क्या आप कभी कोलकाता गए हैं ?
कोई बात नहीं.
आपने फोर्ट विलियम का नाम तो सुना ही होगा! फोर्ट विलियम थल सेना के पूर्वी कमान का मुख्यालय है. इसकी भव्यता आपको खूब आकर्षित करेगी. फोर्ट विलियम के सामने ही रेस कोर्स, विक्टोरिया का मैदान और बेहद चौड़ी व चमकीली सड़क है.
इसी फोर्ट विलियम के एक छोटे से कमरे से इतिहास का एक खौफनाक अध्याय जुड़ा हुआ है. अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ये कमरा कई अंग्रेज बंदियों की कब्रगाह बन गया था. इस कमरे को ‘ब्लैक होल’ कहा जाता था.
तो आइये पलटते हैं रोंगटे खड़े कर देने वाले इस दर्दनाक कहानी के उस ख़ास चैप्टर को–
जॉब चार्नक की सुतानुटी में दस्तक
सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में आई और यहां के कुछ शहरों में कंपनी ने व्यापार करना शुरू कर दिया था.
उसी दौरान जॉब चार्नक नामक एक अंग्रेज इस कंपनी का हिस्सा बना. आगे अपने काम के चलते वह प्रमोशन पर प्रमोशन पाने लगा और सन् 1685 आते-आते बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी का मुख्य एजेंट बन गया.
यह वह दौर था, जब कलकत्ता अस्तित्व में नहीं था. अलबत्ता तीन गांव थे, जो एक दूसरे के बेहद करीब थे. साथ ही बंगाल के नवाब व ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच कस्टम ड्यूटी को लेकर रस्साकशी चल रही थी.
इसी क्रम में 1685-1687 के बीच जॉब चार्नक की जिम्मेदारी में ईस्ट इंडिया कंपनी का सामान बंगाल में उतरना था. नवाब को इसकी जानकारी हुई, तो उसने इसे रोकने के लिए जुगत लगानी शुरू कर दी.
जॉब चार्नक को अंदाजा था कि नवाब उसके रास्ते में अवरोध पैदा कर सकता है, इसलिए उसने बचने के लिए सामान व ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों को हुगली नदी के किनारे बसे एक गांव में जाने का आदेश दे दिया. इस गांव का नाम था सुतानुटी!
बाद में अंग्रेजों ने मुगल बादशाह औरंगजेब के साथ एक अनुबंध कर लिया, जिसके तहत जॉब चार्नक को सुतानुटी से होकर व्यापार करने की छूट मिल गई.
सुतानुटी के पास दो गांव थे, जो कलिकाता व गोंविदपुर के नाम से जाने जाते थे! ये ही तीनों गांव कालांतर में कलकत्ता शहर के नाम से मशहूर हुए.
East India House, London (Image Source: britannica.com)
फोर्ट विलियम व ब्लैक होल का निर्माण
चूंकि, सुतानुटी हुगली नदी के किनारे बसा हुआ था, इसलिए ईस्ट इंडिया कंपनी को यह क्षेत्र व्यापार के लिहाज से बहुत मुफीद लगा और कंपनी ने बाद में तीनों गांवों को खरीद कर धीरे-धीरे यहां व्यापार का विस्तार करना शुरू कर दिया. कंपनी का व्यापार भी यहां बढ़िया चलने लगा और कई फैक्टरियां स्थापित कर ली गईं.
ऐसे में फैक्टरियों को सुरक्षित रखने के लिए किला बनाने की जरूरत महसूस की जाने लगी और 17वीं शताब्दी के आखिरी दशक से ईस्ट इंडिया कंपनी ने फोर्ट विलियम का निर्माण शुरू किया जोकि, एक दशक में ही बनकर तैयार हो गया.
इस किले में 14 बाई 18 फीट का एक खास कमरा बनाया गया, जिसका नाम रखा गया ‘ब्लैक होल’!
असल में इस कमरे में बेहद छोटे-छोटे दो रोशनदान बनाए गए थे. अंग्रेजों ने इस कमरे का निर्माण छोटे-मोटे अपराध करने वाले अपराधियों को सजा देने के लिए किया था.
पर, किसे पता था कि एक दिन यह ‘ब्लैक होल’ अंग्रेज बंदियों की ही कब्रगाह बन जाएगा.
जब सिराजुद्दौला ने की फोर्ट पर चढ़ाई
ईस्ट इंडिया कंपनी जब नई-नई में भारत में आई थी, तब तक तो सब कुछ ठीक था.
