वर्ष 1939 से लेकर 1945 तक का समय दुनिया के लिए किसी दंश से कम नहीं था.
यह समय था दूसरे विश्व युद्ध का, जिसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था. विश्व युद्ध के पांच सालों के दौरान कई ऐसे खौफनाक मंजर घटे, जिन्होंने लोगों के ज़ेहन को झिंझोड़ कर रख दिया.
इस युद्ध से जुड़े कुछ किस्से ऐसे हैं जिनके सामने आने के बाद लोगों की रुह कांप गई और कुछ ऐसे हैं, जहां कुछ लोगों की बुद्धिमता और पराक्रम की बदौलत वह इतिहास के पन्नों में अमर हो गए.
कुछ ऐसी ही कहानी है स्टालाग लूफ़्ट तृतीय कैंप से भागे उन 76 कैदियों की, जिन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी जेल पलायन की योजना को अंजाम दिया. यह इतिहास में जेल से भागने के लिए बनाई गई सबसे बड़ी योजना बताई जाती है, जिसमें अमेरिकन, कैनेडियन, फ्रैंच, ब्रिटिश और ऑस्ट्रेलियन समेत अन्य देशों के सैनिकों ने संयुक्त रुप से कार्य किया था.
आइये जानते हैं कि आखिर किस प्रकार 200 से अधिक सैनिकों ने मिलकर इस योजना को अंजाम दिया. किस तरह वह हिटलर के नाजियों की नाक के नीचे से जेल में से निकलने में सफल रहे और पकड़े गए कैदियों को हिटलर ने क्या सजा दी.
तो चलिए इतिहास में दफन इस कहानी को एक बार फिर से जीते हैं–
जर्मन जेल में थे नरक जैसे हालात
इस कहानी की शुरुआत होती है साल 1943 से जब हिटलर की नाजी सेना ने विश्व युद्ध में लड़ रहे संयुक्त सेना के हजारों कैदियों को गिरफ्तार कर लिया था. इनमें अधिकतर कैदी संयुक्त सेना के एयर फोर्स के सैनिक थे या फिर वो जो अपनी टुकड़ी से बिछड़ कर दुश्मन के हाथ लग गए थे.
इन सभी कैदियों को नाजियों के अत्यधिक हाई सिक्योरिटी कैंप ‘स्टालाग लूफ़्ट तृतीय’ में रखा गया था.
यहां के नाजी गार्ड कैदियों के साथ जानवरों जैसा सलूक करते थे और उन्हें यातनाएं देते थे. इसी जेल में एक कैदी रॉयल एयर फोर्स के पायलट रोजर बुशेल भी थे.
जहां बाकी कैदी अपनी रिहाई की आस छोड़ बैठे थे वहीं दूसरी ओर बुशेल के दिमाग में एक प्लान चल रहा था. उनका मानना था कि उनके प्लान के कारण वह एक न एक दिन तो इस कैद से बच के निकलेंगे ही.
नाजी सेना के सामने से भागना कोई आसान काम नहीं था, इसलिए उन्होंने जेल में बंद बाकी कैदियों को भी अपने साथ लाना शुरू किया. वह एक-एक कर सबके पास जाते और उन से अपने प्लान के बारे में बात करते. थोड़े ही समय में बहुत बड़ी संख्या में कैदी उनके प्लान के साथ जुड़ गए.
सब ने मिलकर इस काम को अंजाम देने का सोच लिया.
Nazi Prison Camp (Pic: wikipedia)
नाजियों के पैरों तले बना डाली ‘सुरंग’!
जेल से भागने की योजना में जेल के करीब 200 कैदी शामिल थे. कैदियों ने कैंप की 104 नंबर झोपड़ी को भागने के रास्ते के लिए चुना. इस योजना के तहत कैदियों द्वारा तीन अलग-अलग सुरंगे खोदी जानी थी. इन्हें कोड नेम टॉम, डिक एंड हैरी दिया गया था.
ये सुरंगे कैंप से 300 फीट पार तक खोदी जानी थी, ताकि कैदी कम समय में दुश्मन की पहुंच से अधिक से अधिक दूर जा सके. योजना का खाका तैयार करने के बाद शुरु हुआ कैदियों का कठिन परिश्रम!
संयुक्त सैनिकों के छोटे-छोटे दल रोजाना बारी-बारी जाकर अपने हिस्से की खुदाई करते थे. खुदाई के इस काम में सबसे पहली परेशानी थोड़े ही समय में सामने आ गई. अब परेशानी यह आ रही थी कि खुदाई के दौरान जमीन से निकलने वाली हजारों किलो मिट्टी को कहाँ स्थानांतरित किया जाए.
खुदाई के बारे में किसी भी नाजी सैनिक को अगर जरा सी भी भनक लग जाती तो सबको मौत के घाट उतार दिया जाता.
इसके लिए सभी कैदी थोड़ी थोड़ी मिट्टी अपनी जुराबों में भर कर बाहर ले आते थे और फिर चालाकी से उन्हें कैंप के बाग में फेंक देते थे. कुछ समय बाद जब सुरंग की गहराई बढ़ी तो सबको इस बात की चिंता पड़ गई कि अगर किसी कारण मिट्टी की छत गिर गई तो वह सब हजारों किलो मिट्टी के नीचे दफन हो जाएंगे.
हर बदलते दिन के साथ कैदियों के सामने नई-नई परेशानियां आ रहीं थी. इसके बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपने काम को जारी रखा.
इस समस्या के हल के लिए एक और ऑपरेशन किया गया. इसमें कैदियों ने एक-एक कर करीब 4000 लकड़ी के बोर्ड चुराए, जिन्हें वह सुरंग की छतों व दीवारों को सहारा देने के लिए इस्तेमाल करते थे. साथ ही खुदाई के दौरान होने वाली आवाज को दबाने के लिए उन्होंने अपने कंबलो का इस्तेमाल किया.
