जब से इंटरनेट और स्मार्टफोन का चलन शुरू हुआ है, तब से इंसान की जिंदगी काफी आसन हो गई है. आज हम इनकी मदद से कुछ भी ढूंढ लेते हैं.
उदाहरण के लिए रास्ते को ही ले लीजिए!
आज के समय में अगर किसी को रास्ता ढूँढना होता है, तो वह व्यक्ति झट से अपना फोन निकालता है, और जीपीएस शुरू कर लेता है. परिणाम यह होता है कि उसे कुछ ही देर लगती है और वह अपने गनतव्य पर पहुंच जाता है.
किन्तु, क्या आप जानते हैं कि आखिर कैसे जीपीएस ने अपना सफ़र शुरू किया?
अगर नहीं! तो आईए जानते हैं–
रूस की टेक्नोलॉजी ने अमेरिका को किया परेशान!
1957 से पहले किसी ने भी जीपीएस के बारे में कभी नहीं सोचा था, मगर उस साल सब कुछ बदल गया. इंसान अब अंतरिक्ष की ओर अपने कदम बढ़ा रहा था.
इस कड़ी में रूस ने सबसे पहले बाजी मारी. उन्होंने 1957 में दुनिया का सबसे पहला सैटेलाइट अंतिरक्ष में भेजा. इसके कुछ सालों बाद ही रूसी वैज्ञानिकों ने जाना कि सैटेलाइट के रेडियो सिग्नल में थोड़ा बहुत बदलाव करने से दूसरे सैटेलाइट के स्थान का पता लगाया जा सकता है.
इसे नाम दिया गया ‘डॉप्लर इफ़ेक्ट’.
नेविगेशन की ओर यह सबसे पहला कदम था. यह देखकर बहुत से देश हैरत में आ गए थे. हर किसी ने सोचना शुरू कर दिया था कि नेविगेशन की इस तकनीक से आखिर कितनी चीजें बेहतर हो सकती हैं.
इसके बाद सबसे पहले अमेरिका ने इस ओर अपना कदम बढ़ाया. उन्होंने 1960 में सैटेलाइट के जरिए नेविगेशन शुरू किया. अमेरिकी नौसेना ने इस नेविगेशन को अपनी उन पनडुब्बियों की लोकेशन की जानकारी रखने के लिए बनाया, जिनमें उन्होंने परमाणु हथियार रखे हुए थे.
बस यहीं से शुरू हुआ आज के जीपीएस का असली सफ़र.
Russia Sent The First Satellite In Space (Pic: history)
आसमान में छोड़ी गईं कई सैटेलाइट
1960 के बाद से अमेरिका जीपीएस बनाने लगा.
नेविगेशन के बारे में थोड़ी और खोज करने पर पता चला कि अगर इसे थोड़ा और बेहतर बनाया जाए, तो यह जमीन पर चलती गाड़ियों की भी जानकारी दे सकता है. यह बात जैसे ही सामने आई अमेरिकी सेना का ध्यान इसकी ओर खिंच गया. इस तकनीक के जरिए वह आसमान से ही दुश्मन की गतिविधियों का पता लगा सकते थे.
इसके बाद कई सालों तक जीपीएस को बेहतर बनाने पर काम चलता रहा. 1974 में इसमें असली उपलब्धि मिली. इस साल अमेरिकी सेना ने करीब 24 सैटेलाइट को आसमान में छोड़ा. इन 24 सैटेलाइट का काम था, पूरी धरती को स्कैन करना.
ताकि, अमेरिका अपने देश में बैठे -बैठे सब पर नजर रख सके. इस प्रोजेक्ट को ‘NAVSTAR’ नाम दिया गया था. शुरुआत में इसे महज एक टेस्ट माना गया था. हालांकि, यह टेस्ट पास हुआ. अमेरिका ने नेविगेशन पर अपनी पकड़ बना ली थी.
America Sent Many Satellite In Space (Representative Pic: space)
269 जाने गईं, तब जीपीएस आम लोगों तक आया!
अपने शुरूआती समय में जीपीएस सिर्फ अमेरिकी सेना ही इस्तेमाल किया करती थी. आम लोगों और दूसरे देशों को यह नहीं दिया गया था. इसकी जरूरत बहुत जगहों पर थी, मगर फिर भी इसे किसी को देना जरूरी नहीं समझा गया.
कई सालों तक अमेरिका ही इससे अपने काम निकालने पर लगा हुआ था.
हालांकि, एक हादसे ने सब बदल दिया. यह बात सितंबर 1983 की है. अमेरिका से दक्षिण कोरिया की तरफ एक पैसेंजर प्लेन ने अपनी उड़ान भरी थी. पूरा प्लेन यात्रियों से भरा हुआ था. उस समय के प्लेन में जीपीएस नहीं होते थे.
वह कंप्यूटर के जरिए अपने रास्ते जान पाते थे. कोरिया एयरलाइन्स का वह प्लेन अलास्का में ईंधन भरने के लिए उतरा और तभी वहां उनका कंप्यूटर खराब हो गया. इसके बाद भी वह अंदाजे से अपनी मंजिल की ओर बढ़ने लगे.
पायलट को दिशा का सही से अंदाज नहीं हुआ और वह अपना प्लेन रूस की तरफ ले गया. कहते हैं कि वह प्लेन रूस की उस जगह पर जाने लगा, जहाँ वह परमाणु हथियार रखते हैं. जैसे ही वह सीमा में घुसा रूस को लगा कि वह कोई जासूसी प्लेन है.
