेतृत्व किया.
सरदार पटेल एक सफल वकालत के पेशे को छोड़कर सामाजिक जीवन की ओर अपने कदम बढ़ा रहे थे. उन्होंने खेड़ा में किसानों के संघर्ष का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया, जिसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने राजस्व की वसूली पर रोक लगाकर कर को वापस लिया.
वर्ष 1919 में संघर्ष खत्म हुआ और खेड़ा सत्याग्रह से वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय नायक के रूप में उभर कर सामने आये.
वल्लभभाई ने गांधी जी के असहयोग आंदोलन का समर्थन किया और गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में अहमदाबाद में ब्रिटिश सामान के बहिष्कार के आयोजन में मदद की. इसके बाद उन्होंने पूरी तरह से ब्रिटिश चीजों का बहिष्कार किया और खादी पहन स्वदेशी बन गए. वह पूरी तरह से महात्मा गांधी के बताए रस्ते पर चलने लगे थे.
Pandit Jawaharlal Nehru, Mahatma Gandhi And Sardar Vallabhbhai Patel (Pic: wikimedia)
जब मिली ‘सरदार’ की उपाधि
वर्ष 1928 में गुजरात का बारडोली तालुका बाढ़ और अकाल से पीड़ित था. संकट की इस घड़ी में ब्रिटिश सरकार ने राजस्व कर को तीस प्रतिशत तक बढ़ा दिया था. सरदार पटेल किसानों के समर्थन में उतरे और गवर्नर से कर को कम करने की गुहार लगाई.
तब गवर्नर ने कर को कम करने से इनकार कर दिया!
सरदार पटेल ने किसानों को इकठ्ठा किया और उनसे कर की एक भी पाई न चुकाने के लिए कहा. वह किसानों के साथ खड़े हो गए और उन्हें बताया एकता के बल के बारे में. सरकार ने इस संघर्ष को दबाने की कोशिश की पर अंततः उन्हें वल्लभभाई पटेल के आगे झुकना ही पड़ा.
बारडोली में इस संघर्ष के दौरान और बाद में मिली जीत के कारण पूरे भारत में सरदार पटेल का कद और ऊंचा हो गया. उन्होंने जिस तरह से लोगों को एक जुट कर उनकी ताकत से वाकिफ करवाया वह वाकई बहुत लाजवाब था.
इस कारण ही उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि दी गई.
1930 में नमक-सत्याग्रह के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इससे पूरे गुजरात में आंदोलन और तीव्र हो गया. इसकी वजह से ब्रिटिश सरकार महात्मा गांधी और वल्लभभाई पटेल को रिहा करने पर मजबूर हो गई.
इसके बाद उन्हें मुंबई में एक बार फिर गिरफ्तार किया गया. 1931 में गांधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर करने के पश्चात सरदार पटेल को जेल से रिहा किया गया और कराची में 1931 सत्र के लिए उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया. लंदन में गोलमेज सम्मेलन की विफलता पर गांधी जी और सरदार पटेल को जनवरी 1932 में गिरफ्तार कर येरवदा की सेंट्रल जेल में कैद किया गया. कारावास की इस अवधि के दौरान सरदार पटेल और महात्मा गांधी एक दूसरे के करीब आये और दोनों में एक गहरा रिश्ता बना.
जुलाई 1934 में सरदार पटेल को रिहा किया गया.
अगस्त 1942 में कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन आरम्भ किया. सरकार ने वल्लभभाई पटेल सहित कांग्रेस के तमाम विशिष्ट नेताओं को कारावास में डाल दिया. सारे नेताओं को तीन साल के बाद छोड़ दिया गया. 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री और सरदार पटेल उप-प्रधानमंत्री बने. इसके अतिरिक्त वह गृहमंत्रालय, सूचना एवं प्रसारण और राज्यों के मंत्रालय के प्रभारी भी थे.
Mahatma Gandhi And Sardar Patel During Bardoli Satyagraha (Pic: wikipedia)
बिखरे भारत को साथ लाए
आजादी के समय भारत में कुल 560 से ज्यादा रियासतें थीं. कुछ महाराजा और नवाब, जिनका इन रियासतों पर शासन था, जागरूक और देशभक्त थे पर उनमें से बहुत सारे दौलत और सत्ता के नशे में थे.
जब अंग्रेजो ने भारत छोड़ा तब वे स्वतंत्र शासक बनने के स्वप्न देख रहे थे. उन्होंने तर्क दिया कि स्वतंत्र भारत की सरकार उन्हें बराबरी का दर्जा दे. उनमें से कुछ लोग तो संयुक्त राष्ट्र संगठन तक अपना प्रतिनिधि भेजने की योजना बनाने की हद तक चले गए थे.
वल्लभभाई ने भारत के राजाओं से देशभक्ति का आह्वान किया. उन्होंने उनसे कहा कि वो देश की स्वतंत्रता से जुड़कर एक जिम्मेदार शासक की तरह बर्ताव करें.
उन्होंने 565 रियासतों के राजाओं को यह स्पष्ट कर दिया कि अलग राज्य का उनका सपना असंभव है और भारतीय गणतंत्र का हिस्सा बनने में ही उनकी भलाई है. इसके बाद उन्होंने महान बुद्धिमत्ता और राजनीतिक दूरदर्शिता के साथ छोटी रियासतों को संगठित किया.
उनकी इस पहल में रियासतों की जनता भी उनके साथ थी. उन्होंने हैदराबाद के निज़ाम और जूनागढ़ के नवाब को काबू में किया. वह दोनों ही शुरुआत में भारत से नहीं जुड़ना चाहते थे. उन्होंने एक बिखरे हुए देश को बिना किसी खून खराबे के संगठित कर दिया.
अपने इस विशाल कार्य की उपलब्धि के लिए सरदार पटेल को ‘लौह पुरुष’ का ख़िताब मिला. इसके साथ ही उन्होंने अपना नाम भारत के गौरवशाली इतिहास में स्वर्णाक्षर में दर्ज करवा लिया.
Rajendra Prasad(Left) And Vallabhbhai Patel(Right) (Pic: dnaindia)
आगे सरदार पटेल के जीवन पर आधारित फिल्म ‘सरदार‘ भी बनी. इसमें उनके स्वतंत्रता सेनानी बनने के सफर को दिखाया गया.
सरदार पटेल ने जो भारत के लिए किया उसे शब्दों में समेटना मुश्किल है. उनके द्वारा दिए गए बलिदानों के लिए हम हमेशा ऋणी रहेंगे.
Web Title: Story Of Vallabhbhai Patel The Ironman Of India, Hindi Article