जैसे-जैसे सुरंग की गहराई बढ़ रही थी कैदियों को आगे की खुदाई के लिए रोशनी की कमी भी लगने लगी. इससे बचने के लिए उन्होंने गत्ते के बने डिब्बे इकठ्ठा करना शुरू किया. उन डब्बों को वह चुपके से अपने साथ ले जाया करते थे. जैसे ही वह अंदर आ जाते थे उन्हें जला के खुदाई के लिए रोशनी कर लेते.
कुछ समय बाद कैदी बिजली की तारे चुराने में कामयाब रहें और फिर उन्होंने टिन के कैन से लैंप बनाए. खुदाई के दौरान निकलने वाली मिट्टी को बाहर निकालने के लिए उन्होंने हॉकी स्टिक की मदद से एक ट्राली भी बना ली थी.
कई महीनों के बाद आखिरकार कैदियों की मेहनत रंग लाई, सुरंग बन कर तैयार हो गई थी और अब सभी कैदी अपनी योजना के अंतिम पड़ाव को अंजाम देने के लिए तैयार थे.
उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि आखिर कैसे उन्होंने वह सुरंग बना ली. कड़ी मेहनत के कारण उन्होंने अपनी आजादी का रास्ता बना लिया था. अब वक़्त था बस उस रास्ते पर चल के अपनी मंजिल को पाना.
उन्होंने भागने से पहले पूरे इलाके के मैप और कम्पास साथ ले लिए थे, ताकि बाहर पहुंचने के बाद वह सही रास्ते की ओर आगे बढ़ सकें. अत: 24 मार्च 1944 को एक- एक कर कैदी उसी मिट्टी वाली ट्राली के जरिए सुरंग में दाखिल होना शुरु हुए.
उन्होंने सूरज निकलने से पहले का समय चुना था भागने के लिए. ऐसा इसलिए था क्योंकि उस समय नाजी गार्ड थोड़ी देर के लिए तैनात नहीं होते थे. वह धीरे-धीरे कैंप से बाहर निकलते जा रहे थे. सब के चेहरों पर ख़ुशी थी क्योंकि उन्हें अपनी आजादी मिलने वाली है.
Soldiers Made Tunnels To Escape (Representative Pic: thesun)
योजना का परिणाम रहा उम्मीदों से उलट!
अभी अन्य कैदी जेल से निकलने के लिए सुरंग में दाखिल हो ही रहे थे कि सुबह के समय पेट्रोलिंग कर रहे एक गार्ड ने कैदियों द्वारा बनाई गई सुंरग को देख लिया!
इसके बाद गार्ड ने तुरंत ही अलार्म बजा दिया, जिसे सुनने के बाद सुरंग में मौजूद सभी कैदी जल्दी से सुरंग से बाहर निकल कर अपनी-अपनी जगह पर वापिस पहुंच गए. जब कैंप में कैदियों की गिनती की गई तो पता चला कि करीब 76 कैदी अभी भी कम हैं. उन्हें पता चल गया कि वह जेल से भाग चुके हैं.
इस बात की जानकारी जब हिटलर को लगी तो उसने अपने सैनिकों को भागे कैदियों की तालाश में भेज दिया. इस दौरान नाजियों ने आस पास के होटलों व शहर के अन्य स्थलों से करीब 73 सैनिकों को ढूंढ निकाला और उन्हें वापिस कैंप में ले आए.
कैंप में हुई इस घटना से हिटलर बेहद गुस्सा था और उसने अन्य सैनिकों को एक सीख देने के लिए पकड़ कर लाए गए 73 सैनिकों में से 50 सैनिकों को मौत के घाट उतरवा दिया. मरने वालों में इस पूरी योजना को तैयार करने वाले बुशेल भी शामिल थे.
हालांकि फिर भी तीन कैदी इस योजना को सफल बनाने में कामयाब रहे. इनमें से दो कैदी माल ढोने वाले जहाज के जरिए स्वीडन पहुंच गए जबकि एक डच कैदी ट्रेन के जरिए जिब्राल्टर पहुंचा. वहीं कैंप में हिटलर के आदेश पर कैदियों द्वारा बनाई गई सुरंगो को ढूंढ कर हमेशा के लिए बंद कर दिया गया, ताकि भविष्य में कोई कैदी उसका इस्तेमाल न कर सके.
कैदी भले ही जेल से निकलने में नाकामयाब हुए मगर उन्होंने जेल तोड़ के ये ज़रूर दिखा दिया कि इच्छाशक्ति के आगे कोई भी चीज मुश्किल नहीं है.
Nazi Killed The Caught Soldiers (Representative Pic: rarehistoricalphotos)
यह घटना मिलिट्री इतिहास की सबसे बड़ी जेल तोड़ने की सूची में सबसे ऊपर है. द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद इस घटना से जुड़े लोगों ने उस समय के अपने अनुभव को साझा किया.
इस घटनाक्रम को लोगों के समक्ष उजागर करने के मकसद से साल 1963 में जॉन स्ट्रगिस ने “दा ग्रेट इस्केप” नाम से एक फिल्म बनाई, जिसमें स्टीव मैक्वीन, जेम्स गार्नर समेत अन्य कलाकारों ने 1944 के इस एतिहासिक किस्से को बड़े पर्दे पर उतारा. जिसे लोगों ने काफी पसंद किया.
आपने अगर फिल्म देखी हो तो अपने अनुभव कमेन्ट-बॉक्स में शेयर करें.
Web Title: The Breakout Of Nazi’s Prison Stalag Lufta, Hindi Article
Feature Image Credit: nytimes