खतरा महसूस होते ही रूस ने अपने लड़ाकू जहाज उस प्लेन की तरफ भेज दिए.
कुछ ही देर में रूसी लड़ाकू जहाज़ों ने कोरिया के प्लेन को नष्ट कर दिया और साथ में उसके 269 लोगों को भी. इस प्लेन हादसे की खबर जैसे ही दुनिया को लगी हर कोई हैरान हो गया. इसके बाद अमेरिका के उस समय के राष्ट्रपति रोनाल्ड विलसन रीगन ने एक फैसला लिया, जिसने भविष्य ही बदल दिया.
उन्होंने जीपीएस को अमेरिका तक ही सीमित नहीं रखा. उन्होंने उसे सब के लिए देने का फैसला कर लिया. करीब 10 बिलियन डॉलर और 10 साल के इंतजार के बाद जाकर जीपीएस को बाकी देशों के लिए तैयार किया जा सका.
इसके बाद 1995 में अमेरिकी सरकार और प्राइवेट कंपनियों में करार हुए, ताकि जीपीएस को लोगों तक लाया जा सके. सन 2000 में तो जीपीएस को पूरी तरह से पूरी दुनिया के फ्री कर दिया. इस एक घटना के बाद जाकर जीपीएस हमारी जिंदगी में आ पाया और हमारी जिंदगी आसान बना पाया.
Russian Jet Shoots Down (Representative Pic: nycaviation)
करोड़ों का खर्च है, मुफ्त के जीपीएस के पीछे
आज के समय में जीपीएस हमारे फोन में है और मुफ्त है.
हम कभी भी इसे इस्तेमाल कर सकते हैं, जितना मर्ज़ी इसे इस्तेमाल कर सकते हैं. हाँ मगर असल में यह फ्री जीपीएस का भी एक दाम है. यह करोड़ों डॉलर का है…
जीपीएस भले ही आम इंसान के लिए मुफ्त हो मगर, जो कंपनियां इसे आम लोगों तक पहुंचाती है. उन्हें इसका दाम चुकाना पड़ता है. जीपीएस को हर समय चलाए रखने के लिए 24 सैटेलाइट ली मदद ली जाती है.
उन सभी का सालाना खर्चा करीब 750 मिलियन डॉलर माना जाता है! इतने बड़े दाम देने के बाद हमे फ्री जीपीएस मिलता है. रोजाना के हिसाब से जीपीएस का खर्च आता है. माना जाता है कि रोजाना करीब 2 मिलियन डॉलर इसे अंतरिक्ष में बनाए रकने के खर्च हो जाते हैं. यही वजह है कि आपका फ्री जीपीएस असल में फ्री नहीं है.
It Took Billions Of Dollars Every Year (Representative Pic: scibright)
अगर कारगिल में मिल जाता जीपीएस
कारगिल का युद्ध भारत के इतिहास में दर्ज है. अपने पड़ोसी देश पकिस्तान से हम इस जंग में लड़े थे. कारगिल के युद्ध में पाकिस्तान ने पहले ही पहाड़ियों पर अपना कब्ज़ा कर लिया था. भारत की सेना को इस बात का अंदाजा नहीं था कि आखिर उनके सैनिकों ने कहाँ-कहाँ पर अपने बनकर बनाए हुए हैं.
उस समय तक हर जगह पर जीपीएस नहीं दिया गया था. भारत और पाकिस्तान दोनों ही ऐसे देश थे, जिनके पास जीपीएस की सुविधा नहीं थी.
माना जाता है कि भारत को पहले ही जीपीएस की जरूरत महसूस हो गई थी, मगर इस ओर को कदम नहीं उठाया गया था. जंग में भारत ने अमेरिका से जीपीएस की मदद मांगी. मगर अमेरिका ने यह करने से मना कर दिया.
अमेरिका ने जब भारत को नकार दिया, तब भारत ने भी ठान ली कि वह खुद का जीपीएस बनाएंगे. पहले यह सिर्फ एक सोच थी मगर कारगिल के बाद यह एक जरूरत बन गई. इसके बाद भारत ने अपने जीपीएस पर काम करना शुरू किया.
कुछ सालों की मेहनत के बाद ही ‘इसरो‘ ने अपने सैटेलाइट बना लिए और उन्हें आसमान में छोड़ दिया. यह जीपीएस पूरी दुनिया तो नहीं, मगर भारत और उसकी सीमा से 1500 किलोमीटर दूर तक की चीज पर नजर रख सकता है.
हालांकि, अभी भी किन्हीं कारणों से यह पूरी तरह काम लायक नहीं बन पाया है, मगर इसने भारत को उन चुनिंदा देशों में जोड़ दिया है, जिनके पास अपना जीपीएस है.
Indian Army Demanded for GPS (Representative Pic: awesomeindia)
तो देखा आपने कैसा था जीपीएस का सफ़र और कैसे इसके आने के बाद से दुनिया बहुत ज्यादा बदल गई है. यूँ तो यह एक छोटा सा आविष्कार लगता है, मगर इसने हमारी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया है.
क्यों सही कहा न?
Web Title: The Journey Of GPS, Hindi Article
Feature Image Credit: jimilab