17वीं शताब्दी व 18वीं शताब्दी के बीच तक उन्होंने बिना किसी हस्तक्षेप के व्यापार किया, लेकिन बाद में फ्रांस ने भी भारत में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी. लिहाजा उसकी पहली नजर कलकत्ता पर ही पड़ी.
ईस्ट इंडिया कंपनी भी इस बात को जानती थी, इसलिए उसने फोर्ट विलियम का निर्माण करने के बाद अपनी सैन्य शक्ति में इजाफा करना शुरू कर दिया.
उस समय बंगाल के नवाब रहे सिराजुद्दौला को जब इसकी खबर मिली, तो उन्हें लगा कि शायद अंग्रेज उन पर हमले की तैयारी कर रहे हैं. इस कारण उन्होंने तुरंत अंग्रेजों को संदेश भेजा कि सैन्य शक्ति बढ़ाने का कार्यक्रम रोक दिया जाए. अंग्रेजों ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया. इससे नाराज सिराजुद्दौला हाथी, ऊंट व हजारों सैनिकों के साथ फोर्ट विलियम की ओर रवाना हो गए.
Shuja ud daula (Pic: Wikipedia)
‘ब्लैक होल’ बना अंग्रेजों के लिए काल
सिराजुद्दौला 5 जून 1756 को मुर्शिदाबाद से रवाना हुआ और दो हफ्ते बाद यानी 19 जून को फोर्ट विलियम पहुंचा. चूंकि उस वक्त तक अंग्रेजों के पास वैसा सैन्य बल नहीं था कि उससे मुकाबला कर सके, इसलिए ज्यादातर अंग्रेज सिराजुद्दौला के आने से पहले ही जलमार्ग के सहारे भाग गए. वहां कमांडर जॉन जेड हॉलवेल के नेतृत्व में करीब 200 अंग्रेज सैनिक फोर्ट विलियम की रक्षा के लिए छोड़ दिए गए थे.
सिराजुद्दौला लश्कर लेकर फोर्ट विलियम पहुंचा और उसने वहां भारी तोड़फोड़ मचाई. इसके बाद उसके सैनिक ने अंग्रेजी सैनिकों को कैद कर लिया और उसी 14 बाई 18 फीट के कमरे में बंद कर दिया. जून का गर्म महीना था, उस पर वहां एक छोटा-सा रोशनदान और उसमें कई दर्जन अंग्रेज बंदी!
फिर वही हुआ, जो होना था. उस छोटे से कमरे में घुट-घुटकर ज्यादातर बंदियों ने दम तोड़ दिया.
प्लासी के मैदान में चुकाना पड़ा हिसाब
इसके बाद सिराजुद्दौला ने फोर्ट विलियम पर कब्जा कर लिया.
ब्लैक होल की घटना लंदन में आग की तरह फैल गई थी. अंग्रेजी हुकूमत के लिए यह घटना बेहद परेशान करने वाली थी. लिहाजा वे शांत बैठने वाले नहीं थे और फिर फोर्ट विलियम पर कब्जा करने के लिए उसी साल यानी 1756 के अक्टूबर में रॉबर्ट क्लाइव को लंदन से भारत भेजा गया.
इस तरह 3 महीने कड़े संघर्ष के बाद क्लाइव फोर्ट विलियम पर अपना कब्जा कर पाया.
‘ब्लैक होल’ की घटना अंग्रेजों के लिए किसी गहरे जख्म से कम नहीं थी. इसका बदला वे हर हाल में लेना चाहते थे. फिर वह वक्त भी आ गया, जब उन्हें लगा कि अब वे सिराजुदौला को धूल चटा सकते हैं!
जून 1757 में ब्लैक होल की दर्दनाक घटना को एक साल पूरा हो चुका था. महीने की 23 तारीख को रॉबर्ट क्लाइव ने तीन हजार सैनिकों के साथ मुर्शिदाबाद पर चढाई कर दी. गंगा नदी के किनारे स्थित प्लासी के मैदान में सिराजुद्दौला और अंग्रेज फौज में मुठभेड़ हुई.
मीर जाफर की दगाबाजी ने सिराजुद्दाौला की जीत की उम्मीद को चकनाचूर कर दिया और उसे करारी शिकस्त मिली. इस तरह अंग्रेजों ने ‘ब्लैक होल’ का बदला ले लिया था.
Black Hole of Calcutta (Pic: Historic)
कहते हैं कि इसी लड़ाई के बाद अंग्रेज भारत में लगातार मजबूत होते गए और देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ता चला गया.
आपको इस लेख में दी गई जानकाारी कैसी लगी?
अगर आप भी इस तरह के किसी ऐतिहासिक किस्से से वाकिफ हैं तो कृपया हमें नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: The Black Hole of Calcutta, Hindi Article
Features Image Credit: Chughtai