उपनिवेशवाद ने ना सिर्फ उन देशों को गहरे जख्म दिए हैं, जिन पर विदेशी शासन थोपा गया था. बल्कि उसने उन साम्राज्यों को भी नहीं छोड़ा, जिन्होंने अपनी आधुनिकता के चलते दूसरी संस्कृतियों से खुद को बेहतर समझा था और अपना गुलाम बना लिया था.
जिस तरह 9/11 को अमेरिका पर हुए हमले ने कई देशों का भविष्य ही बदल दिया. ठीक उसी तरह 1941 में अमेरिका के पर्ल हार्बर पर हुए जापानी हमले ने भी द्वितीय विश्व युद्ध के घटनाक्रम में बड़ा बदलाव लाया था.
इसे जापान की एक ऐसी बड़ी गलती माना जाता है, जिसने उसे पूरी तरह से तबाह कर दिया था.
कैसे आईए जानते हैं-
जब जापान ने बरसाए अमेरिका पर बम!
7 दिसंबर के दिन शायद ही किसी अमेरिकी ने सोचा होगा कि मीलों दूर चल रही लड़ाई की आंच उनके घर में आग लगाने वाली है.
हर रोज की तरह 7 दिसंबर की सुबह भी अमेरिका में हवाई के नजदीक होनोलूलू नेवल बेस में सूरज उगा ही था, तभी आसमान में कुछ हलचल दिखाई दी. जब तक सारी कहानी पता चल पाता, जापानी सेना के लड़ाकू विमानों ने बमों की बरसात कर दी.
इस हमले में लगभग 2000 लोगों की जान गई और हजार से ज्यादा लोग जख्मी हो गए.
कहते हैं कि जिस रणनीति के तहत यह हमला किया गया था, वह पूरी तरह सफल रहा. इस रणनीति का श्रेय यामामोटो इसोरोकु नाम के एक जापानी अफसर को दिया जाता है.
यामामोटो खुद अमेरिका के वॉशिंगटन में कई सालों तक जापानी दूतावास में कार्यरत थे. पहले-पहले तो जापान के द्वारा हमले की चाहत के खिलाफ रहे, लेकिन बाद में अचानक से हमला करने की नीति बनाई. जो कामयाब साबित रही.
उपनिवेशवाद के उस दौर में जब लड़ाई दूर किसी जगह पर दबदबा बनाने की होती तो हवाई जहाज या परिवहन के अन्य माध्यम अहम भूमिका निभाते थे.
ऐसे में पर्ल हार्बर पर हमला कर जापान ने अमेरिका के लगभग 3000 हवाई जहाज और 8 विशालकाय लड़ाकू समुद्री जहाज बर्बाद कर दिए थे. इससे जापान को बदला लेने की मानसिकता से होने वाली कार्यवाही से बचने के लिए काफी समय मिल गया था.
अमेरिका में हुए हमले ने अमेरिका के लोगों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव डाला था, जिससे हमले के एक ही दिन बाद तिलमिलाई अमेरिकी प्रशासन ने कांग्रेस में द्वितीय विश्वयुद्ध में हिस्सेदारी लेने के लिए वोट करवाया.
इस मतदान में केवल एक सदस्य ऐसा था, जिसने युद्ध में हिस्सेदारी के खिलाफ वोट किया था. इस सदस्य का नाम था जेनेट रैंकिंग, जो मोंटाना क्षेत्र से चुनी हुई नेता थी.
युद्ध के खिलाफ वोट करते हुए उन्होंने कहा ‘एक महिला होने की वजह से मैं युद्ध पर नहीं जा सकती और मैं किसी और को भी युद्ध पर जाने नहीं दे सकती’.
उनके इस फैसले के पीछे उनकी मानववादी सोच थी.
The Pearl Harbor Attack By Japan (Pic: ibtimes)
राष्ट्रपति रूजवेल्ट के पैरों तले खिसक गई थी जमीन
खास बात यह थी कि जनेट रैंकिन जितनी शांत थी. उसके ठीक विपरीत अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट एक गहरे सदमे में थे.
1:30 बजे के करीब राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट अपने स्टडी रूम में अपने सलाहकार हैरी होपकिंस से बात कर रहे थे, तभी नेवी सेक्रेटरी फ्रैंक वोक्स दौड़ते हुए कमरे में आए और हमले की जानकारी दी.
असल में जापान के साथ बातचीत कामयाब नहीं हुई थी और तनाव बढ़ रहा था. इसकी जानकारी अफसरों को थी, जिसके चलते जापान के द्वारा हमला होने की संभावनाएं पहले से थी. किन्तु, यह किसी ने नहीं सोचा था कि जापान इतनी मीलों दूर इस तरह अमेरिका पर हमला कर देगा. अमेरिकी अफसरों को लगा था कि जापान फिलीपींस पर ही हमला कर सकता है.
खैर, रूजवेल्ट की पत्नी, जो उन्हें नजदीक से जानती थी, उन्होंने घटना के बाद बताया था कि रूजवेल्ट उस दिन बेहतर शांत और चिंता में थे. जापान द्वारा हमले के बाद उन्हें डर था कि यदि जर्मनी ने भी अमेरिका पर हमला कर दिया, तो दोनों के साथ युद्ध का सफल हो पाना बहुत ही मुश्किल होगा. शायद इसलिए ही रूजवेल्ट ने मिलिट्री सलाहकारों से बातचीत की. यहां तक कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को भी फोन किया, ताकि वह उनकी मदद के लिए आ सके.
हमले की शाम को राष्ट्रपति ने एक संबोधन लिखवाया, जिसे उन्होंने अगले दिन अपने देश को संबोधित करते हुए पढ़ा और कहा कि इस दिन को अमेरिका कभी नहीं भूलेगा.
Franklin D. Roosevelt (Pic: hallofgovernors)
इस वजह से दुश्मन बने थे जापान और अमेरिका
जापान और अमेरिका के बीच चीन को लेकर रस्साकशी चल रही थी. जापान चीन में अपना विस्तार करना चाह रहा था, जिसके लिए वह चीन के आयात बाजार पर कब्जा जमाना चाहता था. कब्जा जमाने की मंशा के लिए उसने 1937 में चीन पर हमला भी बोल दिया.
जापान के इस कदम पर अमेरिका ने कड़ी नाराजगी जताई थी और वह किया, जिसे आज भी वैश्विक स्तर पर नाराजगी जताने के लिए किया जाता है, यानी कि आर्थिक प्रतिबंध लगाना.
अमेरिका ने डच और ब्रिटेन के साथ मिलकर जापान पर कई तरह की आर्थिक पाबंदी लगा दी. इस पाबंदी के चलते जापान के तेल के आयात पर असर पड़ा. उस समय लड़ाई से लेकर अपनी हर जरूरत को पूरा करने के लिए जापान 90% तेल का आयात ब्रिटेन से करता था, जो प्रतिबंध के बाद उसे नहीं मिल पा रहा था.
तेल के आयात मे आई कमी की वजह से जापान की सेना संबंधी कई गतिविधियों पर भी रोक लग गई थी, जिसके कारण जापान नाराज हो गया था. वहीं आर्थिक पाबंदियों के अलावा एक और वजह ऐसी थी, जिसने जापान और अमेरिका के बीच गहरी खाई बना दी थी.
वह वजह थी नानकिंग में नरसंहार. चीन पर हमला कर जापानी सेना ने वहां के एक शहर नानकिंग में जो बर्बरता दिखाई थी, उसके आगे मानवता शर्मसार खड़ी थी.
चीन में खून की नदियां बहाने वाले जापान पर अमेरिका खुद को चुप न रख सका और उसकी खूब निंदा करने लगा. वहीं जब जापान, अमेरिका की इतनी कार्यवाहियों पर खुद को शांत न रख सका तो उसमें हमला करने का मन बना लिया.
The Pearl Harbor Attack By Japan (Pic: abcnews)
पर्ल हार्बर का बदला था अमेरिकी परमाणु हमला!
जापान ने अमेरिका पर हमला कर उसे द्वितीय विश्वयुद्ध में आने की चुनौति दे दी थी, जिसे अमेरिका ने भी स्वीकार कर लिया था. 1941 में दी गई युद्ध की चुनौति 4 साल बाद जापान पर परमाणु हथियार बनके बरसेगी इसकी उम्मीद शायद ही जापान ने कभी की होगी.
कई रिपोर्ट्स की मानें तो अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु हमला करने के फैसले में कहीं न कहीं पर्ल हार्बर पर हुए हमले का बदला लेने की मंशा भी थी.
खैर, वजह जो भी रही हो जापान द्वारा किया गया पर्ल हार्बर का हमला आज भी अमेरिकियों के दिलों में है. वहीं दूसरी ओर परमाणु हमले के जापान के घाव अभी तक भरे नहीं हैं.
सालों पहले उठाए एक कदम के कारण दोनों देशों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा.
Bombing Of Hiroshima And Nagasaki (Pic: historyconflicts)
यह माना जा सकता है कि कहीं न कहीं जापान के पर्ल हार्बर के कारण ही अमेरिका ने यह कदम उठाया था. आम लोगों पर हमला करके जापान ने ही अमेरिका को उकसाया परमाणु हमला करने के लिए.
बहरलहा, एक छोटी से गलती के कारण दोनों देशों के कई निर्दोष लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी और न जाने कितनों के सिर से छत छिन गई.
Web Title: The Pearl Harbor Attack By Japan, Hindi Article
Featured Image Credit: usni